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बच्चे को जन्म देने के दौरान होने वाले डिलीवरी के दर्द की कल्पना मात्र ही आपकी रातों की नींद उड़ा सकती है। हर किसी को पता है, कि लेबर दर्दनाक और थकान भरा होता है, लेकिन सही दवा के साथ लेबर पेन से निपटा जा सकता है। अगर आप जल्द ही अपने बच्चे को जन्म देने वाली हैं, तो आप निश्चित रूप से ऐसे विकल्पों पर विचार कर रही होंगे, जो आपको लेबर पेन में मदद कर सकते हैं। डिलीवरी में होने वाले दर्द से आराम पाने के लिए एपिड्यूरल एक असरदार तरीका है और गर्भवती महिलाओं के बीच इसे काफी पसंद किया जाता है। पर इसके साथ ही कुछ खतरे भी जुड़े होते हैं। यही कारण है, कि एपिड्यूरल एनेस्थीसिया के बारे में पूरी जानकारी होनी जरूरी है।
एपिड्यूरल एक लोकल एनेस्थेटिक है, जिसे लेबर पेन से राहत देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें एनाल्जेसिक और एनेस्थेटिक दर्द निवारक होते हैं, जिन्हें पीठ में एक ट्यूब के माध्यम से इंजेक्ट किया जाता है। एपिड्यूरल मोटर और सेंसरी दोनों ही नर्व से नर्व सिग्नल को आपके दिमाग तक पहुंचने से रोकता है। यह आपके शरीर के निचले हिस्से को गतिहीन करके दर्द से बचाता है और लेबर के दौरान आपको होश में रखता है। एपिड्यूरल को वेजाइनल (नॉर्मल) और सिजेरियन, दोनों ही तरह की डिलीवरी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
लेबर के दौरान, एपिड्यूरल एनेस्थीसिया को आपकी पीठ के निचले हिस्से में स्पाइनल कॉर्ड के बाहर (एपिड्यूरल स्पेस नामक) एक छोटी जगह में एक सुई या कैथेटर के द्वारा दिया जाता है। कैथेटर जरूरत पड़ने पर एनेस्थेटिक दवाओं को दोबारा या लगातार देने में भी काम आ जाता है। गर्भावस्था के लिए एपिड्यूरल इंजेक्शन को महिलाओं के लिए आंशिक रूप से दर्द से आराम दिलाने के लिए डिजाइन किया गया है। हालांकि इसके चुनाव का निर्णय व्यक्तिगत होता है।
जहां हॉस्पिटल और एनेस्थिसियोलॉजिस्ट इस दवा के कॉम्बिनेशन और खुराक के बारे में विभिन्न मत रखते हैं, वहीं मुख्यतः तीन प्रकार के एपिड्यूरल का इस्तेमाल लेबर के दौरान किया जाता है:
कैथेटर के नियमित इस्तेमाल के अलावा, एक पारंपरिक एपिड्यूरल में ब्यूपिवेकेन या लीडोकेन जैसी रेगुलर एनेस्थीसिया दवाओं का इस्तेमाल होता है, जो कि काफी हद तक दर्द से आराम देते हैं। इसे रीढ़ की हड्डी में इंजेक्ट किया जाता है और यह शरीर के निचले हिस्से को सुन्न कर देता है, जिससे महिला लेबर के दौरान हिलडुल नहीं पाती है। हालांकि, अभी भी आप थोड़ी मदद के साथ मूव कर सकती हैं।
पारंपरिक एपिड्यूरल के विपरीत, स्पाइनल एपिड्यूरल में एनेस्थीसिया को स्पाइनल कॉर्ड फ्लुइड में डायरेक्ट इंजेक्ट किया जाता है। इससे लेबर पेन से तुरंत राहत मिलती है, लेकिन कुछ घंटों के बाद इस दवा का असर खत्म होने लगता है। आमतौर पर, स्पाइनल ब्लॉक को लेबर में काफी बाद में इस्तेमाल किया जाता है। एक बार स्पाइनल एपिड्यूरल देने के बाद शरीर का मूवमेंट भी रुक जाता है।
यह ड्रग्स, लोकल एनेस्थेटिक मेडिकेशन और एपिनेफ्रीन का एक कॉम्बिनेशन होता है। अन्य एपिड्यूरल के विपरीत सीएसई में आपके शरीर में हल्का सेंसेशन महसूस होता है। ऐसे में इन मामलों में हिलने-डुलने में कोई समस्या नहीं रह जाती है। मोटर ब्लॉक के बावजूद, थोड़ी हलचल बनाए रखने का फायदा यह होता है, कि जल्द डिलीवरी के लिए बच्चे की पोजीशन बेहतर होने में मदद मिलती है।
एपिड्यूरल इंजेक्शन आमतौर पर लेबर की एक्टिव स्टेज के दौरान एक एनेस्थेटिस्ट द्वारा दिया जाता है। आपको बिस्तर के किनारे पर बैठने के लिए कहा जाता है। अपने पेट को झुकाने के लिए और स्थिर रहने के लिए कहा जाता है। यह पोजीशन जरूरी होती है, ताकि किसी जटिलता से बचाव हो सके और एपिड्यूरल दवाओं का प्रभाव बढ़ सके। इसके अलावा आप एक करवट लेकर लेट सकती हैं, पीठ को झुका सकती हैं और अपने घुटनों को जितना हो सके उतना ऊपर मोड़ सकती हैं। इन दोनों ही पोजीशन में, रीढ़ की हड्डी अच्छी तरह से मुड़ जाती है और इंजेक्शन लगाने वाली सही जगह तक पहुंचना आसान हो जाता है।
किसी तरह के इंफेक्शन के खतरे को कम करने के लिए, आपकी त्वचा पर एंटीसेप्टिक सॉल्यूशन लगाया जाता है। लोकल एनेस्थीसिया के द्वारा आपकी पीठ पर एक छोटे से हिस्से को सुन्न किया जाता है, जिसे इंजेक्शन के द्वारा दिया जाता है। फिर, एक सुई को आपकी पीठ में स्पाइनल कॉर्ड को घेरने वाले क्षेत्र में डाला जाता है। इसके बाद सुई के द्वारा एक कैथेटर को एपिड्यूरल स्पेस में डाला जाता है। फिर एनेस्थिसियोलॉजिस्ट सावधानीपूर्वक सुई को बाहर निकाल लेते हैं और कैथेटर को उसकी जगह पर ही छोड़ देते हैं, ताकि बाद में जरूरत के अनुसार उसमें दवा दी जा सके। फिर कैथेटर की पोजीशन को मेंटेन रखने के लिए, उसे पीठ पर सुरक्षित रूप से टेप से चिपका दिया जाता है।
एक बार जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तब एपिड्यूरल देने के विभिन्न तरीकों में से किसी एक को अपनाया जा सकता है। आपकी स्थिति और सीमाओं के आधार पर, दर्द को पर्याप्त रूप से कम करने के लिए, दवा की जरूरी मात्रा के निर्धारण के लिए, ये सभी तरीके जरूरी हैं।
एक कैथेटर (एक लचीली पतली और खोखली नली) को सावधानीपूर्वक खोखली सुई के इस्तेमाल से बनाए गए एपिड्यूरल स्पेस में डाला जाता है। इससे आपके स्पाइनल कॉर्ड और स्पाइनल फ्लुइड को घेरने वाली मेंब्रेन के ठीक बाहर, लगातार या बीच-बीच में दवा देने मदद मिलती है। आपका एनएसथेटिस्ट कैथेटर ट्यूब की प्लेसमेंट को चेक करने के लिए और दवा के किसी गलत रिएक्शन को चेक करने के लिए पहले आप को एक टेस्ट डोज देता है। अगर आप में कोई रिएक्शन नहीं दिखते हैं, तो टेस्ट डोज के बाद फुल डोज दे दी जाती है।
ऐसे मामले में दवा को जरूरत के अनुसार दिया जाता है। लेबर पेन को सहने की आपकी क्षमता और मूवमेंट की आपकी इच्छा के आधार पर, आपके एनेस्थिसियोलॉजिस्ट खुराक का निर्धारण करेंगे।
एनेस्थिसियोलॉजिस्ट दवाओं (एनेस्थेटिक और एनाल्जेसिक्स) को मिक्स करते हैं, ताकि आपकी इच्छा की सेंसेशन और मूवमेंट के अनुसार उसे मैच कर सकें।
इस एपिड्यूरल की मदद के साथ एपिड्यूरल ट्यूबिंग में दी गई दवा की मात्रा को रेगुलेट किया जा सकता है।
इसे वॉकिंग एपिड्यूरल के नाम से भी जाना जाता है। यह एनाल्जेसिया मां को खड़े होने, घुटनों पर बैठने, स्क्वाटिंग या फिर थोड़ी मदद के साथ चलने की भी आजादी देता है।
सबसे नए पेन रिलीवर को स्पाइनल एनाल्जेसिया या एक वाकिंग स्पाइनल के नाम से जाना जाता है। लेबर की वेदना को कम करने के लिए इस दवा की केवल एक छोटी सी खुराक स्पाइनल फ्लूइड में इंजेक्ट की जाती है, पर इसके बावजूद मूवमेंट जारी रहती है।
यह एक प्रकार का कॉम्बिनेशन (नार्को-एनेस्थेटिक) एपिड्यूरल होता है। यह एक हद तक लेबर पेन से राहत दिलाता है, ताकि एक थकी हुई मां थोड़ा रिलैक्स हो सके और पुश करने के लिए थोड़ी एनर्जी वापस पा सके।
एपिड्यूरल आपके सर्विक्स और यूट्रस में दर्द के सिग्नल को दिमाग तक पहुंचाने वाली नसों को अस्थाई रूप से ब्लॉक कर देता है और इस तरह से सेंसेशन में कमी आ जाती है।
एपिड्यूरल मेडिकेशन में लोकल एनेस्थेटिक नामक ड्रग्स शामिल होती हैं, जैसे ब्यूपिवेकेन, क्लोरोप्रोकेन या लीडोकेन। आमतौर पर, इन्हें ओपीओइड या नारकोटिक्स के साथ दिया जाता है, ताकि लोकल एनेस्थेटिक का कम इस्तेमाल हो सके।
इससे लेबर पेन से राहत मिलती है और इसके साइड इफेक्ट सीमित होते हैं। ऐसी दवाएं एपिड्यूरल के प्रभाव को बढ़ाने के लिए या मां के ब्लड प्रेशर को स्थिर रखने के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती हैं।
लेबर के दौरान एपिड्यूरल एनाल्जेसिया लेने के लिए कोई भी सही या गलत समय नहीं होता है। हालांकि, आमतौर पर इसे लेबर की एक्टिव स्टेज के दौरान दिया जाता है, जब महिला को लगातार कॉन्ट्रैक्शन महसूस हो रहा हो और सर्विक्स फैल हो रहा हो।
आपको लेबर को तेज करने के लिए भी एपिड्यूरल दिया जा सकता है। इसके लिए सिंटॉसिनों नामक एक हार्मोन को एक ड्रिप में दिया जाता है, जिससे कॉन्ट्रैक्शन तेज और दर्द भरे हो जाते हैं।
जब तक आपके बच्चे का जन्म नहीं हो जाता, तब तक एपिड्यूरल को उसकी जगह पर रखा जाता है। डिलीवरी के बाद अगर आपको एपीसीओटोमी के द्वारा टांकों की जरूरत हो, तो भी इसके द्वारा दर्द निवारण हो सकता है।
एपिड्यूरल, लेबर पेन से आराम दिलाने में किसी भी अन्य दवा से कहीं बेहतर काम करते हैं। जिन महिलाओं को एपिड्यूरल दिया जाता है, उन्हें लेबर के दौरान या तो दर्द नहीं होता है या फिर बहुत कम दर्द का अनुभव होता है। इसके अन्य फायदे इस प्रकार हैं:
कई तरह के लोकल एनेस्थेटिक देने के लिए एपिड्यूरल का इस्तेमाल किया जा सकता है और इसके हर प्रकार के अपने साइड इफेक्ट होते हैं। एपिड्यूरल के कुछ आम साइड इफेक्ट नीचे दिए गए हैं:
आमतौर पर, एपिड्यूरल बच्चे के लिए सुरक्षित होते हैं, क्योंकि इसे स्पाइन में डाला जाता है, नसों में नहीं। लेबर के दौरान महिला को जो भी दवा दी जाती है, वह निश्चित रूप से अंबिलिकल कॉर्ड के द्वारा बच्चे के खून में पहुंच जाती है, जिसमें एपिड्यूरल द्वारा दिए गए दर्द निवारक एनेस्थेटिक भी शामिल हैं। लेकिन एनेस्थेटिक वैसी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, जो किसी भी अन्य पेन किलर की तरह ही सुरक्षित होते हैं, जो कि गर्भवती मां को दिए जाते हैं। और इस प्रकार बच्चे पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। एपिड्यूरल के इस्तेमाल के कोई लॉन्ग-टर्म साइड इफेक्ट भी नहीं होते हैं।
लेकिन, चूंकि एक बच्चे का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं होता है, ऐसे में एपिड्यूरल दवाओं के प्रभाव से निपटने में उसे अधिक समय लगता है। एपिड्यूरल के कारण, मां के ब्लड प्रेशर में आने वाली गिरावट बच्चे तक जाने वाले ऑक्सीजन के सप्लाई को प्रभावित कर सकती है। इससे बच्चे को तकलीफ हो सकती है।
एक एपिड्यूरल ब्लॉक लेबर के दर्द को कम करता है, लेकिन यह इसे पूरी तरह से खत्म नहीं करता है।
औसतन एपिड्यूरल इंजेक्ट करने के बाद उसे काम करने में लगभग 40 मिनट का समय लगता है। इसे देने की प्रक्रिया में दर्द होता है और यह काफी तकलीफदेह हो सकता है। अगर इसी दवा को कम कंसंट्रेशन में इस्तेमाल किया जाए, तो इससे एनाल्जेसिया हो सकता है। जिसका मतलब है, इससे केवल दर्द से आराम मिलेगा और मांसपेशियों में कमजोरी नहीं होगी। हालांकि अगर एपिड्यूरल काम नहीं करता है, तो आपके डॉक्टर को इसे दोबारा देना पड़ सकता है।
एपिड्यूरल लेने से दर्द से थोड़ा आराम मिल सकता है, लेकिन दर्द-रहित डिलीवरी पूरी तरह से संभव नहीं है।
एपिड्यूरल की मदद से डिलीवरी की प्रक्रिया से गुजरने के बाद भी, कुछ महिलाओं को कैथेटर की जगह पर हल्के दर्द का अनुभव हो सकता है, जहां पर दवा इंजेक्ट की गई थी। डिलीवरी के दौरान, एपिड्यूरल पेन रिलीफ के इस्तेमाल से लॉन्ग-टर्म बैक-पेन नहीं होता है। जहां कई महिलाओं का मानना है, कि एपिड्यूरल एनाल्जेसिया के कारण गंभीर या लॉन्ग-टर्म पीठ का दर्द हो सकता है, वहीं, इन दोनों में कोई संबंध नहीं है। डिलीवरी के बाद पीठ का दर्द, प्रीनेटल बैक-पेन के कारण हो सकता है या यह गर्भावस्था के दौरान आम शारीरिक बदलावों का एक नतीजा हो सकता है।
जुड़वां बच्चों के साथ सिजेरियन डिलीवरी ही होगी, ऐसा निश्चित नहीं है। एक बच्चे की डिलीवरी की तरह ही कई जुड़वां बच्चे भी नॉर्मल डिलीवरी से पैदा होते हैं। अक्सर डॉक्टर लेबर में दर्द से राहत पाने के लिए और दूसरे बच्चे को डिलीवरी के लिए पोजीशन में आने की तैयारी के लिए एपिड्यूरल की सलाह देते हैं।
किसी तरह की समस्या होने पर, अगर आपने पहले से ही एपिड्यूरल ले रखा हो, तो डिलीवरी के लिए नियुक्त डॉक्टरों की टीम के लिए बच्चों की जल्दी डिलीवरी कराना आसान हो जाता है।
गर्भावस्था के दौरान अपने बच्चे के जन्म पर ध्यान को केंद्रित करना जरूरी है। लेकिन लेबर के बाद क्या होता है, इसके बारे में जानकारी रखना भी अच्छी बात है। यहां पर कुछ ऐसी बातें दी गई हैं, जिनकी आप बच्चे के जन्म के बाद उम्मीद कर सकती हैं:
लेबर आसान नहीं होता है। लेकिन एपिड्यूरल या किसी अन्य लेबर पेन से राहत दिलाने वाले तरीके को चुनने का फैसला, पूरी तरह से आपका होना चाहिए। अगर आप लेबर के दर्द से राहत के लिए किसी तरीके को अपनाना चाहती हैं, तो रिसर्च करें। अपने डॉक्टर से बात करें और एक सुरक्षित लेबर और डिलीवरी का अनुभव लें।
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