गर्भावस्था के दौरान खून की जांच करवाना

प्रेगनेंसी की पहली, दूसरी और तीसरी तिमाही में ब्लड टेस्ट करवाना

गर्भावस्था का पता लगते ही महिला की पूरी जिंदगी बदल जाती है। इस दौरान उसमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से कई बदलाव होते हैं। पर एक गर्भवती महिला सबसे पहले सिर्फ अपने बच्चे के विकास और स्वास्थ्य को लेकर चिंता करती है। आपके सवालों के जवाब देने के लिए गायनेकोलॉजिस्ट गर्भावस्था की वृद्धि का पता लगाने के लिए कई तरह की जांच करवाने के साथ आपको रूटीन ब्लड टेस्ट यानी खून की जांच करवाने की भी सलाह देते हैं। इस आर्टिकल में हम यह चर्चा करेंगे कि आपके लिए खून की कौन सी जांच करवाना जरूरी है और क्यों। यदि आप गर्भवती हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए बहुत उपयोगी हो सकता है, जानने के लिए पूरा पढ़ें।

गर्भवती महिलाओं को कई बार खून की जांच क्यों करवानी चाहिए?

यदि गर्भावस्था के दौरान विशेषकर आपको मॉर्निंग सिकनेस या थकान हो रही है तो इस समय सभी टेस्ट करवाना बहुत ज्यादा कठिन हो जाता है पर इसे करवाना जरूरी है। यह आपकी नियमित जांच का एक भाग है। गर्भावस्था के दौरान खून की जांच करवाने के अनेक कारण हैं, आइए जानें;

  • आपका ब्लड ग्रुप जानने के लिए खून की जांच की जाती है। आपमें किसी रोग या इन्फेक्शन को जानने के लिए भी यह टेस्ट किया जाता है। यदि बच्चे में किसी भी अब्नॉर्मलिटी का खतरा है तो डॉक्टर इसका पता खून की जांच में ही लगाते हैं। 
  • इससे गर्भावस्था के दौरान आपके पूर्ण स्वास्थ्य और समस्याओं की संभावनाओं का पता चलता है। 
  • यदि खून की जांच में आप आरएच-पॉजिटिव या नेगेटिव निकलती हैं तो डॉक्टर आपका चेक अप करेंगे। 

गर्भावस्था के दौरान ब्लड टेस्ट के परिणाम में क्या डिटेल्स होनी चाहिए?

गर्भावस्था गर्भ में बच्चे के विकास और हेल्थ को जानने के लिए खून की सभी जांच की जाती है। यदि गर्भावस्था में कोई कॉम्प्लिकेशन या समस्याएं हैं या बढ़ती गर्भावस्था के साथ समस्याएं भी बढ़ रही हैं तो यह सब खून की जांच में पता चल जाता है। खून की जांच में कुछ निम्नलिखित व आवश्यक परिणाम सामने आते हैं, आइए जानें;

  • जांच में गर्भवती महिला का ब्लड ग्रुप और इसका प्रकार पता किया जा सकता है। 
  • यदि गर्भवती महिला को कोई भी समस्या जैसे, रूबेला, सिफिल्स, हेपेटिटिस बी है तो इसका पता ही खून की जांच में लग जाता है। 
  • यदि गर्भवती महिला को जेस्टेशनल डायबिटीज या इन्फेक्शन है तो यह भी जांच में पता किया जा सकता है। 
  • यदि गर्भ में पल रहा बच्चा हेल्दी है और बिना किसी विकार के उसका विकास हो रहा है तो यह भी जांच के माध्यम से आपको पता चलता है। 

पहली बार में डॉक्टर कौन सा ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं?पहली बार में डॉक्टर कौन सा ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं?

गर्भावस्था के सबसे पहले अपॉइंटमेंट में डॉक्टर आपके शरीर और हेल्थ के बारे में बहुत कुछ जानने का प्रयास करते हैं। 

आपके खून की पहली जांच में डॉक्टर निम्नलिखित चीजों पर ध्यान दे सकते हैं:

  • डॉक्टर आपके खून में एचसीजी का स्तर देखते हैं इससे उन्हें ड्यू डेट का पता लगता है क्योंकि गर्भावस्था बढ़ने के साथ एच.सी.जी. कर स्तर भी बढ़ता है। 
  • डॉक्टर ब्लड ग्रुप और आर.एच. फैक्टर की जांच करते हैं। 
  • डॉक्टर यौन संचारित रोग (सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) की जांच करते हैं। 
  • खून की जांच में विटामिन और आयरन की कमी का भी पता लगाया जा सकता है। 
  • खून की जांच में डॉक्टर जेनेटिक खतरों, जैसे अल्सर या फाइब्रॉएड का पता लगते हैं। 
  • इसमें ब्लड शुगर के लेवल की भी जांच होती है। 

चूंकि सभी ब्लड टेस्ट एक साथ नहीं हो सकते हैं इसलिए इसके बारे में पूरी जानकारी होने से आप गर्भावस्था के दौरान ब्लड टेस्ट करवाने के लिए पहले से तैयार हो सकती हैं। हर तिमाही में आपको कौन-कौन सी खून की जांच करवानी पड़ सकती है इस बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें। 

पहली तिमाही में खून की जांच 

पहली तिमाही में मातृत्व का एक अद्भुत सफर शुरू होता है। इस समय आपको अपनी देखभाल करने के साथ एक अच्छी लाइफस्टाइल भी फॉलो करनी चाहिए। गर्भावस्था में पहली बार चेकअप के दौरान डॉक्टर आपको कुछ जांच करवाने की सलाह देते हैं जिससे आपके और बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में पता चलता है। गर्भावस्था के 10 सप्ताह में आपको निम्नलिखित जांच करवाने के लिए कहा जा सकता है, आइए जानें;

1. ब्लड ग्रुप की जांच 

यह टेस्ट साधारणतौर पर ब्लड ग्रुप का पता करता है जिसमें पता चलता है कि आपका ब्लड ग्रुप क्या है, जैसे ए, बी, एबी या ओ। 

2. रेसस फैक्टर की जांच 

एक बार जब आपका ब्लड ग्रुप पता लग जाता है तो फिर डॉक्टर आपके खून में आरएच का टाइप पता करते हैं। इस टेस्ट के माध्यम से पता किया जाता है कि आपके रेड ब्लड सेल्स में ‘डी’ एंटीजन हैं या नहीं। यदि हैं तो आप आरएच-पॉजिटिव हैं और यदि नहीं हैं तो आप आरएच-नेगेटिव हैं। यदि आपका और आपके बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है तो कोई समस्या नहीं है पर यदि आपका ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और आपके बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है तो आपका शरीर बच्चे के खून के विपरीत एंटीबॉडीज उत्पन्न कर सकता है। इससे आपकी अभी की गर्भावस्था प्रभावित नहीं होगी पर यह भविष्य की गर्भावस्था को जरूर प्रभावित कर सकता है। यदि पेरेंट्स का आरएच टाइप मैच नहीं करता है तो डॉक्टर महिला को आरएच इम्यूनोग्लोबिन का इंजेक्शन देते हैं जो उसके शरीर में अभी के लिए और भविष्य में होनेवाली गर्भावस्था के लिए एंटीजंस का उत्पादन रोक देता है।

3. एनीमिया 

इस जांच में एनीमिया का पता लगाया जाता है जिसमें आपका हीमोग्लोबिन कम होता है या फिर यह आयरन की कमी से भी हो सकता है। यदि ऐसा है तो डॉक्टर आपको आयरन सप्लीमेंट्स प्रिस्क्राइब करते हैं और आयरन-युक्त आहार खाने की सलाह भी देते हैं। इस टेस्ट में आपकी प्लेटलेट्स का पता भी किया जाता है, यदि वाइट ब्लड सेल्स बढ़ जाती हैं तो आपको इन्फेक्शन हो सकता है। 

4. रूबेला 

यदि गर्भावस्था के दौरान महिला को रूबेला की बीमारी हो जाती है तो इससे गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे मिसकैरेज, प्रीमैच्योर डिलीवरी, मृत बच्चे का जन्म और जन्म से संबंधित अन्य विकार। यह टेस्ट आपके खून में रूबेला के लिए संभावित एंटीबॉडीज और इम्यून की भी जांच करता है। अक्सर महिलाएं इससे इम्यून हो भी सकती हैं क्योंकि उन्हें पहले ही इसका वैक्सीन दिया जा चुका है या उन्हें बचपन में ही रूबेला हो चुका है। यदि आप इम्यून नहीं हैं तो आपको ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए जिसे पहले से ही रूबेला वायरस है या आपको ऐसी जगहों पर जाने से बचना चाहिए जहाँ पर अक्सर यह वायरस हो सकता है।

5. एच.आई.वी. 

ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस का पता लगाने के लिए यह जांच करना बहुत जरूरी है क्योंकि इस वायरस की वजह से एड्स हो सकता है। यदि टेस्ट में आप पॉजिटिव निकलती हैं तो डॉक्टर आपका ट्रीटमेंट करेंगे जिससे आपको हेल्दी रहने में मदद मिलेगी और बच्चे के एचआईवी पॉजिटिव होने की संभावना कम हो जाएगी। 

6. हेपेटाइटिस बी 

हेपेटाइटिस बी एक ऐसा रोग है जिससे लिवर पर प्रभाव पड़ता है। कई महिलाओं को पता ही नहीं चलता है कि उन्हें यह बीमारी है और लेबर के दौरान अनजाने में यह इन्फेक्शन बच्चे को भी हो जाता है। खून की जांच से पता किया जा सकता है कि आपको हेपटाइटिस बी है या नहीं। यदि आपको हेपेटाइटिस बी है तो डॉक्टर बच्चे को हेपेटाइटिस बी इम्यूनोग्लोबिन इंजेक्शन देते हैं और हेपेटाइटिस बी का पहला इंजेक्शन बच्चे के जन्म के 12 घंटों के अंदर-अंदर दिया जाता है। बाद में बच्चे को इसका दूसरा इंजेक्शन पहले महीने में और तीसरा इंजेक्शन छठे महीने में दिया जाता है। 

दूसरी तिमाही में खून की जांच 

अक्सर गर्भवती महिलाएं नियमित जांच के लिए डॉक्टर के पास एक बार जाती हैं। गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में रूटीन जांच के अलावा भी महिला के खून की जांच की जा सकती है जिसमें निम्नलिखित टेस्ट शामिल हैं, आइए जानें;

1. ट्रिपल स्क्रीन 

अक्सर डॉक्टर 35 साल से ज्यादा की महिलाओं का ट्रिपल स्क्रीनिंग टेस्ट करते हैं। इसे ‘मल्टीपल मार्कर स्क्रीनिंग’ या ‘एएफपी प्लस’ भी कहा जाता है। इसके माध्यम से महिला के खून से निम्नलिखित चीजों का पता किया जाता है, आइए जानें;ट्रिपल स्क्रीन 

  • एएफपी – यह गर्भ में पल रहे बच्चे के द्वारा उत्पन्न किया हुआ प्रोटीन है। 
  • एचसीजी – यह हॉर्मोन प्लेसेंटा से उत्पन्न होता है। 
  • एस्ट्रियल – यह गर्भवती महिला और बच्चे के द्वारा उत्पन्न होता है। 

यह स्क्रीनिंग टेस्ट ऊपर बताई हुई चीजों के अब्नॉर्मल स्तर को जांचने के लिए किया जाता है। बाद में यह परिणाम अन्य फैक्टर में शामिल किए जाते हैं, जैसे महिला की आयु, पहले का स्वास्थ्य और एथनिसिटी (जातीयता)। ट्रिपल स्क्रीन टेस्ट में बच्चे की अब्नॉर्मलिटीज का भी पता चलता है, जैसे डाउन सिंड्रोम, त्रिगुणसूत्रता या ट्राइसोमी 18 सिंड्रोम और स्पाइना बिफिडा। 

2. जेस्टेशनल डायबिटीज 

खून में ब्लड शुगर (ग्लूकोज) बढ़ने से जेस्टेशनल डायबिटीज होती है। यह अक्सर गर्भावस्था के 28वें सप्ताह में होती है और बच्चे के जन्म के बाद खत्म हो जाती है। डॉक्टर खून की जांच से इसका पता करते हैं और साथ ही इसका इलाज भी करते हैं। जेस्टेशनल डायबिटीज

3. सेल-फ्री फीटल डीएनए टेस्ट

सेल-फ्री फीटल डीएनए टेस्ट एक नई जांच है। यह जांच गर्भ में पल रहे बच्चे में क्रोमोसोमल अब्नॉर्मलिटीज होने का पता करने में मदद करती है। प्लेसेंटा से रिलीज होनेवाले जेनेटिक पदार्थों को सेल-फ्री डीएनए कहते हैं जो माँ के खून में भी पाए जाते हैं। इससे बच्चे में क्रोमोसोमल रोगों का पता लगाया जा सकता है। 

तीसरी तिमाही में खून की जांच 

अंतिम तिमाही महिलाओं में सभी प्रकार की भावनाएं लाती है और आप बस उसी चरण में हैं। कुछ महीनों के बाद आपका लाडला आपकी गोद में खेल रहा होगा। गर्भावस्था के 28वें सप्ताह में आप निम्नलिखित जांच करवा सकती हैं, आइए जानें;

1. ग्लूकोज की जांच 

यदि यह नॉर्मल है तो भी आपको अपना ब्लड शुगर दोबारा से जांचने की जरूरत है। इसमें आपको पहले एक शुगरी तरल पदार्थ दिया जाएगा और लगभग एक घंटे के बाद खून की जांच हो जाएगी। यदि आपके शरीर में शुगर का स्तर बढ़ता है तो डॉक्टर आपको जेस्टेशनल डायबिटीज की जांच करवाने की सलाह दे सकते हैं। 

2. हेमाटोक्रिट

हेमाटोक्रिट टेस्ट महिला में आयरन की कमी को जांचने के लिए किया जाता है। यदि इस टेस्ट में पता चलता है कि महिला के शरीर में आयरन का स्तर कम है तो डॉक्टर आयरन के सप्लीमेंट्स लेने की सलाह देते हैं। 

3. सेक्शुअली ट्रांसमिटेड रोग (एसटीडी) की जांच 

खून की इस जांच में यौन संक्रमित रोगों, जैसे एचआईवी की जांच होती है। इस इन्फेक्शन से महिला को एड्स हो सकता है। यद्यपि डॉक्टर महिला में एचआईवी का टेस्ट अक्सर पहली तिमाही में करते हैं पर इसमें अन्य रोगों की जैसे सिफील की जांच भी की जाती है। महिला को सिफील हो सकता है जिसके बारे में उसे मालूम नहीं होगा और जन्म के दौरान यह रोग बच्चे को भी हो सकता है। यदि महिला को यह इन्फेक्शन नहीं हुआ है तो भी डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान उसे एंटीबायोटिक्स देते हैं और जन्म के बाद बच्चे को भी एंटीबायोटिक्स दिया जाता है। सेक्शुअली ट्रांसमिटेड रोग (एसटीडी) की जांच 

गर्भावस्था के दौरान ज्यादातर महिलाओं को असुविधाएं होती हैं। आपके पास खून की जांच करवाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है क्योंकि इस समय आपका और बच्चे का स्वास्थ्य ज्यादा जरूरी है। शुक्र है कि कई पैथोलॉजिकल लैब्स घर से ही खून का सैंपल ले जाती हैं। पर क्या यह आपके लिए सुरक्षित है? यह जानने के लिए आगे पढ़ें। 

ब्लड टेस्ट करवाना कहाँ सुरक्षित है – घर में या कलेक्शन सेंटर में? 

गर्भावस्था के दौरान घर में खून की जांच करने में कोई भी परेशानी नहीं है। यदि आप विशेषकर गर्भावस्था के समय में बाहर नहीं जाना चाहती हैं तो यह आपके लिए बहुत सरल है। पर खून की जांच करवाते समय आप इस बात पर ध्यान दें कि आपने एक अच्छा डायग्नोस्टिक सेंटर चुना है जहाँ पर अनुभवी स्टाफ हो और उन्हें पता हो कि बिना इन्फेक्शन के अच्छी तरह से खून कैसे लिया और स्टोर किया जाता है। 

पर विशेषकर गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में बाहर जाने से आपको अलग ही महसूस होगा। गर्भावस्था के दौरान डायग्नोस्टिक सेंटर तक जाने से अच्छे बदलाव आते देखे गए हैं।

कुछ महिलाओं के लिए खून की जांच कई चिंताओं का कारण भी बन सकती है। गर्भावस्था की वजह से एंग्जायटी, डर और चिंताएं बढ़ जाती हैं। नीचे बताए गए टिप्स की मदद से आप अपनी चिंताओं को कम कर सकती हैं और खुद ज्यादा स्ट्रेस दिए बिना खून की जांच करवा सकती हैं। वे टिप्स कौन से हैं, आइए जानें;

गर्भावस्था के दौरान खून की जांच – टिप्स और बचाव 

हम जानते हैं कि कुछ लोगों के लिए यह थोड़ा चुनौतीपूर्ण होगा पर यदि आपके व बच्चे के स्वास्थ्य की बात है तो आपके लिए कोई और विकल्प नहीं है। यहाँ पर बताए हुए टिप्स और बचाव के सुझाव से आपको ब्लड टेस्ट के दौरान एंग्जायटी नहीं होगी। वे कौन से टिप्स हैं, आइए जानें;

  1. आपको खाने से पहले खून की जांच करवानी चाहिए या खाना खाने के बाद, इस बारे में डॉक्टर से पूछें। 
  2. यदि खून का सैंपल देने से पहले आपको कुछ घंटों के लिए उपवास रखना है तो अपने साथ थोड़ा-बहुत स्नैक्स और एक पानी का बोतल रखें।  
  3. यदि लैब में इसकी प्रक्रिया लंबी है तो आपको खून की जांच के लिए किसी के साथ जाना चाहिए। 
  4. आरामदायक कपड़े व जूते पहनें। 
  5. रिलैक्स रहने के लिए म्यूजिक सुनें या किताब पढ़ें। 
  6. इस बात पर भी ध्यान दें कि आपके खून का सैंपल लेने के लिए नई सिरिंज का उपयोग किया जा रहा है। 

गर्भावस्था के दौरान माँ और बच्चे की सेहत के बारे में जानने के लिए डॉक्टर खून की जांच और गर्भावस्था से संबंधित जांच करवाने की सलाह देते हैं। इनमें से बहुत सारे टेस्ट जरूरी हैं और इसे हर गर्भवती महिला को करवाना चाहिए। इन ब्लड टेस्ट से हानि नहीं होती है और ये बच्चे के विकास के बारे में व किसी भी संभावित विकार के बारे में स्पष्ट रूप से बताते हैं ताकि उसका इलाज किया जा सके। 

यह भी पढ़ें:

पहली तिमाही में 16 आवश्यक ब्लड टेस्ट जो आपको पता होने चाहिए
एचएसजी टेस्ट – तैयारी, प्रक्रिया और साइड इफेक्ट्स