किसी ने कहा है कि जब एक औरत मां बनती है तो उसे अपनी उन शक्तियों के बारे में जानने का मौका मिलता जिससे वो अब तक शायद अनजान थी!
एक मां की जिम्मेदारियां बहुत बड़ी होती है और यह बात एक मां से बेहतर कौन जान सकता है जो अपने बच्चे के लिए अपनी सारी सुख-सुविधाएं त्याग देती है। जब आपके लिए आपके बेबी ही हेल्थ सबसे अहम होती है, तो आप इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाती हैं, ताकि आप उसके लिए हर वो संभव चीज कर सकें जो सही हो। इसलिए, चाहे वह भोजन, नींद, पॉटी या नहाने का शेड्यूल हो, यहाँ तक कि बच्चे को समय पर डकार दिलाना हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, जिस पर एक मां का ध्यान न रहता हो। हालांकि, शिशु को अचानक होने वाली डाइजेस्टिव प्रॉब्लम या कोई और समस्या आपको जरूर परेशान कर सकती है। इस आर्टिकल में आपको कुछ टिप्स बताई गई हैं, जिनसे आप अपने नन्हे बेबी में होने वाली डाइजेस्टिव प्रॉब्लम का सामना कर सकती हैं।
बच्चों में पाचन संबंधी समस्याएं
1. रिफ्लक्स
नवजात शिशुओं का डाइजेस्टिव सिस्टम बहुत कमजोर होता है, जो समय और बच्चे की ग्रोथ के साथ-साथ स्ट्रांग होने लगता है। भोजन नलिका, जो कि एक वाल्व होता है और ये पेट से खाने को भोजन नली में लौटने से रोकता है, ये अभी भी बच्चों में डेवलप हो रहा होता है, थूक बाहर करना और रिफ्लक्स की समस्या बच्चों में काफी कॉमन होती है। हालांकि यह नई मां के लिए काफी परेशानी का कारण बन सकता है, एक जाना माना फैक्ट यह है कि एसिड रिफ्लक्स 4 से 12 महीने के बीच में खुद ही ठीक हो जाता है। मामला गंभीर होने पर, मेडिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
आप क्या करें
- बच्चे को सही पोजीशन में फीड कराएं।
- फीड के दौरान बच्चे को जितना संभव हो सके उतनी बार डकार (बर्प) दिलाने की कोशिश करें।
- फॉर्मूला मिल्क या ब्रेस्ट मिल्क को कम-कम मात्रा में दें। अपना फीडिंग सेशन बढ़ाएं ताकि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रिएंट प्रदान हों। याद रखें, बच्चे को एक ही बार ज्यादा फीडिंग कराने के बजाय दो सिटिंग में फीड कराएं।
- दूध पिलाने के बाद कम से कम आधे घंटे के लिए बच्चे को एक सीध में रखने की कोशिश करें।
डॉक्टर से कब परामर्श करें
बच्चों में रिफ्लक्स की प्रॉब्लम काफी आम है और इसके बारे में आपको बहुत ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। हालांकि, अगर आप रिफ्लक्स डिजीज के नीचे बताए गए लक्षणों को नोटिस करें, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें क्योंकि यह बच्चे के रेगुलर फीडिंग को प्रभावित कर सकता है, जिससे उसके शरीर को पर्याप्त न्यूट्रिएंट्स नहीं मिल सकेंगे।
- भूख में कमी होना
- वजन धीरे बढ़ना
- सांस लेने में परेशानी होना
2. उल्टी
उल्टी की समस्या बड़ों के लिए ही बहुत ज्यादा थकाने वाली होती है और बच्चों के लिए तो और भी ज्यादा समस्या का कारण बनती है। बच्चों में उल्टी की समस्या ज्यादातर वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण होती है। हालांकि इस दौरान आप फीडिंग कराना जारी रख सकती हैं, ताकि शरीर से जो फ्लूइड कम हुआ है उसे रिकवर किया जा सके, तो यहाँ आपको कुछ एक्स्ट्रा चीजें करनी होंगी, ताकि बच्चे को आराम मिल सके।
आप क्या करें
अपने बच्चे की फीडिंग जारी रखें, लेकिन कम कम मात्रा में और थोड़ी -थोड़ी देर पर फीड कराएं बजाय ज्यादा देर तक फीड कराने के। इससे बच्चा दिन भर हाइड्रेटेड रहेगा। यदि वो फीड नहीं कर रहा है, तो डॉक्टर से बात करें और उसे ओरल रिहाइड्रेशन रेमेडी दें।
डॉक्टर से कब परामर्श करें
अपने डॉक्टर को बुलाएं अगर आप नीचे बताई गई बातों को नोटिस करें –
- कम मात्रा में फीड कराने और इलेक्ट्रोलाइट सप्लीमेंट देने के बाद भी आराम न मिल रहा हो और बच्चा बहुत थका हुआ व डिहाइड्रेटेड लग रहा हो।
- उल्टी से पित्त निकल रहा हो, जो हरे रंग का होता है।
- उल्टी में खून आता है।
- बच्चे को बार-बार जोर से उल्टी आना।
- उल्टी के साथ दस्त भी हो रहा हो, जो एक वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन का संकेत हो सकता है।
3. गैस
फीडिंग के दौरान बच्चे काफी सारी हवा भी निगल लेते हैं, जो नेचुरल है और अपने कई बार ऐसा सुना भी होगा। समय और एक्सपर्ट की सलाह के साथ, बच्चों में ये चीज धीरे-धीरे कम होने लगती है। हालांकि, जिस बच्चे ने अभी ठीक से मूवमेंट भी करना न शुरू किया हो, उसमें गैस की परेशानी को सीधे तौर पर खत्म नहीं किया जा सकता है ।
आप क्या करें
यह देखा गया है कि गैस की परेशानी तब कम होने लगती है जब बच्चा लगभग 3-4 महीने का हो जाता है या वह खुद ही करवट लेने लगता है। यह डेवलपमेंट बच्चे की नेचुरली मदद करता है और गैस की समस्या को दूर करता है। अगर आप नीचे बताई टिप्स को फॉलो करें तब भी बच्चे को काफी हेल्प मिलेगी:
- बच्चे के पेट की मालिश करें।
- गैस रिलीज करने के लिए बच्चे के पैरों को साइकिल मोशन में चलाएं।
- बच्चे को अपनी देखरेख में पेट के बल लिटाएं। हालांकि, दूध न पलटे इसलिए आप टमी टाइम और फीडिंग टाइम में थोड़ा अंतर रखें।
- यदि आप शिशु को बोतल से दूध पिला रही हैं, तो सही निप्पल साइज का उपयोग करें, ताकि कम मात्रा में हवा उसके पेट में जाए।
डॉक्टर से कब परामर्श करें
अगर सभी उपचार आजमाने के बावजूद भी बच्चे को असहज महसूस होता है, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएं।
4. दस्त
डायरिया काफी खतरनाक और बच्चों में होने वाली गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर में से एक है। इससे बच्चे को बार-बार लूज मोशन हो सकते हैं, जिससे जल्दी ही गंभीर रूप से डिहाइड्रेशन की समस्या होने लगती है और इसके लिए तुरंत मेडिकल हेल्प लेनी चाहिए। रोटावायरस इस बीमारी के होने की सबसे आम वजह है और इसलिए, बच्चे के शुरुआती महीनों में ही उसका टीकाकरण कराने की सलाह दी जाती है।
आप क्या करें
ध्यान रखें कि बच्चा हमेशा हाइड्रेटेड रहे और उसे थोड़े-थोड़े समय पर फॉर्मूला मिल्क या ब्रेस्ट मिल्क देती रहें। बच्चे को तब तक के लिए सॉलिड फूड न दें जब तक उसका पेट ठीक नहीं हो जाता है।
डॉक्टर से कब परामर्श करें
यदि कुछ दिनों के बाद भी दस्त बंद नहीं होता है, तो आपको दवा के लिए डॉक्टर से परामर्श करना होगा। हालांकि, अगर आपको बच्चे में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं, तो बिना इंतजार किए तुरंत डॉक्टर से मिलें:
- बच्चा असहज लग रहा हो।
- त्वचा और मुंह शुष्क होने जैसे डिहाइड्रेशन के लक्षण दिखाई दें।
- आंखें सिकुड़ जाना।
- सुस्त दिखाई देना।
5. कोलिक
कोलिक वो टर्म है जिसमें बच्चा बहुत चिड़चिड़ा हो जाता है। आम धारणा के विपरीत, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है कि कोलिक पेट की गैस या अपच से संबंधित है। मेडिकली देखा जाए, तो जो बच्चे सप्ताह में तीन बार या उससे ज्यादा 3 या 4 घंटे तक रोते हैं, खासतौर पर शाम के समय में, उन्हें कोलिक की समस्या होती है।
आप क्या करें
- बेबी-वियरिंग: अपने बच्चे को आराम देने का सबसे नेचुरल तरीका यह है कि आप उसे अपने करीब रखें। ऐसे में बेबी-वियरिंग एक मां के लिए काफी मददगार साबित होता है, जिसमें आप बेबी को अपने करीब रख कर उसे शांत करा सकती हैं।
- फिजिकल टच: स्टडीज से पता चलता है कि पेट के दर्द में बच्चे को बहुत परेशानी होती है और उस पर बहुत ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। स्टडी कहती है कि माता-पिता के सीधे संपर्क में आने पर रोते हुए बच्चे बहुत जल्दी शांत हो जाते हैं।
- डेली रूटीन: कोलिक की समस्या वाले बच्चे को डेली रूटीन से चलना चाहिए, इससे उसे फिर ज्यादा परेशानी का समाना नहीं करना पड़ता है, वहीं आपको अपना बाकि काम के लिए थोड़ा समय मिल जाता है।
डॉक्टर से कब परामर्श करें
यदि आपको लगता है कि 3 महीने की उम्र के बाद भी आपके बच्चे की यह समस्या दूर नहीं हो रही है, तो बेहतर है कि डॉक्टर से मिलें और उनसे पूछें कि आप इस परेशानी को दूर करने के लिए क्या कर सकती हैं।
6. कब्ज
बेबी के शुरूआती स्टेज में कठोर मल तब होता है जब डाइजेस्टिव सिस्टम न्यूट्रिएंट्स को अब्सॉर्ब करने का काम कर रहा होता है और बाकी का वेस्ट निकल जाता है। बच्चे में अपच की समस्या तब और खराब हो सकती है जब आप उसे सॉलिड फूड देना शुरू करती हैं।
आप क्या करें
- सुनिश्चित करें कि बच्चे को दूध या फ्लूइड के रूप में ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ मिले।
- जब तक स्थिति ठीक नहीं हो जाती है तब तक बच्चे को सीरियल न दें।
- प्रून जूस जैसे कुछ नेचुरल लैक्सटिव दें।
डॉक्टर से कब परामर्श करें
कब्ज का इलाज करने की आपको तब जरूरत पड़ सकती है जब आप नीचे दी गई किसी भी स्थिति को नोटिस करें:
- मल त्याग करते समय शिशु बहुत असहज महसूस करता है।
- मल में रक्त आना।
- बच्चा मल त्याग नहीं कर पा रहा है।
7. डाइजेस्टिव सिस्टम अब्नोर्मलिटी
कभी-कभी कुछ बच्चे जेनेटिक अब्नोर्मलिटी के साथ पैदा होते हैं, जिसके लिए मेडिकल हेल्प की या सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
आप क्या करें
हालांकि ये अब्नोर्मलिटी बहुत ही दुर्लभ है, अगर बच्चे को पाचन की ऐसी समस्याएं हो रही हैं जिन्हें समझना मुश्किल है, तो चेकअप कराएं।
डॉक्टर से कब परामर्श करें
- गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स कभी-कभी भोजन नलिका में अब्नोर्मलिटी पैदा करता है, जिसकी वजह से पेट में मौजूद खाना भोजन नलिका से जरिए मुंह में वापस पलट आता है। इसलिए, यह समस्या बार बार न हो आपको डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
- यदि दवा के बावजूद भी बच्चे की उल्टी नहीं रुकती है, तो पेट की किसी भी अब्नोर्मलिटी का पता लगाने के लिए आपको डॉक्टर के पास जाना होगा।
- अगर आप नोटिस करती हैं कि बच्चे को उल्टी के साथ पित्त भी आ रहा है, तो वॉल्वुलस के साथ मालरोटेशन नामक आंतों की समस्या की जांच कराने के लिए तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।
इन सभी जानकारियों के बावजूद भी कभी-कभी बच्चे को अचानक से कोई समस्या होने लगती है, तो आप खुद को इसके लिए तैयार कर लें। मां होने नाते आपकी सभी परेशानी एक पल में दूर हो जाती है जब आप अपने बच्चे को हंसते हुए देखती हैं। हमें उम्मीद है कि इस लेख से आपको काफी मदद मिली होगी जिससे आप शिशुओं में होने वाली कॉमन डाइजेस्टिव समस्याओं को समझ सकें और उनका सामना कर सकें।
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