शिशु

ब्रीच पोजीशन वाले शिशुओं में 4 जन्म दोष

क्या ब्रीच पोजीशन वाले बच्चों में जन्म दोष होते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है, जो कि ज्यादातर पेरेंट्स तब पूछते हैं, जब डिलीवरी से पहले उनके अपने बच्चे की गर्भ में स्थिति के ब्रीच पोजीशन होने का पता चलता है। बच्चे की डिलीवरी के लिए सबसे बेहतरीन पोजीशन यह होती है, कि माँ की वजाइना से सबसे पहले बच्चे का सिर और उसके बाद पूरा शरीर बाहर आए। लेकिन कभी-कभी बच्चे की पोजीशन कुछ इस तरह से होती है, कि बच्चे के सिर के बजाय उसके पैर बर्थ कैनाल की ओर होते हैं। इसके कारण जन्म के समय, बच्चे के पैर या कूल्हे पहले बाहर आते हैं। इससे बच्चे के सर्वाइवल को कई तरह के खतरे होते हैं, जिनके कारण बर्थ डिफेक्ट्स भी हो सकते हैं। 

कितने प्रतिशत ब्रीच बच्चों में जन्म दोष होता है?

5% से भी कम गर्भावस्थाओं में बच्चों की स्थिति ब्रीच पोजीशन में आती है। कितने प्रतिशत ब्रीच बच्चों में जन्म दोष होता है, इसे समझने की कोशिश में आपको ऐसे कई आंकड़े मिलेंगे, जो कि ऐसे बच्चों में जन्म के बाद बर्थ डिफेक्ट होने की संभावना की ओर इशारा करते हैं। संक्षेप में कहा जाए, तो इसकी संभावना बहुत कम होती है। इसका खतरा कम जरूर होता है, लेकिन असामान्यताओं की संभावना होती है। 

ब्रीच बच्चों से जुड़े संभावित जन्म दोष

ब्रीच बच्चों में जन्म दोष के कारण बड़े पैमाने पर भिन्न होते हैं। उल्टी पोजीशन होने के कारण, जन्म से पहले ऑक्सीजन की सप्लाई रुक सकती है या बच्चे को शारीरिक तौर पर नुकसान हो सकता है। इसके कारण कई तरह की जन्म संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इनमें से कुछ नवजात शिशुओं के लिए जानलेवा भी हो सकती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख खतरे नीचे दिए गए हैं। 

1. फीटल डिस्ट्रेस की संभावना

ब्रीच पोजीशन में होने से बच्चे को फीटल डिस्ट्रेस का अनुभव हो सकता है। बच्चे की पोजीशन उल्टी होने से बच्चे के बर्थ कैनाल में जाने के दौरान अंबिलिकल कॉर्ड के दबने की संभावना बढ़ जाती है। कभी-कभी इससे कॉर्ड प्रोलेप्स भी हो सकता है। जब यह होता है तो, कॉर्ड के माध्यम से बच्चे को मिलने वाली ऑक्सीजन सप्लाई बाधित हो जाती है और जन्म की पूरी प्रक्रिया के दौरान यह ऐसे ही रहती है। चूंकि ब्रेन बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन पर निर्भर करता है, ऐसे में, लंबे समय तक पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने से उसकी फंक्शनिंग प्रभावित हो सकती हैं और इसके लॉन्ग टर्म नुकसान हो सकते हैं। फीटल डिस्ट्रेस एक इमरजेंसी कॉम्प्लिकेशन है, जिसमें बच्चा ऑक्सीजन से वंचित रह जाता है। स्टडीज के अनुसार, फीटल डिस्ट्रेस होने से बच्चों में ऑटिज्म का खतरा भी बढ़ जाता है। 

2. डाउन सिंड्रोम की संभावना

एक ब्रीच पोजीशन वाले बच्चे में ग्रोथ और डेवलपमेंट में देरी का अनुभव भी हो सकता है। डाउन सिंड्रोम और ब्रीच बर्थ के बीच संबंध की स्थापना अब तक नहीं हुई है। लेकिन, ऐसे कुछ मौके हैं, जो इसकी ओर इशारा करते हैं। एक सामान्य शिशु में 23 जोड़े क्रोमोसोम एक साथ बनते हैं, जो कि माता और पिता दोनों से मिलने वाले क्रोमोसोम से बनते हैं। कुछ मामलों में, बच्चे को एक अतिरिक्त क्रोमोसोम मिल जाता है, जो कि अकेला रह जाता है, जिसके कारण यह स्थिति पैदा हो जाती है। अब तक डाउन सिंड्रोम को रोकने के लिए कोई तरीका नहीं मिला है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, ऐसी कोई भी स्टडी नहीं की गई है, जिससे यह साबित हो सके, कि ब्रीच बर्थ के कारण डाउन सिंड्रोम हो सकता है। लेकिन 10 में से 1 ब्रीच बच्चे में सौम्य से लेकर मध्यम न्यूरोलॉजिकल समस्याएं देखी जाती हैं। 

3. क्रोमोसोम में समस्याएं

सामान्य रूप से 46 के अलावा एक अतिरिक्त क्रोमोसोम के कारण बच्चे में डाउन सिंड्रोम की समस्या हो सकती है। लेकिन यदि क्रोमोसोम की बनावट सामान्य न हो या उनके जोड़े गलत हों, तो ऐसी अन्य कई स्थितियां हैं, जो कि बच्चे को प्रभावित कर सकती हैं। ब्रीच पोजीशन में बच्चे को हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है। 

4. बनावट में खराबी

डिलीवरी के समय सिर की स्थिति नीचे की ओर होने से कई फायदे होते हैं। इससे बच्चे के शरीर के अन्य हिस्सों में किसी तरह के का नुकसान होने की संभावना बहुत कम होती है। खोपड़ी अंदरूनी दबाव को झेल सकती है, वहीं शरीर के अन्य हिस्से अभी भी विकसित हो रहे होते हैं। स्पाइनल कॉर्ड भी ऐसा ही एक क्षेत्र है, जो कि ब्रीच पोजीशन की स्थिति में सबसे अधिक दबाव झेलता है। इसके कारण रीढ़ की हड्डी में डिफेक्ट होने की संभावना बहुत अधिक होती है। साथ ही मांसपेशियों के कोआर्डिनेशन में समस्याएं या आगे चलकर बच्चे में डेवलपमेंट से जुड़े कॉम्प्लिकेशंस देखे जाते हैं। 

ब्रीच बर्थ डिफेक्ट्स से कैसे बचें?

शिशु का जन्म कंप्लीट ब्रीच पोजिशन में हो या फ्रैंक ब्रीच पोजीशन में, बच्चे में बर्थ डिफेक्ट्स से बचाव का केवल एक ही रास्ता है – जन्म से पहले उसकी पोजीशन को बदलना। इसे कई तरीकों से किया जा सकता है। 

1. बच्चे को फिजिकली रोटेट करना

यह एक ऐसा तरीका है, जो डॉक्टर करते हैं। मां को दवाएं दी जाती हैं, जो कि गर्भाशय को शांत करती हैं और वह कॉन्ट्रैक्शन की शुरुआत नहीं करता है। फिर डॉक्टर सौम्यता से बच्चे को दूसरी दिशा में रोटेट करते हैं। हालांकि अब यह प्रक्रिया नहीं की जाती है। 

2. कायरोप्रैक्टिक टेक्निक

कुछ विशेष मामलों में डॉक्टर एक कायरोप्रैक्टर से मिलने की सलाह देते हैं। इसमें ऐसी कुछ विशेष तकनीक शामिल होती हैं, जो कि गर्भवती महिला पर की जाती हैं, जिससे गर्भाशय शांत हो जाता है और ऐसी मूवमेंट करता है, जिससे शिशु अपने आप ही सही जगह पर आ जाता है। हालांकि, कायरोप्रैक्टिक तकनीक भारत में नहीं अपनाई जाती है। 

ब्रीच शिशु में अन्य बच्चों की तुलना में पैरों या हाथों में जन्म दोष या मानसिक बीमारियों के विकास का खतरा अधिक होता है। हालांकि आज मेडिकल साइंस इस स्तर पर पहुंच चुका है, जहां इस समस्या से निपटा जा सकता है। ब्रीच पोजीशन की जल्द पहचान होने से और इसे सुधारने के तरीकों को अपनाकर, आप एक सुरक्षित और प्रसन्न गर्भावस्था और एक पूरी तरह से विकसित बच्चे का आनंद ले सकती हैं, वह भी बिना किसी समस्या के। 

स्रोत: Family Doctor

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पूजा ठाकुर

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