गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस होना: कारण, लक्षण और उपचार

प्रेगनेंसी में जॉन्डिस

जॉन्डिस होने का मुख्य कारण यह है कि, जब हमारे शरीर में  बिलिरुबिन की मात्रा बढ़ जाती तो यह समस्या पैदा होती है। बिलिरुबिन पीले रंग का एक लिक्विड सब्स्टेंस होता है, जो रेड ब्लड सेल्स के ब्रेकडाउन होने के बाद बनता है और यह पदार्थ लीवर में पाया जाता है, ज्यादातर पाचन के दौरान यह आपके शरीर से बाहर निकल जाता है और जब नए सेल्स बनने लगते हैं तो पुराने रेड ब्लड सेल्स नष्ट हो जाते हैं, इस प्रकार हम सबके शरीर में बिलिरुबिन पाया जाता है। यह हमारे शरीर में खाने के अवशोषण और मल त्याग में सहायता करता है। यदि किसी कारण से इसका बैलेंस बिगड़ जाता है या रेड ब्लड सेल्स समय से पहले ही ब्रेकडाउन होने लगते हैं तो बिलिरुबिन का लेवल तेजी से हमारे शरीर में बढ़ने लगता है और फिर शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता और आप देख सकेंगी कि इस दौरान आपकी त्वचा और आँखें पीली पड़ने लगती है और शरीर में बहुत कमजोरी आने लगती हैं, साथ ही पेशाब में भी पीलापन होता है। गर्भावस्था के दौरान आपके लिए यह काफी खतरनाक हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान लीवर की समस्या होने से यह कई बीमारियों का कारण बन सकता है, जिसमें एब्नार्मल लीवर फंक्शन, हिपेटिक एंड बिलियरी सिस्टम डिस्फंक्शन जैसी समस्याएं शामिल हैं, अगर समय रहते इस पर ध्यान न दिए जाए तो मामला गंभीर हो सकता है।

जॉन्डिस (पीलिया) होने के कारण

वैसे कारण जिनका संबंध गर्भावस्था से है:

  • हाइपरमेसिस ग्रेविडरम– यह एक ऐसी कंडीशन है जिसमें होने वाली माँ को बहुत ज्यादा मतली और उल्टी होती है, इलेक्ट्रोलाइट इम्बैलेंस और वजन घटाने लगता है। 
  • इंट्राहेपेटिक कोलेस्टेसिस– इसमें आपको गंभीर रूप से खुजली होती है, क्योंकि पित्त के नॉर्मल फ्लो में बांधा उत्पन्न होती है।
  • प्री-एक्लेमप्सिया– एक ऐसी कंडीशन जिसमें आपका ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ा रहता है और पेशाब में प्रोटीन होता है।
  • हेल्प (HELLP) सिंड्रोम- यह एक लीवर डिसऑर्डर है, जिसे प्री-एक्लेमप्सिया का एक गंभीर रूप माना जाता है और इससे आपकी जान को भी खतरा हो सकता है।
  • एक्यूट फैटी लीवर- लीवर डिसऑर्डर लीवर में अत्यधिक फैट जमने के कारण होता है।

वैसे कारण जिनके संबंध गर्भावस्था से नहीं है:

  • प्राथमिक लीवर डिसऑर्डर:
  1. एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस: एचएवी (हेपेटाइटिस ए वायरस) / एचईवी (हेपेटाइटिस ई वायरस)
  2. ड्रग-इन्डूस्ड हेपेटाइटिस: पीसीएम (पेरासिटामोल) ओवरडोज
  3. क्रोनिक हेपेटाइटिस एचबीवी (हेपेटाइटिस बी वायरस) / एचसीवी (हेपेटाइटिस सी वायरस)
  4. ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस
  5. विल्सन डिजीज 
  6. लीवर सिरोसिस
  7. बड चैरी सिंड्रोम
  • प्री-हेपेटिक (लीवर) कारण: हेमोलिटिक एनीमिया के कारण मलेरिया और सिकल सेल एनीमिया जैसे  कंडीशन पैदा हो सकती है।
  • अतिरिक्त कारण: मोटापा, कुछ ऑटोइम्यून डिजीज, जन्मजात विकृति या कोलेस्ट्रॉल लेवल का बढ़ना। 

एक गर्भवती महिला में जॉन्डिस के संकेत और लक्षण

लीवर संबंधी बीमारी से जुड़े कुछ कॉमन संकेत और लक्षण:

  • आँखों का पीला पड़ना
  • त्वचा में पीलापन
  • गहरे रंग का पेशाब
  • खुजली
  • हल्के रंग का मल त्याग 
  • कमजोरी 
  • भूख में कमी
  • सरदर्द
  • मतली और उल्टी
  • बुखार
  • लीवर के आसपास सूजन होना 
  • पैर, टखने, और पंजों में सूजन

गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस का निदान

गर्भावस्था के दौरान लीवर की बीमारी का निदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है और यह लैब की जाँच पर निर्भर करता है। इसके संकेत और लक्षण ज्यादातर बहुत विशिष्ट नहीं होते हैं और इसमें उल्टी, और पेट में दर्द आदि लक्षण शामिल हो सकते हैं। जॉन्डिस का साइड इफेक्ट्स माँ और बच्चे दोनों पर पड़ सकता है जिसके लिए कई सारे टेस्ट कराने आवश्यकता पड़ सकती है। यहाँ जॉन्डिस का निदान करने के लिए कुछ मुख्य तरीके बताए गए हैं:

  • क्लिनिकल जाँच 

जाँच के दौरान स्किन चेंजेस दिखाई देना जैसे हथेली का लाल पड़ना और त्वचा पर घाव आदि। ये परिवर्तन गर्भवती महिलाओं में एस्ट्रोजन लेवल हाई होने के कारण होते हैं और यह लगभग 60% हेल्दी प्रेगनेंसी में होते हैं।

  • लैब टेस्ट के परिणामों में अब्नोर्मलिटी होना 

लैब टेस्ट जिसमें सीरम में एल्ब्यूमिन (एक प्लाज्मा प्रोटीन) लेवल कम होता है, एएलपी या एल्कलाइन फॉस्फेट का उच्च होना, प्रोथ्रोम्बिन टाइम (पीटी) का उच्च होना समस्या की ओर इशारा करता है।

  • सोनोग्राफी या इमेजिंग 

निदान के लिए अल्ट्रासोनोग्राफी चुनना एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि इसमें रेडिएशन नहीं होता है, जिससे फीटस को कोई खतरा हो। मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह टोमोग्राफी (सीटी) और एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंग्जोपैंक्रीएटोग्राफी (ईआरसीपी) की तुलना में ज्यादा सुरक्षित होता है, जो लेकिन इसमें बच्चे को रेडिएशन से नुकसान होने का खतरा होता है।

गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस से होने वाले जोखिम और कॉम्प्लेक्शन

गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस होने के कारण फीटस पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। यह जोखिम मैटरनल और डिलीवरी संबंधी समस्याओं से जुड़े हो सकते हैं, जिससे बच्चे पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

मैटरनल हेल्थ से जोखिमों में फुलमिनेंट (लीवर में होने वाली गंभीर हानि) या गंभीर हेपेटाइटिस (अगर इलाज न किया जाए), लीवर एन्सेफैलोपैथी (गंभीर रूप से लीवर डैमेज हो जाने के कारण न्यूरोलॉजिकल कॉम्प्लेक्शन), लीवर डैमेज के कारण किडनी की समस्याएं जैसे कि हेपटोरेनल, लीवर सिरोसिस, एब्नार्मल ब्लीडिंग जैसे बवासीर आदि होने की संभावना होती है और कुछ मामलों में लीवर खराब होने तक का खतरा होता है।

डिलीवरी संबंधी कॉम्प्लेक्शन में प्रीमैच्योर डिलीवरी, स्टिलबर्थ, प्लेसेंटा का टूट जाना, डिलीवरी के बाद बवासीर होना और डिलीवरी के दौरान नवजात शिशु में इन्फेक्शन होने का खतरा होता है।

नवजात शिशु के में आईयूजीआर (इंट्रायूटराइन ग्रोथ रेटार्डेशन), जन्मजात हेपेटाइटिस और कर्नलिकटस (जॉन्डिस के कारण नवजात शिशु का ब्रेन डैमेज होना) से लेकर न्यूरोलॉजिकल संबंधी कॉम्प्लेक्शन और गंभीर मामलों में सेरेब्रल पाल्सी जैसी समस्या होने का खतरा होता है।

गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस के लिए उपचार

गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि इसका कारण क्या है और इसके लक्षणों को प्रेगनेंसी के किस स्टेज में देखा गया।

यहाँ जॉन्डिस कुछ सामान्य उपचार बताए गए हैं, जो इसके कारण के आधार पर  शामिल नहीं किए गए हैं,

  • आहार संबंधी उपाय: डाइट में प्रोटीन की कमी होने के अलावा भोजन और दवाएं ठीक से न लेने पर यह आपके लीवर के लिए हानिकारक हो सकता है।
  • सामान्य उपाय: पर्याप्त रूप से आराम करें, हाइड्रेशन, बीपी और पेशाब पर नजर रखना, ऑक्सीजन और ब्लड कॉम्पोनेंट की सप्लीमेंट आदि लेने से आपका इलाज बेहतर तरीके से हो सकेगा।

जॉन्डिस का इलाज करने के नीचे बताई गई कंडीशन पर निर्भर करता है:

  • वायरल हेपेटाइटिस में एंटीवायरल, वैक्सीनेशन और इंटरफेरॉन
  • एंटीथ्रोम्बोटिक्स में बुद्ध चेरी सिंड्रोम या ईएचवीटी 
  • हेमोलिटिक एनीमिया के किसी भी विशिष्ट कारणों का उपचार
  • वैरिकल हैमरेज के लिए सर्जिकल बैंडिंग
  • लीवर सिरोसिस में सर्जरी 
  • लीवर डिजीज की आखिरी स्टेज में लीवर ट्रांसप्लांट करना 

गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस होने से कैसे रोकें

  • स्वस्थ आहार Healthy Diet

आपको केवल अनुशंसित मात्रा में डेयरी खाद्य पदार्थ और मांस जैसे वसायुक्त प्रोडक्ट का सेवन करना चाहिए, क्योंकि इसका अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से यह आपके लिवर को प्रभावित करता है।

  • सही वजन 

हेल्दी वजन बनाए रखें और रक्त में कोलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल करें। 

  • नियमित टीकाकरण

टीकाकरण की मदद से हेपेटाइटिस को रोका जा सकता है। आपके डॉक्टर इसके बारे में आपको सलाह दे सकते हैं। 

  • दवाओं का सेवन सीमित करें

वैसी दवाओं को  लेने से बचें जो लीवर के लिए टॉक्सिक हो सकता हैं। गर्भावस्था के दौरान किसी भी दवाओं का सेवन करने से पहले आपको अपने डॉक्टर से पूछना चाहिए, क्योंकि ये आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकते हैं। 

  • यात्रा करते समय सतर्क रहें

उन जगहों पर जाने से बचें जहाँ मलेरिया जैसी बीमारी होने का खतरा हो। मलेरिया परजीवी रेड ब्लड सेल्स को नष्ट कर देते हैं और इससे आपको जॉन्डिस हो सकता है।

  • जोखिम के कारकों को कम करके

नियमित जांच के लिए जाएं। जैसे ही आप जॉन्डिस के लक्षणों को देखें, तो तुरंत इसका इलाज करवाने के लिए डॉक्टर के पास जाएं ताकि इसे जल्दी ठीक किया जा सके। गर्भावस्था के दौरान होने वाले जॉन्डिस का आसानी से किया जा सकता है अगर इसका निदान समय पर किया जाए तो।

गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस के लिए घरेलू उपचार

आप गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस के उपचार के लिए कुछ घरेलू उपचारों को अजमा सकती हैं। ये मेडिकली रूप से सिद्ध नहीं हैं, लेकिन आप अपना इलाज जारी रखने के साथ यह घरेलू उपाय अजमा सकती हैं इससे आपको जल्दी ठीक होने मदद मिलेगी।

  • दिन में दो से तीन बार मेथी की चाय पीना से जॉन्डिस को ठीक करने में मदद मिलती है।
  • सुबह खाली पेट एक चुटकी नमक और काली मिर्च के साथ एक गिलास टमाटर का जूस पीने से यह जॉन्डिस का इलाज करने के लिए काफी प्रभावी होता है।

गर्भावस्था के दौरान लीवर संबंधी बीमारी आपको एक हल्की बीमारी लग सकती है और इसके लक्षण भी बहुत कम होते हैं, यहाँ तक आपकी एब्नार्मल लिवर फंक्शन रिपोर्ट आई हो तब भी। यह समस्या अपने आप ही ठीक  होती है या फिर यह एक सीरियस कंडीशन का भी रूप ले सकती है और आपके लीवर को प्रभावित कर सकती है। इसकी वजह से आपका लीवर हमेशा के लिए खराब हो सकता है। वायरल हैपेटाइटिस इन्फेक्शन गर्भावस्था के दौरान जॉन्डिस होने का सबसे आम कारण है। यह एक छोटी से लेकर बड़ी बीमारी का रूप ले सकती है। हेपेटाइटिस ई और एचएसवी इन्फेक्शन को छोड़कर बहुत ज्यादा एक्टिव ट्रीटमेंट की आवश्यकता नहीं होती है।

गर्भावस्था के दौरान लीवर डिजीज का शुरुआत में पता लगाने से इसका समय पर इलाज किया जा सकता है, इस मामले को हल करने के लिए आप किसी गाइनकॉलजिस्ट, गैस्ट्रो फिजिशियन, हेपेटोलॉजिस्ट और ट्रांसप्लांट  स्पेशलिस्ट की मदद ले सकती हैं।

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