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भगवान कृष्ण ने जन्म के बाद ही अपने अवतार के चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए थे। श्री कृष्ण का मामा कंस उन्हें मारना चाहता था और समय-समय पर असुर, दानव और दैत्यों को इस काम के लिए भेजता रहता था। एक बार कंस ने बाल कृष्ण को मारने के लिए अरिष्टासुर नामक असुर को भेजा। अरिष्टासुर ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए एक बैल का रूप लिया लेकिन कृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया। पूरी कहानी जानने के लिए आगे पढ़ें।
भगवान श्री कृष्ण के बचपन की इस कहानी के मुख्य पात्र हैं –
जब श्री कृष्ण नन्हे से बालक थे और गोकुल में अपने बाबा नंद की गाय-भैंसों को चराया करते थे तब उन्होंने मामा कंस द्वारा भेजे गए कई राक्षसों का वध किया था। ऐसे ही एक बार कंस ने कृष्ण को मारने के लिए अरिष्टासुर असुर को भेजा।
अरिष्टासुर ने कृष्ण को मारने के लिए एक विशाल शरीर और बड़े-बड़े सींगों वाले बैल का रूप लिया और गोकुल में घुस गया। वह अपने खुरों से धरती खोदने लगा। उसके भारी खुरों से भूमि ऐसे कांपने लगी जैसे भूकंप आ गया हो। बैल बने अरिष्टासुर की गुर्राने की आवाज इतनी भयानक थी कि गोकुल में कुछ गर्भवती गायों और महिलाओं का गर्भपात हो गया। अरिष्टासुर के इतने भयानक रूप से सारे गोकुलवासी बहुत भयभीत हो गए और इधर-उधर भागने लगे। घबराकर सब कृष्ण को सहायता के लिए पुकारने लगे।
श्रीकृष्ण ने जब यह हाहाकर सुना तो वह अरिष्टासुर के सामने प्रकट हुए और उससे कहा –
“हे तुच्छ प्राणी! तुम गोकुल वासियों को क्यों डरा रहे हो? यदि तुम मेरे अधिकार को चुनौती देने आए हो, तो मैं तुमसे लड़ने के लिए तैयार हूं।”
कृष्ण की बातों से अरिष्टासुर बहुत क्रोधित हो गया। कृष्ण अपने एक मित्र के कंधे पर हाथ रखकर उसके सामने खड़े हो गए। अरिष्टासुर गुस्से में कृष्ण की ओर बढ़ा और अपने खुरों से पृथ्वी खोदते हुए उसने अपनी पूँछ उठाई तो ऐसा लगने लगा मानो उसकी पूंछ पर बादल मंडरा रहे हों। उसकी आँखें क्रोध से लाल हो गई थीं। उसने अपने सींगों को तानकर कृष्ण पर इन्द्र के वज्र के समान प्रहार किया।
कृष्ण ने अरिष्टासुर के सींग पकड़ लिए और उसे घुमाकर दूर फेंक दिया। असुर लड़खड़ाकर गिर गया था लेकिन फिर खड़ा हुआ। उसने पुनः श्रीकृष्ण पर बड़ी शक्ति और क्रोध से आक्रमण किया। उसने जोर से साँस ली और अपने नथुने फुलाकर कृष्ण की ओर दौड़ने लगा। जैसे ही वह कृष्ण के पास पहुंचा उन्होंने बड़ी ही आसानी से फिर से उसके सींग पकड़ लिए और तुरंत उसे जमीन पर पटक दिया। ऐसा करते ही अरिष्टासुर के सींग टूट गए। अब कृष्ण ने उसके शरीर पर पैरों से ऐसे प्रहार शुरू कर दिया जैसे कोई मिट्टी को रौंदता है। अरिष्टासुर पीठ के बल लेटकर जोर-जोर से अपने पैर हिलाने लगा। उसके मुंह से खून निकलने लगा और आँखें गोल-गोल घूमने लगीं। अगले ही क्षण बेदम होकर उसकी मृत्यु हो गई।
इस घटना की खबर जब राधा को हुई तो वह दुःखी हो गईं। उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनसे गौ हत्या हुई है और यह घोर पाप है। गौ हत्या के पाप से मुक्ति के लिए सारे तीर्थों की यात्रा करनी पड़ती है। लेकिन श्री कृष्ण के लिए यह उस समय संभव नहीं था। तब श्रीकृष्ण ने नारद मुनि से इसका उपाय पूछा। नारद मुनि ने श्री कृष्ण से कहा कि यदि वे सब तीर्थों को आदेश दें कि पानी के रूप में उनके पास आ जाएं तो उस पानी से स्नान करके काम बन जाएगा। कृष्ण तो भगवान का अवतार थे इसलिए उन्होंने सारे तीर्थों को ब्रज में बुलाया और अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा। फिर उसमें सबका पानी भर लिया। कुंड के पानी से स्नान करके कृष्ण का गोहत्या का पाप मिट गया।
कहते हैं मथुरा से थोड़ी दूर अरिता नामक गांव में आज भी वह वह कुंड है जिसे श्री कृष्ण ने बनाया था।
श्री कृष्ण और अरिष्टासुर वध की कहानी से यह सीख मिलती है कि जो व्यक्ति बुरी प्रवृत्ति से दूसरों को तंग करता है उसे सदैव दंड मिलता है।
श्री कृष्ण और अरिष्टासुर वध की कथा पौराणिक कहानियों की श्रेणी में आती है। यह भगवान कृष्ण की उन अनेक कहानियों में से है जो सदियों से घर-घर में बच्चों को सुनाई जाती रही है।
अरिष्टासुर को श्री कृष्ण के मामा कंस ने भेजा था।
माना जाता है कि श्री कृष्ण ने अपने बचपन में ही 8 असुरों का वध कर दिया था।
कंस ने आकाशवाणी सुनी थी कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा और कृष्ण देवकी-वसुदेव की आठवीं संतान थे।
हमारी संस्कृति महान पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं से भरी है। ये कहानियाँ आदर्श, शिक्षा, रोमांच और मनोरंजन भी देती हैं। कहानियां सुनना और पढ़ना बच्चों के मस्तिष्क के विकास के लिए एक बेहतरीन मानसिक व्यायाम की तरह है। अपने बच्चों को ऐसी कहानियां सुनने और पढ़ने के लिए प्रेरित करें जो उसे मनोरंजन के साथ जीवन के लिए जरूरी शिक्षा भी दे सकें।
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