शिशु

न्यूबॉर्न बेबी में हाइपोग्लाइसीमिया

नियोनेटल हाइपोग्लाइसीमिया का मतलब है न्यूबॉर्न बेबी में ग्लूकोज का स्तर बहुत ज्यादा कम होना। छोटे बच्चों के खून में शुगर की मात्रा कम होना आम है क्योंकि जन्म के बाद ही बेबी में शुगर कम हो जाती है। हालांकि ब्रेस्टफीडिंग के द्वारा इसे बढ़ाया जा सकता है। यदि बच्चे में शुगर की मात्रा नहीं बढ़ती है तो इससे सीजर यानी दौरे और न्यूरोलॉजिकल क्षति की संभावना बढ़ जाती है। 

हाइपोग्लाइसीमिया क्या है?

जन्म के बाद शुरुआती 28 दिन का समय नियोनेटल कहलाता है। हाइपो का अर्थ बहुत कम होता है और ग्लाइसीमिया का मतलब खून में शुगर का स्तर है। नियोनेटल हाइपोग्लाइसीमिया को 45 मिलीग्राम/डेसीलीटर से कम के प्लाज्मा ग्लूकोज स्तर के रूप में परिभाषित किया गया है, (कई बार पहले घंटे के लिए यह क्षणिक रूप से 30 मिलीग्राम/डेसीलीटर हो सकता है लेकिन 10 मिनट के भीतर फिर से जांच की जानी चाहिए)। बच्चे में शुगर के लेवल को हॉर्मोन की मदद से नियंत्रित किया जाता है और मुख्य हॉर्मोन इंसुलिन है। इन्सुलिन शरीर में शुगर को नियंत्रित करता है और मेटाबॉलिज्म व इसके उपयोग को ठीक रखता है। यदि ऑर्गन और हॉर्मोन दोनों संतुलित हैं तो बच्चे में मौजूद हॉर्मोन खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखते हैं और यदि यह बैलेंस नहीं है तो न्यूबॉर्न बेबी को हाइपोग्लाइसीमिया हो सकता है। 

न्यूबॉर्न बेबी में हाइपोग्लाइसीमिया के कारण

निम्नलिखित कारणों से बच्चे के खून में शुगर का स्तर कम हो जाता है, आइए जानें; 

  • यदि मां को डायबिटीज है: यदि मां में अनियंत्रित रूप से डायबिटीज है तो इससे इन्सुलिन तेजी से उत्पन्न होता है। यद्यपि इन्सुलिन प्लेसेंटा तक नहीं जाता है पर ग्लूकोज और अन्य न्यूट्रिएंट्स जाते हैं। इसलिए खून में अतिरिक्त ग्लूकोज प्लेसेंटा तक पहुंच जाता है इससे बच्चे के खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इसकी वजह से बच्चे के पैंक्रियास में ज्यादा इन्सुलिन उत्पन्न होता है और उसके खून से ग्लूकोज कम हो जाता है।
  • प्रीमैच्योर बच्चों में: जिन बच्चों का जन्म समय से पहले हो जाता है उनमें हाइपोग्लाइसीमिया की दिक्कत होती है।
  • जन्म के दौरान वजन: जन्म के दौरान यदि बच्चे का वजन 2 किलो से कम हो तो उसे यह समस्या होगी।
  • यदि मां कोई विशेष दवा लेती है: यदि मां टरबुटैलाइन, प्रोपेनोलोन, लाबेटालोल, ओरल हाइपोग्लाइमिक एजेंट जैसी दवा लेती है तो बच्चे को हाइपोग्लाइसीमिया हो सकता है।
  • एडवांस आरएच हेमोलिटिक रोग (मां के साथ बच्चे के रक्त समूह की असंगति): यदि मां और बच्चे का ब्लड ग्रुप (पॉजिटिव या नेगेटिव प्रकार) एक जैसा नहीं है तो यह हाइपोग्लाइसीमिया का कारण बन सकता है।
  • जन्म दोष और मेटाबॉलिज्म संबंधी रोग: जन्म से ही आनुवांशिक और मेटाबॉलिज्म संबंधी विकार न्यूबॉर्न बेबी में ब्लड शुगर कम होने का कारण बन सकते हैं।
  • बर्थ एस्फिक्सिया: जिन शिशुओं में जन्म के दौरान और जन्म के बाद पहले कुछ घंटों में ऑक्सीजन का स्तर कम होता है, उनमें हाइपोग्लाइसीमिया होने का खतरा होता है
  • कोल्ड स्ट्रेस (बहुत ठंडी स्थितियां): हाइपोथर्मिया या असामान्य रूप से शरीर का तापमान कम होना हाइपोग्लाइसीमिया का कारण हो सकता है।
  • लिवर के रोग
  • इन्फेक्शन: यदि बच्चे को जन्म से ही इन्फेक्शन हुआ है तो उसका ब्लड शुगर लेवल कम हो सकता है।

न्यूबॉर्न बेबी में हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण

नियोनेटल हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण हमेशा नहीं रहते हैं। बार-बार जांच कराने से ब्लड शुगर कम होने के निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जैसे;

  • त्वचा नीली या पीली पड़ना: यह शरीर में वैस्कुलर समस्या या ऑक्सीजन की कम आपूर्ति से होता है जिसके परिणामस्वरूप सायनोसिस या पलोर हो सकता है।
  • यदि बच्चे को एपनिया है, उसकी सांसें तेज-तेज चलती हैं और उसे घरघराने की आवाज के साथ सांस लेने में दिक्कत होती है।
  • चिड़चिड़ापन।
  • यदि बच्चे की मांसपेशियां ढीली हैं।
  • यदि बच्चा ठीक से दूध नहीं पीता या उल्टी करता है।
  • यदि बच्चे के शरीर में गर्माहट रहने में दिक्कत होती है।
  • यदि बच्चा कांपता है या उसे झटके लगते हैं: हाइपोग्लाइसीमिया से बच्चे का दिमाग कुछ समय के लिए या स्थाई रूप से डैमेज हो जाता है या उसका विकास होने में देरी होती है।

किन न्यूबॉर्न बेबी में हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा ज्यादा है?

निम्नलिखित समस्याएं होने से नवजात बच्चे में हाइपोग्लाइसीमिया होने का खतरा ज्यादा होता है, आइए जानें;

  • मां को डायबिटीज होना: मां में बहुत ज्यादा ग्लूकोज होने से बच्चे में इन्सुलिन तेजी से उत्पन्न होता है जिससे उसमें विशेष रूप से ग्लूकोज का स्तर कम होता है और इस समस्या के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
  • प्रीमैच्योरिटी: जो बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं या जिनमें विकास ठीक से नहीं हो पाता है उनमें ग्लाइकोजेन की कमी होती है।
  • जन्म के दौरान बच्चे को कठिनाई होने से: लेबर के दौरान कठिनाई होने या लंबे समय तक डिलीवरी की प्रक्रिया चलने से बच्चे में हाइपोग्लाइसीमिया हो सकता है।
  • तापमान में उतार-चढ़ाव: यदि बच्चे का तापमान बढ़ता व कम होता रहता है या किसी दवा के कारण मां को हाइपोथर्मिया होता है तो बच्चे को हाइपग्लासिमिया हो सकता है।
  • बच्चा आकार में बड़ा होने से: जेस्टेशन की उम्र के अनुसार बच्चा बड़ा होने से हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। यह जेस्टेशनल डायबिटीज से जुड़ा होता है पर इसे जन्मजात हाइपरिन्सुलिनिज्म कहते हैं।

नियोनेटल हाइपोग्लाइसीमिया के कॉम्प्लिकेशन क्या हैं?

नवजात बच्चे में हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षणों का जल्दी पता लगाने और इलाज जल्दी शुरू करने से इसके हानिकारक प्रभावों को रोका जा सकता है। अन्यथा, निम्नलिखित जटिलताएं हो सकती हैं:

  • सीजर डिसऑर्डर
  • दिल का दौरा पड़ने के साथ-साथ कार्डिएक समस्याएं।
  • विकास में देरी और सेरेब्रल पाल्सी के साथ हमेशा के लिए दिमाग को क्षति होना।

न्यूबॉर्न बेबी में हाइपोग्लाइसीमिया का डायग्नोसिस

यदि बच्चे में हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण या इससे संबंधित जोखिम दिखाई देते हैं तो डॉक्टर नवजात बच्चे के खून में शुगर का स्तर लगातार चेक कर सकते हैं। इसका डायग्नोसिस किस प्रकार होता है, आइए जानें; 

  • प्लाज्मा ग्लूकोज स्तर: उंगली, एड़ी से जांच या अम्बिलिकल वेन का सैंपल।
  • सीरम इंसुलिन: हाइपोग्लाइसीमिया के किसी भी मामले में इंसुलिनोमा, एक दुर्लभ पैंक्रियाटिक ट्यूमर हाइपोग्लाइसीमिया का कारण बन सकता है।
  • यूरिन शुगर की जांच: ग्लूकोज या कीटोन का पता लगाने के लिए समय-समय पर यूरिन शुगर की जांच की जा सकती है। लेकिन एक न्यूबॉर्न बेबी पहले 48 घंटों में सामान्य रूप से पेशाब नहीं करता है जो सामान्य है। इसलिए यह डायग्नोसिस विश्वसनीय नहीं है।
  • मेटाबॉलिक समस्याओं की जांच: हाइपोग्लाइसीमिया से ग्रसित नवजात शिशु की पूरी जांच के लिए इसकी आवश्यकता हो सकती है।

न्यूबॉर्न बेबी में नियोनेटल हाइपोग्लाइसीमिया का उपचार

नवजात बच्चे में हाइपोग्लाइसीमिया को मैनेज कई प्रकार से किया जा सकता है और इसमें बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग करने जैसे सरल काम से लेकर सर्जरी तक कुछ भी किया जा सकता है। इसके कुछ उपचार निम्नलिखित हैं, आइए जानें;

  • बच्चे को अस्पताल में भर्ती करने से पहले उसे पर्याप्त ब्रेस्टफीडिंग कराना, उसकी चेतना के स्तर को चेक करना और डॉक्टर की मदद लेना जरूरी है।
  • शुरुआत में स्थिरता और सपोर्ट में सप्लीमेंटल ऑक्सीजन, पूरी जांच और बच्चे के जरूरी अंगों को मॉनिटर करना भी शामिल है।
  • गंभीर रूप से बार-बार बीमार होने वाले न्यूबॉर्न बछ्कों को 5 या 10 प्रतिशत डेक्सट्रोज सलूशन दिया जा सकता है।
  • सीजर (दौरे) के लिए एंटी-एपिलेप्टिक दवा देना बहुत जरूरी है।
  • जन्मजात हाइपरिन्सुलिनिज्म के लिए पैंक्रियास के एक हिस्से को सर्जरी से हटाने की सलाह दी जाती है।

क्या न्यूबॉर्न बेबी में हाइपोग्लाइसीमिया से बचाव हो सकता है?

शुरुआत में पर्याप्त ब्रेस्टफीडिंग से नवजात बच्चों में दोबारा हाइपोग्लाइसीमिया होने से बचने में मदद मिलती है। जिन मांओं को डायबिटीज है वे खून में ग्लूकोज को सामान्य दर पर बनाए रखकर नियोनेटल हाइपोग्लाइसीमिया से बचाव कर सकती हैं। हालांकि यह समस्या पूरी तरह से ठीक नहीं होती है। आप इस समस्या के लक्षणों के आधार पर इसका इलाज करा सकती हैं। 

यदि मेरे बच्चे को हाइपोग्लाइसीमिया है तो क्या मैं उसे ब्रेस्टफीड करा सकती हूं?

हाइपोग्लाइसीमिया से ग्रसित बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराना चाहिए या नहीं, यह उसकी तबीयत व लैचिंग की क्षमता पर निर्भर करता है। यदि बेबी सचेत रहता है, उसे नींद या आलस नहीं आता है या उसे घबराहट नहीं होती है तो आप बच्चे को डॉक्टर की देखरेख व सलाह के साथ ब्रेस्टफीडिंग कराना शुरू कर सकती हैं। 

हाइपोग्लाइसीमिया दोबारा से न हो इसलिए अक्सर मांओं को ब्रेस्टफीडिंग कराने की सलाह दी जाती है और साथ ही बच्चे को कंगारू केयर में रखने के लिए कहा जाता है। 

डॉक्टर से कब मिलें?

यदि बच्चा सुस्त रहता है या बहुत ज्यादा सोता रहता है, बहुत ज्यादा चिड़चिड़ाता है, कांपता है, तबीयत ठीक नहीं रहती है या उसकी उंगलियां नीली दिखाई देती हैं तो आपको तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। 

निष्कर्ष: नियोनेटल हाइपोग्लाइसीमिया नवजात बच्चे में होने वाली एक गंभीर पर उपचार योग्य मेटाबॉलिक समस्या है जो आमतौर पर ठीक हो जाती है। इससे बच्चे के दिमाग के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। शुरुआत में सही डायग्नोसिस और सावधानियां बरतने से छोटे बच्चों की यह समस्या आसानी से ठीक हो सकती है। 

यह भी पढ़ें:

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नियोनेटल रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एनआरडीएस)

सुरक्षा कटियार

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