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भूखा राजा और गरीब किसान की इस कहानी में बताया गया कि कैसे एक राजा रूप बदलकर अपनी प्रजा से उसके बारे में जानकारी लेने के लिए जाया करता था। लेकिन एक दिन उसकी मुलाकात एक गरीब किसान से हुई, जिसने उसे खाना खिलाने के लिए कहीं से भी अनाज का इंतजाम किया और राजा को भर पेट खाना खिलाया भले ही उसके पूरे परिवार ने कई दिनों से खाना खाया हो या नहीं। ये कहानी दिल को छू लेने वाली है और बच्चों और बड़ों सभी को बेहद पसंद आएगी। इसलिए आप भी इसे जरूर पढ़ें और इसका आनंद उठाएं।
इस कहानी के मुख्य पात्र इस प्रकार हैं:
एक समय की बात है, एक राजा अपने ही राज्य में रात के वक्त रूप बदलकर घूमता था। वह रूप बदलकर लोगों से मिला करता था और सबसे खुद के बारे में जानने की कोशिश करता और सबकी दिक्कतों को समझने की कोशिश करता। एक दिन जब राजा घूम रहा था, तभी अचानक बारिश होने लगी। उन्होंने बिना देर किए किसी के घर का दरवाजा खटखटाया।
दरवाजा खटखटाने के बाद अंदर से एक गरीब किसान निकला। वह उस घर में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। बारिश बहुत तेज थी, इसलिए किसान ने राजा को अपने घर के अंदर बुला लिया। राजा ने घर के अंदर जाने के बाद किसान से बोला, ‘क्या मुझे कुछ खाने को मिल सकता है। मुझे बहुत भूख लगी है।’
उस गरीब किसान का परिवार पिछले तीन दिनों से भूखा था और उनके घर में एक भी दाना नहीं था। किसान के मन में ख्याल आया कि हम भले ही भूखें हैं लेकिन हम किसी मेहमान को भूखा नहीं भेज सकते हैं। किसान को ये सब सोचकर बहुत बेचैनी हो रही थी कि वह अपने मेहमान को खाना कैसे खिलाए। तभी उसके मन में अपनी सामने वाली दुकान से चावल चुराने की योजना बनाई। किसान ने सिर्फ राजा के खाने भर के लिए दो मुट्ठी चावल वहां से चुरा कर ले आया और उसे पकाकर राजा को खिलाएं। उसके बाद बारिश थम गई और राजा अपने महल वापस लौट गया।
अगले दिन दुकान के मालिक ने अपने अनाज की चोरी की शिकायत राजा के दरबार में की। राजा ने फिर दुकान के मालिक और गरीब किसान को उनके सामने आने का आदेश दिया। सभा में सबसे पहले किसान पहुंचा और उसने राजा के सामने चोरी करना स्वीकार कर लिया और पिछली रात जो भी कुछ हुआ था सब राजा को बता दिया था। किसान ने राजा से बोला कि मैंने चोरी की जरूर लेकिन मेरे परिवार ने उस चोरी वाले अनाज का सेवन नहीं किया है।
गरीब किसान की बातों को सुनने के बाद राजा को बहुत अफसोस हुआ और उन्होंने किसान को बताया कि मेहमान के रूप में वह उसके घर पर आए थे। उसके बाद राजा ने अपनी सभा में पहुंच कर दुकानदार से सवाल किया कि क्या तुमने अपने पड़ोसी को चावल चुराते हुए देखा था। दुकानदार ने हां में जवाब देते हुए कहा कि मैंने इसे रात में चावल चुराते हुए देखा था।
दुकानदार की बातों को सुनने के बाद राजा बोला चोरी के लिए सबसे पहले मैं जिम्मेदार हूं और दूसरे तुम। क्योंकि तुम्हें अपना पड़ोसी चोरी करता हुआ नजर आया लेकिन उसका भूखा परिवार नहीं। तुमने एक अच्छे पड़ोसी होने का फर्ज बिलकुल नहीं निभाया है। इन सब के बाद राजा ने दुकानदार को वहां से भेज दिया और किसान की अच्छाई और अतिथी के प्रति प्रेम को देखकर उसे उपहार में सोने के एक हजार सिक्के दिए।
इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि यदि आपका कोई अपना या आसपास का कोई मुसीबत में हो, तो हमें उसकी मदद जरूर करनी चाहिए। मदद करने से आप ही एक अच्छे इंसान बनेंगे।
यह कहानी राजा-रानी की कहनियों के अंतर्गत आती है। जिसमें यह बताया गया है कि मेहमान भगवान का रूप होता है। खुद के पास खाने के लिए कुछ न होने के बावजूद भी गरीब किसान ने राजा को भूखा नहीं जाने दिया, किसान की इस सेवा का राजा ने उन्हें इनाम भी दिया।
इस कहानी की नैतिकता ये है कि हमें मुसीबत में फंसे लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, इससे व्यक्ति का भला भी होगा और आप एक अच्छे व्यक्ति के रूप में जाने निखरोगे।
किसी की मदद करना एक बहुत बड़ा कार्य होता है, यदि आपका कोई नजदीकी परेशानी में है तो उसकी मदद के लिए हमेशा आगे बढ़ें और एक अच्छे व्यक्ति होने का फर्ज निभाएं।
भूखा राजा और गरीब किसान की इस कहानी से ये निष्कर्ष सामने आता है कि चाहे आप गरीब ही क्यों न हो यदि आप अच्छे इंसान हैं, तो आपको मदद करने से कुछ भी नहीं रोक सकता है। गरीब किसान के पास खुद खाने के लिए अन्य नहीं था, लेकिन उसने राजा का पेट भरने के लिए कहीं से अन्य की व्यवस्था की और उन्हें भरपूर भोजन खिलाया। अच्छे व्यक्ति की पहचान अमीरी और गरीबी से नहीं होती है, बल्कि उसके आचरण से होती है।
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