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बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा है

बहन और भाई के बीच प्यार का सबसे बड़ा त्यौहार रक्षाबंधन इस साल 11 अगस्त को पड़ रहा है। वैसे तो यह पर्व हमेशा ही खास रहा है, हो भी क्यों न यह रिश्ता दुनिया का सबसे अनमोल रिश्ता जो है एक तरफ जहाँ हर भाई अपनी बहन की हिफाजत करता है वहीं अभी भी कई ऐसी बहने हैं जिन्हें आज भी रुढ़िवादी सोच से आजादी नहीं मिली है, लेकिन देश तेजी से प्रगति कर रहा है और पहले के मुकाबले काफी बदलाव देखने को मिला रहा है।

रक्षाबंधन भारत में मनाए जाने वाले ऐसे पर्व में से एक है जो धर्म की सीमाओं से परे है। भाई-बहन का रिश्ता केवल एक धागे तक ही सीमित नहीं है, यह रिश्ता नोकझोंक और प्यार से पिरोया गया एक मबूत बंधन है । इस रिश्ते की निष्ठा सदियों से निभाई जाती रही है और अगर आपको यकीन न आए तो इस लेख के जरिए जानिए कि कैसे इस खूबसूरत रिश्ते की गरिमा को इतिहास से आज तक बररार रखा गया है। कुछ ऐसी कहानियां जो भाई बहन के मजबूत बंधन और प्यार की एक अलग मिसाल कायम करती हैं, आइए जानते हैं।

रक्षाबंधन का महत्व बताने वाली 7 कहानियां

१. श्रीकृष्ण और द्रौपदी एक असीम रिश्ता

स्रोत: kidsOne Hindi

यह रक्षाबंधन की एक पौराणिक और बहुत ही दिलचस्प कहानी है जो महाभारत के समय की है।

द्रौपदी पांडवों की पत्नी थी और कृष्ण उनके गुरु और सखा दोनों थे। शिशुपाल दौपदी के फुफेरे भाई थे, लेकिन श्रीकृष्ण और शिशुपाल के बीच हमेशा से ही एक तनावपूर्ण रिश्ता था और ऐसा कहा भी गया था कि शिशुपाल की मृत्यु कृष्ण के हाथों लिखी है, यह बात जानकर शिशुपाल की माँ विचलित हो उठी। तभी कृष्ण ने आश्वासन दिया कि वे शिशुपाल की सौ गलतियों को माफ़ करेंगे। लेकिन पानी तब सिर से ऊपर चला गया जब शिशुपाल ने अपनी सीमा पार कर दी और परिणामस्वरूप कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया, जिससे उनकी अगुंली भी चोटिल हो गई ।

तभी द्रौपदी ने जल्दी से अपनी साड़ी के एक हिस्से को फाड़कर कृष्ण की अगुंली पर बांध दिया जिससे रक्त का प्रवाह रुक गया, और कृष्ण ने भी उनकी सदैव रक्षा करने का वचन दिया ।

रक्षाबंधन का यह वचन निभाने का समय तब आया जब पांडव कौरवों से चौपड़ के खेल में द्रौपदी समेत अपना सबकुछ हार गए थे। तभी द्रौपदी को दरबार में बुलाया गया और दु:शासन ने भरे दरबार में उन्हें अपमानित करने के लिए उनकी साड़ी का आँचल खींचा मगर वह अपनी इस हरकत में नाकाम रहा। श्रीकृष्ण की अलौकिक शक्तियों से साड़ी खत्म ही नहीं हो रही थी और इस प्रकार द्रौपदी का सम्मान बरकरार रहा और दु:शासन को भरी सभा में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।

श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की। द्रौपदी ने कृष्ण की उंगली पर जो कपड़ा बाँधा था, वह उसकी रक्षक, उसकी राखी थी।

२. राजा बलि और देवी लक्ष्मी वादा के पक्के

स्रोत: rediff.com

राजा बलि बहुत ही पराक्रमी वीर थे। उन्होंने एक बार अश्मेघ यज्ञ किया और विष्णु जी से वरदान में माँगा कि वे जब सो कर उठे सबसे पहले वे उनको देखें। भगवान विष्णु कठिन परिस्थिति में फंस गए और वचन निभाने के लिए उन्हें बाली के द्वारपाल के रूप उनके महल में रहना पड़ा। काफी दिन बीत गए और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी चिंतित हो गई। लक्ष्मी जी ने विष्णु जी का पता लगाने के लिए पृथ्वी पर जाने का फैसला किया। उन्होंने खुद को एक ब्राह्मण महिला के रूप में प्रच्छन्न किया और राजा बलि के पास गई। उन्होंने बलि से कहा, “मेरे पति काम के लिए चले गए हैं। क्या मैं यहाँ शरण ले सकती हूँ?

राजा बलि ने देवी लक्ष्मी का बहुत ख्याल रखा, वह यह भी नहीं जानते थे कि ब्राह्मण महिला वास्तव में एक देवी थी। रक्षाबंधन के दिन, लक्ष्मी ने बाली की कलाई पर राखी बांधी और उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। बलि ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए उन्हें कुछ भी मांगने को कहा। लक्ष्मी जी ने उपहार के तौर पर अपने पति की आज़ादी मांगी और कहा, कृपया अपने द्वारपाल को मुक्त कर दें। वो मेरे पति है।

अपनी बहन को दिया वचन निभाने से बाली पीछे नहीं हटें । बलि ने अपनी बहन की राखी का इस प्रकार मान रखा कि यह पवित्र रिश्ता हमेशा के लिए अमर हो गया ।

३. संतोषी माँ और शुभलाभ एक बहन की लालसा

स्रोत: rediff.com

भगवान गणेश के दो पुत्र थे, जिनका नाम शुभ और लाभ था। हर साल रक्षाबंधन पर जब वे अपने पिता गणेश को उनकी बहन मनसा से राखी बंधवाते हुए देखते तो वे बहुत निराश हो जाते, क्योंकि रक्षाबंधन मनाने के लिए उनकी कोई बहन नहीं थी। वह दोनों अपने पिता, गणेश जी से एक बहन होने की जिद करने लगे । इतने में नारद मुनि भी प्रकट हो गए और उन्होंने गणेश जी से कहा कि बेटी उनके जीवन में समृद्धि लेकर आएगी । गणेश जी ने नारद मुनि की बात मान ली और कुछ दिव्य शक्तियों के माध्यम से गणेश जी की पत्नी रिद्धि और सिद्धि में से दिव्य ज्वालाएं निकली और एक बेटी का जन्म हुआ जिन्हे हम संतोषी माता के नाम से जानते है । तो इस प्रकार शुभलाभ को उनकी बहन मिल गई और उन्होंने रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया।

४. हुमायूँ और रानी कर्णावती बहन है सर्वप्रथम

स्रोत: rediff.com

रानी कर्णावती के पति राणा सांगा की मृत्यु के बाद वह मेवाड़ की महारानी बन गई। जब गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर हमला किया, तो रानी ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिखा और साथ ही उन्हें राखी भेजकर सुरक्षा मांगी। हालांकि हुमायूँ उस वक़्त खुद एक अन्य सैन्य अभियान के बीच में थे, लेकिन जैसे ही उन्हें रानी का पत्र और राखी मिली, वह अपना सब कुछ छोड़ मेवाड़ को बचाने निकल पड़े। लेकिन जब तक वो पहुँचते उससे पहले ही चित्तौड़ में राजपूत सेना पराजित हो गई थी और रानी कर्णावती ने राजपूत रिवाज में मुताबिक खुद को जौहर कर लिया। हुमायूँ को अपनी बहन की जान न बचा पाने का बहुत दुःख हुआ, लेकिन बाद में उन्होंने अपने भाई होने का फर्ज़ कुछ इस प्रकार निभाया की रानी कर्णावती के पुत्र, विक्रमजीत को उसका राज्य वापस दिलाया और अपनी बहन द्वारा मांगी गई मदद को हर हाल में निभाया।

५. रोक्साना और राजा पोरस कैसे राखी ने बचाई जान

स्रोत: rediff.com

जब सिकंदर ने 326 ईसा पूर्व भारत पर आक्रमण किया, तो उसकी पत्नी, रोक्साना ने अपने पति की जान की रक्षा में, पौरवों के राजा, पोरस को पवित्र धागा भेजा और उनसे निवदेन किया कि वो उनके पति को युद्ध के मैदान में किसी प्रकार का कोई नुकसान न पहुँचाएं । युद्ध के मैदान में, पोरस और अलेक्जेंडर आमनेसामने थे और पोरस सिकंदर को मारने वाला था कि उसे अपनी कलाई पर राखी देखी और अपनी बहन के खातिर अलेक्जेंडर की जान बख्श दी । पोरस के लिए अपनी बहन से किया गया वादा किसी भी लड़ाई को जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण था।

६. यम और यमुना अमरता का उपहार

स्रोत: rediff.com

यम, मृत्यु के देवता हैं और यमुना उनकी बहन थी। इन दोनों भाईबहन ने बारह वर्षों तक मुलाकात नहीं की थी। इस बात को लेकर यमुना बहुत दुखी रहती थी और यम को कुछ याद नहीं था। वह मदद के लिए देवी गंगा के पास गई। देवी गंगा ने यम को उसकी बहन के बारे में याद दिलाया और उन्हें यमुना से मिलने के लिए कहा। यमुना अपने भाई से मिलने के लिए बहुत उत्साहित थी, उन्होंने भाई यम का भव्य स्वागत किया और उनकी कलाई पर राखी भी बांधी। यम ने अपनी बहन को उपहार में अमरता प्रदान कर दी। उन्होंने यह भी घोषणा की, कि कोई भी भाई जो राखी बाँधता है और अपनी बहन को उसकी रक्षा करने का वचन देता है, वह भी अमर हो जाएगा। इसलिए भाईबहन के बीच बांटा गया प्यार हमेशा अमर रहेगा।

७. रबींद्रनाथ टैगोर और 1905 का बंगाल विभाजन

स्रोत: Catch News

1905 में, जब बंगाल के विभाजन ने राष्ट्र को विभाजित किया, तो नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने रक्षाबंधन का जश्न मनाने और बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रेम और एकजुटता के बंधन को मजबूत करने के लिए राखी महोत्सव शुरू किया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध करने का भी आग्रह किया। हो सकता है विभाजन ने राज्य को विभाजित किया हो, लेकिन पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में आज भी यह परंपरा जारी है, आज भी लोग अपने पड़ोसियों और करीबी दोस्तों को राखी बांधते हैं ।

वैदिक युग से ही रक्षाबंधन की अपनी एक अलग मान्यता चली आ रही है, लेकिन आज के समय में भी भारत के इस परंपरा को पूरे जोरोंशोरों से मनाया जाता है। सतयुग से लेकर कलयुग तक इस बंधन के बीच किसी प्रकार की कोई अड़चन नहीं आई है। जो बहने अपने भाइयों से दूर है और उन्हें राखी नही बांध सकती उनके लिए भी अब ईराखी की सुविधा उपलब्ध है, देश आगे बढ़ रहा है इसलिए अब पहले जितना कुछ भी मुश्किल नहीं रहा और न ही अब दूरी का अहसास होता है, सोशल मीडिया ने अब सब कुछ बहुत आसान कर दिया है । बस ऐसे ही हर भाई अपनी बहन की रक्षा करने के साथसाथ उसे सशक्त बनने में भी उसका साथ दें और अपनी बहन की ढाल बनकर हमेशा उसके साथ रहें ।

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समर नक़वी

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