बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों में स्कूल से डर – कारण, लक्षण और उपचार

पेरेंट्स की जिम्मेदारी बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती है, खासकर पहले बच्चे के साथ। जब बच्चा बड़ा होता है, तब न केवल आप बच्चे के शारीरिक पहलू को लेकर अलर्ट रहते हैं, जैसे उसका खान-पान आदि, बल्कि आप उसकी मानसिक कुशलता को लेकर भी चिंतित होते हैं। पेरेंट्स को उनके बच्चों को देने वाले लाड़-प्यार और सख्ती के बीच एक संतुलन बनाने की जरूरत होती है, क्योंकि इनमें से किसी की भी अधिकता होने पर बच्चों के मानसिक विकास को नुकसान हो सकता है। 

इस संदर्भ में पेरेंट्स जिस पहली बाधा का सामना करते हैं, वह आमतौर पर बच्चे को स्कूल में डालने के बाद सामने आता है। निश्चित रूप से कभी न कभी आपका बच्चा स्कूल जाने से मना जरूर करेगा। इस समस्या को स्कूल रिफ्यूजल का नाम दिया जाता है और यह काफी हद तक एक आम समस्या भी है। ऐसी चुनौतियों से निपटना कठिन हो सकता है, लेकिन यह असंभव नहीं है। पेरेंट्स को बच्चे के व्यवहार के पीछे के संभावित कारणों का पता लगाना चाहिए, ताकि बच्चा स्कूल जाने को लेकर अधिक सहज महसूस कर सके। यह लेख आपको स्कूल फोबिया यानी स्कूल को लेकर लगने वाले डर के कई पहलुओं को समझने में मदद करेगा। पेरेंट्स इससे कैसे निपट सकते हैं और बच्चों को इसे मैनेज करने में कैसे मदद कर सकते हैं, यह जानने के लिए आपको यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए। 

बच्चों में स्कूल से आनाकानी करना क्या होता है?

जब बच्चा किसी कारणवश स्कूल जाने से मना करता है, तो उसे स्कूल रिफ्यूजल सिंड्रोम कहा जाता है। बच्चा स्कूल नहीं जाना चाहता है या डर या किसी अन्य कारण से स्कूल जाने से मना कर देता है। उसे स्कूल अवोइडेंस डिसऑर्डर भी हो सकता है, जो कि शारीरिक लक्षण के रूप में भी दिख सकता है, जैसे सुबह के समय बीमार होना या उदासीनता। एंग्जायटी के कारण बच्चा घर पर रहना ही अधिक पसंद करता है और स्कूल जाने के बजाय कुछ और काम करना उसे अच्छा लगता है। 

बच्चों में स्कूल फोबिया के कारण

बच्चे को स्कूल फोबिया होने के पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं और इसे बच्चे के नजरिए से समझना जरूरी है। स्कूल रिफ्यूजल सिंड्रोम के कुछ आम कारण यहाँ पर दिए गए हैं:

1. मूल्यांकन को लेकर घबराहट

स्कूल एक ऐसी जगह है, जहां पर लगातार मूल्यांकन होता है और यहां पर बच्चे की हर क्षमता को मापा जाता है और उसे दर्शाया जाता है। अगर बच्चा किसी खास दिन पर स्कूल जाने से मना करता है, जैसे कि स्पोर्ट्स डे या जरूरी पब्लिक स्पीकिंग डे, तो हो सकता है कि वह किसी दबाव में परफॉर्म करने को लेकर घबराहट महसूस कर रहा हो और इसलिए वह इन सब से बचना चाहता हो। 

2. दूर रहने की घबराहट

ना सिर्फ शिशु, बल्कि बड़े बच्चे भी सेपरेशन एंग्जायटी (दूर रहने की घबराहट) का अनुभव करते हैं। जब बच्चे का पालन पोषण एक बेहद केयरिंग पेरेंट्स के द्वारा होता है, तब कम देखभाल वाले वातावरण में रहने का अनुभव बच्चे के लिए कठोर हो सकता है। 

3. शैक्षिक समस्याएं

बच्चों में सीखने में कठिनाई या एकेडमिक समस्याएं आम होती हैं और इनसे जुड़ा दबाव इस हद तक बढ़ सकता है, कि बच्चा स्कूल जाने से ही बचना चाहे। 

4. दूसरे बच्चों के साथ समस्याएं

स्कूल एक ऐसी जगह है, जहां बच्चे को अन्य कई लोगों के साथ मिलना-जुलना पड़ता है, जिसमें उसके हमउम्र दूसरे बच्चे भी शामिल हैं। बच्चों के बीच सामाजिक आइसोलेशन, बुली करना या लड़ाई-झगड़े आम होते हैं। ऐसे में बच्चा स्कूल जाने से बचना चाहता है। 

5. शिक्षकों के साथ मतभेद

अगर बच्चे को किसी शिक्षक का व्यवहार पसंद ना हो, तो वह स्कूल जाना नहीं चाहता है। 

6. दुःखद घटनाएं

माता-पिता से अलगाव, किसी पारिवारिक सदस्य की मृत्यु या तलाक जैसी दुःखद घटनाओं के कारण बच्चे स्कूल जाने से बचना चाहते हैं। 

7. स्थान परिवर्तन

किसी नए स्कूल या किसी नई जगह में जाने से बच्चे को एडजस्ट करने में कठिनाई हो सकती है और वह स्कूल जाने के बजाय घर के कंफर्टेबल वातावरण में रहना अधिक पसंद कर सकता है। 

8. घर का आनंददायक माहौल

घर पर रहने का मतलब होता है, कि बच्चे को माता पिता के साथ बिताने के लिए समय मिलता है या टीवी देखने जैसे मजेदार काम किए जा सकते हैं। ऐसे में बच्चा स्कूल में समय बिताने के बजाय घर पर रहना अधिक पसंद कर सकता है। 

स्कूल फोबिया के लक्षण

स्कूल फोबिया एक ऐसी चीज है, जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है। खासकर माता-पिता इसे बहुत आसानी से नोटिस कर सकते हैं। ऐसे कुछ खास लक्षण होते हैं, जो ये दिखाते हैं, कि बच्चा स्कूल नहीं जाना चाहता है, जिसमें सीधे-सीधे मना कर देना भी शामिल है। इसके कुछ आम लक्षण यहां पर दिए गए हैं:

  • स्कूल जाने के नाम पर बच्चा रोता है और आंसू बहाता है और घर पर रहने के लिए माता-पिता से विनती करता है।
  • स्कूल में शैतानी करना, धीरे-धीरे चलना या फिर स्कूल से भाग जाना भी इसके कुछ अन्य आम लक्षण हैं।
  • स्कूल ना जाने के लिए बच्चा स्कूल के समय पेट में दर्द, सिर में दर्द या चक्कर आने जैसी बीमारियों का झूठा बहाना बना सकता है।
  • छुट्टियों, वेकेशन या स्पोर्ट्स डे जैसे लंबे अंतराल के बाद स्कूल जाने में अत्यधिक कठिनाई इसका एक अन्य आम लक्षण है।
  • बच्चा स्कूल न जाकर किसी दूसरी जगह पर समय बिताना चुनता है और स्कूल में बिना कारण अनुपस्थित रहता है।
  • कभी-कभी बच्चा क्लास मिस कर सकता है या कुछ खास पीरियड में अनुपस्थित रह सकता है, जिसके लिए वह कोई कारण भी नहीं बताता है।
  • देर से स्कूल जाना भी बच्चों में स्कूल रिफ्यूजल सिंड्रोम का एक अन्य लक्षण है।
  • स्पॉटलाइट से दूर रहने के लिए बच्चा स्कूल में सिक बे पर बार-बार जा सकता है।

स्कूल रिफ्यूजल के परिणाम

बच्चे के विकास में स्कूल बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्कूल जाने से न केवल उन्हें दुनिया के बारे में पर्याप्त जानकारी पाने का मौका मिलता है, बल्कि इससे उनके व्यक्तित्व का निर्माण भी होता है। स्कूल बच्चे को एक अनजान वातावरण में डालते हैं और उन्हें शुरू से ही वास्तविक दुनिया और वयस्क जीवन के लिए तैयार करते हैं।  स्कूल ना जाने से बच्चा मानसिक और भावनात्मक विकास के मामले में पीछे रह सकता है और अंत में अपने पेरेंट्स के बिना रहना उनके लिए कठिन हो जाता है। 

स्कूल रिफ्यूजल की पहचान के लिए टेस्ट

यहां पर कुछ उपयोगी साधन दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप यह पता लगा सकते हैं, कि आपका बच्चा स्कूल विड्रॉल से ग्रस्त है या नहीं:

1. द चाइल्ड बिहेवियर चेक लिस्ट (सीबीसीएल)

सीबीसीएल पेरेंट्स या देखभाल करने वाले लोगों के लिए एक प्रश्नावली होती है, जिससे बच्चों में व्यावहारिक और भावनात्मक समस्याओं का पता लगाया जाता है। 

2. द स्केयर्ड टेस्ट

द स्केयर्ड टेस्ट का मतलब है, स्क्रीन फॉर चाइल्ड एंग्जायटी रिलेटेड इमोशनल डिसऑर्डर। यह एक उपकरण है, जिसका इस्तेमाल बच्चों में जनरल एंग्जायटी डिसऑर्डर, सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर, पैनिक डिसऑर्डर और सोशल फोबिया को समझने के लिए किया जाता है।

3. द चिल्ड्रंस मेनिफेस्ट एंग्जायटी स्केल

इसका इस्तेमाल बच्चों में एंग्जायटी के स्तर और स्वभाव की जांच के लिए किया जाता है। 

4. चिल्ड्रंस ग्लोबल रेटिंग स्केल (सीजीएएस)

यह एक स्केल होता है, जिसका इस्तेमाल बच्चों और टीनएजर्स में फंक्शनिंग के स्तर की जांच के लिए किया जाता है। 

स्कूल फोबिया का इलाज

इसके इलाज में बड़े पैमाने पर साइकोलॉजिकल अप्रोच, विभिन्न काउंसलिंग और संवेदना क्षमता तकनीकें शामिल होती हैं।

1. कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी

यह बिहेवियर थेरेपी का एक प्रकार है और इसे बच्चों में अनुचित और बुरे व्यवहार को ठीक करने के लिए किया जाता है। 

2. सिस्टमैटिक डिसेंसटाइजेशन

बच्चे को स्कूल के लिए अपनी प्रतिक्रिया को धीरे-धीरे सुधारना सिखाया जाता है और भावनात्मक रूप से खुद पर कम कठोर होने में मदद की जाती है। 

3. एक्स्पोजर थेरेपी

बच्चे को धीरे-धीरे तनावपूर्ण वातावरण के संपर्क में लाया जाता है और उसे स्थिति के प्रति प्रतिरोधी रिएक्शन को सुधारने के लिए और बदलावों के साथ डील करने के लिए गाइड किया जाता है। 

4. ऑपरेंट बिहेवियरल टेक्निक

इसमें अच्छा व्यवहार करने के लिए बच्चे को इनाम दिया जाता है, ताकि अच्छे व्यवहार की फ्रीक्वेंसी बढ़ती रहे। 

स्कूल फोबिया का अनुभव करने वाले बच्चों के लिए अन्य थेरेपी और दवाएं

प्रोजैक जैसे सेरोटोनिन रिअपटेक इन्हिबिटर, बच्चे में डिप्रेशन को ठीक करने के प्रयास में लाभकारी होते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल सावधानी से किया जाना चाहिए, क्योंकि बच्चे दवाओं पर निर्भर हो सकते हैं और डिप्रेशन की स्थिति और भी बिगड़ सकती है। ऐसी निर्भरता बाइपोलर डिसऑर्डर और सुसाइडल टेंडेंसी के खतरे को भी बढ़ा सकती है। अचानक दवा बंद करने से भी बच्चे में एंग्जायटी, इनसोम्निया और सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। 

कुछ दवाएं, जो बच्चे में हाथों से पसीना आना और तेज हृदय गति जैसे एंग्जायटी के लक्षणों में मदद करती हैं, वे भी काफी लाभकारी होती हैं। लेकिन प्रोप्रानोलोल जैसी दवाओं का इस्तेमाल बहुत ही सावधानी से करना चाहिए और अस्थमा के मरीजों पर इसका इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। इन दवाओं को अचानक बंद भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। 

क्या इलाज के बाद फॉलोअप जरूरी है?

अगर बच्चे में स्कूल विड्रॉल सिंड्रोम का इलाज हुआ है या चल रहा है, तो इलाज के बाद फॉलो अप बेहद जरूरी है। इलाज के बाद बच्चे पर परिवार, स्कूल के स्टाफ और इलाज करने वाले प्रोफेशनल द्वारा करीब से मॉनिटर करना जरूरी है। 

स्कूल को बच्चे में स्कूल से डर से निपटने के लिए क्या करना चाहिए?

यहां पर कुछ ऐसे तरीके दिए गए हैं, जिनके द्वारा स्कूल बच्चों में स्कूल से आनाकानी से निपट सकते हैं। 

1. पॉलिसी लेवल पर स्कूल डर के लिए क्या करें

  • शिक्षकों और बच्चों के बीच कम्युनिटी की एक मजबूत भावना के साथ स्कूल में एक सकारात्मक माहौल तैयार करना।
  • साथियों का सहयोग और मेंटोरिंग प्रोग्राम स्थापित करना, ताकि बच्चों को अपनापन महसूस हो सके।
  • बच्चे को स्कूल में लगातार उपस्थिति के महत्व को समझाएं।
  • बच्चे की उपस्थिति को करीब से मॉनिटर करना, ताकि ऐसी समस्याओं की पहचान जल्दी हो सके।

2. व्यक्तिगत स्तर पर स्कूल से डर के लिए क्या करें

  • समझें कि बच्चा स्कूल क्यों नहीं आ रहा है और परिवार की मदद से जानकारी और कारण जानने की कोशिश करें।
  • अगर बच्चा लगातार स्कूल मिस कर रहा है, तो भी परिवार के साथ करीबी संबंध मेंटेन करें।
  • यह समझें, कि पेरेंट्स भी बच्चे को स्कूल भेजने के लिए बहुत सारी चुनौतियों का सामना करते हैं।
  • जो बच्चे अपनी अटेंडेंस को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें सकारात्मक फीडबैक दें और उनका उल्लेख करें।

पेरेंट्स इसके बारे में क्या कर सकते हैं ?

स्कूल के डर से ग्रस्त बच्चे के माता-पिता निम्नलिखित तरीकों पर विचार कर सकते हैं: 

1. बच्चे से बात करने के दौरान

  • बच्चे से उन पॉइंट्स पर बात करें, जिनसे आप स्कूल में बच्चे के कंफर्ट को सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • सकारात्मकता से बात करें और अपने बच्चे को यह दिखाएं, कि आप विश्वास करते हैं कि वह स्कूल में अपनी समस्याओं से निपट सकता है और अपना आत्मविश्वास बना सकता है।
  • ‘बात करने के दौरान शांत और स्पष्ट रहें और ‘अगर तुम स्कूल जाओगे…’ के बजाय ‘जब तुम स्कूल जाओगे….’ का इस्तेमाल करें।
  • डायरेक्ट स्टेटमेंट का इस्तेमाल करके बच्चे को ’ना’ कहने का मौका न दें।

2. घर पर रहने के दौरान

  • हमेशा शांत रहें और स्थिति पर कभी हताशा न दिखाएं।
  • सुबह और शाम स्कूल को लेकर रूटीन स्थापित करें, जैसे अगले दिन के लिए यूनिफॉर्म की तह लगाना, बैग पैक करना आदि।
  • स्कूल के समय के दौरान घर को ’बोरिंग’ बना दें, ताकि बच्चे को घर पर रहने में मजा न आए।
  • बच्चे के सोने के पैटर्न को सही रखें।

3. स्कूल जाने के दौरान

  • किसी और को बच्चे को स्कूल छोड़ने को कहें, क्योंकि स्कूल के गेट पर बच्चे से अलग होने से बेहतर है घर पर ही अलग होना।
  • अपने बच्चे के साथ सख्ती बरतने के बजाय, उसे यह एहसास होने दें, कि उसके स्कूल जाने पर आपको उन पर गर्व है।
  • स्कूल जाने के लिए दिन खत्म होने पर बच्चे को कुछ इनाम दें।

4. स्कूल के साथ काम करना

  • इस स्थिति के बारे में सुझाव के लिए शिक्षकों या प्रिंसिपल से बात करें।
  • किसी अच्छे काउंसलर या साइकोलॉजिस्ट के बारे में जानकारी हासिल करें।
  • स्कूल में प्राइमरी कांटेक्ट के साथ नियमित अपॉइंटमेंट सेट करें, जैसे –  क्लास टीचर, प्रिंसिपल या कोई सपोर्ट स्टाफ।

स्कूल रिफ्यूजल को कैसे कंट्रोल करें या इससे कैसे बचें

  • बच्चे के इस व्यवहार के पीछे क्या कारण है, इस बारे में बच्चा जो कहना चाहता है, उसे सुनें, ताकि आप  इन सब के पीछे किसी तरह की बुली या किसी पीयर प्रेशर की मौजूदगी को समझ पाएं।
  • बच्चे के स्कूल जाने से आनाकानी करने से निपटने में दूसरी जरूरी चीज है, बच्चे का समय पर नियमित रूप से स्कूल जाना, ताकि यह एक आदत बन सके।
  • बच्चे में आत्मविश्वास जगाएं और उसे विश्वास दिलाएं, कि वह इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए काफी स्ट्रांग है।
  • बच्चे को यह कहकर आश्वस्त करें, कि उसके स्कूल से लौटने पर पेरेंट्स या केयर गिवर घर पर ही होगा और उसे बताएं कि जब वह स्कूल में था, तब घर का माहौल कितना बोरिंग था।

स्कूल फोबिया का पूर्वानुमान

अगर एक प्रीस्कूलर स्कूल जाने से मना करता है, तो इसमें कुछ भी नया नहीं है। माता-पिता और शिक्षकों के द्वारा थोड़ी देखभाल और काउंसलिंग के साथ यह रूटीन आम तौर पर बेहतर हो जाता है। लेकिन अगर यह समस्या लंबी चलती रहे या फिर बिगड़ जाए, तो प्रोफेशनल ट्रीटमेंट की मदद से समस्या का निदान अभी भी किया जा सकता है। 

स्कूल जाना बच्चे के लिए एक कठिन प्रक्रिया हो सकती है। इसलिए स्कूल जाने से मना करने में कुछ भी नया नहीं है। यह एक आम बात है, जो कि बच्चों के बीच दिखती है। जहां माता-पिता के द्वारा एटीट्यूड और लाइफस्टाइल में थोड़े बदलाव करके इससे निपटा जा सकता है, वहीं अगर समय के साथ यह स्कूल रिफ्यूजल बिहेवियर बिगड़ता जाता है, तो आपको प्रोफेशनल सहयोग की जरूरत पड़ सकती है। 

यह भी पढ़ें: 

बच्चों का शर्मीलापन कैसे दूर करें
बच्चों में पैदा होने वाला डर और फोबिया
बच्चों को इंडिपेंडेंट बनाने के लिए इफेक्टिव टिप्स

पूजा ठाकुर

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