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हेपेटाइटिस सी एक ऐसी बीमारी है, जो लिवर को प्रभावित करती है। कुछ बच्चे जन्म के समय हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हो जाते हैं, इसलिए प्रेगनेंसी के दौरान हेपेटाइटिस सी की पहचान जरूरी होती है। आइए कुछ ऐसी जानकारियों पर नजर डालते हैं, जो आपको हेपेटाइटिस सी और प्रेगनेंसी के दौरान इसके प्रभावों को समझने में आपकी मदद कर सकती हैं।
हेपेटाइटिस एक लिवर इंफेक्शन है, जो कि एक वायरस के द्वारा होता है। इससे लिवर में सूजन हो जाती है। हेपेटाइटिस मुख्यतः पांच प्रकार का होता है – हेपेटाइटिस ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’ और ‘ई’। जब एक गर्भवती महिला हेपेटाइटिस से संक्रमित किसी व्यक्ति के खून या शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आती है, तब उसे हेपेटाइटिस सी का संक्रमण हो सकता है।
गर्भवती महिला में यदि हेपेटाइटिस सी का इंफेक्शन निष्क्रिय अवस्था में हो, तो जन्म के समय वह बच्चे को इससे संक्रमित कर सकती हैं और उन्हें इसका पता भी नहीं चलता है। बच्चों में हेपेटाइटिस सी इंफेक्शन के ज्यादातर मामलों में यह वायरस मां से बच्चे तक जाता है, इसलिए प्रेगनेंसी के दौरान एक ब्लड टेस्ट कराना अच्छा होता है। गर्भावस्था में एक एंटी एचसीवी टेस्ट के द्वारा इस बात का पता लगाया जा सकता है, कि आपको हेपेटाइटिस सी संक्रमण है या नहीं।
आमतौर पर, यदि डॉक्टर को गर्भवती महिला में हेपेटाइटिस सी के खतरे का संदेह हो, तो वे उसकी जांच करते हैं। जो महिलाएं इंट्रावेनस ड्रग्स का इस्तेमाल करती हैं या संक्रमित सुइयों के संपर्क में आती हैं, उन्हें इसका खतरा होता है और उन्हें गर्भधारण और गर्भावस्था से पहले इसकी जांच अवश्य करानी चाहिए।
हेपेटाइटिस सी के लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं होते हैं और मरीज के संक्रमित होने के बावजूद कई वर्षों तक ये अपने आप नहीं दिखते हैं। जिन लोगों के लिवर में इसका वायरस 6 महीने से अधिक समय तक रह जाता है, वे हेपेटाइटिस सी के वाहक हो जाते हैं। ऐसे कई वाहक बिना किसी बड़ी स्वास्थ्य समस्या के कई वर्षों तक जीवित रहते हैं।
शुरुआत में जब कोई व्यक्ति संक्रमित हो जाता है, तो वह अत्यधिक थकावट और बेचैनी का अनुभव करता है। आपको हेपेटाइटिस सी है या नहीं, इसकी पुष्टि करने के लिए ब्लड टेस्ट कराना ही सबसे बेहतर तरीका है।
कभी-कभी इसके कोई भी लक्षण नहीं दिखते हैं। कुछ अन्य मामलों में इसके बहुत ही सौम्य या अस्पष्ट लक्षण दिख सकते हैं, जो कि किसी अन्य बीमारी का लक्षण होने की दुविधा पैदा करते हैं। हालांकि यह वायरस चुपचाप लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है। अगर सही समय पर इसका इलाज न किया जाए, तो अंत में यह सिरोसिस नामक लिवर की एक बीमारी या लिवर कैंसर का कारण बन सकता है।
यदि आप क्रोनिक हेपेटाइटिस से संक्रमित हों, तो आप में निम्नलिखित में से कुछ लक्षण दिख सकते हैं:
जिन महिलाओं में हेपेटाइटिस सी का खतरा होता है, उन्हें प्रेगनेंसी के दौरान इसकी जांच जरूर करानी चाहिए। अगर एक महिला में हेपेटाइटिस सी की पहचान हुई है, तो वह यह जरूर जानना चाहेगी, कि क्या यह उसके बच्चे तक भी पहुंच सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, हेपेटाइटिस सभी गर्भावस्था में से 0.6% से 2.4% तक गर्भावस्थाओं को प्रभावित करता है। जिसमें मां से बच्चे तक इसके फैलने की ओवरऑल दर 8% से 15% होती है। अन्य स्टडीज यह बताती हैं, कि मां से बच्चे तक यह बीमारी फैलने का डर केवल 1 से 8% ही होता है।
गर्भावस्था के पहले, दौरान या बाद के कुछ फैक्टर्स, प्रेगनेंसी के दौरान हेपेटाइटिस सी के संक्रमण को मां से बच्चे तक फैलने के खतरे को बढ़ा सकते हैं। इन फैक्टर्स में वेजाइनल या पेरिनियल घाव, डिलीवरी के दौरान वायरल लोड अधिक होना और एचआईवी को-इंफेक्शन शामिल है।
एचआईवी को-इंफेक्शन एक महत्वपूर्ण फैक्टर है, जो कि मां को एचआईवी से भी संक्रमित होने की स्थिति में वायरस को मां से बच्चे तक पहुंचने की संभावना को बढ़ा देता है। गर्भवती महिला यदि हेपेटाइटिस के साथ-साथ एचआईवी से भी संक्रमित हो, तो ट्रांसमिशन की दर 17 से 25% तक होती है। लेकिन अगर मां एचआईवी नेगेटिव हो और उसने कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन या इंट्रावेनस ड्रग्स का इस्तेमाल न किया हो, तो इसके फैलने का खतरा 0 से 18% तक होता है।
एचसीवी इंफेक्शन इंट्रावेनस ड्रग्स और टैटू के इस्तेमाल से भी फैलता है, अगर सुई और पेंट सही तरह से स्टेरलाइज नहीं किए गए हों तो।
हेपेटाइटिस सी के फैलने के प्रमुख कारण नीचे दिए गए हैं। कृपया ध्यान रखें, कि ये कारण केवल गर्भवती महिला तक ही सीमित नहीं हैं:
नोट: ड्रग्स के इस्तेमाल और दवा इंजेक्ट करने के दौरान चम्मच, सुई और फिल्टर जैसी चीजों को शेयर करना भी हेपेटाइटिस सी संक्रमण के फैलने का एक आम कारण है।
हेपेटाइटिस सी की पहचान एक ब्लड टेस्ट द्वारा की जाती है। यह टेस्ट सभी गर्भवती महिलाओं के लिए किए जाने वाले रूटीन टेस्ट का हिस्सा नहीं होता है। लेकिन, कुछ अस्पतालों में अन्य बेसिक टेस्ट के साथ यह टेस्ट भी किया जाता है।
इसके अलावा, अगर किसी तरह का खतरा हो, तो डॉक्टर प्रेगनेंसी के दौरान एचसीवी टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं। अगर आप अपने इंफेक्शन को लेकर चिंतित हैं, तो आपको इसकी जांच के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
अगर आपको हेपेटाइटिस सी है, तो हो सकता है आप में कोई भी लक्षण ना दिखे या आपको फ्लू, थकान, मतली, मांसपेशियों में दर्द, एंग्जायटी, डिप्रेशन जैसे लक्षण दिख सकते हैं, जिन्हें किसी अन्य बीमारी का लक्षण समझा जा सकता है। सटीक पहचान के लिए ब्लड टेस्ट ही एकमात्र तरीका है।
आमतौर पर, आप हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं या नहीं, इसे पहचानने के लिए दो टेस्ट किए जाते हैं। पहले टेस्ट को एंटीबॉडी टेस्ट या एंटी एचसीवी टेस्ट कहा जाता है। यह टेस्ट आपके शरीर में एचसीवी के एंटीबॉडीज की जांच करता है। एंटीबॉडीज वे पार्टिकल्स होते हैं, जिन्हें आपका शरीर इंफेक्शन से लड़ने के लिए बनाता है। एक पॉजिटिव एंटीबॉडी दिखने पर हेपेटाइटिस वायरस से संक्रमित होने का संकेत मिलता है और वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इस टेस्ट में क्रोनिक हेपेटाइटिस सी इंफेक्शन का पता नहीं चलता है।
अगर एंटीबॉडी टेस्ट पॉजिटिव आ जाए, तो हेपेटाइटिस सी वायरल लोड टेस्ट नामक एक दूसरी जांच की जाती है, ताकि यह पता चल सके, कि आपके शरीर में अब भी वे हेपेटाइटिस सी के वायरस मौजूद हैं या नहीं। इस टेस्ट का रिजल्ट पॉजिटिव आने पर यह संकेत मिलता है, कि आपको क्रोनिक हेपेटाइटिस सी है और वायरस के कारण आपको आगे चल कर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
हेपेटाइटिस सी के कई स्ट्रेन होते हैं और इसके प्रकार के आधार पर इसके इलाज का निर्णय लिया जाता है। इसका निर्धारण इस बात पर भी निर्भर करता है, कि आपका वायरल लोड कितना है और आपका लिवर इससे प्रभावित है या नहीं।
अगर आप गर्भवती हैं, तो आप उन सामान्य दवाओं का उपयोग कर सकती हैं, जिन्हें हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए प्रिसक्राइब किया जाता है। इसलिए अगर आप में हेपेटाइटिस सी डायग्नोस हुआ है, तो आपके डॉक्टर इलाज शुरू करने के लिए बच्चे के जन्म का इंतजार करने की सलाह दे सकते हैं। कभी-कभी आपको इंतजार करने की सलाह इसलिए दी जाती है, क्योंकि हो सकता है, कुछ महीनों के अंदर आपका इम्यून सिस्टम वायरस को खत्म कर दे और इलाज की जरूरत ही ना पड़े।
इस इंतजार के दौरान अपनी जीवन शैली में कुछ बदलाव करके अपने लिवर को होने वाले नुकसान को कम करने की सलाह दी जाती है, जो कि नीचे दिए गए हैं:
हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए पेजाईलेटेड इंटरफेरॉन (पीईजी-आईएनएफ) और रीबावीरीन नामक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी इन दोनों दवाओं के कॉम्बिनेशन के साथ बोसेप्रेवीर या टेलप्रेवीर नामक अन्य दवाओं का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। हालांकि गर्भावस्था में ये सभी दवाएं असुरक्षित होती हैं। रीबावीरीन बच्चे में गंभीर जन्म दोष पैदा कर सकती है और कभी-कभी इससे बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।
रिसर्च बताते हैं, कि हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त महिलाओं से जन्म लेने वाले शिशु समय से पहले पैदा हो सकते हैं, जन्म के समय उनका वजन कम हो सकता है और उनमें इंट्रायूटरिन ग्रोथ रिस्ट्रिक्शन (आईयूजीआर) का खतरा भी हो सकता है। मांओं को लिवर से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं या उन्हें प्रेगनेंसी संबंधी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
यूएस नेशनवाइड इंपेशेंट सैंपल, रेडिक एट एल के द्वारा किए गए एक एनालिसिस में संकेत मिलता है, कि प्रेगनेंसी के दौरान हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज, प्रीटर्म बर्थ और सिजेरियन डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है।
अगर हेपेटाइटिस सी से संक्रमित महिला बच्चे के लिए प्रयास करना चाहती है, तो इसके लिए इलाज पूरा होने तक इंतजार करना जरूरी है। ऐसी महिला से जन्म लेने वाले बच्चे में जन्म दोष होने का खतरा हो सकता है। इसलिए जब तक डॉक्टर प्रेगनेंसी के लिए सुरक्षित समय की जानकारी न दें, तब तक इलाज के दौरान उन्हें प्रभावी बर्थ कंट्रोल का इस्तेमाल करना चाहिए। रीबावीरीन स्पर्म को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें और उनकी सलाह का पालन करें। जिस इलाज में इंटरफेरॉन थेरेपी शामिल होती है, उसे भी प्रेगनेंसी के दौरान बंद कर देना चाहिए। क्योंकि इस थेरेपी का बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
डिलीवरी के समय या गर्भावस्था के दौरान गर्भ में पल रहे शिशु तक हेपेटाइटिस सी के ट्रांसमिशन का खतरा कम होता है। लेकिन यदि मां में इस वायरस का स्तर अधिक हो या उसे एचआईवी भी हो, तो बच्चे के हेपेटाइटिस सी से संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि बच्चे के इनसे संक्रमित होने की संभावना कम होती है, फिर भी जब बच्चा 1 साल का हो, तब इसके लिए उसकी जांच करा लेना अच्छा होता है। 1 साल की उम्र से पहले टेस्ट कराने से सही नतीजे नहीं मिल पाते हैं।
यदि बच्चा हेपेटाइटिस सी से संक्रमित है, तो आगे की देखभाल के लिए किसी ऐसे स्पेशलिस्ट से परामर्श लेना चाहिए, जो हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त बच्चों का इलाज करता हो। बच्चे को अल्ट्रासाउंड स्कैन या ऐसे ही संबंधित टेस्ट के साथ नियमित जांच और चेकअप की जरूरत हो सकती है। हेपेटाइटिस सी से संक्रमित सभी बच्चों को दवाएं नहीं दी जाती हैं। इसका इलाज बच्चे पर निर्भर करता है और संक्रमित बच्चे के लिए सबसे बेहतर क्या है, उस पर निर्भर करता है। संक्रमित महिला को भी डिलीवरी के बाद एंटीवायरल ड्रग्स की जरूरत पड़ सकती है।
जिन बच्चों की मां को हेपेटाइटिस सी होता है, वे अपने खून में वायरस के लिए एंटीबॉडीज के साथ जन्म लेते हैं। हालांकि अगर बच्चा इससे संक्रमित न हो, तो समय के साथ ये एंटीबॉडीज गायब हो जाते हैं।
जैसा कि पहले बताया गया है, अगर आपको हेपेटाइटिस सी है, तो 20 में से 1 संभावना है, कि यह आपके बच्चे तक पहुंचेगा। अगर आपको एचआईवी भी है और आप उसका इलाज नहीं करा रही हैं, तो इसका खतरा ज्यादा होता है। दुर्भाग्य से बच्चे तक हेपेटाइटिस सी फैलने से रोकने का कोई तरीका नहीं है।
हेपेटाइटिस सी एक संक्रमण है, जो कि लंबे समय तक बिना पहचाने आसानी से रह सकता है। क्योंकि इसमें अक्सर लक्षण नहीं दिखते हैं या बहुत ही कम लक्षण दिखते हैं। जहां कभी-कभी शरीर हेपेटाइटिस सी के वायरस को खत्म कर देता है, वहीं लिवर में इसके बने रहने की संभावना भी होती है। जिन लोगों के शरीर में 6 महीने से अधिक समय तक यह वायरस रह जाता है, उन्हें हेपेटाइटिस सी का वाहक कहा जाता है। हो सकता है कि इनमें से कुछ लोगों को लिवर का कैंसर या लिवर सिरोसिस हो जाए। ये कॉम्प्लिकेशंस आमतौर पर वायरस से कई वर्षों तक संक्रमित रहने के बाद देखे जाते हैं।
अगर आपको हेपेटाइटिस सी है, तो ब्रेस्टफीडिंग कराना आपके लिए सुरक्षित है, लेकिन आप एचआईवी पॉजिटिव नहीं होनी चाहिए। अगर आपके निप्पल फटे हुए हों या उनमें से खून आ रहा हो, तो इस इंफेक्शन के फैलने का खतरा होता है। अगर आप हेपेटाइटिस सी के लिए दवाओं का सेवन कर रही हैं, तो आपको बेबी को अपना दूध नहीं पिलाना चाहिए। क्योंकि इसकी दवा दूध तक जा सकती है। ब्रेस्टफीडिंग शुरू करने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है।
हेपेटाइटिस सी से संक्रमित गर्भवती महिलाएं लिवर संबंधी कॉम्प्लिकेशंस और गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं से प्रभावित हो सकती हैं।
हेपेटाइटिस सी से संक्रमित महिलाओं से जन्म लेने वाले शिशु का वजन जन्म के समय कम हो सकता है और उन्हें इंटेंसिव केयर फैसिलिटी के साथ असिस्टेड वेंटिलेशन के अंदर रहना पड़ सकता है।
यहां पर प्रेगनेंसी और हेपेटाइटिस सी से संबंधित कुछ जरूरी बातें दी गई हैं:
मेडिकल तकनीक और रिसर्च में होने वाले तरक्की के कारण हेपेटाइटिस सी के इलाज का तरीका निश्चित रूप से बदल सकता है, खासकर गर्भवती महिलाओं और बच्चों में। प्रेगनेंसी के दौरान यदि आपको लगता है, कि आपको हेपेटाइटिस सी से संक्रमित होने का खतरा है या आप हेपेटाइटिस से इन्फेक्टेड हैं, तो आपको हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है।
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