गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट: उद्देश्य, प्रक्रिया और जोखिम

तीसरी तिमाही के दौरान, आपका बच्चा गर्भ में तेजी से बढ़ने लगता है, जिससे आपको अधिक वजन महसूस होता है और इस दौरान आपको बहुत ज्यादा थकान होने लगती है, क्योंकि आपका बच्चा पहले से ज्यादा सक्रिय होने लगता है, अपनी आँखें खोलता और बंद करता है और आपके गर्भ में घूमना शुरू कर देता है। जिससे आपको कई बार सांस लेने में तकलीफ भी महसूस हो सकती है, लेकिन एक हेल्दी प्रेगनेंसी में यह होना बिल्कुल सामान्य बात है। 

नौवें महीने में डिलीवरी की डेट पास आ रही होती है, तो उससे जुड़े कई सारे काम और तैयारियां करने का समय होता है। बच्चे पर नजर रखने और यह तय करने के लिए कि किसी भी तरह की मेडिकल इमरजेंसी की जरूरत तो नहीं है, यह जानने के लिए अभी भी आपको बहुत सारे टेस्ट करवाने होंगे। यही उम्मीद की जाती है कि सब सही चेक किया जाएगा और आपकी नॉर्मल डिलीवरी होगी।

कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट उन टेस्ट्स में से एक है जिनसे आपको गुजरना होगा। कुछ अन्य टेस्ट में भ्रूण के दिल की धड़कन की जांच करना, ब्लड प्रेशर की जांच, गर्भाशय की जांच, यूरिन टेस्ट और वजन पर नजर रखना शामिल है। वास्तव में, यह केवल आपके डॉक्टर की सलाह पर ही तय होता है कि आपको कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट करवाना चाहिए क्योंकि बाकी कुछ अन्य टेस्ट इसकी तुलना में कुछ ज्यादा जोखिम वाले माने जाते हैं।

कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट क्या होता है?

कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट, ऑक्सीटोसिन चैलेंज टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है, कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट आपके बच्चे के दिल की धड़कन को मापने के लिए किया जाता है,इसके साथ ही टेस्ट से यह भी देखा जाता है कि डिलीवरी के समय संकुचन के दौरान आपका बच्चा किस प्रकार से रिएक्ट करेगा या कितना अच्छा करेगा।

जब आपके शरीर में कॉन्ट्रैक्शन हो रहा होता है, तो बच्चे को प्लेसेंटा से पहुंचने वाली ऑक्सीजन और खून की आपूर्ति कम हो जाती है। जबकि अधिकांश बच्चों को इससे कोई समस्या नहीं होती है, तो कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो तनाव का सामना नहीं कर पाते हैं, जिसका अर्थ होता है कि वह डिलीवरी के समय इतना अच्छा सपोर्ट नहीं कर पाएंगे। अगर संकुचन के बाद आपके बच्चे की दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है, तो चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन अगर वह धीमी हो जाती है, तो यह एक संकेत है कि उसे नाल (प्लेसेंटा) से पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल रही है, और इससे उसे परेशानी हो सकती है। 

इस टेस्ट के दौरान, अगर आपको कॉन्ट्रैक्शन नहीं हो रहे हैं, तो ऑक्सीटोसिन हार्मोन के जरिए गर्भाशय के कॉन्ट्रैक्शन को शुरू किया जा सकता है। एक्सटर्नल फीटस मॉनिटर से बच्चे की हृदय गति में होने वाले बदलावों को देखा जा सकता है, जो टेस्ट में ही शामिल होता है।

फीटल कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट क्यों किया जाता है?

फीटल कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट से यह देखा जाता है कि क्या आपसे और बच्चे से जुड़ा प्लेसेंटा आपके बच्चे को सहारा देने के लिए पर्याप्त स्वस्थ है और संकुचन के दौरान आपके बच्चे को इससे पर्याप्त ऑक्सीजन मिल रही है या नहीं। इसके अलावा यह टेस्ट करवाने का एक अन्य कारण यह भी होता है कि आपके नॉन स्ट्रेस टेस्ट या बायोफिजिकल प्रोफाइल का रिजल्ट असामान्य भी हो सकता है।

इस टेस्ट की तैयारी कैसे करें

डॉक्टर के क्लीनिक में बिना किसी तैयारी के पहुंचना एक अच्छा आइडिया नहीं है क्योंकि सबसे सटीक परिणाम पाने के लिए आपको कुछ शर्तों को पूरा करने की आवश्यकता होती है। इस टेस्ट से गुजरने से पहले आपको ये कदम उठाने होंगे:

  • टेस्ट करवाने से, कम से कम चार घंटे पहले तक कुछ भी न खाना या पीना एक अच्छा ऑप्शन रहेगा। आठ घंटे बेहतर रहेंगे।
  • डॉक्टरों के मुताबिक, स्ट्रेस टेस्ट करवाने से पहले अपने ब्लैडर को खाली कर देना चाहिए।
  • धूम्रपान आपके बच्चे के लिए बहुत खतरनाक होता है और गर्भवती महिलाओं को कभी भी इसकी आदत नहीं डालनी चाहिए। हालांकि, अगर आप अपनी प्रेगनेंसी के दौरान धूम्रपान बंद नहीं कर पाती हैं, तो आपको यह सलाह दी जाती है कि आप टेस्ट करवाने से लगभग दो घंटे पहले स्मोकिंग करने से बचें।
  • जांच प्रक्रिया के दौरान होने वाले खतरों के बारे में अपने डॉक्टर से बात करना हमेशा अच्छा होता है। इसके अलावा आप उनसे अपने सभी संदेहों को भी टेस्ट होने से पहले ही पूछ लें और यह तय करें कि क्या डॉक्टर आपको ठीक से समझाते हैं कि टेस्ट की आवश्यकता क्यों है।
  • आपको टेस्ट से होने वाले खतरों को समझते हुए और जांच करने की सहमति देते हुए ही कंसेंट फॉर्म पर साइन करना चाहिए।

ऑक्सीटोसिन कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट की प्रक्रिया

ऑक्सीटोसिन कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट एक प्रसूति रोग विशेषज्ञ और एक प्रोफेशनली ट्रेंड नर्स और लैब तकनीशियन के द्वारा ही किया जाना चाहिए। यहां इस प्रक्रिया को चरण दर चरण स्पष्ट किया गया है कि यह  कैसे सबसे अच्छे तरीके से किया जा सकता है:

  • आपको अपनी पीठ को ऊपर उठाकर और बाईं ओर थोड़ा झुकाकर लेटने के लिए कहा जाएगा ताकि आपके पेट में मौजूद रक्त वाहिकाओं पर कोई दबाव न पड़े।
  • अब दो सेंसर वाली बेल्ट, प्रेशर नापने की मशीन और अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर को आपके पेट के चारों ओर रखा जाएगा। कुछ मामलों में, पेट पर जेल लगाकर अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर की मदद से ध्वनि तरंगों को सिर से सीधे स्किन टिश्यू तक पहुंचाया जाता है। अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर आपके बच्चे के दिल की धड़कन पर नजर बनाए रखता है, जबकि प्रेशर नापने की मशीन आपके संकुचन को मापती है।

  • इस प्रक्रिया के दौरान दर्ज किए गए डेटा को दो अलग-अलग लाइनों से समझा जा सकता है जो एक ग्राफ पर दिखाई देती हैं।
  • आपको ऑक्सीटोसिन हार्मोन देने के लिए आईवी का उपयोग किया जाएगा। सबसे पहले इसकी एक हल्की खुराक दी जाएगी, लेकिन इस डोज को धीरे धीरे तब तक बढ़ाया जाएगा जब तक कि आप दस मिनट के समय में तीन बार संकुचन न कर लें। इनमें से हर एक संकुचन 40 सेकंड से 60 सेकंड के बीच होना चाहिए और यह लेबर की पहली स्टेज में महसूस किए गए संकुचन जितना मजबूत होना चाहिए।
  • लगभग दस मिनट तक आपके संकुचन और आपके बच्चे के हार्ट रेट की निगरानी करने, आपके ब्लड प्रेशर और अन्य जरूरी चीजों को एक साथ मॉनिटर किया जाता है। इसके अलावा डॉक्टर आपको अपने निपल्स को उत्तेजित करने की सलाह दे सकते हैं जिससे शरीर में नेचुरली ऑक्सीटोसिन रिलीज होने लगे।
  • स्ट्रेस टेस्ट के बाद, आपको तब तक ऑब्जर्व  किया जाता है, जब तक शरीर में संकुचन बंद नहीं हो जाता है या फिर शरीर स्ट्रेस टेस्ट से पहले वाली अवस्था में वापस नहीं आ जाता है। इस टेस्ट को पूरा होने में लगभग दो घंटे तक का समय लग सकता है।

क्या आपको इस टेस्ट के दौरान कोई बेचैनी या दर्द महसूस होता है?

यह टेस्ट आपको बहुत ही ज्यादा तकलीफ और दर्द देने वाला एक कड़वा अनुभव बन सकता है। यहां कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है जिससे आपको यह महसूस होगा कि टेस्ट अभी भी चल रहा है:

  • आपके पेट के आस-पास लगाई गई बेल्ट कुछ समय बाद आपको परेशान कर सकती है।
  • इसमें आपको पीरियड्स के समय होने वाली ऐंठन के समान ही दर्द महसूस होगा, हालांकि इस दर्द को ज्यादा दर्दनाक नहीं माना जाता है।
  • यह पूरा टेस्ट आपको कई बार असहज महसूस करवा सकता है।

क्या इस टेस्ट से कोई खतरे भी जुड़े हुए हैं?

अधिकतर मेडिकल की प्रक्रिया की तरह ही आपको इस टेस्ट में भी कुछ खतरों का सामना करना पड़ सकता है, इसके साथ ही यहां ध्यान देने वाली कुछ बातें इस प्रकार हैं:

  • उदाहरण के लिए, अगर आपका यूट्रस हाइपर स्टिम्यूलेट होकर और ज्यादा मजबूती के साथ लगातार संकुचन करता है, तो इसकी वजह से बच्चे को मिलने वाला रक्त प्रवाह पूरी तरह से बंद हो सकता है।
  • अगर आपने बहुत ज्यादा मात्रा में पिटोसिन का उपयोग किया है, तो यह टेस्ट प्रीटर्म लेबर को स्टिम्यूलेट कर सकता है, हालांकि यह प्रत्येक महिला में अलग तरह से हो सकता है क्योंकि महिलाओं में सभी दवाओं के प्रति संवेदनशीलता का स्तर समान नहीं होता है।
  • अधिकतर डॉक्टरों को निप्पल से उत्तेजना के जरिए ऑक्सीटोसिन हार्मोन को रिलीज करवाना पसंद नहीं होता है, क्योंकि यह एक संकुचन प्रक्रिया है, जो अनियंत्रित संकुचन का कारण भी बन सकता है जिसके फलस्वरूप समय से पहले डिलीवरी हो सकती है।

कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट की सिफारिश कब नहीं की जाती है?

कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट, करवाने की सलाह उन महिलाओं को नहीं दी जाती हैं जिनका प्लेसेंटा प्रीविया है (जहां प्लेसेंटा बर्थ केनाल को रोक देती है) या अगर आपको पहले से ही प्रीटर्म लेबर में जाने की सबसे ज्यादा संभावना है। अगर आपको वर्तमान में डिलीवरी डेट से पहले ही झिल्ली के फटने का खतरा है या आपकी पिछली प्रेगनेंसी के दौरान एक सिजेरियन सेक्शन हो चुका है, तो ऐसे मामलों में कोई भी बड़ा खतरा लेने की जगह इसके विपरीत निम्नलिखित दी गई सिफारिश को अपनाना चाहिए:

1. नॉन स्ट्रेस टेस्ट

प्रेगनेंसी के नौवें महीने या 38वें सप्ताह में पहुंचने के बाद सप्ताह में कम से कम एक बार भ्रूण का नॉन स्ट्रेस टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट उन्हीं दो बेल्टों का उपयोग करके किया जाता है जिनका प्रयोग कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट के दौरान किया जाता है। इसके अलावा इसमें संकुचन करने के लिए किसी भी प्रकार के तनाव का उपयोग नहीं किया जाता है।

बीस से तीस मिनट के समय में आपके संकुचन और बच्चे की दिल की धड़कन पर नजर रखी जाती है। इसके अलावा आपके बच्चे के हृदय संबंधी रिएक्शन को भी मापा जा सकता है। अगर आपके बच्चे की धड़कन कम से कम पंद्रह सेकंड तक तेज रहती है, तो इसे सामान्य माना जाता है।

आमतौर पर जांच दो बार होनी चाहिए और दोनों में कम से कम बीस मिनट का अंतर होना चाहिए। कभी-कभी बच्चे में कोई हलचल नहीं होने या दिल की धड़कन की गति धीमी होने पर, इसका सीधा मतलब यह होता है कि बच्चा सो रहा है। इस तरह के मामलों में, नर्स बच्चे को जगाने के लिए बजर विधि का उपयोग कर सकती है।

2. फीटल अल्ट्रासाउंड

इस अल्ट्रासाउंड में हाई फ्रीक्वेंसी की ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है जिसे मानव कानों के लिए सुन पाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में एक गूँज को आपके बच्चे के वीडियो या तस्वीरों के रूप में दिखाया जाता है। अल्ट्रासाउंड के समय बच्चे के जन्म दोष और असामान्यताओं को भी दिखाया जाता है, यही वजह है कि इन समस्याओं को पहचानने के लिए भ्रूण संबंधी अल्ट्रासाउंड को एक बेहतर तरीका माना जाता है, साथ ही इससे यह पता लगाया जाता है कि बच्चा किस कारण परेशान हो रहा है।

भ्रूण का अल्ट्रासाउंड करने में बहुत कम खतरा होता है और इससे बच्चे के स्वास्थ्य की सही की स्थिति के बारे में भी जानकारी मिल जाती है, इसलिए इसको करवाने के लिए बहुत ज्यादा सिफारिश की जाती है। यहां बच्चे की स्थिति की पुष्टि करने के लिए उसके सिर, रीढ़, दिल और शरीर के अन्य अंगों की जांच की जाती है। आमतौर पर तीन प्रकार के भ्रूण अल्ट्रासाउंड होते हैं जिनमें आप चुनाव कर सकते हैं। इनमें स्टैंर्डड अल्ट्रासाउंड भी शामिल होता है, जो बच्चे की टू डायमेंशनल इमेज को कैप्चर करने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है, जबकि डॉपलर अल्ट्रासाउंड, आपके बच्चे और प्लेसेंटा के साथ-साथ बच्चे के दिल के बीच में होने वाले ब्लड फ्लो को भी दिखाता है, और 3डी अल्ट्रासाउंड, जो उसकी थ्री डायमेंशनल इमेज दिखाता है।

कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट के परिणाम को समझना

अगर आपके किसी भी तरह के संकुचन के बाद आपके बच्चे की दिल की धड़कन कम होने लगती है, तो यह एक अच्छा संकेत नहीं है। इसके बाद इस बात की संभावना ज्यादा होती है कि डॉक्टर आगे और टेस्ट करवाने की सिफारिश करेंगे ताकि यह तय हो सके कि बच्चे को कोई वास्तविक समस्या है या नहीं। हालांकि यह जांच एक हफ्ते तक आपके बच्चे की हेल्थ अपडेट्स को दिखा सकती है, लेकिन कभी-कभी समस्या न होने पर भी इससे गलत परिणाम भी मिल सकता है। लगभग तीस प्रतिशत महिलाओं में ही यह टेस्ट किया जाता है।

आपकी किसी भी तरह की समस्या को दूर करने के लिए डॉक्टर द्वारा बताई गई कोई भी डायग्नोसिस की तुलना में कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट समस्या को दूर करने का एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है। बहुत सी महिलाएं हैं,  जिनके स्ट्रेस टेस्ट के परिणाम नेगेटिव आते हैं, लेकिन उन्होंने पूरी तरह से स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया है।

यहाँ दो संभावित कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस और उसके परिणामों के बारे में बताया गया है:

1. पॉजिटिव कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट

अगर आपके बच्चे का टेस्ट रिजल्ट असामान्य आता है, तो यह पॉजिटिव कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट कहा जाएगा। इसमें आपके एक संकुचन के बाद, बच्चे के दिल की धड़कन कम हो जाएगी, और अगर आधे से ज्यादा टेस्ट रिजल्ट में भी हार्ट रेट वैसा ही कम बना रहता है, तो यह इस बात का संकेत है कि बच्चे को नॉर्मल डिलीवरी के दौरान कोई समस्या हो सकती है।

2. नेगेटिव कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट

अगर आपके बच्चे का टेस्ट रिजल्ट सामान्य है, तो इसे ‘नकारात्मक’ कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट रिजल्ट कहा जाएगा। कई बार ऐसा भी हो सकता है कि बच्चे की दिल की धड़कन कम हो रही हो, लेकिन लंबे समय तक वो स्थिति बनी नहीं रहती है, तो इसमें कोई बड़ी समस्या वाली बात नहीं है। क्योंकि अगर बच्चा दस मिनट की अवधि में तीन संकुचनों का सामना कर सकता है और हार्ट रेट में कोई ज्यादा गिरावट नहीं आती है, तो आपका बच्चा आराम से उस दबाव और तनाव का सामना करने में सक्षम है, जो सामान्य डिलीवरी के कारण होने की संभावना होती है।

कुछ स्थितियां जो कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट के परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं

कुछ चीजें होती हैं जो आपके कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस के परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं और यह तय करती हैं कि डॉक्टर आपको इससे बचने की कौन सी सलाह देते हैं। वे इस प्रकार हैं:

  • अगर आपको अपनी पहली प्रेगनेंसी में वर्टिकल कट के साथ क्लासिकल सीजेरियन सेक्शन करवाना पड़ा है, जिसे मिडलाइन भी कहा जाता है, तो आपको यह टेस्ट करवाने से बचना चाहिए।
  • अगर आपके यूट्रस का कोई ऑपरेशन हो चुका है, तो भी आपको इस जांच से बचना चाहिए, क्योंकि बहुत ज्यादा संकुचन से गर्भाशय फट सकता है।
  • अगर आपने लगातार धूम्रपान करने और नशीली दवाओं (जैसे कोकीन) का सेवन करना ही चुना है, तो आपको यह टेस्ट नहीं करवाना चाहिए।
  • अगर आपका वजन ज्यादा है, तब भी इस टेस्ट को करवाने से बचें।
  • अगर आप एक से अधिक बच्चे जैसे जुड़वां या तीन बच्चों के साथ प्रेग्नेंट हैं।
  • अगर प्रेगनेंसी के दौरान आपका सर्विक्स कमजोर है।
  • अगर आपका बच्चा टेस्ट के समय गर्भाशय में बहुत अधिक हिल रहा हो।
  • अगर आपने गर्भावस्था के दौरान मैग्नीशियम सल्फेट लिया है।
  • अगर आपको प्लेसेंटल एब्डॉमिनल होने का खतरा है क्योंकि इससे प्लेसेंटा यूट्रस से अलग हो सकता है।
  • अगर आपको प्लेसेंटा प्रीविया है, जहां प्लेसेंटा गर्भाशय में बहुत नीचे की ओर जुड़ा होता है।
  • कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट से गुजरने का मतलब यह भी है कि आपके पानी की थैली के जल्दी फटने का खतरा है।

ध्यान रखने योग्य बातें

  • कुछ डॉक्टर निप्पल की मालिश की जगह ऑक्सीटोसिन का उपयोग करना पसंद करते हैं क्योंकि इससे लंबे और अनचाहे संकुचन हो सकते हैं जिससे समय से पहले डिलीवरी हो सकती है।

  • अगर आप एक हेल्दी प्रेगनेंसी महसूस कर रही हैं, जहां बहुत कम खतरा है, तो ऐसे में आपकी सामान्य दिनचर्या यह है कि आप अपनी गर्भावस्था के 36वें सप्ताह तक हर तीन से चार सप्ताह में अपनी डिलीवरी से होने वाली हर अपॉइंटमेंट में जरूर जाएं। यह आपकी गर्भावस्था का आखिरी महीना है, और अब आपको पहले से ज्यादा और नियमित रूप से डॉक्टर की अपॉइटमेंट्स में जाने की जरूरत है। क्योंकि आमतौर पर डिलीवरी तक हर हफ्ते एक अपॉइंटमेंट होनी चाहिए।
  • नौवें महीने में डिलीवरी से पहले टेस्ट्स करवाने का मुख्य उद्देश्य आपके बच्चे की स्थिति पर नजर रखना और यह तय करना है कि डिलीवरी के दौरान कोई कॉम्प्लिकेशन न आए। उदाहरण के लिए कि आपको प्री-एक्लेमप्सिया विकसित होने की कोई संभावना नहीं है, यह जानने के लिए डॉक्टर को लगातार आपके ब्लड प्रेशर को मॉनिटर करने की जरूरत होगी। इसके अलावा यह तय करना होता है कि आपके यूरिन में शुगर का स्तर तो नहीं बढ़ रहा है, क्योंकि इसका मतलब है कि आप जेस्टेशनल डायबिटीज से पीड़ित हैं। यह चेक करने के लिए कि आपका बच्चा कैसे बढ़ रहा है, आपके पेट को मापने की भी जरूरत होगी और किसी भी कॉम्पलिकेशन से उसे दूर रखने के लिए कई अन्य चीजों की भी जांच की जाती है।
  • अन्य सभी कम खतरे वाली जांचों के परिणाम असामान्य आने पर ही डॉक्टर आपको कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट करवाने की सलाह देंगे। इस टेस्ट से यह पता लगाने में मदद मिलती है कि क्या ये तथ्य बिल्कुल सटीक हैं और इसके कारण कोई समस्या होगी या नहीं, खासकर जब बच्चे पर दबाव डाला जाता है जो डिलीवरी के दौरान उसे महसूस करना होगा, उसे उसी तरह प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर करना होता है जैसे वह उस समय करेगा अगर आपकी नॉर्मल डिलीवरी हो रही है। अगर इस प्रक्रिया के दौरान आपका बच्चा तनाव के कोई लक्षण दिखाता है या आपके संकुचन के नियंत्रण से बाहर हो जाता है, तो डॉक्टरों के पास एकमात्र विकल्प होता है कि जल्द से जल्द बच्चे को जन्म हो।
  • हालांकि, बच्चे 36 सप्ताह में पैदा हो सकते हैं (हालांकि उन्हें समय से पहले जन्म लेने वाला माना जाएगा), लेकिन आपके बच्चे के लिए पूरे नौ महीनों तक आपके गर्भ में रहना हमेशा बेहतर होता है ताकि उसका पूर्ण विकास गर्भ में ही पूरा हो सके।

हमेशा याद रखें कि जब आपको स्ट्रेस टेस्ट करवाने के लिए कहा जाता है और इसका रिजल्ट भी नेगेटिव आता है, तब भी आप एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। क्योंकि यह टेस्ट सौ फीसदी सटीक नहीं होते हैं। 

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समर नक़वी

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