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हेपेटाइटिस लिवर की एक संक्रामक बीमारी है जिसके कारण लिवर में सूजन आ जाती है। यह तब होता है जब कोई व्यक्ति हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) से इन्फेक्टेड होता है। एक बार इस बीमारी से संक्रमित होने के बाद, वायरस आदमी के शरीर में जीवन भर रह सकता है और साथ ही पुरानी बीमारियों को उभार सकता है। गर्भवती महिला के लिए हेपेटाइटिस बी की जांच कराना बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि एचबीएसएजी जांच का परिणाम पॉजिटिव आता है, तो डॉक्टर महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे को होने वाले कॉम्प्लिकेशन से बचाने के लिए जरूरी वैक्सीन और दवाएं लिख सकते हैं।
लिवर में होने वाली अनचाही सूजन की समस्या को हम मेडिकल भाषा में हेपेटाइटिस बी कहते हैं और यह एक वायरस के कारण होता है। ये बीमारी खासकर शरीर के तरल पदार्थ जैसे खून, वेजाइनल फ्लूइड या फिर सीमेन के माध्यम से फैलती है। जिस व्यक्ति का इम्यून सिस्टम बेहतर होता है उसे इस बीमारी से जल्द निजात मिलने की उम्मीद होती है। अक्सर, संक्रमित लोग वायरस के कैरियर हो जाते हैं जिसके कारण वे क्रोनिक हेपेटाइटिस से पीड़ित हो जाते हैं। इससे लिवर को गंभीर नुकसान हो सकता है। बेहतर मेडिकल केयर और एक अच्छी व हेल्दी लाइफस्टाइल से इस बीमारी से होने वाले गंभीर नुकसान को कम किया जा सकता है। हेपेटाइटिस बी को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
संक्रमित होने वाले ज्यादातर वयस्कों में एक्यूट हेपेटाइटिस बी पाया जाता है। बेहतर लाइफस्टाइल और अच्छे इम्यून सिस्टम से लोगों में लगभग 2-3 महीनों में वायरस खत्म हो जाता है। कुछ मामलों में, यह बीमारी क्रोनिक इंफेक्शन का रूप ले लेती है।
जब किसी व्यक्ति का इम्यून सिस्टम एक्यूट हेपेटाइटिस बी से लड़ने में असक्षम होता है, और उसके कारण यह वायरस 6 महीने से अधिक समय तक शरीर में बना रहता है जो कि एक भयंकर बीमारी का रूप ले सकता है जिसे आम भाषा में क्रोनिक हेपेटाइटिस बी इंफेक्शन कहते है। इससे लिवर कैंसर या सिरोसिस जैसे बड़े कॉम्प्लीकेशंस हो सकते हैं।
गर्भावस्था के दौरान यदि महिला हेपेटाइटिस बी से संक्रमित है, तो बच्चे में यह वायरस फैलने का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति को रोकने के लिए गर्भवती महिलाओं को रेगुलर ब्लड टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। हेपेटाइटिस बी रिएक्टिव या एचबीएसएजी पॉजिटिव होने का मतलब है आपके खून में हेपेटाइटिस बी वायरस की उपस्थिति है। यदि गर्भवती महिला संक्रमित है, तो बच्चे की डिलीवरी के बाद कुछ खास वैक्सीनेशन दिए जाते हैं जिससे बच्चे की सेहत पर कोई असर न पड़े और बीमारी से बचाव हो सके। इसके साथ ही गर्भावस्था में जिन महिलाओं में वायरस का स्तर अधिक होता है उनके लिए भी दवाएं और हेपेटाइटिस बी के टीके उपलब्ध हैं।
दुनिया की लगभग 10-15% आबादी हेपेटाइटिस बी की शिकार है। यह बीमारी भारत में काफी लोगों में दिखाई देती है जहाँ हर साल लगभग 100,000 भारतीय हेपेटाइटिस इंफेक्शन से मर जाते हैं।
इसके अलावा, यह लिवर कैंसर, क्रोनिक लिवर डिजीज और सिरोसिस जैसी बड़ी बीमारी के प्रमुख कारणों में से एक है।
बेहतर इम्यून सिस्टम के कारण शरीर में एक्यूट हेपेटाइटिस बी वायरस के जल्द ही समाप्त होने की संभावना होती है। लेकिन प्रेगनेंसी के दौरान माँ द्वारा बच्चे में एचबीवी वायरस जाने का खतरा बढ़ जाता है। यह वायरस बच्चों में लिवर कार्सिनोमा और सिरोसिस जैसी बीमारी का बड़ा कारण होता है। डिलीवरी के समय संक्रमित होने वाले लगभग 90% बच्चे वायरस के क्रोनिक वाहक बन जाते हैं।
इसलिए, यदि आप गर्भवती हैं, तो हेपेटाइटिस बी की जांच करवाना बहुत ही आवश्यक है। यदि आप एचबीवी पॉजिटिव हैं, तो आपको अपने बच्चे में इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए काफी सावधानी बरतनी चाहिए।
हेपेटाइटिस बी वायरस संक्रमित व्यक्तियों के शरीर के तरल पदार्थ जैसे की खून, लार या स्पर्म के संपर्क में आने से फैलता है। हालांकि, एचबीवी के सटीक कारण का पता लगाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इसके लक्षण दिखने में काफी समय लगता है। सबसे आम तरीके जिनसे वायरस फैल सकता है वे हैं:
कई बार गर्भवती महिलाएं इस बात से अनजान होती हैं कि वे एचबीवी से संक्रमित हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हेपेटाइटिस बी के लक्षणों को पहचान पाना थोड़ा मुश्किल है। वे बाद के स्टेज में दिखाई पड़ते हैं और केवल अस्पष्ट रूप से महसूस किए जा सकते हैं। वायरस से संक्रमित होने के लगभग 2-3 महीने बाद लक्षण ध्यान देने योग्य हो जाते हैं। हालांकि, ऐसे मामले हैं जहाँ कुछ संकेत आते और जाते हैं। इनमें से कुछ लक्षण ये हैं:
आमतौर पर, यदि आप गर्भावस्था में हेपेटाइटिस बी से संक्रमित हैं, तो इसका गर्भ में पल रहे बच्चे पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन यह आपके खून में वायरल लोड पर निर्भर करता है। यदि लेवल हाई है, तो जन्म से पहले आपके बच्चे के प्रभावित होने की संभावना है। एक्यूट इंफेक्शन के मामले में, बच्चे के जन्म के समय कम वजन और प्रीमैच्योर जन्म की संभावना बढ़ जाती है, जबकि जो माँ एचबीवी इंफेक्शन से प्रभावित है उसमें जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस और प्रसवपूर्व रक्तस्राव होने की संभावना होती है।
डिलीवरी के समय बच्चे पर अधिक खतरा रहता है क्योंकि वह मां के खून और मल के संपर्क में आता है। यदि बच्चा उस अवस्था में संक्रमित हो जाता है और समय पर उसे इलाज नहीं दिया जाता, तो उसे आजीवन लिवर की बीमारी होने का खतरा होता है। इसलिए, यह आवश्यक है कि गर्भवती होने पर माँ को हेपेटाइटिस बी थेरेपी मिले, ताकि बच्चे पर इंफेक्शन के जोखिम को कम किया जा सके।
आमतौर पर, संक्रमित माँ द्वारा ब्रेस्टफीडिंग के दौरान के बच्चे में एचबीवी के संचरण का होना कम है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रसव के समय बच्चा पहले से ही वायरस के संपर्क में होता है और इसलिए जन्म के समय ही बच्चा हेप बी वैक्सीन के साथ प्रतिरक्षित होता है। हालांकि ऐसे मामलों में संक्रमित मां को काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। जैसे कि स्तनपान के दौरान मां अपने निपल्स की अच्छी देखभाल करे। यदि निपल्स में दरार या खून आता है, तो रक्त के माध्यम से बच्चे को एचबीवी संचारित करने का जोखिम होता है। ऐसे मामलों में, जब तक निप्पल ठीक न हो जाए, माँ को बच्चे को एक्सप्रेस किया हुआ दूध या फॉर्मूला दूध बोतल से पिलाना चाहिए।
एक गर्भवती महिला को आमतौर पर एचबीएसएजी टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। क्योंकि, अगर वह एचबीवी से संक्रमित है, तो यह वायरस बच्चे में आसानी से फैल सकता है। एचबीवी का संचरण तीन मुख्य तरीकों से हो सकता है। वह हैं:
इस स्थिति में वायरस के लिए गर्भ में प्लेसेंटा को पार करना मुश्किल होता है। हालांकि, ऐसे मामले हैं जब ऐसा हो सकता है। गर्भाशय के अंदर हेपेटाइटिस बी वायरस के संभावित कारण ये हैं:
इस अवधि के दौरान बच्चे को माँ से हेपेटाइटिस बी वायरस होने का सबसे अधिक खतरा होता है। जन्म के दौरान एचबीवी के संचरण के मुख्य कारण हैं:
संक्रमित माँ के ब्रेस्ट मिल्क से बच्चे को कोई खतरा नहीं होता है लेकिन निप्पल से खून बहने से बच्चे को इंफेक्शन हो सकता है। इसलिए यह सलाह दी जाती है कि स्तनपान कराने के दौरान माँ को अपने निप्पल्स का खास ध्यान रखना चाहिए। बच्चे की ठीक से लैच करने दें और साथ ही ये भी सुनिश्चित हो कि निप्पल्स सूखे हो ताकि वह क्रैक न हों और खून न बहे क्योंकि एचबीवी रक्त के माध्यम से बच्चे में इंफेक्शन फैलाता है।
जब गर्भावस्था के शुरुआती दौर में लक्षण दिखें या फिर टेस्ट का नतीजा पॉजिटिव मिलता है, तो डॉक्टर कुछ जरूरी ब्लड टेस्ट कर सकते हैं। आपके सिस्टम में वायरल लोड के आधार पर और चाहे वह एक्यूट हेपेटाइटिस बी हो या क्रोनिक, आपको हेपेटाइटिस बी इम्यून ग्लोब्युलिन (एचबीआईजी) के टीके का एक शॉट दिया जाता है। इस टीके में हेपेटाइटिस बी वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी होते हैं और इस प्रकार वायरस से लड़ने में अतिरिक्त शक्ति मिलती है।
आपके इंफेक्शन की गंभीरता के अनुसार, आपको निम्नलिखित उपचारों से गुजरना पड़ सकता है:
कुछ दवाएं हैं जिन्हें गर्भावस्था में हेप बी के इलाज के लिए एफडीए द्वारा मान्यता दी गई है।
साइड इफेक्ट्स में उल्टी, बीमार महसूस करना और चक्कर आना शामिल हैं। इन दवाओं को डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए।
हेपेटाइटिस बी लिवर में होने वाला इंफेक्शन है, जो तब होता है जब व्यक्ति हेपेटाइटिस बी वायरस से संक्रमित हो। ज्यादातर लोग जिनका इम्यून सिस्टम अच्छा है उनको इस बीमारी से ठीक होने में बस 2 से 3 महीने लगते हैं। लेकिन उन महिलाओं के लिए जिनके लिए इंफेक्शन लगभग 6 महीने तक रहता है, इसका परिणाम क्रोनिक हेपेटाइटिस बी होता है। जिससे हमेशा के लिए लिवर खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे विकसित होने वाले कुछ कॉम्प्लिकेशन ये रहें:
यह स्थिति तब पैदा होती है जब आपको लंबे समय तक इंफेक्शन रहा हो और आपका लिवर सिरोसिस से प्रभावित हो गया हो। गर्भावस्था के दौरान आपके लिवर की बढ़ती मांग अतिरिक्त स्वास्थ्य समस्या का कारण बनती है। कभी–कभी यह स्थिति बढ़ सकती है और गंभीर हो सकती है। ऐसे मामले में, आपको तत्काल मेडिकल सुविधा की आवश्यकता होगी और जल्द प्रसव का सुझाव दिया जाएगा। इस स्थिति में आपको अपने खानपान पर ध्यान देने और ऐसी डाइट का सेवन करने के आदेश दिए जाते हैं जो लिवर के अनुकूल हों।
यह लगभग 6% गर्भधारण में पाया जाता है। यह गर्भावस्था के दौरान बाइल स्लॉट में परिवर्तन के कारण होता है। एक गर्भवती महिला में, गाल ब्लैडर धीमा हो जाता है। नतीजतन, ब्लैडर खाली करने की प्रक्रिया धीरे–धीरे होती है और लंबी अवधि के लिए बाइल साल्ट का कलेक्शन होता है। यह स्थिति पीलिया का कारण बन सकती है या खराब हो सकती है, जहाँ पित्ताशय को निकालना आवश्यक हो जाता है।
सिरोसिस से लिवर में घाव होना शुरू हो जाते हैं, लेकिन ये बीमारी ऐसे पाँच में से किसी एक व्यक्ति को होने की संभावना है जो कि क्रोनिक हेपेटाइटिस बी से पीड़ित हो। इसके लक्षण बहुत देर में पता चलते हैं, तब तक आपके लिवर में काफी कुछ डैमेज हो गया होता है। ऐसी अवस्था में वजन घटना, बीमारी, त्वचा में खुजली, पेट और टखनों में सूजन, भूख न लगना और थकान होने लगती है।
सिरोसिस से पीड़ित 20 में से एक व्यक्ति में लिवर कैंसर होने की संभावना होती है। लिवर कैंसर के लक्षणों में बीमार महसूस करना, अचानक वजन घटना, पीलिया और भूख न लगना शामिल हैं।
इस स्थिति में लिवर के लगभग सभी महत्वपूर्ण भाग काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे में जीवन को बनाए रखने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट अनिवार्य हो जाता है।
कुछ मामलों में, एक्यूट हेपेटाइटिस बी एक गंभीर समस्या फुलमिनेंट हेपेटाइटिस बी तक बढ़ सकता है। यह एक दुर्लभ स्थिति है और यह 100 में से लगभग 1 मामलों में होता है। इस परिस्थिति में, हमारा इम्यून सिस्टम ही लिवर पर अटैक करता है जिससे शरीर को काफी नुकसान झेलना पड़ता है। जिसके लिए शीघ्र उपचार की आवश्यकता होती है। इसके लक्षणों में गंभीर पीलिया, बेहोशी, गिरना और पेट में सूजन शामिल हैं।
बच्चों को हेपेटाइटिस बी से संक्रमित होने से बचाने के लिए हेपेटाइटिस बी के टीके उपलब्ध हैं। उन्हें बच्चों के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार दिया जाता है। टीकाकरण के अलावा, कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। यह सलाह दी जाती है कि निम्नलिखित बातों को गंभीरता से लिया जाए, ताकि आप संक्रमित होने के जोखिम को कम कर सकें।
हेपेटाइटिस बी से बचने के लिए महत्वपूर्ण है कि आप असुरक्षित यौन संबंध से दूर रहें, जब तक कि आप सुनिश्चित न हों कि आपका साथी सभी इंफेक्शन से मुक्त है।
अगर आप अपने पार्टनर के एचबीवी स्टेटस से अनजान हैं, तो कोशिश करें कि किसी भी कंडोम पर पूरी तरह भरोसा न करें। हालांकि कंडोम बीमारी के ट्रांसमिशन के जोखिम को कम कर सकता है, लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हो सकते हैं। केवल ब्रांडेड कंडोम को प्राथमिकता दें और हर बार नया इस्तेमाल करें।
बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के अनावश्यक दवाएं लेने से दूर रहें। यहाँ तक कि अगर आपको इंजेक्शन लेना है, तो सुनिश्चित करें कि आप एक नई सुई का उपयोग करें। उपयोग की गई सुइयों को तुरंत तोड़ दें, दोबारा इस्तेमाल न करें।
यदि आप अपने शरीर पर कोई पियर्सिंग या टैटू बनवाना चाहती हैं, तो एक अच्छी जगह चुनें। उपयोग किए गए औजार और उनकी सफाई के तरीकों के बारे में विस्तार से पूछें। सुनिश्चित करें कि नई और साफ सुइयों का उपयोग किया जाए। यदि नहीं, तो आपको अन्य विकल्पों की तलाश करनी चाहिए।
अपने निजी सामान को देने से बचें, खासकर रेजर ब्लेड और टूथब्रश। क्योंकि उनमें संक्रमित रक्त के निशान हो सकते हैं। किसी भी खुले घाव, खरोंच या कट को तुरंत ड्रेसिंग के साथ कवर किया जाना चाहिए। अपनी यात्रा से पहले हेपेटाइटिस बी के टीके के बारे में पूछें।
किसी ऐसे स्थान की यात्रा करने की योजना बनाते समय, जहाँ हेपेटाइटिस बी आम है, हेपेटाइटिस बी के टीकाकरण के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लें।
जन्म के समय बच्चे को दो इंजेक्शन दिए जाने चाहिए जो हेपेटाइटिस बी की एक खुराक और हेपेटाइटिस बी इम्यून ग्लोब्युलिन की एक खुराक है। इन शॉट्स को प्रसव के तुरंत बाद पहले 12 घंटे के अंदर दिया जाता है। इन दो इंजेक्शनों से, बच्चे को आजीवन हेपेटाइटिस बी के इंफेक्शन से बचाने की 90% संभावना होती है। इन डोज के अलावा दो और खुराकें दी जाती हैं। एक 2-3 महीने की उम्र में और दूसरी 6 महीने की उम्र में दी जाती है। एचबीएसएजी पॉजिटिव मां से पैदा हुए बच्चों की कड़ाई से निगरानी रखी जाती है। बच्चे के शुरुआती वैक्सीनेशन के बाद 2 महीने लगातार फॉलोअप लिया जाता, जो 8 से 12 महीने तक रहता है। इस फॉलो-अप के दौरान, हेपेटाइटिस बी वायरस बच्चे में है कि नहीं उसके लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। अगर मां संक्रमित है, तो उसे हर 12 महीने में गर्भावस्था के बाद फॉलोअप करने की आवश्यकता होती है। यह उनके वायरल मार्करों और लिवर के सही से काम करने में मदद करता है।
प्रेगनेंसी के दौरान इस तरह के इंफेक्शन से बचने के लिए गर्भवती महिला का बहुत ही ध्यान रखना और देखभाल करना जरूरी है। भले ही उन्हें पहले टीका लगाया गया हो या टेस्ट किया गया हो, लेकिन पहली तिमाही में वायरस के लिए एक आवश्यक टेस्ट बहुत महत्वपूर्ण है।
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