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तीसरी तिमाही के दौरान, आपका बच्चा गर्भ में तेजी से बढ़ने लगता है, जिससे आपको अधिक वजन महसूस होता है और इस दौरान आपको बहुत ज्यादा थकान होने लगती है, क्योंकि आपका बच्चा पहले से ज्यादा सक्रिय होने लगता है, अपनी आँखें खोलता और बंद करता है और आपके गर्भ में घूमना शुरू कर देता है। जिससे आपको कई बार सांस लेने में तकलीफ भी महसूस हो सकती है, लेकिन एक हेल्दी प्रेगनेंसी में यह होना बिल्कुल सामान्य बात है।
नौवें महीने में डिलीवरी की डेट पास आ रही होती है, तो उससे जुड़े कई सारे काम और तैयारियां करने का समय होता है। बच्चे पर नजर रखने और यह तय करने के लिए कि किसी भी तरह की मेडिकल इमरजेंसी की जरूरत तो नहीं है, यह जानने के लिए अभी भी आपको बहुत सारे टेस्ट करवाने होंगे। यही उम्मीद की जाती है कि सब सही चेक किया जाएगा और आपकी नॉर्मल डिलीवरी होगी।
कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट उन टेस्ट्स में से एक है जिनसे आपको गुजरना होगा। कुछ अन्य टेस्ट में भ्रूण के दिल की धड़कन की जांच करना, ब्लड प्रेशर की जांच, गर्भाशय की जांच, यूरिन टेस्ट और वजन पर नजर रखना शामिल है। वास्तव में, यह केवल आपके डॉक्टर की सलाह पर ही तय होता है कि आपको कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट करवाना चाहिए क्योंकि बाकी कुछ अन्य टेस्ट इसकी तुलना में कुछ ज्यादा जोखिम वाले माने जाते हैं।
कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट, ऑक्सीटोसिन चैलेंज टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है, कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट आपके बच्चे के दिल की धड़कन को मापने के लिए किया जाता है,इसके साथ ही टेस्ट से यह भी देखा जाता है कि डिलीवरी के समय संकुचन के दौरान आपका बच्चा किस प्रकार से रिएक्ट करेगा या कितना अच्छा करेगा।
जब आपके शरीर में कॉन्ट्रैक्शन हो रहा होता है, तो बच्चे को प्लेसेंटा से पहुंचने वाली ऑक्सीजन और खून की आपूर्ति कम हो जाती है। जबकि अधिकांश बच्चों को इससे कोई समस्या नहीं होती है, तो कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो तनाव का सामना नहीं कर पाते हैं, जिसका अर्थ होता है कि वह डिलीवरी के समय इतना अच्छा सपोर्ट नहीं कर पाएंगे। अगर संकुचन के बाद आपके बच्चे की दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है, तो चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन अगर वह धीमी हो जाती है, तो यह एक संकेत है कि उसे नाल (प्लेसेंटा) से पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल रही है, और इससे उसे परेशानी हो सकती है।
इस टेस्ट के दौरान, अगर आपको कॉन्ट्रैक्शन नहीं हो रहे हैं, तो ऑक्सीटोसिन हार्मोन के जरिए गर्भाशय के कॉन्ट्रैक्शन को शुरू किया जा सकता है। एक्सटर्नल फीटस मॉनिटर से बच्चे की हृदय गति में होने वाले बदलावों को देखा जा सकता है, जो टेस्ट में ही शामिल होता है।
फीटल कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट से यह देखा जाता है कि क्या आपसे और बच्चे से जुड़ा प्लेसेंटा आपके बच्चे को सहारा देने के लिए पर्याप्त स्वस्थ है और संकुचन के दौरान आपके बच्चे को इससे पर्याप्त ऑक्सीजन मिल रही है या नहीं। इसके अलावा यह टेस्ट करवाने का एक अन्य कारण यह भी होता है कि आपके नॉन स्ट्रेस टेस्ट या बायोफिजिकल प्रोफाइल का रिजल्ट असामान्य भी हो सकता है।
डॉक्टर के क्लीनिक में बिना किसी तैयारी के पहुंचना एक अच्छा आइडिया नहीं है क्योंकि सबसे सटीक परिणाम पाने के लिए आपको कुछ शर्तों को पूरा करने की आवश्यकता होती है। इस टेस्ट से गुजरने से पहले आपको ये कदम उठाने होंगे:
ऑक्सीटोसिन कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट एक प्रसूति रोग विशेषज्ञ और एक प्रोफेशनली ट्रेंड नर्स और लैब तकनीशियन के द्वारा ही किया जाना चाहिए। यहां इस प्रक्रिया को चरण दर चरण स्पष्ट किया गया है कि यह कैसे सबसे अच्छे तरीके से किया जा सकता है:
यह टेस्ट आपको बहुत ही ज्यादा तकलीफ और दर्द देने वाला एक कड़वा अनुभव बन सकता है। यहां कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है जिससे आपको यह महसूस होगा कि टेस्ट अभी भी चल रहा है:
अधिकतर मेडिकल की प्रक्रिया की तरह ही आपको इस टेस्ट में भी कुछ खतरों का सामना करना पड़ सकता है, इसके साथ ही यहां ध्यान देने वाली कुछ बातें इस प्रकार हैं:
कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट, करवाने की सलाह उन महिलाओं को नहीं दी जाती हैं जिनका प्लेसेंटा प्रीविया है (जहां प्लेसेंटा बर्थ केनाल को रोक देती है) या अगर आपको पहले से ही प्रीटर्म लेबर में जाने की सबसे ज्यादा संभावना है। अगर आपको वर्तमान में डिलीवरी डेट से पहले ही झिल्ली के फटने का खतरा है या आपकी पिछली प्रेगनेंसी के दौरान एक सिजेरियन सेक्शन हो चुका है, तो ऐसे मामलों में कोई भी बड़ा खतरा लेने की जगह इसके विपरीत निम्नलिखित दी गई सिफारिश को अपनाना चाहिए:
प्रेगनेंसी के नौवें महीने या 38वें सप्ताह में पहुंचने के बाद सप्ताह में कम से कम एक बार भ्रूण का नॉन स्ट्रेस टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट उन्हीं दो बेल्टों का उपयोग करके किया जाता है जिनका प्रयोग कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट के दौरान किया जाता है। इसके अलावा इसमें संकुचन करने के लिए किसी भी प्रकार के तनाव का उपयोग नहीं किया जाता है।
बीस से तीस मिनट के समय में आपके संकुचन और बच्चे की दिल की धड़कन पर नजर रखी जाती है। इसके अलावा आपके बच्चे के हृदय संबंधी रिएक्शन को भी मापा जा सकता है। अगर आपके बच्चे की धड़कन कम से कम पंद्रह सेकंड तक तेज रहती है, तो इसे सामान्य माना जाता है।
आमतौर पर जांच दो बार होनी चाहिए और दोनों में कम से कम बीस मिनट का अंतर होना चाहिए। कभी-कभी बच्चे में कोई हलचल नहीं होने या दिल की धड़कन की गति धीमी होने पर, इसका सीधा मतलब यह होता है कि बच्चा सो रहा है। इस तरह के मामलों में, नर्स बच्चे को जगाने के लिए बजर विधि का उपयोग कर सकती है।
इस अल्ट्रासाउंड में हाई फ्रीक्वेंसी की ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है जिसे मानव कानों के लिए सुन पाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में एक गूँज को आपके बच्चे के वीडियो या तस्वीरों के रूप में दिखाया जाता है। अल्ट्रासाउंड के समय बच्चे के जन्म दोष और असामान्यताओं को भी दिखाया जाता है, यही वजह है कि इन समस्याओं को पहचानने के लिए भ्रूण संबंधी अल्ट्रासाउंड को एक बेहतर तरीका माना जाता है, साथ ही इससे यह पता लगाया जाता है कि बच्चा किस कारण परेशान हो रहा है।
भ्रूण का अल्ट्रासाउंड करने में बहुत कम खतरा होता है और इससे बच्चे के स्वास्थ्य की सही की स्थिति के बारे में भी जानकारी मिल जाती है, इसलिए इसको करवाने के लिए बहुत ज्यादा सिफारिश की जाती है। यहां बच्चे की स्थिति की पुष्टि करने के लिए उसके सिर, रीढ़, दिल और शरीर के अन्य अंगों की जांच की जाती है। आमतौर पर तीन प्रकार के भ्रूण अल्ट्रासाउंड होते हैं जिनमें आप चुनाव कर सकते हैं। इनमें स्टैंर्डड अल्ट्रासाउंड भी शामिल होता है, जो बच्चे की टू डायमेंशनल इमेज को कैप्चर करने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है, जबकि डॉपलर अल्ट्रासाउंड, आपके बच्चे और प्लेसेंटा के साथ-साथ बच्चे के दिल के बीच में होने वाले ब्लड फ्लो को भी दिखाता है, और 3डी अल्ट्रासाउंड, जो उसकी थ्री डायमेंशनल इमेज दिखाता है।
अगर आपके किसी भी तरह के संकुचन के बाद आपके बच्चे की दिल की धड़कन कम होने लगती है, तो यह एक अच्छा संकेत नहीं है। इसके बाद इस बात की संभावना ज्यादा होती है कि डॉक्टर आगे और टेस्ट करवाने की सिफारिश करेंगे ताकि यह तय हो सके कि बच्चे को कोई वास्तविक समस्या है या नहीं। हालांकि यह जांच एक हफ्ते तक आपके बच्चे की हेल्थ अपडेट्स को दिखा सकती है, लेकिन कभी-कभी समस्या न होने पर भी इससे गलत परिणाम भी मिल सकता है। लगभग तीस प्रतिशत महिलाओं में ही यह टेस्ट किया जाता है।
आपकी किसी भी तरह की समस्या को दूर करने के लिए डॉक्टर द्वारा बताई गई कोई भी डायग्नोसिस की तुलना में कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट समस्या को दूर करने का एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है। बहुत सी महिलाएं हैं, जिनके स्ट्रेस टेस्ट के परिणाम नेगेटिव आते हैं, लेकिन उन्होंने पूरी तरह से स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया है।
यहाँ दो संभावित कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस और उसके परिणामों के बारे में बताया गया है:
अगर आपके बच्चे का टेस्ट रिजल्ट असामान्य आता है, तो यह पॉजिटिव कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट कहा जाएगा। इसमें आपके एक संकुचन के बाद, बच्चे के दिल की धड़कन कम हो जाएगी, और अगर आधे से ज्यादा टेस्ट रिजल्ट में भी हार्ट रेट वैसा ही कम बना रहता है, तो यह इस बात का संकेत है कि बच्चे को नॉर्मल डिलीवरी के दौरान कोई समस्या हो सकती है।
अगर आपके बच्चे का टेस्ट रिजल्ट सामान्य है, तो इसे ‘नकारात्मक’ कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट रिजल्ट कहा जाएगा। कई बार ऐसा भी हो सकता है कि बच्चे की दिल की धड़कन कम हो रही हो, लेकिन लंबे समय तक वो स्थिति बनी नहीं रहती है, तो इसमें कोई बड़ी समस्या वाली बात नहीं है। क्योंकि अगर बच्चा दस मिनट की अवधि में तीन संकुचनों का सामना कर सकता है और हार्ट रेट में कोई ज्यादा गिरावट नहीं आती है, तो आपका बच्चा आराम से उस दबाव और तनाव का सामना करने में सक्षम है, जो सामान्य डिलीवरी के कारण होने की संभावना होती है।
कुछ चीजें होती हैं जो आपके कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस के परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं और यह तय करती हैं कि डॉक्टर आपको इससे बचने की कौन सी सलाह देते हैं। वे इस प्रकार हैं:
हमेशा याद रखें कि जब आपको स्ट्रेस टेस्ट करवाने के लिए कहा जाता है और इसका रिजल्ट भी नेगेटिव आता है, तब भी आप एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। क्योंकि यह टेस्ट सौ फीसदी सटीक नहीं होते हैं।
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