In this Article
- पोटैशियम क्या है?
- गर्भावस्था के दौरान पोटैशियम की भूमिका
- हर रोज पोटैशियम की कितनी मात्रा लेनी चाहिए?
- गर्भावस्था के दौरान पोटैशियम की नार्मल रेंज क्या होती है?
- गर्भावस्था में हाई पोटैशियम (हाइपरकलेमिया)
- गर्भावस्था के दौरान लो पोटैशियम (हाइपोकलेमिया)
- क्या आप पोटैशियम के सप्लीमेंट ले सकती हैं?
- गर्भवती महिलाओं के लिए पोटैशियम से भरपूर सुरक्षित आहार
- सावधानी के लिए कुछ टिप्स
जब आप प्रेग्नेंट होती हैं, तो कई प्रकार के हॉर्मोनल बदलावों का अनुभव करती हैं। प्रेगनेंसी के दौरान, इन हॉर्मोनल बदलावों के कारण, अक्सर कई तरह की बीमारियों, समस्याओं और तकलीफों से गुजरना पड़ता है। इससे छुटकारा पाने के लिए ऐसा भोजन करना जरूरी है, जिन्हें इन बदलावों में संतुलन बनाए रखने के लिए बनाया गया हो। इसके लिए जिस एक पोषक तत्व को जरूरी माना जाता है, वह है पोटैशियम।
पोटैशियम क्या है?
पोटैशियम एक जरूरी मिनरल है और शरीर को इसकी सख्त जरूरत होती है। यह शरीर के कई जरूरी फंक्शन को सही बनाए रखने का काम करता है। यह शरीर में इलेक्ट्रोलाइट और फ्लूइड्स में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। साथ ही यह नसों से माँसपेशियों तक सिग्नल और इंपल्सेस पहुंचाने का काम करता है, ताकि वे ठीक से अपना कम कर सकें।
गर्भावस्था के दौरान पोटैशियम की भूमिका
जब आप प्रेग्नेंट होती हैं, तो आपका शरीर फैलता है और प्रेगनेंसी के साइड इफेक्ट्स की रोकथाम के लिए एक्सट्रा मिनरल की जरूरत पड़ती है। क्यों, आइए देखते हैं:
- प्रेगनेंसी में फ्लूइड रिटेंशन की समस्या आम होती है। पोटैशियम के सेवन से इस समस्या से निजात पाने में मदद मिलती है।
- प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं में इलेक्ट्रोलाइट का असंतुलन होना एक आम परेशानी है। इससे आपका इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। इससे लड़ने में पोटैशियम आपकी मदद करता है।
- पैरों में ऐंठन और बेचैनी भी प्रेगनेंसी में होने वाली एक आम समस्या है, जो कि मिनरल इंबैलेंस के कारण हो सकती है। इससे बचने के लिए कैल्शियम और मैग्नीशियम के साथ पोटैशियम लेना भी जरूरी है।
हर रोज पोटैशियम की कितनी मात्रा लेनी चाहिए?
इस बात को याद रखना बहुत जरूरी है, कि पोटैशियम को कभी भी ज्यादा मात्रा में नहीं लेना चाहिए। पोटैशियम के ओवरडोज से आपके शरीर को उतना ही खतरा है जितना पोटैशियम के कम लेवल से। पोटैशियम के सप्लीमेंट या पोटैशियम से भरपूर खाना खाने के समय अपने डॉक्टर से मिलकर इस बात को समझें, कि आपका नेचुरल पोटैशियम लेवल क्या है और आपको सप्लीमेंट की कितनी मात्रा लेनी चाहिए। सामान्य गाइडलाइन के अनुसार अगर आप ब्रेस्टफीडिंग नहीं करा रही हैं, तो पोटैशियम की रोज की खुराक 4,700 मिलीग्राम है और अगर आप ब्रेस्टफीडिंग करा रही हैं, तो यह खुराक 5,100 मिलीग्राम है।
गर्भावस्था के दौरान पोटैशियम की नार्मल रेंज क्या होती है?
प्रेगनेंसी में पोटैशियम की नॉर्मल रेंज, इस बात पर निर्भर करती है, कि आप की प्रेगनेंसी कितनी आगे बढ़ चुकी है। उदाहरण के लिए, पहली तिमाही के दौरान नार्मल रेंज 3.6 मिलीमोल्स/ली से 5 मिलीमोल्स/ली तक होती है, दूसरी तिमाही के दौरान नार्मल रेंज 3.3 मिलीमोल्स/ली से 5 मिलीमोल्स/ली और तीसरी तिमाही के दौरान तक 3.3 मिलीमोल्स/ली से 5.1 मिलीमोल्स/ली तक होती है। डॉक्टर प्रेगनेंसी की पूरी अवधि के दौरान 4.4 मिलीमोल्स/ली की रेंज को सुरक्षित मानते हैं और इसे मेंटेन करने की सलाह देते हैं।
गर्भावस्था में हाई पोटैशियम (हाइपरकलेमिया)
प्रेगनेंसी में पोटैशियम का हाई लेवल बहुत ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इससे हाइपरकलेमिया जैसी स्थिति पैदा हो सकती है और कुछ मामलों में इससे किडनी फेलियर या कार्डियक अरेस्ट भी हो सकता है। इसके अलावा इससे खतरनाक और प्राणघातक डिहाइड्रेशन हो सकता है और मेलिटस स्ट्रेन के टाइप वन डायबिटीज के एक प्रकार को पैदा कर सकता है।
इसके क्या कारण होते हैं?
हाइपरकलेमिया होने के कोई कारण हो सकते हैं, इनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
- किसी खास दवा का ओवरडोज
- सप्लीमेंट का ओवरडोज
- पोटैशियम से भरपूर खाने का अधिक मात्रा में सेवन
संकेत और लक्षण
हाइपरकलेमिया के मामले में बहुत जरूरी है कि जल्द से जल्द इसकी पहचान की जाए और इलाज शुरू किया जाए। यहाँ पर कुछ संकेत और लक्षण दिए गए हैं, जिससे आपको इसे पहचानने में मदद मिलेगी:
- अनियमित हार्टबीट
- अत्यधिक थकावट
- सीने में दर्द
- अनियमित पल्मोनरी फंक्शन, जिससे सांस लेने में तकलीफ हो सकती है
- सुन्न पड़ना
- झुनझुनापन
इस स्थिति के और अधिक संकेतों और लक्षणों के लिए अपने डॉक्टर से बात करें।
गर्भावस्था के दौरान हाई पोटैशियम के प्रभाव
प्रेगनेंसी के दौरान, हाई पोटैशियम का प्रभाव बहुत ही खतरनाक हो सकता है। इससे गर्भपात, समय पूर्व डिलीवरी और कुछ मामलों में माँ और बच्चे दोनों की मृत्यु तक हो सकती है।
इसका इलाज कैसे करें?
इस स्थिति का इलाज करने के लिए, जितनी जल्दी हो सके पहचान करना बहुत जरूरी है। अगर इसकी पहचान जल्दी हो जाती है, तो आपको,
- दिल की मांसपेशियों के नुकसान से बचने के लिए कैल्शियम के सप्लीमेंट्स दिए जाएंगे ।
- पोटैशियम के लेवल को कम करने के लिए इंसुलिन, कुछ खास डाइयूरेटिक या सोडियम पोलीस्टीरिन सल्फोनेट दिया जाएगा।
- कुछ गंभीर स्थितियों में किडनी फेलियर की स्थिति में डायलिसिस की जरूरत भी पर सकती है।
आमतौर पर, इसे एक मेडिकल इमरजेंसी माना जाता है और हॉस्पिटल में चौबीस घंटे की देखभाल के साथ माँ का इलाज किया जाना चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान लो पोटैशियम (हाइपोकलेमिया)
हाइपोकलेमिया एक और चिंताजनक स्थिति है, जिसमें आपका पोटैशियम लेवल बहुत ज्यादा नीचे गिर जाता है। यह भी शरीर के लिए उतना ही नुकसानदायक होता है और पूरी सावधानी के साथ इसका इलाज किया जाना चाहिए। पोटैशियम की कमी से मांसपेशियों में ऐंठन, डिलीवरी में परेशानी और आपकी प्रेगनेंसी में कई अनचाही दिक्कतें भी आ सकती हैं।
इसके क्या कारण होते हैं?
प्रेगनेंसी के दौरान लो पोटैशियम के कुछ कारण नीचे दिए गए हैं:
- असंतुलित भोजन
- लगातार उल्टियां, जिससे शरीर में मिनरल का असंतुलन हो सकता है।
- डायरिया, जिससे शरीर में मिनरल का असंतुलन हो सकता है।
- फ्लुइड रिटेंशन
पोटैशियम की कमी के संकेत
गर्भावस्था के दौरान पोटेशियम की कमी की पहचान करना और इलाज करना बहुत जरूरी है। यहाँ पर गर्भवती महिलाओं में लो पोटैशियम के कुछ लक्षण दिए गए हैं:
- मांसपेशियों में ऐंठन
- कमजोरी और थकान
- अत्यधिक कब्ज
- चक्कर आना या सिर में हल्कापन
- डिप्रेशन
- अनियमित हार्टबीट
- झुनझुनाहट
- सुन्न होना
- बहुत अधिक रूखी त्वचा
- लो ब्लड प्रेशर
गर्भावस्था के दौरान लो पोटैशियम के प्रभाव
लो पोटैशियम का प्रभाव भी उतना ही खतरनाक होता है। हालांकि, हाई पोटैशियम लेवल बहुत ज्यादा खतरनाक होता है, जिससे मौत भी हो सकती है। कुछ अत्यंत दुर्लभ मामलों में पोटैशियम के बहुत अधिक गिर जाने की स्थिति में थ्योरी के अनुसार हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं, पर इसकी संभावना लगभग न के बराबर है। ऐसे में एडिमा जैसी स्थिति एक आम बात है, जिसमें प्रेगनेंसी के दौरान पूरे शरीर में अनियमित सूजन आ जाती है। वॉटर रिटेंशन के कारण आपको यूटीआई के एक प्रकार का सामना करना पड़ सकता है। इसके कारण समय पूर्व डिलीवरी भी हो सकती है। अगर आपको लगता है, कि आपको ऐसे लक्षण हैं, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए।
इसका इलाज कैसे करें?
गर्भावस्था के दौरान लो पोटैशियम को ठीक करना बहुत ज्यादा आसान है। पोटैशियम के लेवल को बढ़ाने के लिए यहाँ पर कुछ तरीके दिए गए हैं:
- एक संतुलित खाना खाएं जिसमें आलू और एवोकाडो जैसी पोटैशियम से भरपूर चीजें हों।
- पोटैशियम सप्लीमेंट की रेकमेंडेड खुराक लें।
- कुछ गंभीर मामलों में डॉक्टर आप की नसों के द्वारा इलेक्ट्रोलाइट की मदद से पोटैशियम के लेवल को ठीक करेंगे।
क्या आप पोटैशियम के सप्लीमेंट ले सकती हैं?
ऐसी स्थिति में, प्रेगनेंसी के दौरान, पोटैशियम की गोलियों के सेवन का सवाल आपके मन में जरूर आया होगा। इसका जवाब है हाँ, आप इसके सप्लीमेंट ले सकती हैं, लेकिन इसकी खुराक वही होनी चाहिए जो आपके डॉक्टर ने बताई है और यह सप्लीमेंट शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर से बात जरूर करें। पोटैशियम से भरपूर भोजन का सेवन सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि इसमें ओवरडोज की संभावना बहुत कम होती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए पोटैशियम से भरपूर सुरक्षित आहार
नीचे कुछ ऐसे भोजन दिए गए हैं, जो प्राकृतिक रूप से पोटैशियम से भरपूर हैं और प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए सुरक्षित माने जाते हैं:
1. एवोकाडो
एवोकाडो एक जाना माना सुपर फूड है, जिसे प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए शानदार माना जाता है, क्योंकि यह शरीर के लिए जरूरी विटामिन और मिनरल के साथ-साथ पोटैशियम का एक संतुलित स्रोत होता है। हर दिन एक एवोकाडो खाना बहुत ही हेल्दी माना जाता है।
2. आलू
विश्व के सबसे स्वादिष्ट इंग्रेडिएंट्स में से एक, जो कि हर जगह उपलब्ध है। आलू को एक सुपर फूड माना जाता है, क्योंकि यह पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे मिनरल से भरपूर होता है। यह आयरन, विटामिन ‘बी6’ और विटामिन ‘सी’ का भी एक अच्छा स्रोत है।
3. शकरकंद
साधारण आलू की तुलना में शकरकंद में प्रोटीन बहुत ज्यादा पाया जाता है और यह फाइबर, आयरन, विटामिन और मिनरल के अच्छे स्रोत के साथ-साथ पोटैशियम का भी एक बहुत अच्छा स्रोत है। इसे सबसे हेल्दी रूट वेजिटेबल में से एक माना जाता है।
4. बीन्स
चाहे राजमा हो या पिंटो बींस या सेम, अगर सही मात्रा में ली जाए, तो आमतौर पर बीन्स आपके शरीर के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं। 500 मिलीग्राम की बींस की सिर्फ एक कटोरी आपके पोटैशियम लेवल को सही करने के लिए काफी है। आप चाहें तो इन्हें सलाद में डालें या दूसरी सब्जियों में डालें या इसे स्नैक्स के तौर पर ऐसे ही खाएं।
5. केला
यह एक ऐसा फल है, जो पूरी दुनिया में पाया जाता है। केला न केवल प्राकृतिक लेक्सेटिव के रूप में काम करके आपको कब्ज से राहत दिलाता है, बल्कि, यह फाइबर और पोटैशियम से भरपूर होता है। आपके पोटैशियम के लेवल को संतुलित रखने के लिए हर दिन एक केले का सेवन काफी है।
सावधानी के लिए कुछ टिप्स
यहाँ पर कुछ टिप्स दिए गए हैं, जिन्हें अपने भोजन में पोटैशियम को शामिल करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए:
- अपने डॉक्टर से बात किए बिना कभी भी सप्लीमेंट न लें। पोटैशियम के लेवल में असंतुलन बहुत ज्यादा खतरनाक हो सकता है।
- सप्लीमेंट के खुराक की जो सलाह दी गई है, उसे ज्यादा ना बढ़ाएं।
- डाइट प्लान बनाते समय केवल पोटैशियम पर केंद्रित न रहें, इससे आपके न्यूट्रिशन चार्ट के दूसरे क्षेत्रों में असंतुलन पैदा हो सकता है।
आपको इस बात की सलाह दी जाती है, कि अपने डायट में पोटैशियम को शामिल करते समय, अपने डॉक्टर से बात जरूर करें और अपने न्यूट्रिशनिस्ट की सहायता से मील प्लान बनाएं। याद रखें, एक संतुलित भोजन किसी एक मिनरल के ऊपर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं रहता है। प्रेगनेंसी के दौरान, अपना डायट प्लान कैसे बनाएं, इसके बारे में ज्यादा जानकारी के लिए अपने न्यूट्रिशनिस्ट से बात करें।
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