In this Article
- पोस्टपार्टम साइकोसिस क्या है?
- पोस्टपार्टम साइकोसिस कब होता है और इसका खतरा किसे अधिक होता है?
- गर्भावस्था के बाद साइकोसिस के कारण?
- डिलीवरी के बाद साइकोसिस के सबसे आम लक्षण
- पोस्टनेटल साइकोसिस का इलाज कैसे होता है?
- पोस्टपार्टम साइकोसिस और पोस्टनेटल डिप्रेशन के बीच अंतर
- डिलीवरी के बाद साइकोसिस से कैसे बचा जा सकता है?
माँ बनना एक महिला के लिए सबसे बेहतरीन अनुभवों में से एक होता है। यह एक ऐसा एहसास है, जो उसे अंदर से एक अद्भुत खुशी से भर देता है। अमिता सिंह (बदला हुआ नाम) नामक एक नई मां के लिए, मां बनने की खुशी बिल्कुल ऐसी ही थी। पर तभी उसे पैनिक अटैक का अनुभव होने लगा। अपने बेटे के जन्म के कुछ दिनों बाद ही उसे भ्रम और डरावने दृश्यों के साथ, रातों को नींद न आने की समस्या होने लगी। उसकी स्थिति इस हद तक बिगड़ गई, कि उसने दो बार खुद को चोट पहुंचाई और वह अपने पति को एक सीरियल किलर समझने लगी।
अमिता को डॉक्टर के पास ले जाया गया और उसे पोस्टपार्टम साइकोसिस से ग्रस्त पाया गया।
पोस्टपार्टम साइकोसिस क्या है?
पोस्टपार्टम साइकोसिस को प्यूरपेरल साइकोसिस या पोस्टनेटल ऑनसेट बाइपोलर डिसऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मानसिक बीमारी है, जो कि डिलीवरी के तुरंत बाद नई मांओं को प्रभावित करती है। यह एक दुर्लभ स्थिति है, लेकिन बहुत ही गंभीर मानसिक बीमारी है। इसमें मां नवजात शिशु के प्रति भावनाओं को महसूस करने में बहुत कठिनाई महसूस करती है। यह बीमारी डिलीवरी के बाद अचानक शुरू हो सकती है और यह परिवार और दोस्तों के लिए एक बहुत ही डरावना अनुभव हो सकता है। यह एक दुर्लभ मानसिक बीमारी है, लेकिन फिर भी विश्व में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो पोस्टपार्टम साइकोसिस से जूझ रही हैं।
पोस्टपार्टम साइकोसिस कब होता है और इसका खतरा किसे अधिक होता है?
पोस्टपार्टम साइकोसिस किसी भी महिला को हो सकता है। लेकिन अजीब बात यह है, कि यह डिलीवरी के बाद होता है। कई महिलाएं मूड स्विंग का अनुभव करती हैं, जो कि 2 दिनों तक जारी रहता है। इस स्थिति को ‘बेबी ब्लूज’ कहा जाता है। यह सामान्य है और यह पोस्टपार्टम साइकोसिस से बहुत अलग होता है। साइकाइट्रिक टाइम्स में जनवरी 2014 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार नई मां बनने वाली हजार महिलाओं में से एक-दो महिलाओं को पोस्टपार्टम साइकोसिस हो सकता है।
गर्भावस्था के बाद साइकोसिस के कारण?
डिलीवरी के बाद होने वाले साइकोसिस के लिए कोई निश्चित कारण या कारक अब तक साबित नहीं हुए हैं। प्रेगनेंसी के बाद हार्मोन में भारी बदलाव को पोस्टपार्टम साइकोसिस के कुछ संभावित खतरों में से एक माना जा सकता है। यह हार्मोन के कारण हो सकता है, क्योंकि गर्भवती होने के दौरान शरीर में बहुत से बदलाव होते हैं। अन्य रिसर्च मानते हैं, कि बड़ी उम्र में मां बनना भी इस बीमारी के खतरे को बढ़ा सकता है। अगर मां बनने वाली महिला में पहले भी बाइपोलर डिसऑर्डर, स्किजोफ्रेनिया या स्किजोअफेक्टिव डिसऑर्डर की पहचान हुई हो, तो प्रेगनेंसी के दौरान उसे एक विशेषज्ञ की मदद लेनी चाहिए, क्योंकि इन महिलाओं में पोस्टपार्टम साइकोसिस का खतरा अन्य महिलाओं से 25 से 50% बढ़ जाता है। हालांकि कभी-कभी जेनेटिक कारण भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार होते हैं। यह याद रखना जरूरी है, कि इसके आधे से ज्यादा मामले उन महिलाओं के साथ होते हैं, जिनके परिवार में किसी तरह की मानसिक बीमारी का कोई इतिहास नहीं रहा है। पोस्टपार्टम साइकोसिस उन मामलों में अधिक देखे गए हैं, जहां मरीज के करीबी रिश्तेदार जैसे मां या बहन को भी ऐसी ही कोई शिकायत रही हो। पहली बार मां बनने वाली कुछ महिलाओं के लिए जटिलताओं युक्त डिलीवरी के बाद साइकोसिस दिख सकता है। जिन महिलाओं में पहली डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम साइकोसिस कि तकलीफ रही हो, उनकी भविष्य की डिलीवरी के बाद भी इसका खतरा हो सकता है।
डिलीवरी के बाद साइकोसिस के सबसे आम लक्षण
बच्चे के जन्म के बाद साइकोसिस एक मानसिक बीमारी है और यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है। दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए पोस्टपार्टम साइकोसिस के लक्षणों पर नजर रखना और इस बीमारी का थोड़ा सा भी संदेह होने पर स्पेशलिस्ट से परामर्श लेना जरूरी है।
पोस्टपार्टम साइकोसिस को पहचानने के लिए यहां पर उसके कुछ लक्षण दिए गए हैं:
- व्याकुलता का एक एहसास लगातार बना रहता है। यह बहुत अधिक हो सकता है, जिससे मां को हर समय घबराहट महसूस हो सकती है। महिला कामकाज को किस तरह से मैनेज करती है, इसे लेकर उसके मन में एक असंतोष या निराशा बनी रहती है।
- उदासी और खालीपन की एक भावना उसका पीछा नहीं छोड़ती है। मां को हर समय बिना किसी कारण रोने की इच्छा होती है।
- उसे यह समझ नहीं आता है, कि उसके आसपास क्या हो रहा है और उसे हमेशा कंफ्यूजन और डर का एहसास होता है।
- मां को अपने बच्चे के साथ भावनात्मक लगाव महसूस नहीं होता है।
- कुछ मरीजों में डिप्रेशन के साथ-साथ भ्रम और भ्रांति के लक्षण दिखते हैं।
- इनके अलावा इसमें नींद की कमी, हिंसा, चिड़चिड़ापन, उत्साह और आँसू जैसे अन्य टिपिकल लक्षण दिखते हैं।
- इनसोम्निया, नींद की जरूरत महसूस न होना
- बच्चे को चोट पहुंचाने के विचार
- बच्चे या किसी अन्य व्यक्ति के प्रति भावनाओं की कमी
- आत्महत्या का विचार और यह सोचना कि बच्चा मां के बिना बेहतर रह पाएगा
- हर किसी के प्रति अजीब सा व्यवहार, जो कि स्पष्ट रूप से अजीब हो
- मूड में अचानक बदलाव और वास्तविकता से दूरी
पोस्टनेटल साइकोसिस का इलाज कैसे होता है?
बीमार मां के इलाज में पति और परिवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। पोस्टनेटल साइकोसिस से ग्रस्त महिला को तुरंत स्पेशलिस्ट के पास लेकर जाना चाहिए। गंभीर लक्षणों में एंटीसाइकोटिक बीमारियां या मूड स्टेबलाइजर की जरूरत होती है जिसे डॉक्टर की निगरानी के अंदर मरीज को दिया जाता है। पूरी देखभाल के लिए मरीज को हॉस्पिटल में रखना होता है। ऐसे मामले में मां और बच्चे को एक साथ रखना चाहिए, ताकि इलाज के दौरान मां बच्चे के साथ रह सके। पर कुछ बहुत ही बिगड़ी हुई परिस्थितियों में बच्चे की सुरक्षा के लिए ब्रेस्टफीडिंग को रेकमेंड नहीं किया जाता है। पोस्टपार्टम साइकोसिस से ग्रस्त महिला को इलाज के दौरान बच्चे से गहरे संबंध बनाने की जरूरत भी होती है। साइकाइट्रिक डॉक्टरों के साथ लगातार बातचीत और उचित दवाओं के इस्तेमाल से महिला इस स्थिति से ठीक हो सकती है और एक साधारण स्वस्थ जीवन जी सकती है।
पोस्टपार्टम साइकोसिस और पोस्टनेटल डिप्रेशन के बीच अंतर
पोस्टपार्टम साइकोसिस एक गंभीर बीमारी है, वहीं पोस्टनेटल डिप्रेशन या बेबी ब्लूज में सौम्य मूड स्विंग होते हैं, जिनका अनुभव कई महिलाओं को होता है। बेबी ब्लूज नई मांओं की लगभग आधी से अधिक आबादी को प्रभावित करता है और आमतौर पर डिलीवरी के 3 से 4 दिनों के बाद शुरू होता है। जब बच्चा 10 दिनों का हो जाता है तब यह स्थिति बेहतर होने लगती है और इसमें किसी इलाज की जरूरत नहीं होती है। पोस्टपार्टम साइकोसिस की तुलना में इसके लक्षण हल्के होते हैं। मां में मूड स्विंग दिखाई देता है, जैसे आसानी से रो पड़ना, कभी-कभी ओवर रिएक्ट करना, अत्यधिक संवेदनशीलता, जो कि कुछ दिनों के बाद अपने आप ही ठीक हो जाती है। लेकिन पोस्टपार्टम साइकोसिस में मेडिकल अटेंशन की जरूरत होती है। प्रभावित परिवार को इस बीमारी पहचानने के लिए ध्यान देना पड़ता है और मेडिकल मदद लेनी पड़ती है।
डिलीवरी के बाद साइकोसिस से कैसे बचा जा सकता है?
जी हां, पोस्टपार्टम साइकोसिस से बचा जा सकता है। गर्भावस्था के लगभग 32 सप्ताह के दौरान प्रीनेटल साइकेट्रिस्ट से मिला जा सकता है, ताकि इस बीमारी की संभावनाओं और इसके लक्षणों को आंका जा सके। इस बीमारी के लिए तुरंत उचित कदम न उठाने के गंभीर परिणाम दिख सकते हैं। अगर आप ऊपर बताए गए लक्षण नोटिस करती हैं या कोई भी ऐसा लक्षण देखती हैं, जो आपको असामान्य लगता है, तो सबसे अच्छा यही होगा कि आप इसके लिए डॉक्टर से परामर्श लें। पोस्टपार्टम साइकोसिस को मैनेज करना संभव है और इसलिए सही समय पर सही कदम उठाना बहुत जरूरी है।
यह एक दुर्लभ समस्या है और यह सभी महिलाओं को प्रभावित नहीं करती है। लेकिन परिवार के सदस्यों को इस पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि जल्द पहचान होने से साइकोसिस को बिगड़ने से रोका जा सकता है।
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