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गर्भावस्था के दौरान एक महिला जो कुछ भी खाती है उसका प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। इसी कारण यह जानना आवश्यक है कि एक माँ बनने वाली महिला को क्या खाना चाहिए या और क्या नहीं। बहुत सी हानि–रहित दिखने वाली खाद्य वस्तुएं नाजुक व विकासशील शिशु के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं। ऐसे कई खाद्य पदार्थों में से एक है – पपीता।
गर्भावस्था के दौरान पपीता
पपीते के सेवन को लेकर गर्भवती महिलाओं में बहुत दुविधाएं हैं। पका हुआ पपीता अगरसावधानी से खाया जाए तो फायदेमंद हो सकता है, लेकिन गर्भावस्था के दौरान कच्चे पपीते का सेवन कई जटिलताओं का कारण भी बन सकता है।
प्रारंभिक गर्भावस्था
गर्भावस्था के शुरुआती महीनों या पड़ावों में, भ्रूण बहुत नाजुक होता है और इसका अत्यधिक ध्यान रखने की आवश्यकता है। यहाँ तक कि हानिकारक पदार्थ, जैसे लेटेक्स की थोड़ी सी भी मात्रा,बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचा सकती है। कच्चे पपीते में लेटेक्स के साथ कुछ अन्य पदार्थ भी होते हैं, जो गर्भाशय के संकुचन का कारण बनते हैं। पपीते के लेटेक्स में वनस्पति पेप्सिन या ‘पैपेन’ होता है। यह ‘पैपेन’ प्रोस्टाग्लैंडिंस (अंतर्जात या शरीर का अपना पदार्थ) और ऑक्सीटोसिन (मस्तिष्क के पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्रावित एक हॉर्मोन) की तरह कार्य करता है जिससे संकुचन उत्पन्न हो सकता है। गर्भावस्था में असामान्य या ऐसे अस्वाभाविक गर्भाशय संकुचन, गर्भपात या बच्चे के समय से पहले जन्म का कारण हो सकता है। पैपेन, भ्रूण की महत्वपूर्ण झिल्ली को भी कमजोर कर देता है जिस वजह से उसका जीवित रहना मुश्किल हो जाता है इसलिए पहली तिमाही के दौरान कच्चे पपीते का सेवन बिलकुल भी न करें।
तीसरी तिमाही
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही या आखिरी तीन महीनों के दौरान पपीते में मौजूद एंजाइम ‘पैपेन’ के कारण गर्भाशय में संकुचन उत्पन्न होता है जो प्रसव पीड़ा को समय से पूर्व प्रेरित कर सकता है। इन समस्याओं के कारण ज्यादातर महिलाएं अपने आहार में पपीते का सेवन करने से बचना चाहती हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान कच्चा पपीता खाने से गर्भनाल के किनारे से खून बहना या रक्तस्राव भी हो सकता है।
गर्भावस्था के दौरान (पका हुआ) पपीता खाने के फायदे
गर्भावस्था के दौरान पूरी तरह से पके हुए पपीते को आमतौर पर सुरक्षित और फायदेमंद माना जाता है, इसके कुछ फायदे इस प्रकार हैं:
- लेटेक्स, पपीते में मौजूद एक घटक है जो प्रोस्टैग्लैंडिन और ऑक्सीटोसिन की तरह कार्य करता है और यह श्वसन संबंधी विकारों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- पके हुए पपीते में विटामिन ए, बी, सी, पोटेशियम और बीटा–कैरोटीन अत्यधिक होता है, जिनमें उच्च मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट होते हैं और यह प्रतिरक्षा को बढ़ाते हैं।
- पपीते में मौजूद विटामिन की आपूर्ति प्रतिरक्षा में सुधार करती है, जो विभिन्न संक्रमणों से बचाती है।
- पर्याप्त मात्रा में विटामिन, अल्सर और त्वचा की समस्याओं को भी रोकता है।
- पपीते में मौजूद फाइबर पाचन को आसान बनाते हैं: गर्भावस्था के दौरान कब्ज़ की एक आम समस्या को स्वाभाविक रूप से पपीते द्वारा हल किया जा सकता है। हालांकि, नियमित आहार के बारे में अपने प्रसूति विशेषज्ञ से परामर्श लें।
- पपीता, मॉर्निंग सिकनेस को दूर करने में मदद कर सकता है।
- पपीते में फॉलिक एसिड भी होता है, जो गर्भावस्था के दौरान शिशु के स्नायुविक (तंत्रिका संबंधी) विकास के लिए आवश्यक होता है।
- पपीता, हृदय के बेहतर स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है और माना जाता है कि यह मलाशय के कैंसर (कोलन या कोलोरेक्टल कैंसर) को भी रोकता है।
- गर्भावस्था के दौरान वायरल बीमारियों में पपीते के सेवन से प्लेटलेट की वृद्धि में मदद मिल सकती है, हालांकि यह तथ्य वैज्ञानिकों की रिपोर्ट द्वारा समर्थित नहीं किया गया है।
- गर्भावस्था के दौरान पके हुए पपीते का सही मात्रा में सेवन करने से दूध उत्पादन की वृद्धि में मदद मिलती है।
गर्भावस्था के दौरान पपीता खाने के प्रभाव
गर्भावस्था के दौरान पपीता खाने के कुछ अन्य प्रभाव, इस प्रकार हैं:
1. गर्भाशय में संकुचन होना:
कच्चे पपीते में लेटेक्स होता है या आंशिक रूप से पके हुए पपीते में भी पैपेन होता है जो प्रोस्टैग्लैंडिन और ऑक्सीटोसिन को उत्तेजित कर सकता है, यह हॉर्मोन गर्भाशय संकुचन कर सकते हैं और इससे समय से पहले प्रसव भी हो सकता है। पपीता, गर्भपात का कारण भी बन सकता है क्योंकि यह एक प्रबल आर्तवजनक होता है। गर्भावस्था के प्रारंभिक महीनों के दौरान इसका सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। यह वह अवधि है जब नाल का गठन होता है और लेटेक्स की एक अपर्याप्त मात्रा में उपस्थिति होने के कारण गर्भ को नुकसान पहुँचने की संभावना हो सकती है।
2. भ्रूण विकास पर प्रभाव:
पेप्सिन और पैपेन भ्रूण के जीवन और विकास के लिए हानिकारक हो सकते हैं। अध्ययन के अनुसार गर्भावस्था के दौरान पपीता खाने से भ्रूण के विकास में बाधा आ सकती है, यह गर्भावस्था के बाद के नुकसान और खतरों को बढ़ा सकते हैं और भ्रूण को संभावित नुकसान पहुँचा सकते हैं।
3. भ्रूण की महत्वपूर्ण झिल्ली को कमजोर करता है:
पैपेन का उपयोग अक्सर कोशिका पृथक्करण (विघटन) के लिए किया जाता है क्योंकि यह एक प्रोटियोलिटिक एंजाइम है। यह मंद कोशिकाओं की वृद्धि के लिए जाना जाता है और भ्रूण में ऊतकों के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
4. नकसीर और शोफ (सूजन) का कारण हो सकता है:
कच्चा पपीता, संवहनी दबाव को (वाहिकाओं पर दबाव) बढ़ा सकता है और यहाँ तक कि नाल में आंतरिक रक्तस्राव भी हो सकता है। अपरा में रक्तस्राव, गर्भावस्था और प्रसव संबंधी जटिलताओं की ओर ले जाता है। पपीता, नाल के विकास और कार्य को प्रभावित कर सकता है।
5. अधिक मल त्याग के कारण गर्भपात हो सकता है:
पपीता, आंतों की गतिशीलता को बढ़ाता है। हालांकि, अधिक मल त्याग गर्भाशय में और उसके आसपास दबाव बना सकता है जो गर्भपात का कारण बन सकता है। पपीता, फाइबर–युक्त होता है और यह पेट और आंतों पर दबाव डालता है जो संभवतः गर्भपात का कारण बन सकता है।
6. तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव:
पपीते के पत्तों और बीजों में कार्पिन विष होता है जो मध्य तंत्रिका तंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है।
7. गर्भपात और टेराटोजेनिक:
पैपेन और चाइमोपैपेन, दो एंजाइम के पदार्थ हैं जो पपीते में मौजूद होते हैं और यह दोनों पदार्थ टेराटोजेनिक (भ्रूण के विकास के लिए हानिकारक) और गर्भपात का कारण होते हैं।
8. पहले हुआ गर्भपात/समय से पहले प्रसव और पैपेन का प्रभाव:
जिन महिलाओं को समय से पहले प्रसव या गर्भपात हुआ है, वह पैपेन के कारण अन्य खतरों में पड़ सकती है। इसलिए, ऐसी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पपीते से बचना चाहिए।
9. एस्ट्रोजन के उत्पादन को बढ़ावा देता है:
पपीते में मौजूद पैपेन मासिक धर्म चक्र को नियमित करने में भी मदद करता है। जबकि गर्भावस्था के दौरान मासिक धर्म नहीं होता है। योनि के माध्यम से रक्तस्राव आसन्न गर्भपात या अस्थानिक गर्भावस्था का खतरा अत्यधिक बढ़ सकता है। पपीता, शरीर के तापमान को बढ़ाता है और शरीर में एस्ट्रोजन का उत्पादन भी बढ़ाता है।
10. गुर्दे की पथरी का कारण होता है और पेट के दबाव को बढ़ाता है:
पपीते में विटामिन सी होता है जो प्रतिरोधक क्षमता के लिए अच्छा माना जाता है लेकिन इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से गुर्दे में पथरी की समस्या हो सकती है। विटामिन सी चयापचय ऑक्सेलेट का उत्पादन करता है जो पथरी के निर्माण को बढ़ावा दे सकता है। पथरी के कारण पेट में दर्द हो सकता है और इससे अंततः पेट का दबाव बढ़ जाता है जो गर्भावस्था को प्रभावित करता है।
11. रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित करता है:
अगर गर्भवती महिला को पहले कभी गर्भकालीन मधुमेह हुआ है, तो गर्भावस्था के दौरान पपीता खाना असुरक्षित है।
12. त्वचा का रंग हल्का होना:
पपीते में मौजूद बीटा कैरोटीन पदार्थ इसे नारंगी रंग देती है। इसकी अधिकता एक समस्या का कारण बनती है जिसे कैरोटीनीमिया कहा जाता है। त्वचा की रंजकता से बचने के लिए पपीते का सेवन ज्यादा नहीं करना चाहिए।
क्या आप पपीते का रस पी सकती हैं?
नहीं, यह सलाह दी जाती है कि बाजार में उपलब्ध पपीते का रस नहीं पीना चाहिए। पपीते का एक बड़ा फायदा यह है कि यह फल फाइबर से भरपूर होता है। इसे रस के रूप में परिवर्तित करने से इसके लाभ कम हो जाते हैं। इसके अलावा, टेट्रा पैक में उपलब्ध पपीते के रस में उसका सार हो सकता है। ऐसे रसों में लेटेक्स या पैपैन के तत्वों की प्रतिशत सामग्री अपेक्षा से अधिक होती है। इसलिए, यदि आप पपीते का रस लेना चाहती हैं तो घर पर बना रस लेना बेहतर विकल्प है। प्रिजर्वेटिव्स और एडेड शुगर (बाहरी शर्करा की मात्रा) इसके लाभकारी गुणों को कम कर सकती हैं। रस को ताजा और कम मात्रा में सेवन करें।
गर्भावस्था के दौरान कच्चे पपीते के सेवन से जोखिम
कच्चे पपीते में ‘लेटेेक्स’ की उच्च मात्रा होती है। गर्भावस्था में कच्चे पपीते का सेवन आपकी गर्भावस्था पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है।
जैसे ही प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, गर्भावस्था के दौरान महिलाएं बीमारियों और प्रत्यूर्जता (एलर्जी) से ग्रसित हो जाती हैं।
- एक पपीते में लेटेक्स होने के कारण लेटेक्स एलर्जी हो सकती है और इसकी प्रतिक्रिया घातक होती है।
- वह महिलाएं जिन्हें गर्भधारण करने में कठिनाई हुई हो या पहले गर्भपात हो चुका हो उन्हें पपीते से बचना चाहिए। अध्ययनों से पता चलता है कि कच्चा पपीता भ्रूण के विकास को भी प्रभावित करता है।
- कच्चे पपीते से गर्भपात होता है। इसमें कई तरह के हानिकारक किण्वक (एंजाइम) होते हैं, जिससे गर्भपात और रक्तस्राव हो सकता है।
- आपको पपीते के बीज और पत्तियों को निगलने से बचना चाहिए क्योंकि यह भ्रूण को नुकसान पहुँचा सकते हैं। पपीता खरीदते समय थोड़ा हरा पपीता खरीदें, यह समय रहते घर पर ही पक सकता है। काले धब्बे या दाग के निशान वाले पपीते से बचना चाहिए।
- अच्छी तरह से पका हुआ पपीता एक बेहतरीन विकल्प है, जिसका छिलका नारंगी रंग का होता है और छूने पर नर्म होता है।
- पपीता एक किफायती फल है, इसके पेड़ को सरलता से अपने परिसर में लगाया जा सकता है और आप एक जैविक पपीते का आनंद ले सकती हैं।
क्या पपीता गर्भवती महिला के लिए अच्छा है?
गर्भवती महिलाओं के लिए पके पपीते का कम मात्रा में सेवन फायदेमंद होता है। यह प्रमाणित है कि गर्भवती महिलाएं पका हुआ पपीता खा सकती हैं। इसे भारत में एक आम मिथक माना जाता है कि पपीता गर्भपात का कारण बनता है लेकिन वैज्ञानिक रूप से यह साबित नहीं हुआ है। वास्तव में, एक पका हुआ पपीता उन पोषक तत्वों से परिपूर्ण है जो अजन्मे शिशु के लिए आवश्यक होते हैं और गर्भावस्था के आहार के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। यह फल कब्ज़ जैसी सामान्य गर्भावस्था की बीमारियों को भी ठीक करने में मदद करता है। एक गर्भवती महिला को पके हुए पपीते का सामान्य मात्रा में सेवन करने से फायदा हो सकता है।
क्या प्रसव के बाद पपीता खाना सुरक्षित होता है?
बहुत सी महिलाएं यह सवाल पूछती हैं – क्या प्रसव के बाद पका हुआ पपीता खाना सुरक्षित है?
हाँ, पपीता आवश्यक विटामिन और खनिजों का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। कच्चे पपीते के सेवन से शरीर में ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन के उत्पादन को बढ़ावा मिलता है और इसलिए माँ के दूध का प्रवाह भी बढ़ता है। इसी प्रकार से यह दूध पिलाने वाली माँओं के लिए फायदेमंद होता है। अपने शिशु को बेहतर पोषण देने और उसके साथ को अपने बंधन में बांधने के लिए पपीते को अपने प्रसवोत्तर आहार में शामिल करें। आपने कभी सोचा है कि क्या पपीता गर्भावस्था को रोक सकता है? जवाब फिर से वही है हाँ, यह कर सकता है।
इसके हार्मोनल प्रभावों के साथ पपीता गर्भनिरोधक के एक प्राकृतिक तरीके से कार्य कर सकता है, लेकिन गर्भनिरोधक के अन्य तरीकों की तुलना में कम होता है।
निष्कर्ष:
चूंकि पके या कच्चे पपीते का सेवन एक विवादास्पद विषय है, ज्यादातर महिलाएं गर्भावस्था के दौरान पपीते से पूरी तरह से बचने का विकल्प चुनती हैं। हालांकि, इसका शिशु पर विपरीत प्रभाव की चिंता किए बिना कम मात्रा में सेवन किया जा सकता है, बशर्ते कि गर्भावस्था में जटिलताओं का पूर्व इतिहास न हो। वास्तव में, पपीते के सही पोषक–तत्व शिशु के विकास में मदद करते हैं।