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जब एक महिला एक खास उम्र के पड़ाव से गुजरती है, आमतौर पर 50 की उम्र के बाद, तब उसे मेनोपॉज फेस करना पड़ता है। इस दैरान बहुत सारे शारीरिक बदलाव होते हैं, जिसे हर महिला बढ़ती उम्र में महसूस करती है और साथ ही अपनी फर्टिलिटी क्षमता कम होने का अनुभव करती है। महिला की पीरियड साइकिल बंद होना इस बात को दर्शाता है कि वह मेनोपॉज के फेज में आ चुकी हैं। इसमें महिला का हार्मोन लेवल घटने लगता है, जिसके कारण ओवरी अंडे रिलीज करना बंद कर देती हैं और महिला की फर्टिलिटी प्रभावित होती है। क्या यह संभव है कि इस अवस्था के बाद भी कोई महिला गर्भवती हो सकती है? चलिए जानते हैं!
मेनोपॉज उम्र से जुड़ा शारीरिक बदलाव है जो कि महिलाओं में लगभग 45 की उम्र के बाद देखने को मिलता है और जीवन भर बना रहता है। नॉर्मल पीरियड साइकिल के बंद होने के अलावा और भी कई लक्षण धीरे धीरे दिखाई देने लगते हैं, जो महीनों या सालों तक रह सकते हैं जब तक महिलाओं में फर्टिलिटी की क्षमता पूरी तरह खत्म न हो जाए।
मेनोपॉज को तीन स्टेज में विभाजित किया गया है:
पेरी-मेनोपॉज का पता नॉर्मल पीरियड साइकिल के अनियमित होने से चलता है। इसके अलावा मेनोपॉज के शुरुआती लक्षण जैसे मूड स्विंग्स, हड्डियों में दर्द और चेहरे पर बहुत ज्यादा बाल आना इस स्टेज के दौरान दिखने लगता है। इस दौरान, शरीर में धीरे-धीरे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन का स्तर गिरने लगता है और ओवरी भी एग रिलीज करना कम कर देती जिससे आपकी फर्टिलिटी पर असर पड़ता है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन दोनों का स्तर धीरे-धीरे उस पॉइंट तक आ जाता है जहाँ ओवरी अंडे रिलीज करना बंद करती है। यह फेज 1-2 साल तक रहता है जब तक कि महिलाओं को अनियमित पीरियड्स, गर्मी लगना, रात को पसीना आना, मूड स्विंग्स, भूलने की बीमारी, सेक्स ड्राइव में बदलाव, जोड़ों में अकड़न और वजन बढ़ने जैसे मेनोपॉज के लक्षणों का अनुभव नहीं होता है।
माना जाता है कि एक महिला मेनोपॉज तब अनुभव करती है जब उसको अपना आखिरी पीरियड होता है। यह तब होता है जब ओवरी पूरी तरह से अंडे रिलीज करना बंद कर देती हैं। जिसका अर्थ है कि यह एक महिला की फर्टिलिटी क्षमता कम होने का संकेत दे रही है और महिला के प्रजनन जीवन का आखिरी स्टेज है जिसके बाद वो कभी भी माँ नहीं बन पाएगी। यह आमतौर पर 45 से 50 साल की उम्र में होता है।
यह मेनोपॉज के बाद का चरण है जहां शरीर हार्मोन असंतुलन के कारण गर्भावस्था को बनाए रखने में असमर्थ होता है। इस समय तक मेनोपॉज के लक्षणों से राहत मिल जाती है, लेकिन एस्ट्रोजन की कमी से महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस, हृदय रोग और मोटापे जैसे कई बीमारियां घेर लेती है।
पेरी-मेनोपॉजल स्टेज के दौरान हार्मोन में उतार-चढ़ाव के कारण महिलाओं को शरीर के कई बदलावों से गुजरना पड़ता है, जिसका परिणाम अनियमित मासिक धर्म होता है, जिसमें फ्लो में बदलाव, पीरियड साइकिल का समय और दो साइकिल के बीच पीरियड शामिल है। कभी-कभी, पूरी तरह से महीनों तक पीरियड बंद हो सकते हैं। मेनोपॉज के दौरान, बहुत सी महिलाएं सोचती हैं कि क्या ‘मेनोपॉज के समय में गर्भवती होने की कोई संभावना है?’
उस समय के दौरान जब महिला को पीरियड नहीं हो रहे होते हैं, वह तब भी गर्भधारण करने में सक्षम होती है क्योंकि अभी भी ओवरी अंडा रिलीज कर रही है, जिससे स्पर्म होने पर फर्टिलाइजेशन में मदद मिलेगी और वह गर्भवती हो सकती है।
नियमित रूप से पीरियड का न होना अक्सर गर्भावस्था और पेरी-मेनोपॉज फेज के बीच भ्रम पैदा करता है। एक बार मेनोपॉज गर्भावस्था के लक्षण दिखाई देने लगे, तो मेनोपॉज के लक्षणों को मैनेज करने और ऐसी किसी भी प्रेगनेंसी का पता लगाने के लिए डॉक्टर को दिखाना बेहद जरूरी है।
मेनोपॉज के दौरान गर्भवती होने का मतलब है ज्यादा उम्र में गर्भधारण करना, जिससे माँ और उसके बच्चे दोनों के लिए जोखिम बढ़ जाता है। बड़ी उम्र में मेनोपॉज के दौरान प्रेगनेंसी से कुछ आम जोखिम इस प्रकार हो सकते हैं:
पेरी-मेनोपॉजल फेज के दौरान मिसकैरेज होने की संभावना अधिक होती है और यह बच्चे और माँ दोनों के लिए खतरा हो सकता है क्योंकि अंडे खराब क्वालिटी वाले होते हैं, उम्र के साथ शारीरिक परिवर्तन होते हैं जिससे हार्मोन में उतार-चढ़ाव आने लगते हैं जो कि गर्भावस्था में कॉम्प्लिकेशन पैदा करता है। यहाँ तक कि मृत बच्चे के जन्म की भी संभावना हो सकती है।
गर्भधारण के 37वें सप्ताह से पहले बच्चे के जन्म को प्रीमैच्योर जन्म कहा जाता है। अंडे की खराब क्वालिटी की बच्चे का समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन और सही विखास न होने के खतरे को बढ़ाता है।
पेरी-मेनोपॉजल गर्भावस्था के दौरान अक्सर बच्चे में बर्थ डिफेक्ट यानी जन्म दोष होते हैं क्योंकि अंडे पुराने होते हैं और खराब क्वालिटी वाले होते हैं, डाउन सिंड्रोम सबसे आम जन्म दोष में से एक है जो सेल डिवीजन के दौरान अधिक क्रोमोसोम का उत्पादन करने के कारण होता है। इन दिनों, गर्भावस्था के 16वें से 18वें सप्ताह के बीच किए जाने वाले एनॉमली स्कैन द्वारा बच्चे में जन्म दोष का पता लगाना आसान होता है।
बढ़ती उम्र के साथ ऑर्गन सिस्टम में बदलाव के कारण यूट्रस मजबूत कॉन्ट्रैक्शन पैदा करने में असमर्थ होता है, जिससे प्रसव के समय सी-सेक्शन (सिजेरियन सेक्शन) की संभावना अधिक होती है। इसमें एक्टोपिक गर्भावस्था की घटना बढ़ जाती है, जिसमें फीटस गर्भाशय के बाहर इम्प्लांट हो जाता है, जो माँ के लिए खतरा साबित हो सकता है। बढ़ती उम्र आमतौर पर हाई ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक और डायबिटीज जैसी बीमारियों से जुड़ी होती है, जिससे ऐसी उम्र में गर्भावस्था और भी मुश्किल हो जाती है।
यह तब होता है या शायद गर्भावस्था के आखिरी कुछ महीनों के दौरान अक्सर पता चलता है, जब प्लेसेंटा आधे या पूरे सर्विक्स को ढ़क देता है। यह 35 वर्ष की आयु के बाद होने वाली गर्भावस्था में आम है। प्लेसेंटा प्रीविया में माँ को ब्लीडिंग और दर्द महसूस होता है। ऐसी मांओं को आमतौर पर पूरे तरीके से बेड रेस्ट की सलाह दी जाती है।
40 साल की उम्र में भी, ओवुलेशन हो सकता है जब तक मेनोपॉज की स्थिति नहीं आती है। सेक्शुअली एक्टिव महिलाओं के मामले में, प्रेगनेंसी और इससे होने वाले कॉम्प्लिकेशन को रोकने के लिए गर्भनिरोधक सबसे अच्छा उपाय है।
गर्भनिरोध के लिए कई तरीके हैं, जिनमें बेरियर मेथड, हार्मोनल गर्भनिरोधक गोलियां और जन्म नियंत्रण के सर्जिकल मेथड शामिल हैं। गर्भनिरोधक गोलियां हार्मोनल उतार-चढ़ाव को बढ़ा सकती हैं जिससे मेनोपॉज के लक्षणों में वृद्धि हो सकती है। सर्जिकल मेथड में, ट्यूबल लिगेशन सबसे पसंदीदा तरीका है जिसमें फैलोपियन ट्यूब के सिरों को काट दिया जाता है, बांध दिया जाता है या जला दिया जाता है, इस प्रकार गर्भावस्था की संभावना को रोका जाता है। निर्णय लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह करना बहुत जरूरी है।
पेरी-मेनोपॉज फेज के दौरान, ओवरी आखिरी कुछ मैच्योर अंडे रिलीज करती हैं। स्पर्म की उपस्थिति फीटस के फर्टिलाइजेशन और गर्भधारण में मदद करती है। एक साल तक पीरियड न होना मेनोपॉज की निशानी है। एक बार मेनोपॉज हो जाने के बाद, महिला हार्मोन विशेष रूप से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर एक महिला के गर्भधारण करने के लिए काफी कम होता है, इसलिए गर्भावस्था लगभग असंभव होती है।
पेरी-मेनोपॉजल चरण में कुछ महीनों के लिए पीरियड का न होना काफी सामान्य है। हालांकि, इसे अक्सर देर से होनी वाली गर्भावस्था के साथ समझने की गलती की जा सकती है। सबसे पहले की जाने वाली चीजों में से एक यूरीन टेस्ट है, जिससे आप पीरियड मिस होने पर चेक कर सकती हैं कि आप गर्भवती हैं भी या नहीं। इसके अलावा, गर्भावस्था के आम शारीरिक लक्षण जैसे सूजे हुए हाथ पैर, मतली और उल्टी, पेट बढ़ना, पेट पर खिंचाव, जो मेनोपॉज के मामले में नहीं होता है, इस प्रकार मेनोपॉज से गर्भावस्था को अलग करने में मदद करते हैं।
वैसे एक महिला के लिए पेरी-मेनोपॉजल के समय गर्भवती होना संभव है, लेकिन जब एक बार मेनोपॉज की स्टेज पूरी तरह से आ जाती है और आपके पीरियड पूरी तरह से बंद हो जाते हैं, तो गर्भधारण करने की संभावना नहीं होती है। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि पेरी-मेनोपॉजल स्टेज अपने साथ प्रेगनेंसी से जुड़े जोखिम और कॉम्प्लिकेशन लाता है। इसके अलावा शारीरिक बदलाव भी होते हैं। महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और कॉम्प्लिकेशन मुक्त प्रेगनेंसी और लेबर सुनिश्चित करने के लिए पेरी-मेनोपॉजल स्टेज से पहले ही आपको गर्भधारण करने की सलाह दी जाती है।
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