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मकर संक्रांति का त्यौहार भारत के कई हिस्सों में अपना महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्य उत्तर की ओर यात्रा करना शुरू कर देता है। यह कर्क रेखा को छोड़कर मकर रेखा में प्रवेश करता है। इसके अलावा, मकर संक्रांति वसंत के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।
मकर संक्रांति की बात हो और पतंग की बात न हो यह कैसे संभव है। जैसे कि पहले भी बताया गया है यह महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार भारत के के हिस्सों में सेलिब्रेट किया जाता है। तो, आइए जानते हैं उत्तरायण या मकर संक्रांति क्या है? यह त्यौहार जो हमें सर्दियों के मौसम को एन्जॉय करने और सेलिब्रेट करने का मौका देता है, इसके पीछे की एक कहानी है। यहाँ आपको मकर संक्रांति से जुड़ी कुछ जानकारी दी गई है, जो आपको त्यौहार का महत्व समझने के लिए जाननी चाहिए।
मकर संक्रांति का महत्व और इतिहास
मकर संक्रांति भारत में वसंत के मौसम की शुरुआत होने का प्रतीक है। इस त्यौहार को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे उत्तर भारत (नॉर्थ इंडिया) में लोहरी और दक्षिणी क्षेत्रों (साउथ इंडिया) में पोंगल। सबसे पहले, आर्यों ने इस दिन को उत्सव के लिए एक शुभ दिन के रूप में मनाना शुरू किया था। यहाँ तक कि महाभारत महाकाव्य में भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना गया है। भीष्म पितामह ने उत्तरायण की शुरुआत तक युद्ध में घायल होने के बाद अपने जीवन के साथ बहुत संघर्ष किया। उन्होंने इस शुभ चरण के दौरान स्वर्ग में निवास किया। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मरने वाले लोग मोक्ष प्राप्त करते हैं।
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति
मकर संक्रांति त्यौहार फसलों के मौसम के अंत का और वसंत के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस शुभ दिन पर, भगवान विष्णु और देवी महालक्ष्मी के साथ पूरे देश में सूर्य देव की पूजा की जाती है। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और ‘संक्रांति’ शब्द का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। लूनर कैलेंडर के अनुसार, जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण (कर्क राशि से मकर राशि रेखा तक) की ओर बढ़ता है, जिससे यह वसंत के मौसम की शुरुआत को दर्शाता है। यह भी माना जाता है कि त्यौहार खराब समय का अंत करता है। अधिकांश हिंदू परिवार में मकर संक्रांति के उत्सव के बाद ही कोई भी धार्मिक आयोजन करते हैं।
इस तारीख का क्या महत्व है
क्या आप भी जानना चाहते हैं कि मकर संक्रांति का क्या महत्व है? तो फिर यूँ समझ लीजिए कि यह उन कुछ भारतीय त्योहारों में से एक है जो एक निश्चित तारीख पर मनाया जाता है, यानी हर साल 15 जनवरी को बड़ी धूम धाम के साथ यह त्यौहार देश भर में मनाया जाता है। यह हर साल उसी दिन इसलिए पड़ता है, क्योंकि ये सोलर कैलेंडर को फॉलो करता है। तो, मकर संक्रांति त्यौहार कैसे मनाएं? आइए एक नजर डालते हैं उन मजेदार तरीकों पर जो देश भर के लोग के लिए इस दिन को और भी यादगार बनाती है।
मकर संक्रांति से जुड़े रीति-रिवाज और परंपराएं
1. दही-चूड़ा
उत्तर भारत में तो मकर संक्रांति को दही-चूड़ा के नाम से भी जाना जाता है! कहने का मतलब ये है कि इस दिन लोग जरूर से दही और चूड़ा खाते हैं। यह ट्रेंड खासकर बिहार और झारखंड में चलता है, इसके साथ तिल और गुड़ के लड्डू, चूड़ा के लड्डू, मुरही के लड्डू, तिलकुट, खिचड़ी, अरसा, पिट्ठा भी बनाएं जाते हैं।
2. तिल का उपयोग
कहा जाता है कि हिंदू शास्त्रों के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन जो लोग स्नान से पहले शरीर पर तिल का तेल लगाते हैं और फिर उस पानी में स्नान करते हैं, तो उनके सभी पाप धुल जाते हैं। इसके अलावा, पीने के पानी में तिल मिलाने से और देवताओं व एक-दूसरे के बीच तिल से बनी मिठाइयों को पेश करने से व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर में सुधार होता है। प्रवृत्तियों में सुधार करने में मदद मिलेगी। कहीं न कहीं, यह धारणा सही है क्योंकि आयुर्वेद कहता है कि तिल के बीज नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करता है और सकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन करते हैं।
3. गुड़ की बनी मिठाई एक दूसरे को देना
मकर संक्रांति का त्यौहार हो और गुड़ की बात की जाए यह कैसे संभव है। दरअसल इस समय गन्ने की फसलों की कटाई शुरू हो जाती है, जिससे गुड़ तैयार किया जाता है, इसलिए लगभग हर प्रदेश में गुड़ और तिल दोनों को बहुत महत्व दिया जाता है। इसके अलावा मिठाई बनाने के लिए भी इसी गुड़ का उपयोग किया जाता है और देवता को ‘प्रसादम’ या ‘नैवेद्यम’ के रूप में पेश किया जाता है। इस त्यौहार में किसान एक भरपूर फसल के लिए देवताओं और माँ प्रकृति को धन्यवाद देते हैं और अपने अपने तरीके से अपनी फसल उन्हें भेंट करते हैं।
4. कौवे को मिठाई खिलाना
जी हाँ आपने मकर संक्राति पर बहुत सारे होने वाले रिचुवल के बारे में सुना होगा जिसमें से यह एक है, क्योंकि इस पर्व में दान करने का रिवाज है, इसलिए आटे को घी में अच्छी तरह से भून कर उसके अलग-अलग शेप में मिठाई बनाकर कौवे को खिलाया जाता है। यह परंपरा उत्तराखंड निवासियों में ज्यादा मान्य है, किस जगह कौन सी मिठाइयां और पकवान बनने का ट्रेडिशन है यह इस बात पर निर्भर करता है आप किस प्रदेश में रह रहे हैं।
5. खिचड़ी
उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, बिहार इन सभी जगहों पर मकर संक्रांति वाले दिन घरों में खिचड़ी बनाई जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं त्यौहार में अच्छे-अच्छे पकवान खाने के बजाय घरों में खिचड़ी क्यों बनती है? तो इसका कारण यह है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर राशी का स्वामी शनि होता है, इस वजह से संक्रांति वाले दिन तिल, चावल, गुड, जौ दान कर के खुद खिचड़ी खाने का रिवाज है, इस तरह इस पर्व का एक और नाम खिचड़ी पड़ गया।
6. पतंग उड़ाना
मकर संक्रांति वह दिन है जब सूर्य उत्तर की ओर यानी उत्तरायण की ओर बढ़ना शुरू करता है। और आयुर्वेद के अनुसार, जब सूर्य उत्तरायण में चलता है, तो उसकी किरणों का शरीर पर औषधीय प्रभाव पड़ता है। इसलिए, लंबे सर्दियों के बाद, जब लोग पतंग उड़ाने के लिए खुले में निकलते हैं, तो उन्हें सूर्य के संपर्क में आने का लाभ मिलता है। उनका शरीर सूर्य की किरणों के संपर्क में आता है और सर्दी, खांसी और शुष्क त्वचा जैसे सभी संक्रमणों से मुक्त हो जाता है, जो सर्दियों के कारण हुआ था। इस शुभ दिन को, भारत में पतंग उड़ाने का त्यौहार भी कहा जाता है, आप इस दिन आसमान को रंग बिरंगी खूबसूरत पतंगों से सजा हुआ पाएंगी। यह गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में विशेष रूप से बहुत लोकप्रिय है। पतंग आमतौर पर हल्के कागज और पतली बांस की लकड़ियों से तैयार की जाती है।
7. आग की पूजा का विधान
जैसे कि हमने पहले ही इस बात का जिक्र किया है कि संक्राति के इस त्यौहार को कई और भी अलग अलग नामों से जाना जाता है, जिसमें से एक लोहड़ी भी शामिल है, इसमें मकर संक्राति से एक रात पहले आग की पूजा करके चावल, तिल, मक्का, गुड़ और गन्ना चढ़ाया जाता है और लोग इसकी परिक्रमा करते हैं। इसके बाद सब लोग एक दूसरे को गुड और तिल से बनी मिठाइयां खिलाते हैं।
8. हलवा का आदान-प्रदान
संक्रांति पर, लोग मराठी में ‘हलवा’ के रूप में जानी जाने वाली बहुरंगी मिठाई तैयार करते हैं। इसे बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस चीनी के दानों को चीनी के सिरप के साथ कोट किया जाता है। इस मिठाई को खिलाते समय, लोग मराठी में एक-दूसरे को ‘तिलगुल घ्या’ – आणि गोड़ गोड़ बोला बोलकर स्वागत करते हैं। इस वाक्य को सद्भावना से कहा जाता है जिसका अर्थ यही होता है कि सभी बुरी चीजों को भूलकर, मन मुटाव खत्म कर के सब फिर से पहले की तरह अपने रिश्तों को निभाएं।
9. राजस्थानी फिरनी
राजस्थानी फिरनी का नाम सुनते ही मुँह में पानी आ जाता है, दूध चीनी के साथ तैयार की गई यह डिश राजस्थान के लोगों में प्रसिद्ध है, यहाँ मकर संक्रांति के त्यौहार को संक्रांत के नाम से जाना जाता है।
10. ब्लैक कलर की ड्रेस पहनना
महाराष्ट्र इस दिन काले रंग के कपड़े पहनते हैं। इस दिन महिलाओं के लिए काले रंग की साड़ी पहनना और ‘हल्दी-कुमकुम’ की रस्म करना शुभ माना जाता है। देखा जाए, तो यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें लोगों को काले कपड़े पहनने की अनुमति होती है। अन्यथा, कोई भी अन्य भारतीय हिंदू त्यौहार या उत्सवों में काले रंग का शुभ नहीं माना जाता है। मकर संक्रांति पर काले रंग के कपड़े पहनने का कारण यह है कि यह दिन सर्दियों के दिनों में आता है और काला कपड़ा गर्मी को बनाए रखता है जिससे आपका शरीर गर्म रहता है।
11. दूध पुली
मकर संक्रांति वाले दिन दूध पुली तैयार की जाती और इसके लिए चावल का आटा, नारियल, गुड और दूध की आवश्यकता होती है, इस दिन मिठाई के रूप में रसगुल्ला भी बनाया जाता है, आप समझ ही गए होंगे कि यह रेसिपी कहाँ ज्यादा प्रसिद्ध होगी! जी हाँ बंगाल में इस स्वीट दिश को संक्राति वाले दिन बनाया जाता है।
12. खुले आंगन में चूल्हा जलाना
यह ट्रेडिशन तमिल में प्रसिद हैं मगर इस त्यौहार को पोंगल के नाम से जाना जाता है, यह पर्व 4 दिनों तक चलता है। इस पर्व के दौरान घरों में खुले आंगन में चूल्हा बनाकर मिट्टी के बर्तन में प्रसाद की खीर बनाई जाती है।
13. दान करना
इस त्यौहार की खासियत यह है कि इस दिन सभी जगह दान पुन्य करने की परंपरा है, जैसे बिहार और झारखंड में लोग उड़द की दाल, तिल, चावल और कपड़ों का दान करते हैं। इसके साथ शास्त्रों में लाल फूल, गेंहू, गुड़, मसूर दाल, सुपारी, लाल फल, तांबा, सोना, कपड़ा, चढ़ाने का विधान है। पंजाब और हरियाणा के तरफ अग्नि देवता की पूजा करते हुए उन्हें गुड़, चावल, तिल और मक्के की भेंट की जाती हैं और जरूरतमंदों को ज्यादा से ज्यादा दान पुण्य किया जाता है। इसके अलावा कई जगहों पर 14 की संख्या में चीजों को दान किया जाता है। तो वहीं महाराष्ट्र में हलवा बनाकर बांटा जाता है। इस तरह से अलग-अलग जगहों पर दान करने के विभिन्न तरीके हैं, लेकिन सबका सार एक ही है।
ऊपर बताए गए रिवाजों के अलावा, ऐसी और भी कई एक्टिविटी हैं जो इस दिन की जाती है। महिलाएं दिन की शुरुआत अपने घरों और आंगन में झाड़ू और पोछा लगाने से करती हैं। इसके बाद दरवाजे पर रंगोली बनाई जाती है। इसके बाद, ‘उतने’ नामक एक खास मिश्रण से स्नान करने के बाद, महिलाएं अच्छे से तैयार हो कर पूजा करती हैं और देवी सरस्वती (ज्ञान की देवी) के प्रति अपना सम्मान प्रकट करती हैं। साथ ही, परिवार के दिवंगत पूर्वजों के लिए प्रार्थना की जाती है। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि मकर संक्रांति एक ऐसा दिन है जो ज्ञान, शांति, समृद्धि, सद्भावना और खुशी की शुरुआत होती है। यानी वसंत ऋतु, और शीत ऋतु का एक साथ समापन।
मकर संक्रांति का त्यौहार विशेष रूप से किसान समुदाय के बीच खुशहाली और समृद्धि लाने के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष, अपने बच्चों के साथ त्यौहार के महत्व को शेयर करें ताकि वह त्यौहार को और भी ज्यादा बेहतर तरीके से समझकर उसे एंजॉय कर सकें और हमारे देश के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास के बारे में जान सकें।