गर्भावस्था के दौरान खून में इन्फेक्शन (सेप्सिस) होना

गर्भावस्था के दौरान खून में इन्फेक्शन (सेप्सिस) होना

सेप्सिस एक मेडिकल कॉम्प्लिकेशन है जो पूरे खून में इन्फेक्शन फैलने से होती है। यह समस्या गर्भावस्था के दौरान भी हो सकती है और इस समय किसी कॉम्प्लिकेशन से बचने के लिए इसका डायग्नोसिस करना और पहले से ही ठीक करना बहुत जरूरी है। 

सेप्सिस क्या है? 

सामान्य शब्दों में कहें तो सेप्सिस ब्लड पॉयजनिंग या खून में इन्फेक्शन होता है। यह किसी भी अंग जैसे, लंग्स, यूरिनरी ट्रैक्ट, ब्लैडर, किडनी, पेट इत्यादि में शारीरिक प्रतिक्रिया की वजह से हो सकता है। यदि आपके खून में कोई बैक्टीरिया पहुँच जाता है तो आपको सेप्सिस नामक समस्या हो सकती है। 

मेडिकल टर्म्स के अनुसार शरीर से खून में कुछ केमिकल्स रिलीज होते हैं जिससे इन्फेक्शन से बचाव होता है। यदि आपके शरीर का इम्युनिटी सिस्टम ठीक से फंक्शन नहीं करता है तो ये केमिकल्स उत्तेजित होकर पूरे शरीर में एक बीमारी की तरह फैल जाते हैं और इससे सेप्सिस होता है। यह अन्य सभी शारीरिक अंगों व खून को भी प्रभावित करता है जिससे कुछ मुख्य अंगों में खून की आपूर्ति कम हो सकती है। 

यह एक गंभीर समस्या होती है और इससे सेप्टिक शॉक भी हो सकता है। यह एक ऐसी समस्या है जिसमें ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा नीचे चला जाता है। इसके परिणामस्वरूप महिला के अंग काम करना बंद कर सकते हैं और यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी हो सकती है। 

गर्भावस्था के दौरान खून में इन्फेक्शन होने हो मैटरनल सेप्सिस कहा जाता है। पूरी दुनिया में लगभग 1/3 महिलाओं को मैटरनल सेप्सिस हुआ है। यदि इसका डायग्नोसिस करके इलाज नहीं किया गया तो इससे कई गंभीर कॉम्प्लीकेशंस भी हो सकती हैं। 

ऐसी भी संभावनाएं हैं कि डिलीवरी के समय सेप्सिस पैदा करनेवाले 15-30% पैथोजन्स शरीर में आ जाते हैं और इस वजह से जन्म के दौरान बच्चे को इन्फेक्शन होता है। इसलिए गर्भावस्था और सेप्सिस दो ऐसे विषय हैं जिनके बारे में गर्भवती महिला और उसके परिवार को पता होना चाहिए।  

हालांकि सेप्सिस की वजह से गर्भवती महिलाओं की (सेप्सिस के सामान्य मरीजों की तुलना में) मृत्यु उनकी छोटी आयु के कारण कम होती है। 

गर्भावस्था के दौरान खून में इन्फेक्शन होने का क्या कारण है? 

इस समय बढ़ती अपेक्षाएं, मेडिकल ट्रीटमेंट्स में बढ़ते खतरे, इम्युनिटी में बढ़ते विकार और पैथोजन्स प्रतिरोधक के कारण आज कल सेप्सिस के बहुत सारे मामले सामने आ रहे हैं। गर्भावस्था के दौरान भी सेप्सिस की समस्या बढ़ सकती है जिसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं, आइए जानें;

  • गर्भधारण करने की आयु: जो महिलाएं 40 या इससे ज्यादा की उम्र में गर्भधारण करती हैं और/या उन्हें टाइप 2 डायबिटीज, ओबेसिटी और हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं हों। 
  • आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन: इनसेमिनेशन को ठीक करने की नई तकनीकों का उपयोग व गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए नई दवाइयां लेने के कारण भी सेप्सिस हो सकता है। 
  • अबॉर्शन: यदि महिला की इम्युनिटी बहुत कमजोर हो तो अच्छी तरह देखभाल न होने के कारण उसे इन्फेक्शन या सेप्सिस हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप अबॉर्शन भी करवाना पड़ सकता है। यदि आपको थकान, वजायना से डिस्चार्ज, बुखार, खांसी इत्यादि समस्याएं हो रही हों तो अबॉर्शन के बाद आप तुरंत डॉक्टर से मिलें। 
  • अधिक समय तक डिलीवरी होना: यदि डिलीवरी लंबे समय तक चली है, इसमें बहुत ज्यादा कॉम्प्लीकेशंस हैं, डिलीवरी को प्रेरित क्या गया हो या सिजेरियन से डिलीवरी होने की वजह से भी सेप्सिस होने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। 
  • अन्य समस्याएं: यदि गर्भावस्था के दौरान आप बहुत ज्यादा बीमार हैं या आपको इन्फेक्शन है और आपमें कॉम्प्लीकेशंस के लक्षण दिखाई देते हैं तो आपको सेप्सिस होने का खतरा अधिक है। मैटरनल सेप्सिस होने के लक्षण और संकेत 

मैटरनल सेप्सिस होने के लक्षण और संकेत 

गर्भावस्था के दौरान सेप्सिस बहुत तेजी से फैलता है। हो सकता है महिला में इसके लक्षण लंबे समय से न दिखें और वह अचानक से बीमार पड़ सकती है। बहुत जरूरी है कि आप इस समस्या को समझें व इसके लक्षण व संकेतों पर ध्यान दें और इससे अन्य बीमारी के लक्षण भी दिख सकते हैं;

  • ठंड लगने और कपकपी आने के साथ बुखार भी आता है (38.3 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा या 36 डिग्री सेल्सियस से कम)।
  • दिल की धड़कन 90 बीट्स प्रति मिनट से ज्यादा तेज हो सकती है। 
  • मानसिक रूप से कन्फ्यूजन होती है। 
  • सिर में बहुत तेज दर्द हो सकता है। 
  • आपको नींद ज्यादा आती है।  
  • तेज दर्द होता है।
  • आपको एडिमा के लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जैसे शरीर में फ्लूइड इक्कट्ठा होने की वजह से अंगों में सूजन होना (पैरों,हाथों, चेहरे, पेट और इत्यादि में)। 
  • आपका ब्लड शुगर लगभग 110 मिलीग्राम/डेसीलीटर से ज्यादा या 7.7 एमएमओएल/लीटर होना से ज्यादा बढ़ सकता है।
  • पेशाब 0.5 मिलीलीटर/किलोग्राम/घंटा से कम होना। 
  • आपकी प्लेसेंटा में इन्फेक्शन हो सकता है या गर्भाशय ठीक नहीं होता है। 
  • आपको कोई अन्य इन्फेक्शन हो सकता है और इसकी वजह से आपकी सांसें तेज चल सकती हैं और आपको सांस लेने में तकलीफ होती है। 
  • यदि आपने वाइट सेल्स के लिए डायग्नोसिस करवाया है और इसके परिणाम नॉर्मल रेंज में नहीं हैं।
  • आपको गंभीर रूप से डायरिया, मांसपेशियों में दर्द, बेहोशी, उल्टी, मतली और त्वचा ठंडी पड़ने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। 
  • आपको इन्फेक्शन होने के साथ गर्भाशय की थैली समय से पहले भी फट सकती है।  

गर्भावस्था के दौरान ब्लड इन्फेक्शन के उपचार 

सेप्सिस की समस्या को ठीक करने के लिए टिश्यू के फंक्शन, सेल मेटाबॉलिज्म, ऑक्सीजन के सर्कुलेशन, बच्चे की सुरक्षता और इत्यादि को रिस्टोर किया जा सकता है। यह ट्रीटमेंट हमेशा आई.सी.यू. में होना चाहिए। इसके कुछ तरीके निम्नलिखित हैं, आइए जानें;

  • एंटीबायोटिक्स: सिर्फ एंटीबायोटिक्स की मदद से शुरूआत में सेप्सिस का इलाज हो सकता है। आमतौर पर एक एंटीबायोटिक का उपयोग प्रतिरोधक को ठीक करने के लिए किया जाता है। जेनिटल सेप्सिस में यह दवाई एक साथ 2 से 3 दी जा सकती है। पॉलीमाइक्रोबियल इन्फेक्शन में व्यापक रूप से एंटीबायोटिक्स जैसे, पेनिसिलिन, एम्नियोग्लाइकोसाइड, क्लिंडामाइसिन, वैंकोमाइसिन या पिपरसिलिन-ताजोबैक्टम का उपयोग किया जाता है। इन दवाइयों का उपयोग पूरी सावधानी से करना चाहिए क्योंकि गर्भवती महिलाओं में एंटीबायोटिक्स के गुण बदल सकते हैं और कुछ एंटीबायोटिक्स बच्चे के लिए भी हानिकारक होती हैं। 
  • इंट्रावेनस फ्लूइड (नसों में फ्लूइड इंजेक्ट करना): डॉक्टर यह ट्रीटमेंट पूरी सावधानी से करते हैं ताकि महिला के शरीर में ज्यादा फ्लूइड न जाए और यह ट्रीटमेंट शुरू होने के 6 घंटे बाद इसकी जांच की जानी चाहिए। कुछ मेडिकल समस्याओं के लिए डॉक्टर महिलाओं को एल्बुमिन भी दे सकते हैं। इस ट्रीटमेंट की वजह से ब्लीडिंग या किडनी का फंक्शन रुक सकता है। 
  • दवाएं: गर्भवती महिला के इलाज के दौरान यूटेरोप्लेसेंटल के बहते खून को रोकने के लिए डोपामाइन और नॉरएड्रेनालाईन का उपयोग किया जाता है। बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए महिला को यह दवाएं बहुत सावधानी से दी जाती हैं। स्टडी के अनुसार इसके साइड इफेक्ट्स को कम करने के लिए नोराड्रेनालाइन लेने की सलाह दी जाती है।
  • ऑक्सीजन की आपूर्ति: यदि सेप्सिस आपके लंग्स को प्रभावित करता है जिसकी वजह से आपको सांस लेने में समस्या होती है तो आपको इसकी जरूरत पड़ती है। ऑक्सीजन की आपूर्ति; 
    • नेजल कैनुला 
    • नेबुलाइजर 
    • और गंभीर मामलों में इन्वेसिव मैकेनिकल वेंटिलेशन से की जा सकती है। 

सेप्सिस से ग्रसित गर्भवती महिलाओं में ऑक्सीजन का सैचुरेशन 95% होना चाहिए और सेप्सिस के सामान्य मरीजों में इसका सैचुरेशन 90% नहीं होना चाहिए। यह गर्भ में पल रहे बच्चे में साइड इफेक्ट्स की अधिक संभावनाओं को कम करने के लिए जरूरी है। 

गर्भावस्था के दौरान ब्लड इन्फेक्शन से बचाव 

गर्भावस्था के दौरान खून में इन्फेक्शन होने की संभावनाओं को आप निम्नलिखित तरीकों से रोक सकती हैं, आइए जानें; 

  • बीमार लोगों से दूर रहें: आप इन्फेक्शन से बचने के लिए उन लोगों से दूर रहें जो अक्सर बीमार रहते हैं, बाहर का खाना न खाएं और इत्यादि। 
  • हाइजीन बनाए रखें: खाना पकाने और खाने से पहले अच्छी तरह से हाथ धोएं। 
  • वैक्सीन लें: आप हमेशा समय पर वैक्सीन लें। 
  • मेडिकल मदद लें: यदि आपको इन्फेक्शन होता है तो आप तुरंत डॉक्टर से मदद लें क्योंकि पहले से डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट करने से इन्फेक्शन को खून में फैलने से रोका जा सकता है।  
  • यदि आपको स्वास्थ्य से संबंधित कोई भी समस्या है तो देखभाल करें: यदि आपको डायबिटीज, कैंसर है या आपकी आयु छोटी है तो आपको हाइजीन और इन्फेक्शन्स का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इसके कारण पहले ही आपकी इम्युनिटी कमजोर हो चुकी है जिससे सेप्सिस होने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। 

डॉक्टर से कब मिलें डॉक्टर से कब मिलें 

यदि आपको निम्नलिखित समस्याएं होती हैं, तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें;

  • यदि आपको नीचे बताया हुआ कोई भी इन्फेक्शन हुआ है तो आप डॉक्टर से सलाह ले सकती हैं। वे कौन से इन्फेक्शन हैं, यहाँ जानें;
    • एस्चेरेचिया कोली 
    • हेमोफायलस इन्फ्लुएंजा 
    • क्लेबसिएला
    • एन्टेरोबेक्टर 
    • प्रोटियस 
    • स्यूडोमोनास
    • सेराटिया
    • न्यूमोकोकस
    • स्ट्रेप्टोकोकस, ग्रुप ए, बी और डी 
    • एन्टेरोकोकस 
    • स्टेफिलोकोकस ऑरियस
    • लिस्टेरिया मोनोसाइटोजीन्स 
    • बैक्टेरॉइड्स
    • क्लोस्ट्रीडियम प्रेफ्रीजर्स 
    • फसोबैटीरियम 
    • पेप्टोकॉकस 
    • पेप्टोसट्रेप्टोकॉकस 
    • पायलॉनेफ्रैटिस 
    • मलेरिया 
    • लिस्टिरियॉसिस 
    • वायरल हेपेटाइटिस (ई)
    • वैरिसेला निमोनिया 
    • कोक्‍सीडिओइडीस
    • एस्पिरेशन निमोनिया 
    • एचआईवी से संबंधित इन्फेक्शन्स 
    • टोक्सोप्लास्मोसिस 
    • साइटोमेगालो वायरस
    • पेट के इन्फेक्शन्स 
    • हर्पीस बढ़ना (डिसेमिनेटेड हर्पीस)

(कृपया ध्यान दें कि यह सूची पूरी नहीं है) 

  • यदि आपके डायग्नोसिस में निम्नलिखित समस्याएं दिखाई देती हैं: 
    • आपको गंभीर रूप से एनीमिया है। 
    • आपकी वाइट ब्लड सेल्स का काउंट असाधारण होने की, क्रिएटिनिन, प्लाज्मा सी रिएक्टिव प्रोटीन, आईएनआर, प्लेटलेट काउंट, प्लाज्मा प्रोकैल्सिटोनिन, बिलिरुबिन या अन्य टेस्ट रिपोर्ट्स हैं। 
  • यदि आपको ब्लड प्रेशर अब्नॉर्मल हो जाता है (ब्लड प्रेशर मॉनिटर का उपयोग करने पर)।
  • यदि इन्फेक्शन की वजह से आपको रेस्पिरेटरी समस्याएं होती हैं। यदि आपके पास ऑक्सीमीटर है  (शरीर में ऑक्सीजन चेक करनेवाला डिवाइस) तो आप अपना ऑक्सीजन सैचुरेशन जांच सकती हैं। यदि इसकी रीडिंग्स नॉर्मल नहीं हैं तो आपको डॉक्टर से मदद लेनी चाहिए। 
  • यदि आपको इन्फेक्शन है और आपके पेशाब का फ्लो कम हो गया है, दिल की धड़कनें बढ़ रही हैं, आपको सांस लेने में समस्या हो रही है या आपको पेट से संबंधित समस्याएं हैं। 
  • यदि आपको चोट लग जाती है व खून बहना कम नहीं होता है और इससे यदि आपको ब्लड क्लॉटिंग होती है जिसकी वजह से आंतों में खून आ सकता है, चोट की जगह पर नीला पड़ सकता है, नाक से खून आ सकता है और इत्यादि। 
  • यदि आपको अब्नॉर्मल तरीके से वजायनल डिस्चार्ज होता है। 
  • यदि पहले अबॉर्शन ठीक से न होने के कारण आपको इन्फेक्शन हो चुका है। 
  • यदि आप हॉस्पिटल से वापिस आई हैं और आपको वहाँ से भी इन्फेक्शन होने का खतरा है। 
  • यदि आपको कोई अन्य गंभीर बीमारी है जो दवाएं लेने के बाद भी ठीक नहीं हो रही है। 

आप ऊपर बताई हुई जानकारी को फॉलो जरूर करें क्योंकि यदि इसका पता करके इलाज नहीं किया गया तो यह समस्या खतरा बन सकती है। 

यह भी पढ़ें:

प्रेगनेंसी के दौरान मूत्र मार्ग संक्रमण (यू.टी.आई.) के 10 घरेलू उपचार