गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान दमा (अस्थमा) – कारण, लक्षण और इलाज

अस्थमा फेफड़ों की एक लॉन्ग-टर्म इन्फ्लेमेटरी बीमारी है, जिसमें सूजन के कारण एयरवेज सिकुड़ जाते हैं, जिससे छाती की कसावट, सांस फूलने या खांसी के रूप में दौरे पड़ते हैं। यह बार-बार होता है और इसका रूप बदलता रहता है। इसके ट्रिगर के स्वभाव और लाइफस्टाइल के आधार पर इन दौरों की फ्रीक्वेंसी बदलती रहती है। भारत में लगभग 4% से 8% गर्भवती महिलाएं अस्थमा से प्रभावित होती हैं। यह सबसे आम कॉम्प्लिकेशन में से एक है, जिसे नियंत्रित किया जा सकता है और प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है। अगर शुरुआत में आप अस्थमा से ग्रस्त थीं, तो इस पर आपकी गर्भावस्था का क्या असर होगा, यह बता पाना संभव नहीं है। 

अस्थमा और गर्भावस्था

प्रेगनेंसी के दौरान इस बीमारी में सुधर हो सकता है, यह जस की तस रह सकती है या फिर बिगड़ भी सकती है। लेकिन डिलीवरी के 3 महीने बाद आपकी स्थिति बिलकुल वैसी हो जाएगी, जैसी प्रेगनेंसी के पहले थी। अगर आपकी स्थिति बिगड़ती है, तो यह ज्यादातर तीसरी तिमाही में होता है, जिसके कारण प्रीमैच्योर डिलीवरी हो सकती है। अपने डॉक्टर के गाइडेंस के आधार पर बीमारी को नियंत्रित करके ऐसे गंभीर नतीजों से बचा जा सकता है। 

गर्भवती होने पर अस्थमा के लक्षण

हॉर्मोनल बदलावों के कारण अस्थमा पैदा होने का खतरा होता है। प्रेगनेंसी अस्थमा के लक्षणों में सांस फूलना या घबराहट शामिल होती है। ये लक्षण अस्थमा से ग्रस्त किसी भी सामान्य व्यक्ति के लक्षण जैसे ही होते हैं। अगर अस्थमा पर नियंत्रण नहीं रखा जाता है या इसे नजरअंदाज किया जाता है, तो स्टडीज में निम्नलिखित खतरे देखे गए हैं: 

  • हाई ब्लड प्रेशर
  • प्री-एक्लेमप्सिया – एक बीमारी जिसमें हाई ब्लड प्रेशर देखा जाता है, जो कि लिवर, किडनी, प्लेसेंटा और दिमाग को प्रभावित करती है। ये सभी फैक्टर गर्भस्थ शिशु को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करते हैं:
  1. विकास की दर का घट जाना
  2. प्रीटर्म डिलीवरी
  3. जन्म के समय बेबी का वजन कम होना
  4. मृत्यु का खतरा बढ़ना

अस्थमा के विभिन्न कारण

अस्थमा के अटैक के लक्षण हर व्यक्ति में अलग हो सकते हैं। ये विभिन्न तत्वों के संपर्क में आने के कारण दिखते हैं या फिर रात के समय अधिक फ्रिक्वेंट हो सकते हैं। अस्थमा के अटैक को ट्रिगर करने वाले कुछ तत्व इस प्रकार हैं:

  • धूल
  • जानवरों के बाल या पंख
  • पोलेन
  • रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन
  • धुआँ
  • शारीरिक तनाव या थकान

कभी-कभी ये अटैक तापमान या मौसम में बदलाव के कारण भी हो सकते हैं, जिससे रात के समय इसका अटैक होने का अधिक खतरा होता है। आप जिस हवा में सांस लेते हैं, उसके तापमान या नमी में अचानक आने वाले बदलाव के कारण ऐसा होता है। किसी तरह के तनाव, एंग्जाइटी या व्यक्ति के सेंसिटिव होने की स्थिति में या अधिक हंसने पर भी ये अटैक देखे जाते हैं। 

अस्थमा आपकी गर्भावस्था को किस प्रकार प्रभावित करता है?

अस्थमा का प्रभाव कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे किसी ट्रिगर से आपका संपर्क, आपके अटैक्स की अवधि और उसके प्रति आपकी प्रतिक्रिया की तेजी। जब अस्थमा का अटैक आता है, तो वह आपके ब्रोंकाइल रूट को संकुचित कर देता है और काफी हद तक आपके फेफड़ों में जाने वाली हवा को कम कर देता है। ऐसे मामलों में खून में मौजूद ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है और शरीर में मौजूद सभी सेल्स हिपॉक्सिक (जिन्हें कम ऑक्सीजन मिल रहा है) बन जाते हैं। जिसके कारण आपके बढ़ते बच्चे तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। ऐसे तनाव की स्थिति में आपकी मेडिकल प्रतिक्रिया की तेजी इस बात का निर्धारण करती है, कि आपका बच्चा कितने लंबे समय तक उसके संपर्क में रहा है और बच्चे पर तनाव का क्या प्रभाव पड़ता है। ऐसे में देखी जाने वाली कुछ जटिलताएं इस प्रकार हैं: 

  • प्री-एक्लेमप्सिया
  • प्रेगनेंसी से होने वाला हाइपरटेंशन
  • यूटेराइन हेमरेज
  • प्रीटर्म लेबर
  • प्रीमैच्योर बच्चा
  • जन्म दोष

बीमारी पर नियंत्रण करके और अटैक होने पर सावधानी बरतकर, ऐसे खतरों और जटिलताओं को प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है। ऐसा देखा गया है, कि अस्थमा से ग्रस्त महिलाओं में अन्य महिलाओं की तुलना में प्रीटर्म लेबर का खतरा अधिक होता है। 

पहचान

अगर आपको गर्भावस्था से पहले भी अस्थमा था, तो गर्भवती होने के दौरान भी अपनी दवाओं को जारी रखना सुरक्षित माना जाता है। डॉक्टरों का मानना है, कि जब महिला अपनी दवाओं को बंद कर देती है, तब कॉम्प्लिकेशन ज्यादा हो सकते हैं और दवाएं जारी रखने से इनकी संभावना कम होती है। 

गर्भधारण से पहले अपने ओबी/गाइनकॉलजिस्ट से अपनी दवाओं और इलाज के बारे में बात करें। अस्थमा की सभी दवाओं को प्रेगनेंसी के दौरान लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है और ये किसी भी प्रकार से बच्चे पर प्रभाव नहीं डालती हैं। अगर आपको इस बात का डर है, कि बच्चे को अनुवांशिक रूप से अस्थमा न हो जाए, तो एक अल्ट्रासाउंड के द्वारा इसे करीब से देखा जा सकता है और लक्षणों की जांच की जा सकती है। यहां पर एक रूटीन दिया गया है, जिसे आप फॉलो कर सकती हैं: 

  • गर्भावस्था के दौरान नियंत्रण और इलाज के लिए प्लानिंग करें
  • अपनी दवाओं को जारी रखें और किसी भी स्थिति में कोई भी खुराक न छोड़ें
  • आपकी स्थिति को ट्रिगर करने वाले फैक्टर्स के संपर्क में आने से बचें
  • अपने डॉक्टर की गाइडेंस में सावधानीपूर्वक स्कैन कराएं और बच्चे के विकास की जांच करें
  • उन चीजों के बारे में जानें जो आपके लिए वर्जित हैं, जैसे धुआँ या धूल, जिससे आपको एक पूर्ण विकसित अटैक हो सकता है और परेशानी हो सकती है
  • किसी भी तरह के खतरे के संकेत पर लगातार ध्यान दें और स्थिति के अनुसार कदम उठाने के लिए तैयार रहें

आपके जींस के कारण बच्चे में भी अस्थमा होने की संभावना बढ़ जाती है, लेकिन जब वह आपके गर्भ में होता है, तब ये फैक्टर्स बच्चे की स्थिति को जटिल नहीं बनाते हैं, बल्कि डिलीवरी के बाद और एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में विकसित होने पर ये संकेत दिखते हैं। इस प्रकार अपने वातावरण को नियंत्रित रखकर और लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर आप इसके लक्षणों को कम कर सकती हैं और बच्चे के विकसित होने पर दिखने वाले कॉम्प्लीकेशंस को नियंत्रित कर सकती हैं। 

प्रेगनेंसी के दौरान अस्थमा का इलाज और नियंत्रण

2014 में ऑस्ट्रेलियन नेशनल काउंसिल द्वारा रिलीज की गई गाइडलाइंस के अनुसार, गर्भवती महिलाओं के लिए अस्थमा के मैनेजमेंट को अस्थमा से ग्रस्त नॉन-प्रेग्नेंट महिलाओं के जैसा ही बताया गया है। गर्भावस्था में अस्थमा मैनेजमेंट का मुख्य फोकस होता है: 

  • तापमान और नमी में बदलाव के कारण, दिन और रात के दौरान अटैक के संपर्क से बचाव
  • एक नॉर्मल पलमोनरी स्टेटस और तनाव रहित स्वस्थ एक्टिविटी को मेंटेन करना
  • अटैक के संपर्क को कम करना
  • गर्भवती होने पर कम से कम साइड इफेक्ट वाली थेरेपी करवाना

केवल अपने स्वास्थ्य को मेंटेन करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि बढ़ते बच्चे पर ध्यान देना भी जरूरी है, ताकि ऑक्सीजन युक्त खून के स्वस्थ बहाव को मेंटेन किया जा सके। ऐसा पाया गया है, कि ज्यादातर दवाएं बढ़ते बच्चे के लिए सुरक्षित होती हैं, जिनके साइड इफेक्ट बहुत कम ही ट्रांसमिट होते हैं। यहां पर एक टेबल दी गई है, जिसमें दवाओं की एक लिस्ट है, जिन्हें आम सहमति से सुरक्षित और जटिलता रहित माना गया है: 

दवा का प्रकार दवा कमेंट
ब्रोंकोडाइलेटर्स एल्ब्यूट्रोल, मेटाप्रोटेरेनॉल, टेरूटालाइन मां और बच्चे के लिए सुरक्षित माना जाता है
लोंगर-एक्टिंग ब्रोंकोडाइलेटर सालमेट्रोल, फोरमोटरोल कंबाइंड विद इनहेल्ड ग्लूकोकॉर्टिकॉइड मां और बच्चे के लिए सुरक्षित
ग्लूकोकॉर्टिकॉइड पिल्स – प्रेड्नीसोन, इनहेल्ड – बिक्लोमिथेजोन, बुडेसोनाइड, फ्लूटिकसोने मां और बच्चे के लिए सुरक्षित
ओरल ग्लूकोकॉर्टिकॉइड क्लेफ्ट लिप, क्लेफ्ट पैलेट, प्रीमैच्योर डिलीवरी या जन्म के समय कम वजन का खतरा थोड़ा बढ़ जाता है। मां में जेस्टेशनल डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है। लेबर और डिलीवरी के दौरान आईवी के रूप में ग्लूकोकॉर्टिकॉइड की जरूरत पड़ेगी
इनहेल्ड ग्लूकोकॉर्टिकॉइड बुडेसोनाइड, फ्लूटिकासोन, बेक्लोमीथासोन गर्भावस्था के दौरान सबसे सुरक्षित दवाओं में से एक
इम्यूनोथेरेपी (एलर्जी शॉट्स) जो महिलाएं गर्भवती होने के पहले से इसे ले रही हों, उनके लिए सुरक्षित होता है। पर प्रेगनेंसी के दौरान इसे शुरू नहीं किया जाता है।
सल्फोनामाइड पहली तिमाही के दौरान सुरक्षित। बाद में इस्तेमाल किया जाए तो शिशु में जॉन्डिस का खतरा हो सकता है
टेटरासाइक्लिन असुरक्षित, हड्डियों या दांतों में विकृति हो सकती है

किसी भी दवा को प्रेगनेंसी के दौरान लेने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित नहीं माना जा सकता है। लेकिन अपने इलाज को जारी रखने की सख्त सलाह दी जाती है, ताकि ट्रिगर्स को कम किया जा सके और अटैक के कारण किसी तरह की जटिलता को रोका जा सके। 

अस्थमा के अटैक को कम करने के लिए सुरक्षात्मक बचाव

गर्भावस्था के दौरान अस्थमा के अटैक को कम करने के लिए मुख्य कदम होना चाहिए, अपने ट्रिगर को पहचानना। जैसा कि ऊपर बताया गया है, हर व्यक्ति का ट्रिगर अलग हो सकता है। अपने ट्रिगर को पहचानना और उसके प्रति अपने संपर्क को कम करना बहुत जरूरी हो जाता है। ऐसे कुछ ट्रिगर इस प्रकार हो सकते हैं: 

  • धूल – सफाई का काम किसी और को करने दें और जब कोई अन्य व्यक्ति सफाई कर रहा हो, तो एक दुपट्टा या मास्क से अपने चेहरे को ढकें, ताकि कोई भी धूल कण आपकी सांस के द्वारा अंदर न जाए।
  • डस्ट माइट – ये ज्यादातर धूल में पाए जाते हैं और चादर और सोफा कवर पर सबसे अधिक दिखते हैं। इन्हें हर सप्ताह बदलना और साफ करना न भूलें।
  • जानवरों के बाल और पंख – पालतू जानवरों या उनके बालों के संपर्क में आने से बचें। इनसे आपको ट्रिगर हो सकता है।
  • पोलेन – बसंत ऋतु के दौरान जितना हो सके बाहर जाने से बचें या फिर छोटे पोलेन सीड से बचने के लिए अपने चेहरे को ढकें। फूलों के बगीचों से दूर रहें या फिर हवा के झोंके से बचें, जिनमें ये पोलेन सीड हो सकते हैं।
  • तापमान या मौसम में बदलाव – ज्यादातर महिलाओं को रात के समय अटैक का खतरा अधिक होता है। तापमान में कमी आने के कारण और नमी में बदलाव के कारण सेंसिटिव नेजल ट्रैक प्रभावित हो जाती है और अटैक आ जाता है। अगर आप ऐसे तत्वों से प्रभावित होती हैं, तो रात होने पर अतिरिक्त सावधानी जरूर बरतें, ताकि आपका शरीर बदलावों को धीरे-धीरे स्वीकार कर ले और इनके अनुसार ढल जाए। ज्यादा भरे हुए कमरे में जाने-आने से बचें, क्योंकि तापमान में अचानक बदलाव आने से यह एक ट्रिगर के रूप में काम कर सकता है। ऐसी स्थितियों के दौरान फेस मास्क का इस्तेमाल करें।

ऐसे ट्रिगर्स पर लगातार नजर रखना कठिन होता है और हमेशा तैयार रहना सबसे अच्छा होता है। इसलिए एक स्वस्थ और शांत वातावरण मेंटेन करें, योगा प्रैक्टिस करें, स्वस्थ खाना खाएं और पॉजिटिव रहें। अगर अटैक की शुरुआत हो रही हो, तो अपनी दवाओं और इनहेलर को किसी ऐसी जगह पर रखें, जहां आपके परिवार के सभी सदस्य आसानी से पहुंच सकें। इससे अटैक के समय आपकी मदद करना उनके लिए आसान हो जाता है। बैठें (लेटे नहीं), शांत रहें और गहरी लंबी सांसो पर ध्यान दें और परेशान न हों। अगर यह स्थिति बनी रहती है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। 

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. क्या अस्थमा की दवाएं मेरे न्यूबॉर्न बेबी को नुकसान पहुंचाएंगी?

नहीं, ह्यूमन और एनिमल मॉडल टेस्ट के अनुसार, नॉन-प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए प्रिस्क्राइब की गई ज्यादातर दवाएं गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुरक्षित मानी जाती है। हालांकि इलाज की जांच और आपकी गर्भावस्था बीमारी पर किस प्रकार से प्रभाव डालती है, इसके अनुसार उसकी प्लानिंग जरूरी है। 

गर्भावस्था के दौरान रिलीज होने वाली सभी हॉर्मोंस के कारण (खासकर प्रोजेस्टेरोन) यह बीमारी सकारात्मक या नकारात्मक रूप से बदल सकती है या फिर ज्यों की त्यों बनी रह सकती है। इसलिए प्रोजेस्टेरोन आपके शरीर को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है, इसके आधार पर आपकी खुराक को बढ़ाना-घटाना या बदलना जरूरी है। गर्भवती महिलाओं के लिए उनकी दवाओं को जारी रखने की सख्त सलाह दी जाती है, क्योंकि इससे अटैक के कारण जटिलताओं की शुरुआत को कम किया जा सकता है, जो कि दवा के साइड इफेक्ट से ज्यादा जरूरी है। 

2. यदि गर्भावस्था के दौरान मेरा अस्थमा बिगड़ जाए, तो क्या करना चाहिए?

अगर आप उन एक तिहाई लोगों में से हैं, जिनका अस्थमा प्रेगनेंसी के दौरान बिगड़ जाता है, तो आपको अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। उन्हें अपनी स्थिति के बारे में अवगत कराएं और अपने इलाज के लिए एक रूटीन प्लान करें। जैसा कि पहले बताया गया है, अस्थमा को दवाओं के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है, जिन्हें प्रेगनेंसी के दौरान सुरक्षित माना जाता है। डॉक्टर प्रेगनेंसी के दौरान आपकी कुछ दवाओं को बदल कर एक ट्रीटमेंट प्लान तैयार करेंगे। जब तक आपकी डिलीवरी नहीं हो जाती, तब तक इस प्लान को फॉलो करना बहुत जरूरी होगा।

3. अस्थमा लेबर और डिलीवरी को कैसे प्रभावित करता है?

लेबर के दौरान अस्थमा का अटैक बहुत ही दुर्लभ है, क्योंकि आपका शरीर डिलीवरी की प्रक्रिया के दौरान पहले से ही एड्रेनालाईन और कोर्टिसोन रिलीज कर रहा होता है। यह बड़े पैमाने पर अस्थमा के अटैक को रोक सकता है। हालांकि अगर आपको कंफर्टेबल नहीं महसूस हो रहा है, तो अपने डॉक्टर से परामर्श लें और अपने इनहेलर को साथ रखें और जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल करें। 

4. लेबर के दौरान अस्थमा का अटैक आने पर क्या करें?

लेबर के दौरान अस्थमा का अटैक आना बहुत ही दुर्लभ है। एक स्टडी में यह पता चला है, कि ज्यादातर महिलाओं में गर्भावस्था के आखिरी महीने के दौरान अस्थमा के अटैक बंद हो जाते हैं। फिर भी जब आप हॉस्पिटल में हैं, तो आपको अपना इनहेलर और दवाएं साथ रखने की सलाह दी जाती है। यदि प्रेगनेंसी के दौरान आपकी बीमारी बिगड़ती जा रही है, तो आपके डॉक्टर ने नॉर्मल डिलीवरी की जगह पर सिजेरियन डिलीवरी के लिए प्लान किया होगा। हाई ब्लड प्रेशर, हाइपोक्सिया, प्लेसेंटल ब्लीडिंग के खतरे को कम करने के लिए ऐसा किया जाता है, जो कि बीमारी के तनाव के कारण सामने आ सकती है। 

अगर आप सिजेरियन डिलीवरी का चुनाव करती हैं, तो आपको जनरल एनेस्थेटिक के बजाय स्पाइनल एनेस्थेटिक के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। क्योंकि ऐसे में आप होश में होती हैं और किसी तरह की जटिलता होने पर जल्दी पता चल जाता है और प्रभावी रूप से उसे नियंत्रित किया जा सकता है। अस्थमा से ग्रस्त सभी महिलाओं के लिए उपलब्ध पेन रिलीवर का इस्तेमाल भी सुरक्षित होता है। 

यह भी पढ़ें: 

गर्भावस्था में अर्थराइटिस (गठिया)
गर्भावस्था के दौरान रूबेला (जर्मन मीजल्स) होना
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पूजा ठाकुर

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