प्रेगनेंसी एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन-ए या (पीएपीपी-ए)

पीएपीपी-ए या प्लाज्मा प्रोटीन का स्तर प्रेगनेंसी को कैसे प्रभावित करता है

गर्भावस्था के दौरान प्लाज्मा प्रोटीन या प्रेगनेंसी एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन-ए (पीएपीपी-ए) प्लेसेंटा द्वारा उत्पन्न किया हुआ प्रोटीन होता है। पीएपीपी-ए स्तर में होने वाली समस्याएं सिर्फ गर्भावस्था की कॉम्प्लिकेशन को ही नहीं बढ़ाता है बल्कि इससे क्रोमोसोमल विकारों की संभावनाएं भी बढ़ती हैं। गर्भवती महिलाओं में पीएपीपी-ए को मॉनिटर करने से डॉक्टर को यह समझने में मदद मिलती है कि महिला को गर्भावस्था से संबंधित किसी असामान्य विकार का खतरा तो नहीं है। गर्भवती महिला में प्लाज्मा प्रोटीन का स्तर जितना कम होता है तो उसकी गर्भावस्था के परिणाम उतने उल्टे होंगे। 

प्लाज्मा प्रोटीन या पीएपीपी-ए स्तर क्या है?

पीएपीपी-ए का मतलब प्रेगनेंसी एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन-ए (गर्भावस्था का प्लाज्मा प्रोटीन) है। यह प्रोटीन गर्भावस्था के दौरान प्लेसेंटल ट्रोफोब्लास्ट के द्वारा रिलीज होता है। प्लेसेंटा के शुरूआती विकास और प्लेसेंटल बेड के निर्माण में प्लाज्मा प्रोटीन की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रेगनेंसी के प्लाज्मा प्रोटीन का स्क्रीनिंग टेस्ट गर्भावस्था की पहली तिमाही में 11वें और 13वें सप्ताह में किया जाता है। जिसमें यह माना जाता है कि यदि प्लाज्मा प्रोटीन का स्तर कम है तो महिला को गर्भावस्था से संबंधित कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे भ्रूण की मृत्यु, प्रीमैच्योर डिलीवरी, मृत बच्चे का जन्म, जेस्टेशनल हाइपरटेंशन, जन्म के समय पर बच्चे का कम वजन, भ्रूण के विकास में रुकावट, प्री-एक्लेम्पसिया, प्लेसेंटा में क्षति। स्टडीज के अनुसार पीएपीपी-ए के कम स्तर के कारण गर्भ में पल रहे बच्चे को डाउन सिंड्रोम और संरचनात्मकता में क्षति होने का खतरा हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान स्क्रीनिंग में कुछ अन्य सिंड्रोम के बारे में भी पता लगाया जा सकता है पर वे उतने ज्यादा सामान्य नहीं होते हैं। 

प्लाज्मा प्रोटीन का नॉर्मल स्तर क्या है?

गर्भावस्था के 12वें सप्ताह में पीएपीपी-ए के टेस्ट में ही प्लाज्मा प्रोटीन और एच.सी.जी. हॉर्मोन के स्तर की जांच एक साथ की जाती है जिसकी वैल्यू एम.ओ.एम (MoM) व कंसन्ट्रेशन (IU/L) है। एम.ओ.एम का मतलब मल्टीप्ल ऑफ द मीडियन या हर टेस्ट का एवरेज है। MoM की एवरेज वैल्यू 1.00 होती है। यदि एम.ओ.एम की वैल्यू 1.00 से ज्यादा है तो इसका मतलब है कि यह एवरेज से अधिक है और इसकी वैल्यू 1.00 से कम है तो अर्थात यह एवरेज से कम है। यदि प्लाज्मा प्रोटीन का स्तर 0.5 एम.ओ.एम से ज्यादा या बराबर है तो इसे सामान्य माना जाता है और यदि इसका स्तर 0.5 एम.ओ.एम से कम है तो इसे कम माना जाता है।

पीएपीपी-ए नॉर्मल रेंज चार्ट 

एम.ओ.एम वैल्यू पीएपीपी-ए स्तर 
>=0.5 एम.ओ.एम सामान्य
<0.5 एम.ओ.एम  कम

 

कई स्टडीज से पता चलता है कि सामान्य पीएपीपी-ए लेवल वाली महिलाओं के गर्भावस्था के रिजल्ट्स आमतौर पर कम पीएपीपी-ए लेवल वाली महिलाओं के परिणामों की तुलना में ज्यादा अंतर नहीं दिखता है।  

ग्रोथ स्कैन की आवश्यकता कब पड़ती है?

ग्रोथ स्कैन को पोजिशनिंग या भ्रूण के स्वास्थ्य का स्कैन भी कहा जाता है। गर्भावस्था के दौरान 28वें और 34वें सप्ताह में ग्रोथ स्कैन करवाने की सलाह दी जाती है। इस टेस्ट में टेक्नीशियन या डॉक्टर बच्चे के विकास के साथ-साथ एमनियोटिक द्रव का स्तर और प्लेसेंटा की जांच भी करते हैं। इसमें गर्भाशय में बच्चे के पोजीशन की जांच भी की जाती है। इस स्कैन के माध्यम से बच्चे के सिर, जांघों की हड्डी और पेट का माप लिया जाता है। यदि बच्चे का विकास और फ्लूइड का स्तर सामान्य है फिर भी डॉक्टर अन्य स्कैन करवाने की सलाह दे सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास में उतार-चढ़ाव होता रहता है और एक स्कैन की तुलना में बार-बार स्कैन करवाने से इसे अच्छी तरह मॉनिटर किया जा सकता है।

प्लाज्मा प्रोटीन का स्तर कम होने का मतलब क्या है?

प्लाज्मा प्रोटीन कम होने का मतलब है कि गर्भावस्था के 11वें और 13वें सप्ताह में इसके मैटरनल सीरम का कंसंट्रेशन 0.5 एम.ओ.एम. से कम है। पीएपीपी-ए का स्तर कम होने से गर्भावस्था के खतरे बढ़ सकते हैं। यदि महिला के प्लाज्मा प्रोटीन का स्तर 5.0 एम.ओ.एम. से कम है तो उसे निरंतर जांच करवाने की जरूरत होती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस वजह से महिला में प्रीमैच्योर डिलीवरी, बच्चे के विकास में रुकावट, हाइपरटेंशन और मिसकैरेज जैसी समस्याएं हो सकती है। रिसर्चर्स के अनुसार पीएपीपी-ए की एम.ओ.एम. वैल्यू कम होने से गर्भवस्था में कई खतरे हो सकते हैं।

34वें सप्ताह के स्कैन के बाद आपको कैसे पता चलता है कि बच्चे का विकास सही हो रहा है?

डॉक्टर अक्सर महिलाओं को पहला अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह गर्भावस्था के 6वें और 8वें सप्ताह में देते हैं। इस अल्ट्रासाउंड की मदद से डॉक्टर को बच्चे के विकास के बारे में जानकारी होती है। इसमें डॉक्टर बच्चे की माइलस्टोन्स, विकार, समस्याएं, नियत तारीख, एकाधिक गर्भावस्था के संकेत और प्लेसेंटा की पोजीशन को मॉनिटर करते हैं। गर्भावस्था की पहली तिमाही (11वें से 14वें सप्ताह के बीच) में बच्चे की संभावित क्रोमोसोमल समस्याओं का पता लगाने के लिए महिला को कई जांच करवाने के लिए कहा जाता है जिसमें प्लाज्मा प्रोटीन टेस्ट, न्यूकल ट्रांसलूसेंसी अल्ट्रासाउंड, एच.सी.जी. (ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन) टेस्ट भी शामिल हैं। यदि स्क्रीनिंग टेस्ट पॉजिटिव आती है तो फिर डॉक्टर पहली तिमाही और दूसरी तिमाही में अन्य डायग्नोटिक टेस्ट, जैसे कोरियोनिक विलस सैंपलिंग और एमनियोसेंटेसिस जांच करवाने की सलाह देते हैं। दूसरी तिमाही में महिला को मैटरनल सीरम टेस्ट और बच्चे का डी.एन.ए. टेस्ट कराने के लिए भी कहा जा सकता है। 

जब एक गर्भवती महिला की नियत तारीख पास होती है लगभग 34 और 40 सप्ताह के बीच तो डॉक्टर एक और ग्रोथ स्कैन कराने की सलाह देते हैं। इस जांच में डॉक्टर आपके गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास, वजन और पोजीशन की जांच करते हैं। इसे बच्चे की बायोफिजिकल प्रोफाइल को माप कर किया जाता है। यदि कोई चिंता की बात होती है तो महिला को तीसरी तिमाही में एक और स्कैन कराने के लिए कहा जा सकता है। यदि गर्भावस्था के दौरान अनेकों कॉम्प्लीकेशंस और असामान्य गर्भावस्था का खतरा है तो आपको पूरी गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से स्कैन या जांच कराने की सलाह दी जा सकती है। कभी-कभी गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज भी हो सकती है। इस समस्या की जांच के लिए डॉक्टर अक्सर डॉप्लर स्कैन का उपयोग करते हैं। यदि 37 सप्ताह या नियत तारीख के आस-पास बच्चा ब्रीच पोजीशन में है तो डॉक्टर मॉनिटर करने के लिए स्कैन कर सकते हैं और आपको सिजेरियन करवाने की सलाह भी दी जा सकती है। यदि एक गर्भवती महिला को प्लेसेंटा प्रिविया है जहाँ पर प्लेसेंटा सर्विक्स के बिलकुल पास में या ऊपर होता है तो भी डॉक्टर सिजेरियन कराने की सलाह देते हैं। 

यदि किसी गर्भवती महिला के प्लाज्मा प्रोटीन का स्तर कम है तो समस्याओं का जल्दी पता लगाने के लिए उसे अन्य स्कैन व जांच करवाने की सलाह दी जाती है। स्टडीज के अनुसार अब तक यह नहीं पता चल पाया है कि प्लाज्मा प्रोटीन का स्तर कम होने और गर्भावस्था में खतरे होने में क्या संबंध है। ऐसा भी माना जाता है कि यह टेस्ट पूरी तरह से सही नहीं होते हैं। पर टेस्ट से क्रोमोसोमल असामान्यताओं की संभावनाओं का पता चलता है। इसलिए जांच और इसके परिणामों के बारे में डॉक्टर से चर्चा करने की सलाह दी जाती है।

गर्भावस्था के दौरान कई बदलाव व समस्याएं होती हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है और माँ व बच्चे के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इस समय नियमित रूप से स्कैन और टेस्ट भी करवाना चाहिए। इसलिए कहा जाता है कि गर्भावस्था के दौरान आप सभी जांच करवाएं और यदि आपको कोई भी समस्या होती है तो इस बारे में डॉक्टर से चर्चा जरूर करें। 

यह भी पढ़ें:

डॉप्लर सोनोग्राफी
एचएसजी टेस्ट