अपने बच्चे के दोस्त बनाने में मदद करने के 10 तरीके

अपने बच्चे के दोस्त बनाने में मदद करने के 10 तरीके

कोई भी माता-पिता नहीं चाहते कि उनका बच्चा स्कूल में अकेला हो या ‘अजीब बच्चे’ के रूप में जाना जाए जो एक कोने में बैठा रहता है और किसी से बात नहीं करता है। आज की दुनिया में, जीवित रहने के लिए सोशल स्किल (सामाजिक कौशल) सबसे महत्वपूर्ण हैं। नए लोगों के साथ अच्छी तरह से घुलने मिलने में सक्षम होना प्रोफेशनल और पर्सनल जिंदगी दोनों के लिए फायदेमंद माना जाता है। ये स्किल अपने आप विकसित नहीं होती है, बल्कि ये स्किल ट्रेनिंग, कंडीशनिंग, एनवायरनमेंट के फैक्टर्स और जीवन के अनुभवों से आते हैं। यदि आपका बच्चा इंट्रोवर्ट यानी अंतर्मुखी है और नए लोगों से बात नहीं करता है, तो उसे लोगों के साथ तालमेल बिठाने में आपको उसकी मदद करनी चाहिए।

बच्चे के दोस्त बनाने में मदद करने के तरीके

हर बच्चे का व्यक्तित्व दिल जीतने वाला नहीं होता है। हालांकि, किसी बच्चे को बहुत अधिक लाड़-प्यार करना उसे बिगाड़ देता है, जिससे आगे चलकर वो स्वार्थी व्यक्ति बन सकता है।

सोशल स्किल, काफी हद तक, ट्रेनिंग और कंडीशनिंग का परिणाम होता है। आपको यहां बच्चे के लिए सोशल इंटरेक्शन के कुछ पहलू दिए गए हैं और आपको माता-पिता होने के नाते बच्चे को प्रशिक्षित करने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

1. इमोशनल कोचिंग

अपने बच्चे के साथ बैठें और उससे सवाल करें जैसे कि वो ‘कैसा महसूस रहा है?’ और ‘उसे ऐसा क्यों महसूस हो रहा है?’ साइलेंस या हिंसक होकर उससे बात करने के बजाय, उसे अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें। अपनी भावनाओं को किसी करीबी के सामने व्यक्त करने से व्यक्ति को अपनी भावनाओं से खुद को अलग करने में मदद मिलती है। अगर आप किसी बात से क्रोधित हैं या चिड़चिड़ा रही हैं, तो अपना गुस्सा बच्चे पर न निकालें। इसके बजाय अपनी सूझ बूझ के साथ कोई फैसला लें ताकि आपको बाद में पछताना न पड़े।

दूसरी ओर, अपने बच्चे की भावनाओं को अनदेखा करना या उसकी अवहेलना करना, विशेषकर नकारात्मक रूप से जैसे उसकी बात को बेकार बताना या उसे कहना की वे इससे बाहर जाएं या फिर उसे चुप रहने को और सही से बर्ताव करने को कहना, उसे सेल्फ कंट्रोल करने के बजाय मुसीबत में डाल सकता है।

यह कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है जिसमें आपने चुटकी बजाई और जादुई रूप से अचानक बच्चा सेल्फ अवेयर हो जाएगा। यह एक ऐसी दिशा जिससे बच्चा प्रेरित हो और बड़ा होकर एक अच्छे इंसान के रूप में बढ़े।

2. तानाशाही वाले माहौल से बचें

बच्चों को अनुशासन सीखने की जरूरत है। लेकिन बच्चे को अनुशासित करने के आपके तरीके के पीछे एक सही कारण होना चाहिए। कभी-कभी, माता-पिता बच्चों को अपनी बात मनवाने के लिए मजबूर करते हैं। जिन बच्चों को इस तरह से पाला जाता है, जिसमें उनके साथ बहुत सख्ती की जाती है या उनको नियमों के अधीन ही सारे काम करने होते हैं, ऐसे बच्चों को इंटर्नल मोरल कंपास विकसित करने में परेशानी होती है यानी उन्हें सही-गलत समझने में परेशानी होती है और वो किसी चीज को लेकर कोई सवाल नहीं उठा पाते हैं। इस तरह की सजा के अधीन बच्चे अन्य बच्चों के प्रति आक्रामक हो जाते हैं। 

ऐसे में संतुलन होना जरूरी है, न तो आपको तानाशाही रवैया अपनाना चाहिए और न ही बच्चों को बहुत अधिक प्यार देना चाहिए। नहीं तो आपके बच्चे को बहुत तकलीफ होगी। माता-पिता को हमेशा अधिकार रखना चाहिए लेकिन बच्चे को आपसे सवाल करने की आजादी हमेशा होनी चाहिए कि आपने ये नियम क्यों बनाए हैं और इससे क्या होगा। अपने बच्चे से बात करें और उसे अनुशासन और नियमों का महत्व समझाएं। कुछ नियमों को क्यों नहीं तोड़ा जाना चाहिए और उनका पालन न करने के बुरे परिणाम की भी खुलकर चर्चा करें इससे उसकी रीजनिंग एबिलिटी यानी तर्क करने की क्षमता विकसित होती है।

उदाहरण: बहुत सारे बच्चों को समय पर सोने या हर सुबह अपने दाँतों को ब्रश करने में परेशानी होती है। ऐसे में सजा की धमकी देकर जोर जबरदस्ती से उनमें इसकी आदत लागू किए जाने के बजाय, आप उन्हें इसके पीछे का कारण बताएं  कि यदि वो समय पर नहीं उठते हैं या अपने दाँतों को ब्रश नहीं करते हैं, तो जब वो सुबह उठेंगे उन्हें थकान महसूस होगी, ब्रश न करने से दाँतों में कीड़े लग जाते हैं, समझाएं, कुछ चीजें, सुखद नहीं हैं, लेकिन उन्हें जीवन में करना पड़ता है, जिससे आपको बाद में बेहतर महसूस होता है। 

3. सभ्यता से पालन-पोषण करना 

अपने बच्चे से बात करते समय, उसकी बातों पर पूरा ध्यान दें। उसके सवालों का जवाब वैसे ही दें जैसे आप किसी बड़े के साथ बात करती हैं। जब आप बच्चे के साथ इस तरीके व्यहवार रखती हैं, तो वे बेहतर रूप से बात करने में सक्षम होते हैं, इसी प्रकार वे अपने दोस्तों व अन्य लोगों की बातों को भी ध्यान से सुनते हैं और उसके अनुसार अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। इससे वो बातचीत के दौरान बीच में नहीं बोलते हैं और बेवजह के सवाल भी बीच में नहीं करते हैं। जब बच्चा अपनी बातचीत की प्रतिभा को प्रदर्शित करता है, तो उसके दोस्त और बाकि लोग खुद ही उसे पसंद करने लगते हैं।

4. सहानुभूति रखना सिखाएं

जब आप किसी व्यक्ति को मुश्किल में देखें तो उसके साथ सहानुभूति रखने की कोशिश करें। सहानुभूति वो है कि जब आप दूसरे व्यक्ति की जगह खुद को रख कर उसकी समस्या को महसूस कर सकें। यह अहसास इंसानों में जन्मजात होता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि इसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए या सिखाया नहीं जाना चाहिए। सहानुभूति बच्चे में अन्य लोगों के साथ मजबूत इमोशनल बॉन्ड बनाने में मदद करती है और सार्थक बातचीत करने में उसे सक्षम बनाती है। अपने बच्चे से दूसरे लोगों की भावनाओं के बारे में बात करने में संकोच न करें। उससे पूछें कि वह किसी विशेष चीज के बारे में कैसा महसूस करता है (उदाहरण के लिए, डांटना, उससे खिलौना छीन लिया जाना) और कैसे दूसरे व्यक्ति को भी ऐसा महसूस हो सकता है यदि वह उनके साथ ऐसा बर्ताव करता है!

सहानुभूति रखना सिखाएं

5. चेहरे के भावों को पहचानें

बड़े होने के नाते, हम लोगों के चेहरे के भावों को पहचानने की स्किल को हल्के में लेते हैं। हालांकि, यह हमारे सोशल स्किल के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है और बच्चों से इसके बारे में बात करना चाहिए और इस चीज को बढ़ावा देना चाहिए। यदि आप इस विषय में बच्चे को और गहराई से बताना चाहती हैं, तो उसे इस तरह के गेम्स में शामिल कर सकती हैं, जिसमें बच्चा देखे जाने वाले कार्टून या फिल्म करैक्टर के एक्सप्रेशन बताएगा। इसी प्रकार एक और गेम है जिसे प्रिटेंड गेम कहते हैं – जहां आप या आपका बच्चा एक चेहरा बनाता है और दूसरे व्यक्ति को यह अनुमान लगाना होता है कि इसके पीछे की भावना क्या है।

6. पहल करें

एक सामाजिक रूप से कुशल बच्चा वह है जो अपने ही उम्र के बच्चों के साथ नए ग्रुप में जुड़ता है और बाकि बच्चे भी उसे अपने ग्रुप का हिस्सा बना लेते हैं। ये प्रैक्टिकल टिप्स बच्चों के लिए अपने दोस्त बनाने में मदद करते हैं। जब बच्चा दूसरे ग्रुप में शामिल होता है, जिसमें बाकी बच्चे पहले से ही किसी प्ले एक्टिविटी में हो, तो अपने बच्चे को बताएं कि कैसे वो पहले उस एक्टिविटी को समझे और बिना किसी बच्चे को डिस्टर्ब किए उस ग्रुप का हिस्सा बने। उसे बताएं कि खुद को अपनाने के लिए और बच्चों को मजबूर न करे। अगर दूसरे बच्चे उसे ग्रुप में लेने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आप खुद से पीछे हट जाएं।

7. उसकी सोशल लाइफ में हिस्सा लें

यह खासकर छोटे बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। क्लास में ही अपने दोस्तों के साथ प्ले डेट्स खेलना आपस में एक दूसरे के साथ बांड और फ्रेंडशिप को मजबूत करने में मदद करता है। ऐसे में क्लास टीचर आपके बच्चे के दोस्तों के माता-पिता से संपर्क करने में आपकी मदद करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप प्ले-डेट के दौरान हर चीज के लिए बच्चे को मॉनिटर करें, बस आपको पता होना चाहिए कि वह क्या कर रहा है और उसे किसी भी प्रकार के झगडे या अनुचित व्यवहार से रोकना चाहिए।

8. प्ले-डेट्स प्लान करें 

प्ले-डेट प्लान करते समय एक्टिविटीज प्लान करना एक बेहतरीन आइडिया है। आप इसे एक कुकिंग प्रोजेक्ट या आर्ट प्रोजेक्ट के रूप में देख सकती हैं। प्लानिंग एक्टिविटीज खासतौर से काफी मदद करती हैं यदि इसमें ऐसा बच्चा शामिल है जो स्वाभाविक रूप से डरपोक या शर्मीला है तो इस प्रकार की एक्टिविटी से उसे अपने शेल से बाहर आने में धीरे धीरे मदद मिलेगी। प्ले डेट प्लान करते वक्त कोऑपरेटिव एक्टिविटीज पर ध्यान दें न कि कॉम्पिटिटिव एक्टिविटीज पर।

प्ले-डेट्स प्लान करें 

9. समस्याओं को सुलझाने दें

प्ले-डेट पर या क्लास के माहौल में, लड़ाई होना स्वाभाविक है। ऐसे में बच्चों को विवादों को खुद सुलझाने दें। ये उदाहरण उनके लिए भविष्य में क्या करना है उसका एक बेहतरीन अनुभव होगा। केवल तभी हस्तक्षेप करें जब लड़ाई हद से ज्यादा बढ़ जाए। उन्हें एकदम अलग करने के बजाय समस्या का समाधान ढूंढने में मदद करें।

10. बुलिंग पर निगरानी रखें 

हालांकि हर माता-पिता को यह सलाह दी जाती है कि बच्चों को अपने संघर्षों को अपने दम पर हल करने दें, लेकिन अगर यह बुलिंग की ओर बढ़ता है तो आपको हमेशा कदम उठाना चाहिए। अपने बच्चे की क्लास में रोज की खबरों और घटनाओं के बारे में जानकारी रखने से आपको पता चल जाएगा कि वह किसी तरह की बुलिंग का सामना तो नहीं कर रहा है। 

इसका दूसरा पहलू यह है कि इस बात की जांच करें कि आपके बच्चे के दोस्त कौन कौन हैं। बच्चे को अग्रेसिव बच्चों के साथ दोस्ती करने से मना करें क्योंकि यह देखा गया है कि यह उसके व्यवहार को प्रभावित करता है। माता-पिता को अपने बच्चों की सोशल लाइफ के बारे में कितनी नजर रखनी चाहिए और कितना बच्चों को खुद पता लगाने के लिए छोड़ देना चाहिए, इसके बीच एक पतली लाइन का फासला है। जो बच्चे पहले से ही सोशल हैं, उन्हें सामाजिक रूप से कुशल व्यक्ति बनने के लिए केवल थोड़े से मार्गदर्शन की जरूरत होती है। लेकिन अगर आपका बच्चा इंट्रोवर्ट है, तो आपको ध्यान देने और उसकी मदद करने की जरूरत है।

अपने बच्चे की सोशल स्किल को बढ़ाने के अलावा, विभिन्न प्रकार के खेल के माध्यम से उनका पूरी तरीके से विकास करना आवश्यक है। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा, जो बदले में उसे दोस्त बनाने में मदद करेगा करेगा। इस संबंध में इंटेलकिट जैसा एक्टिविटी बॉक्स सब्स्क्रिप्शन बहुत उपयोगी साबित होता है। इस किट में हर महीने एक अनोखी थीम पर आधारित एक्टिविटीज के साथ, बच्चा अलग-अलग स्किल सीख सकता है जो उसे जीवन भर मदद करता है और उसे ज्ञान देता है, साथ ही वह इसे एन्जॉय भी करेगा। तो आज ही इसकी सदस्यता लें और हर महीने मजेदार, इंटरैक्टिव एक्टिविटी बॉक्स हासिल करें!

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