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गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के जीवन में अनेक उतार चढ़ाव होते हैं। गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में अत्यधिक शंका-संदेह के कारण महिलाओं में चिंता व तनाव अधिक होता है। इस दौरान निश्चित रूप से आप अपना सबसे ज्यादा समय भ्रम या संदेह करने की स्थिति में बिता सकती हैं किंतु इससे छुटकारा पाने के भी कई तरीके हैं। चिकित्सीय तकनीक की मदद से गर्भ में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ्य और जन्म तक के भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। अल्ट्रासाउंड – चिकित्सीय तकनीक का एक ऐसा भाग है, जिसे एक चिकित्सक स्त्री की गर्भावस्था में विकास और उनके मन में चल रहे अनेक सवालों को कम करने के लिए अधिक उपयोग करता है। इस लेख में हम गर्भावस्था के छठे हफ्ते में अल्ट्रासाउंड के बारे में बता रहे हैं, जानने के लिए पूरा पढ़ें।
गर्भावस्था के छठे सप्ताह में अल्ट्रासाउंड करवाने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं, आइए जानें;
अल्ट्रासाउंड स्कैन की तैयारी के लिए आपको कोई कठिन कार्य करने की आवश्यकता नहीं है। स्कैन से पहले डॉक्टर आपको पर्याप्त पानी पीने की सलाह दे सकते हैं। अल्ट्रासाउंड के दौरान आपके गर्भ में पल रहे शिशु व आंतरिक अंगों की स्पष्ट छवि के लिए मूत्राशय भरा रहने की आवश्यकता होती है। निर्धारित अल्ट्रासाउंड से लगभग 1 घंटे पहले आपको 4 – 5 गिलास पानी पीने की सलाह दी जा सकती है ताकि आपका मूत्राशय सही समय पर पूरी तरह से भरा रहे। यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद आप पेशाब कर सकती हैं।
अल्ट्रासाउंड की प्रक्रिया को पूर्ण होने में अधिक समय नहीं लगता है। यह जांच कुछ ही मिनटों में समाप्त हो जाती है और इसमें आधे घंटे से ज्यादा समय नहीं लगता है।
जैसा कि पहले भी बताया गया है कि अल्ट्रासाउंड करने के दो तरीके हैं। एक तरीका है ट्रांसएब्डॉमिनल स्कैन अर्थात पेट के माध्यम से किया जाने वाला स्कैन और दूसरा है ट्रांसवजाइनल स्कैन अर्थात वजाइना (योनि) के माध्यम से किया जाने वाला स्कैन। दोनों प्रकार के स्कैन में गर्भवती महिला को लेटने के लिए कहा जाता है। ट्रांसएब्डॉमिनल स्कैन के दौरान महिला के पेट पर जेल लगाया जाता है और हल्के दबाव के साथ डॉक्टर द्वारा पूरे पेट पर ट्रांसड्यूसर घुमाया जाता है। ट्रांसवजाइनल स्कैन के दौरान वजाइना में एक प्रोब डाला जाता है, इन दोनों ही तरीकों की मदद से कंप्यूटर स्क्रीन पर गर्भ में पल रहे शिशु की छवि उत्पन्न होती है।
ट्रासबडॉमिनल स्कैन में उत्पन्न छवियों की गुणवत्ता के अनुसार डॉक्टर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपको ट्रांसवजाइनल स्कैन करवाने की आवश्यकता है या नहीं। क्योंकि ट्रांसवजाइनल स्कैन में शिशु की छवि अधिक स्पष्ट दिखाई देती है। इन दोनों अल्ट्रासाउंड में उपयोग किए जाने वाले प्रोब से अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंगें निकलती हैं जो आपके गर्भ में पल रहे भ्रूण की छवियों को उत्पन्न करने में मदद करती हैं। इन्हीं छवियों की मदद से डॉक्टर आपकी गर्भावस्था और भ्रूण के स्वास्थ्य की जांच करते हैं।
अल्ट्रासाउंड से पहले कई माएं सोचती हैं कि गर्भावस्था के छठे सप्ताह में अल्ट्रासाउंड के माध्यम से क्या देखने की उम्मीद की जा सकती है। वैसे स्कैन की इस प्रक्रिया के दौरान आप गर्भावस्था के अनेक पहलुओं और गर्भ में पल रहे शिशु के बारे में जान सकती हैं। इन में से कुछ नीचे दिए गए हैं, आइए जानते हैं;
कुछ मामलों में, अल्ट्रासाउंड स्कैन भ्रूण या इसके किसी भी महत्वपूर्ण संकेत को दिखाने में विफल हो सकता है। भ्रूण के हृदय की धड़कन में कमी का अर्थ अधिक महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि आगे आने वाले अल्ट्रासाउंड धड़कन को पूरी तरह से सुनिश्चित करते हैं। आप यह सोच सकती हैं कि अभी गर्भावस्था में अधिक समय लगेगा किंतु वास्तव में इसका समय हो गया है। आमतौर पर इसका मतलब यह है कि गर्भावस्था के लक्षण व संकेतों की शुरुआत आपके सोचे हुए समय के बाद हुई है।
यद्यपि अल्ट्रासाउंड के माध्यम से डॉक्टर गर्भपात की संभावना का अनुमान लगाते हैं। किंतु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि भ्रूण के हृदय की धड़कन का न सुनाई देना गर्भपात का संकेत है। इस दौरान भ्रूण के हृदय की धड़कन सामान्य से बहुत ही कम हो सकती है और हृदय की धड़कन बढ़ने के अनुसार ही डॉक्टर एक या दो हफ्तों बाद इसकी उपस्थिति का पता लगा सकते हैं।
गर्भावस्था के छठे सप्ताह में अल्ट्रासाउंड के माध्यम से डॉक्टर आपकी गर्भावधि में वृद्धि का निष्पक्ष मूल्यांकन कर सकते हैं और साथ ही गर्भ में पल रहे भ्रूण में असामान्यताओं का पता भी लगा सकते हैं। यदि स्कैन के माध्यम से किसी भी प्रकार की असामान्यता का पता लगता है तो डॉक्टर निश्चित रूप से इस समस्या का सर्वश्रेष्ठ उपचार करेंगे।
गर्भावस्था के छठे सप्ताह में अल्ट्रासाउंड स्कैन गर्भवती महिला व भ्रूण के स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक है। अल्ट्रासाउंड की मदद से गर्भवती महिलाओं की चिंता कम होती है और साथ ही यह अल्ट्रासाउंड भ्रूण की किसी भी असामान्यता के विषय में उचित समय पर आवश्यक निर्णय लेने में भी मदद करता है।
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