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भगवान विष्णु ने अभी तक कुल 9 अवतार लिए हैं जिनमें से उनके आठवें अवतार श्री कृष्ण के जन्म की कथा सबसे अनोखी और रोमांचक है। मथुरा के क्रूर और आततायी राजा कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी का विवाह अपने ही मित्र वासुदेव के साथ करवाया था। लेकिन देवकी की विदाई के समय आकाशवाणी हुई कि उसका आठवां पुत्र ही कंस के अंत का कारण बनेगा। इससे क्रोधित कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और एक-एक करके उनके 6 पुत्रों की हत्या कर दी। लेकिन श्री कृष्ण के जन्म लेने पर कुछ ऐसा हुआ कि कंस उनका बाल भी बांका नहीं कर सका।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म की इस कथा के मुख्य पात्र हैं –
यह कथा द्वापरयुग की है। पृथ्वी पर क्रूर और आतंकी दैत्यों, दानवों और राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। इससे दु:खी हो कर देवी पृथ्वी ने देवताओं से प्रार्थना की कि इन आततायियों को समाप्त कर उससे उसकी रक्षा करें। लेकिन स्वयं राक्षसों के अत्याचार से परेशान देवताओं के पास इसका कोई समाधान नहीं था। इसलिए सभी ने भगवान विष्णु की सहायता मांगने का विचार किया। जब पृथ्वी और देवतागण भगवान विष्णु के निवास क्षीर सागर पहुंचे तो उस समय वह शेषनाग पर लेटे हुए आराम कर रहे थे और उनकी पत्नी माता लक्ष्मी उनके चरणों के पास बैठी हुई थीं। देवताओं और पृथ्वी की बात सुनकर भगवान विष्णु ने कहा –
“हे अवनि, मैं तुम्हारे दुःख दूर करने के लिए जल्दी ही मनुष्य रूप में अवतार लूंगा।”
भगवान श्री हरि के वचन सुनकर सबका समाधान हुआ और सभी लोग उन्हें प्रणाम करके चले गए।
उधर एक समय मथुरा में राजा उग्रसेन का राज्य था। वह एक अच्छे व दयालु राजा थे लेकिन उनका पुत्र कंस अत्यंत क्रूर था। उसने एक दिन अपने बल से अपने ही पिता उग्रसेन को सिंहासन से हटाकर कारागार में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस का एक मित्र था राजा वसुदेव। एक दिन कंस ने वसुदेव को अपनी लाडली चचेरी बहन देवकी से विवाह करने का आदेश दिया। वसुदेव की पहले से ही रोहिणी नामक पत्नी थी। कंस ने वसुदेव और देवकी का विवाह बड़ी धूमधाम से कराया। जब देवकी की विदाई हो रही थी तो कंस ने उसके प्रति प्रेम होने के कारण स्वयं रथ चलाने का निर्णय किया और सारथी की जगह बैठ गया। लेकिन तभी बहुत जोर से आकाशवाणी हुई –
“हे कंस, देख जिस बहन को तू इतना प्रेम करता है उसी की 8वीं संतान भविष्य में तेरा वध करेगी।”
यह सुनते ही कंस क्रोध से लाल हो गया और उसने सैनिकों से कहकर देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया। दोनों को इस तरह बंदी बनाने के बाद कंस ने सोचा कि भले ही आकाशवाणी 8वें पुत्र के लिए है लेकिन मैं उनके जन्म लेने वाली हर संतान को मार दूंगा जिससे कोई गलती होने की संभावना ही न रहे। इसके बाद जब भी देवकी गर्भवती होती तो कंस सैनिकों को पहरा और भी कड़ा करने का आदेश देता और जैसे ही वसुदेव-देवकी की संतान का जन्म होता तो कंस आकर उस बच्चे को कारागार की ही दीवार पर पटककर मार देता। इस तरह कंस ने उनके 6 पुत्रों की हत्या कर दी।
इसके बाद जब देवकी 7वीं बार गर्भवती हुई तो भगवान विष्णु की योजना के अनुसार यह संतान शेषनाग का रूप होने वाली थी। देवकी और वसुदेव से मिलने वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी कारागार में आती रहती थी। देवताओं ने चमत्कारिक रूप से देवकी के गर्भ को रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया। इस तरह रोहिणी ने श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम को जन्म दिया।
इसके बाद देवकी आठवीं बार गर्भवती हुई। यह भगवान विष्णु के आठवें अवतार की शुरुआत थी। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि को देवकी की 8वीं संतान यानी श्री कृष्ण का कारागार में जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही वहां पहरा दे रहे सारे सैनिक गहरी नींद में चले गए। कारागार के सभी दरवाजे अपने आप खुल गए और देवकी और वसुदेव के हाथ-पैरों में पड़ी बेड़ियां भी खुल गईं। वे दोनों कुछ समझते उसके पहले ही आकाशवाणी हुई कि इस पुत्र को यमुना नदी के पार गोकुल में बाबा नंद के घर पर पहुंचा दो।
बाहर तूफानी वर्षा हो रही थी। वसुदेव ने एक टोकरी में बालक कृष्ण को रखा और अपने सिर पर टोकरी लेकर यमुना नदी पार करने लगे। बारिश के कारण यमुना के पानी में वसुदेव पूरी तरह से डूबकर चल रहे थे। सब कुछ इतना चमत्कारिक था कि वह बस वैसा ही करते जा रहे थे जैसी आकाशवाणी हुई थी। कहते हैं कि बालक कृष्ण को बारिश में भीगने से बचाने के लिए शेषनाग स्वयं आकर उनकी रक्षा कर रहे थे। जब यमुना का पानी टोकरी में हाथ-पैर चला रहे चंचल बालक कृष्ण के पैरों को छुआ तो तुरंत ही पानी का स्तर एकदम नीचे चला गया। मानो यमुना श्री हरि के अवतार रूप के चरण स्पर्श करने आई थी।
जब आधी रात को वसुदेव ने गोकुल में बाबा नंद का दरवाजा खटखटाया तो वह आश्चर्यचकित रह गए। क्योंकि कुछ ही समय पहले नंद की पत्नी यशोदा ने भी एक पुत्री को जन्म दिया था और वह थक कर सोई हुई थी। बाबा नंद ने बालक कृष्ण को अपनी पत्नी के पास लिटा दिया और वहां सोई अपनी बेटी को वसुदेव को दे दिया। वसुदेव उसे लेकर वापस कारागार पहुंच गए और फिर सब कुछ पहले जैसा ही हो गया। कारागार के दरवाजे व हथकड़ियां वापस लग गईं और सारे सैनिक जाग गए।
होश में आते ही उन्होंने जानकर देवकी की 8वीं संतान के जन्म की खबर कंस को दी। कंस दौड़ता हुआ आया और हमेशा की तरह देवकी की गोद से उसकी संतान को छीन लिया। लेकिन जैसे ही उसने बच्ची को दीवार पर पटकने के लिए हाथ उठाया, वह उसके हाथ से छूट कर हवा में उड़ गई और बोली –
“अरे दुष्ट कंस, मैं योगमाया हूं तू मुझे क्या मारेगा। जो तुझे मारने वाला है उसने गोकुल में अवतार ले लिया है।”
इसके बाद कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए कई दैत्यों, दानवों और राक्षसों को गोकुल में भेजा, लेकिन कोई उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सका बल्कि अपनी लीला से बालक कृष्ण ने हरएक का अंत कर दिया। अंततः 16 वर्ष की आयु में उन्होंने मथुरा जाकर अपने भाई बलराम के साथ कंस का संहार किया व अपने माता-पिता को कारागार से बाहर निकाला और प्रजा को आंतक से मुक्ति दिलाई।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कहानी से यह सीख मिलती है कि जब भी कोई व्यक्ति दुष्टता का व्यवहार करता है और आतंक फैलाता है तो उसे उसकी सजा जरूर मिलती है।
श्री कृष्ण के जन्म की कहानी पौराणिक कहानियों में आती है। साथ ही यह महाभारत की भी एक महत्वपूर्ण कथा है क्योंकि श्री कृष्ण महाभारत के एक महत्वपूर्ण किरदार थे।
कंस मथुरा का राजा था।
श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम हैं।
श्री कृष्ण ने अपनी बाल लीलाएं मथुरा के निकट गोकुल गाँव में की थीं।
भगवान श्री कृष्ण का पूरा जीवन रोमांचक कथाओं से भरा हुआ है। उनके जन्म की कथा तो बस इसकी एक शुरुआत थी। अपने बच्चे को श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के बारे में जरूर बताइए। उनके नटखट बचपन, चोरी से माखन खाने की आदत, गायों के प्रति प्रेम और एक से एक भयानक राक्षसों का अंत करने की कहानियां उसे न केवल रोमांचित करेंगी बल्कि भारतीय संस्कृति से भी परिचित कराएंगी।
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