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बच्चे का जन्म, माता-पिता की जिंदगी में, खासकर माँ की जिंदगी में एक नए सफर की शुरुआत होता है। जहाँ यह, माँ के लिए खुशी और उत्साह को लेकर आता है, वहीं, कभी-कभी इसका उल्टा होते हुए देखना, दुविधा पैदा कर सकता है। ऐसा अनुमान है, कि 40% से ज्यादा नई मांएं, बेबी ब्लूज का अनुभव करती हैं। यह एक भावनात्मक स्थिति है, जिसे चिंता, उदासी, थकावट और खुद पर संदेह आदि से पहचाना जाता है। आमतौर पर, कुछ दिनों या एक हफ्ते के बाद बेबी ब्लूज गायब हो जाते हैं, पर अगर यह एहसास खत्म न हो और दो हफ्तों से ज्यादा समय तक रह जाए, तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो सकता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन, डिप्रेशन की एक स्थिति है, जो गर्भावस्था के दौरान या बच्चे के जन्म से एक साल के समय के बीच शुरू हो सकती है। डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है, जो कि आपके सोचने, महसूस करने और काम करने के तरीके पर नकारात्मक रूप से प्रभाव डालती है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन और आम तनाव एवं थकान के बीच अंतर कर पाना बहुत मुश्किल होता है, जो कि नए माता-पिता बनने के बाद अक्सर अनुभव किया जाता है। प्रेगनेंसी के दौरान या उसके बाद थकान, उदासी या दुख का अनुभव होना, कोई नई बात नहीं है, लेकिन अगर ये भावनाएं आपके रोज के कामों में रुकावट पैदा करने लगें, तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन का एक संकेत हो सकता है।
नई माँओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कई कारण हो सकते हैं। जो महिलाएं पहले भी मानसिक अस्वस्थता या डिप्रेशन से गुजर चुकी होती हैं, उनमें पोस्टपार्टम डिप्रेशन का खतरा अधिक होता है। नीचे कुछ कारण दिए गए हैं, जो कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन की संभावना को बढ़ा सकते हैं:
प्रेगनेंसी के बाद, डिप्रेशन के संकेत और लक्षण गंभीर होते हैं और ये आपकी रोज की दिनचर्या में रुकावट डाल सकते हैं। इसके लक्षण व्यक्ति और समय के अनुसार अलग हो सकते हैं। यहाँ पर कुछ लक्षण दिए गए हैं, जिन पर आपको नजर रखनी चाहिए:
अगर ये लक्षण बार-बार दिखते हों या लंबे समय तक जारी रहें, तो अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। ये लक्षण डिलीवरी के बाद कुछ सप्ताह के अंदर दिखते हैं और अगर इनका इलाज नहीं किया जाए, तो ये लंबे समय तक रह सकते हैं और माँ की मेंटल हेल्थ को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
पोस्टपार्टम साइकोसिस एक दुर्लभ साइकाइट्रिक समस्या है, जो कि आमतौर पर डिलीवरी के पहले सप्ताह में पैदा होती है। पोस्टपार्टम साइकोसिस के संकेत और लक्षण, डिप्रेशन के लक्षणों से ज्यादा गंभीर होते हैं, जिनमें निम्नलिखित लक्षण शामिल हैं:
पोस्टपार्टम साइकोसिस एक गंभीर स्थिति है, जिसके कारण घातक विचार या व्यवहार दिख सकते हैं। इस स्थिति में तुरंत मेडिकल मदद की जरूरत होती है।
जहाँ दोनों स्थितियों का अंतिम पड़ाव एक जैसा ही होता है, वहीं डिप्रेशन और पोस्टपार्टम डिप्रेशन में एक अंतर होता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन प्रेगनेंसी से जुड़ा होता है और यह हॉर्मोनल बदलाव, वातावरण में बदलाव, भावनात्मक बदलाव और जेनेटिक बदलाव जैसे विभिन्न पहलुओं के कारण होता है। डिप्रेशन के साथ ऐसा नहीं है। जो महिलाएं पहले भी डिप्रेशन या मानसिक बीमारियों से गुजर चुकी होती हैं, उनमें पोस्टपार्टम डिप्रेशन का खतरा अधिक होता है।
यहाँ पर इन दोनों स्थितियों के बीच के कुछ अंतर दिए गए हैं:
डिप्रेशन एक लंबी चलने वाली समस्या है, जिसके लक्षण बार-बार आते रहते हैं और सुधार भी होता रहता है। डिप्रेशन से प्रभावित व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है, जिससे आजीवन रहने वाली समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
माँओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज न किया जाए, तो यह कई महीनों तक या उससे ज्यादा समय तक भी रह सकता है और क्रॉनिक डिप्रेसिव डिसऑर्डर में बदल सकता है। माँ में पोस्टपार्टम डिप्रेशन से होने वाले संभावित कॉम्प्लिकेशंस नीचे दिए गए हैं:
पोस्टपार्टम डिप्रेशन का प्रभाव कुछ ऐसा होता है, जो कि माँ और बच्चे के हर करीबी को भी भावनात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। पिता के ऊपर पोस्टपार्टम डिप्रेशन का खतरा होता है और यह डिप्रेशन से प्रभावित व्यक्ति के करीब रहने के कारण, होने वाले भावनात्मक तनाव और नकारात्मकता के कारण होता है। नए पिता के ऊपर डिप्रेशन का बहुत खतरा होता है, भले ही उनके पार्टनर इससे प्रभावित हो या न हो।
जिन बच्चों की माँएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजर रही होती हैं और उसका इलाज नहीं हो रहा होता है, उनमें माँ से मिलने वाली उपेक्षा के कारण, भावनात्मक और व्यवहारिक समस्याएं देखे जाने की संभावना होती है। ऐसे बच्चों को अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) से ग्रस्त होने का खतरा होता है और इनमें अत्यधिक रोना, सोना, खाने में परेशानी और भाषा के विकास में देरी, जैसी समस्याओं का खतरा भी अधिक होता है।
आफ्टर प्रेगनेंसी डिप्रेशन की पहचान कुछ खास विशेषताओं और क्राइटेरिया से मेल खाते हुए लक्षणों के आधार पर की जाती है। जो लोग डिप्रेशन के लक्षणों का सामना करते हैं या जिनके परिवार में डिप्रेशन का इतिहास रह चुका होता है, उन्हें जरूरत पड़ने पर अपने डॉक्टर से मदद लेनी चाहिए और डिप्रेशन के लिए स्क्रीनिंग करवानी चाहिए।
डॉक्टर यह पहचानने की कोशिश करेंगे, कि पोस्टपार्टम बेबी ब्लूज टेम्पररी है या इससे गंभीर डिप्रेशन होने की संभावना है। हॉर्मोनल बदलावों को जानने के लिए, डॉक्टर आपको खून की जांच कराने की सलाह दे सकते हैं। साथ ही इससे एक अंडरएक्टिव थायराइड का पता भी लगाया जा सकता है, जो कि डिप्रेशन के लक्षण और संकेत दे सकते हैं।
डिप्रेशन की जांच के लिए डॉक्टर, मरीज पर ‘बेक डिप्रेशन इन्वेंटरी’ या ‘द हैमिल्टन रेटिंग स्केल’ जैसे साइकोलॉजिकल स्क्रीनिंग टेस्ट का सहारा भी ले सकते हैं।
गर्भावस्था के बाद डिप्रेशन कितने समय तक रहता है, इसकी कोई निश्चित समय सीमा नहीं है और यह इस बात पर निर्भर करता है, कि इस स्थिति की पहचान कितनी जल्दी हो गई है और मरीज को किस तरह का ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन, प्रेगनेंसी के दौरान या डिलीवरी के बाद दो-तीन सप्ताह के बाद दिखता है। जिन महिलाओं का इलाज समय पर शुरू हो जाता है, उनमें डिप्रेशन के लक्षण एक साल तक या उससे अधिक भी दिख सकते हैं। लेकिन, अगर उन्हें कोई क्लीनिकल ट्रीटमेंट नहीं मिल रहा है, तो यह अवधि 3 साल से अधिक तक भी हो सकती है।
डिप्रेशन की गंभीरता के अनुसार, इलाज का तरीका और समय अलग हो सकता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन से निपटने के कई तरीके हैं, जैसे साइकोथेरेपी, काउंसलिंग, मेडिटेशन और अन्य कई तरह के थेरेपी। नीचे, पोस्टपार्टम डिप्रेशन को ठीक करने के लिए, आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली थेरेपी दी गई हैं:
साइकोथेरेपी को पोस्टपार्टम डिप्रेशन को ठीक करने की सबसे असरदार थेरेपी में से एक माना जाता है। साइकोथेरेपी में एक साइकेट्रिस्ट या एक साइकोलॉजिस्ट के साथ अपनी भावनाओं को बांटना भी शामिल है। मेंटल हेल्थ प्रोवाइडर, डिप्रेशन का सामना करके इससे बाहर आने की सलाह देते हैं। थेरेपी के द्वारा समस्याओं को सुलझाने के, मूड स्विंग को नियंत्रित करने के, वास्तविक गोल सेट करने के, और सकारात्मक तरीके से परिस्थितियों पर रिस्पॉन्ड करने के लिए बेहतर तरीके मिल सकते हैं।
काउंसलिंग, डिप्रेशन को ठीक करने का एक तरीका है, जिसमें मरीज और काउंसलर या साइकेट्रिस्ट के बीच सीधी बातचीत होती है। अगर आप माइल्ड डिप्रेशन से जूझ रही हैं, तो काउंसलिंग के माध्यम से आपको बेहतर महसूस करने में मदद मिलती है। लेकिन डिप्रेशन को ठीक करने के लिए जिसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है, वह है कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी और इंटरपर्सनल थेरेपी।
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी आपके सोचने और व्यवहार करने के तरीके को बदलने पर केंद्रित होती है और इसे इसे एंग्जाइटी, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर, डिप्रेशन और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित अन्य समस्याओं के इलाज के कारगर तरीकों में से एक के रूप में जाना जाता है। सीबीटी इस सिद्धांत पर आधारित होती है, कि सोच, भावनाएं, शारीरिक गतिविधि और संवेदनाएं आपस में एक दूसरे से जुड़े होते हैं और नकारात्मक विचार आपको डिप्रेशन के खतरनाक घेरे में फंसा सकते हैं। सीबीटी आपकी समस्याओं को छोटे हिस्सों में बांटती है और फिर नकारात्मक विचार को सकारात्मक विचार में बदल देती है। सीबीटी को दैनिक रूप से आपके सोच-विचार को बेहतर बनाने के लिए, प्रैक्टिकल उपाय उपलब्ध कराने के लिए डिजाइन किया गया है।
इंटरपर्सनल थेरेपी डिप्रेशन के रोगी और थेरेपिस्ट के बीच एक सीधी बातचीत होती है, जिसमें थेरेपिस्ट मरीज की चार मुख्य समस्याओं पर ध्यान को केंद्रित करता है – अवसाद, भूमिका परिवर्तन, पारस्परिक झगड़े और पारस्परिक अभाव। इंटरपर्सनल थेरेपी, पोस्टपार्टम डिप्रेशन को ठीक करने वाली सबसे महत्वपूर्ण और असरदार थेरेपी में से एक के रूप में साबित हो चुकी है।
एंटीडिप्रेसेंट्स ऐसी दवाएं होती हैं, जिनका इस्तेमाल पोस्टपार्टम डिप्रेशन समेत मुख्य डिप्रेसिव बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है। एंटीडिप्रेसेंट्स दिमाग के रसायनों में संतुलन बनाते हैं, जो कि मूड को रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार होते हैं और आपको बेहतर महसूस कराते हैं। हालांकि, एंटीडिप्रेसेंट्स के साइड इफेक्ट होते हैं और यह आपके ब्रेस्ट मिल्क में भी पहुंच सकते हैं। इसलिए एंटीडिप्रेसेंट्स का सेवन केवल डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर ही किया जाना चाहिए।
गंभीर डिप्रेशन की स्थिति में, डिप्रेशन के संकेत और लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए एंटीडिप्रेसेंट्स, मूड स्टेबलाइजर और एंटीसाइकोटिक जैसी दवाओं के कॉन्बिनेशन का इस्तेमाल किया जा सकता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लिए दवा केवल डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर ही लिया जाना चाहिए।
इलेक्ट्रोकंवल्सिव थेरेपी की सलाह तब दी जाती है, जब पोस्टपार्टम डिप्रेशन बहुत गंभीर हो और दवाओं का इस पर कोई असर न हो। ईसीटी दिमाग को कम मात्रा में बिजली के करंट देता है, जिससे वैसी ही तरंगे पैदा होती हैं, जैसी तरंगें एक सीजर के दौरान उत्पन्न होती हैं। दिमाग में होने वाला रासायनिक बदलाव, डिप्रेशन के लक्षणों को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन, हालांकि, ऐसी स्थिति नहीं है, जिसे घर पर ठीक किया जा सके, पर फिर भी, लाइफस्टाइल में एक बदलाव लाकर ट्रीटमेंट के प्लान को तैयार किया जा सकता है और जल्दी ठीक हुआ जा सकता है।
थोड़ी सावधानी और नियंत्रित लाइफस्टाइल के साथ आप पोस्टनेटल डिप्रेशन से बच सकती हैं। अगर आपको पहले भी डिप्रेशन हो चुका है, खासकर पोस्टनेटल डिप्रेशन हो चुका है, तो जैसे ही आप प्रेगनेंट हों या प्रेगनेंसी की प्लानिंग कर रही हों, तो तुरंत अपने डॉक्टर को इसके बारे में बताएं।
यहाँ पर पोस्टनेटल डिप्रेशन से बचने के लिए कुछ टिप्स दिए गए हैं:
डिप्रेशन के लक्षणों की पहचान जल्दी हो जाने से बीमारी की रफ्तार धीमी पड़ जाती है।
अगर पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज समय पर न हो या इसका इलाज न किया जाए, तो यह क्रॉनिक डिप्रेशन का रूप ले सकता है और माँ और बच्चे के बॉन्ड में बाधा डालता है और पूरे परिवार को प्रभावित भी कर सकता है। गंभीर डिप्रेशन के कारण दूसरी क्रॉनिक बीमारियां भी हो सकती हैं और सबसे गंभीर मामलों में आत्महत्या की संभावना भी बन सकती है। माँ में पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कारण, बच्चे के पालन पोषण और संपूर्ण विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक गंभीर बीमारी है, जिसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इस स्थिति की पहचान जल्दी हो जाने से और तुरंत इलाज शुरू कर देने से डिप्रेशन के लक्षणों के क्रॉनिक डिप्रेशन में बदलने की संभावना से बचा जा सकता है। इस स्थिति से अकेले जूझने के बजाय, इसके बारे में परिवार, दोस्तों और अपने डॉक्टर से बात करना बहुत जरूरी है।
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