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नवजात शिशु में ट्रांजियंट टेकिप्निया (टीटीएन) – कारण, लक्षण और इलाज

ट्रांजियंट टेकिप्निया (टीटीएन) एक माइल्ड रेस्पिरेटरी समस्या है, जो कि नवजात शिशुओं को प्रभावित करती है। यह 100 प्री टर्म शिशुओं में से 1 और 1000 फुल टर्म शिशुओं में से लगभग 5 शिशुओं को प्रभावित करती है। सांस की तेज गति से इसकी पहचान की जाती है। यह लेख आपको टीटीएन के बारे में सब कुछ बताएगा, यानी यह होने के कारण, इसके लक्षण और इलाज। 

ट्रांजियंट टेकिप्निया क्या है?

ट्रांजियंट टेकिप्निया एक सांस लेने से जुड़ी एक समस्या है, जो कि न्यूबॉर्न बच्चों को प्रभावित करती है। नवजात शिशुओं के फेफड़ों में तरल पदार्थ भरा होता है (अल्विओली या हवा की थैली में), जो ठीक से साफ नहीं होता है और इस फ्लूइड के कारण, फेफड़ों को ऑक्सीजन सोखने में कठिनाई होती है। जिसके कारण, नवजात शिशु ऑक्सीजन के लिए संघर्ष करता है और तेज सांसे लेता है। इसमें घरघराहट या घिसने जैसी आवाजें आती हैं। एक नवजात शिशु में टेकिप्निया एक टेंपरेरी स्थिति है और आमतौर पर यह 1 से 3 दिनों तक रहती है। 

अल्विओलर फ्लूइड साफ होने की प्रक्रिया जन्म से पहले शुरू हो जाती है और लेबर के दौरान यह जारी रहती है। यह प्रक्रिया डिलीवरी के बाद भी थोड़े समय के लिए बनी रहती है। जन्म से ठीक पहले, हॉर्मोंस इस प्रक्रिया को ट्रिगर करते हैं। लेबर के दौरान, कॉन्ट्रैक्शन के कारण बर्थ कैनाल दबती है, जिससे बच्चे के फेफड़ों में से बचा हुआ तरल पदार्थ बाहर आने लगता है। डिलीवरी के बाद, बच्चे के खाँसने या रोने से उसे सांस लेने में और बाकी के अल्विओलर को बाहर निकालने में मदद मिलती है। अगर इनमें से कोई भी प्रक्रिया, तरल पदार्थ को बाहर निकालने में असमर्थ रहती है, तो बच्चे को टीटीएन हो जाता है। 

कारण और खतरे

टीटीएन को गीले फेफड़ों के नाम से भी जाना जाता है और यह फेफड़ों में से अल्विओलर फ्लूइड के बाहर आने की धीमी गति या फेफड़ों द्वारा दोबारा सोखने के कारण होता है। नीचे हम टीटीएन के विभिन्न कारणों और खतरों के बारे में बात करेंगे। 

कारण

यहाँ पर शिशुओं में टीटीएन के होने के कारण दिए गए हैं: 

  • प्रीमैच्योर बच्चे: चूंकि प्रीमैच्योर बच्चे गर्भ में 27 सप्ताह के पूरे होने से पहले जन्म ले लेते हैं, ऐसे में फेफड़ों में फ्लूइड के सोखने और बाहर निकलने को ट्रिगर करने वाले केमिकल रिलीज नहीं होते हैं। इसलिए बच्चों को टीटीएन हो जाता है।
  • सी-सेक्शन द्वारा जन्म लेने वाले बच्चे: रिसर्च के अनुसार, जो बच्चे सी-सेक्शन द्वारा जन्म लेते हैं (विशेषकर अगर माँ सी-सेक्शन के पहले लेबर कॉन्ट्रैक्शन का अनुभव नहीं करती है) उन्हें टीटीएन से ग्रस्त होने का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि, बच्चे बर्थ कैनाल से नहीं गुजरते हैं, जहाँ लेबर कॉन्ट्रैक्शन फेफड़ों में भरे हुए अल्विओलर फ्लूइड को दबाकर बाहर निकालता है।

खतरे

यहाँ पर शिशुओं में टीटीएन के लिए कुछ खतरे दिए गए हैं: 

  • बेबी बॉय: रिसर्च डाटा के अनुसार, नवजात लड़कों को नवजात बच्चियों की तुलना में टीटीएन का ज्यादा खतरा होता है।
  • ओवरवेट बच्चे: स्टडीज से यह पता चला है, कि जिन बच्चों का वजन जन्म के समय ज्यादा होता है, उन्हें टीटीएन का खतरा भी ज्यादा होता है।
  • शिशुओं के कॉर्ड को देर से काटना: जिन नवजात शिशुओं के अंबिलिकल कॉर्ड को तुरंत नहीं काटा जाता है, उनमें भी टीटीएन डेवलप होने का खतरा होता है।
  • माँ की स्थिति: अगर माँ को प्री-एक्लेमप्सिया, अस्थमा या डायबिटीज जैसी कोई समस्या हो, तो बच्चे में टीटीएन होने का खतरा भी ज्यादा होता है।

संकेत और लक्षण

यहाँ पर टीटीएन के कुछ संकेत और लक्षण दिए गए हैं: 

  • साइनोसिस: शिशु के नाक और मुंह के आसपास की त्वचा नीली पड़ जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन युक्त खून नहीं मिलता है और इसलिए वे नीले पड़ जाते हैं।
  • सांस की तेज गति, 1 मिनट में 60 से अधिक बार सांस लेना: बच्चे को देखकर ऐसा लगता है, कि वह सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहा है और वह 1 मिनट में 60 से अधिक बार सांस लेता है।
  • फैली हुई नाक और बच्चे का सिर हिलना: बच्चे की नाक फैली हुई लगती है और उसका सिर ऊपर नीचे हिलता रहता है।
  • हर बार सांस छोड़ने के साथ घरघराहट या घर्षण जैसी आवाज आना: जब बच्चे के हर बार सांस छोड़ने के साथ घरघराहट की आवाज आती है, तो उसकी सांस लेने में तकलीफ का पता चलता है।
  • पसलियों के अंदर या पसलियों के बीच त्वचा का धंस जाना: जब बच्चा सांस लेता है, तब दो पसलियों के बीच या पसलियों के अंदर, त्वचा अंदर की ओर खिंच जाती है।
  • हाइपोक्सिया: बच्चे के टिशू को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है।

पहचान

आमतौर पर, जन्म के बाद कुछ ही घंटों के अंदर-अंदर टीटीएन की पहचान हो जाती है। यहाँ पर कुछ टेस्ट दिए गए हैं, जिनका इस्तेमाल टीटीएन की जांच के लिए किया जाता है: 

  1. शारीरिक परीक्षण: सबसे पहले डॉक्टर नीली त्वचा, तेज सांसो और सांस छोड़ने के दौरान आने वाली आवाज समेत बच्चे की पूरी शारीरिक जांच करेंगे।
  2. छाती का एक्सरे: अगर बच्चे को टीटीएन है, तो छाती का एक्सरे अस्थिर दिखता है और फेफड़ों में मौजूद तरल पदार्थ नजर आते हैं।
  3. पल्स ऑक्सीमीट्री: बच्चे के पैर में एक ऑक्सीजन सेंसर लगाया जाता है और उसे मॉनिटर से जोड़ा जाता है। इससे यह पता चलता है, कि फेफड़े खून में कितना ऑक्सीजन भेज रहे हैं।
  4. ब्लड गैस टेस्ट: एक ब्लड गैस टेस्ट के द्वारा, यह सही तरह से पता चल पाता है, कि खून में कितना ऑक्सीजन मौजूद है। अगर इसका लेवल नीचे है, तो बच्चे को ऑक्सीजन दी जा सकती है।
  5. कंपलीट ब्लड काउंट (सीबीसी): एक कंपलीट ब्लड एग्जाम किया जाता है और इंफेक्शन के संकेतों के लिए खून की जांच की जाती है।

इलाज

यहाँ पर टीटीएन के इलाज के कुछ तरीके दिए गए हैं: 

  1. क्लोज मॉनिटरिंग: टीटीएन युक्त बच्चों की निगरानी बहुत करीब से की जाती है। उनके ऑक्सीजन लेवल और हृदय और सांस की गति की जांच की जाती है, ताकि यह पता चल सके, कि बच्चा सामान्य रूप से सांसे ले रहा है या नहीं।
  2. एनआईसीयू: कुछ बच्चों को अतिरिक्त देखभाल और 24 घंटे की निगरानी के लिए नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में एडमिट किया जा सकता है।
  3. ब्रीदिंग असिस्टेंट (सांस लेने में मदद): कुछ बच्चों को एक्स्ट्रा ऑक्सीजन की जरूरत हो सकती है और उन्हें नेसल कैनुला नामक एक छोटी नली के द्वारा यह दी जाती है, जिसे कि नाक के नीचे रखा जाता है।
  4. फीडिंग: टीटीएन से ग्रस्त एक शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराना संभव नहीं हो पाता है, क्योंकि बच्चा दूध निगलना और सांस लेना एक साथ नहीं कर पाता है। ऐसे मामलों में, बच्चे को इंट्रावेनस नली द्वारा फ्लूइड और न्यूट्रिएंट्स दिए जाते हैं।
  5. एंटीबायोटिक: टीटीएन और एक इंफेक्शन के बीच फर्क कर पाना मुश्किल हो सकता है। इसलिए, डॉक्टर आमतौर पर शिशु के लिए एंटीबायोटिक रेकमेंड करते हैं। अगर ब्लड टेस्ट में संक्रमण के कोई संकेत नहीं दिखते हैं, तो एंटीबायोटिक को बंद किया जा सकता है।
  6. वेंटीलेटर: गंभीर मामलों में, जब अन्य कॉम्प्लीकेशन्स भी मौजूद होते हैं, तो बच्चे की सांस की समस्याओं के लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। जब तक बच्चा अपने आप सांस लेने में सक्षम नहीं हो जाता है, तब तक यह उपकरण बच्चे को सांस लेने में मदद करता है।

नवजात शिशु में ट्रांजियंट टेकिप्निया, अपने नाम को सही साबित करता है, क्योंकि, यह वास्तव में ट्रांजियंट होता है और 24 से 72 घंटों के बीच ठीक हो जाता है। कुछ विशेष मामलों में, इसके लक्षणों को खत्म होने में 1 हफ्ते तक का समय भी लग सकता है। एक बार जब फेफड़ों में मौजूद तरल पदार्थ पूरी तरह से बाहर निकल जाता है, या रिअब्जॉर्ब्ड हो जाता है, तो बच्चे की सांसें बिल्कुल सामान्य हो जाती हैं। इसे करीबी निगरानी की जरूरत होती है। नवजात शिशु में ट्रांजियंट टेकिप्निया को रोका नहीं जा सकता है। जिन बच्चों को टीटीएन होता है, उन्हें किसी विशेष देखभाल की जरूरत नहीं होती है और आगे चलकर उनमें टीटीएन के कारण स्वास्थ्य की कोई समस्या नहीं होती है। नवजात शिशु में टीटीएन के कारण बाद में होने वाला कोई भी प्रभाव नहीं दिखा है। अगर ऊपर बताए गए टीटीएन के संकेत या लक्षणों में से आपका बच्चा कोई भी संकेत दिखाता है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। 

यह भी पढ़ें: 

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पूजा ठाकुर

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