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महिलाओं के शरीर में गर्भावस्था के दौरान बहुत अधिक परिवर्तन होते हैं। इसका कारण है उनके शरीर के अंदर तीव्रता से होने वाले हार्मोनल परिवर्तन। इन परिवर्तनों की वजह से कई बार गर्भवती महिलाओं को अनेक असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। इन असुविधाओं में डकार, सीने में जलन, मतली, अपच जैसे अनेक लक्षण शामिल हैं। यद्यपि इन सबसे होने वाली माँ और गर्भस्थ शिशु को कोई हानि नहीं होती और यह गर्भावस्था का एक संकेत ही होते हैं, तथापि शरीर में किसी भी प्रकार की आंतरिक गतिविधि या शारीरिक ऐंठन से गर्भवती महिला को कभी-कभी असहजता या थोड़े बहुत कष्ट का अनुभव हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान होने वाली ऐसी समस्याओं में एक समस्या हिचकी भी है जो शरीर पर कोई गंभीर प्रभाव नहीं डालती किंतु यह होने वाली माँ को सहज और आराम से रहने में परेशानी उत्पन्न करती है।
गर्भावस्था के दौरान हिचकी का क्या मतलब है
गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर पहली तिमाही के अंतिम दिनों और दूसरी तिमाही की शुरुआत में गर्भवती महिलाओं को हिचकियां आती हैं। यद्यपि यह हिचकियां बार-बार होने से अत्यधिक असुविधा होती है किंतु इस वजह से माँ और बच्चे पर कोई भी गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता है। गर्भावस्था के दौरान हिचकियां मुख्य रूप से प्राकृतिक ही होती हैं और महिलाओं में इसका बार-बार होना बहुत आम बात है। गर्भवती महिलाओं में गहरी और अच्छी तरह सांस न लेने या भोजन करने के अनुचित तरीकों के कारण हिचकियों को बढ़ावा मिलता है। इसलिए यदि आप आराम से और धीमी गति में भोजन का सेवन करती हैं तो आपको हिचकियों से आराम मिल सकता है।
गर्भावस्था के दौरान हिचकी के कारण
गर्भावस्था के दौरान शरीर की आंतरिक प्रणाली में उतार-चढ़ाव के साथ अनेक गतिविधियां होती हैं जो ज्यादातर महिलाओं में हिचकी के रूप में उभर कर सामने आती है। इस अवधि में अत्यधिक हिचकी के अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे;
अतिरिक्त ऑक्सीजन:
आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान सांस लेने की क्षमता लगभग 30% से 40% तक बढ़ जाती है। यह भ्रूण को ऑक्सीजन देने के लिए यह शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। हालांकि, ऑक्सीजन में वृद्धि होने से माँ को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है जिससे डायफ्राम में ऐंठन के कारण गर्भवती महिलाओं में अत्यधिक हिचकियों की शिकायत होती है।
एसिड रिफ्लक्स:
गर्भावस्था के दौरान पाचन तंत्र के अंगों के दबाव के कारण गर्भवती महिलाओं में एसिड रिफ्लक्स होना आम बात है। कई बार जल्दी खाने-पीने की प्रवृत्ति से पाचन तंत्र में दबाव के कारण एसिड रिफ्लक्स की समस्या होती है और साथ ही लगातार हिचकियां भी आने लगती हैं। इसी वजह से डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को धीरे-धीरे भोजन करने की सलाह देते हैं।
चेतना:
कई महिलाओं द्वारा यह माना जाता है कि हिचकियां आना स्वस्थ गर्भावस्था का संकेत है। इस वजह से गर्भवती महिलाएं खुद पर अधिक ध्यान देने और अपने सांस लेने के तरीके पर लगातार नजर रखने के लिए प्रेरित होती हैं। हिचकियां आने के कारण गर्भवती महिलाओं का पूरा ध्यान इसी पर रहता है जिस वजह से यह लगातार अधिक बढ़ती जाती है। इन पर बिलकुल भी ध्यान न देने और अपना ध्यान कहीं और लगाने से कई बार हिचकियों को रोकने में मदद मिलती है।
भ्रूण की हिचकियां क्या हैं
दूसरी तिमाही के आसपास मांओं को अपने बेबी बंप में हल्के झटके या अधिक गतिविधियां महसूस होती हैं । शुरुआत में इन गतिविधियों से माएं बच्चे को किसी भी प्रकार की तकलीफ होने के भ्रम से चिंतित हो जाती हैं। किंतु समय के साथ ये गतिविधियां बार-बार व लगातार होने लगती हैं और सामान्यतः इनसे कोई भी समस्या नहीं होती है। गर्भावस्था के दौरान गर्भ में पल रहा शिशु हिचकियां लेता है जिस वजह से माँ अपने गर्भ में इन गतिविधियों को महसूस कर पाती है।
गर्भ में पल रहा शिशु एम्नियोटिक द्रव के संपर्क में आने से उसके मुँह में थोड़ा सा द्रव चला जाता है। यह द्रव फेफड़ों में प्रवेश करने के कारण बच्चा ऐंठन के माध्यम से इसे बाहर निकालने का प्रयास करता है। यह स्थिति प्राकृतिक होती है और इसके कारण शिशु को सांस लेने में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती है। शिशु के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति गर्भनाल के माध्यम से माँ से पूरी होती है। वास्तविक रूप से गर्भ में पल रहे शिशु में हिचकियां आना उसके स्वस्थ विकास का संकेत होता है। तीसरी तिमाही के दौरान हिचकी काफी तेज हो जाती है और एक माँ के लिए इसका अनुभव बहुत उत्साहपूर्ण होता है।
गर्भावस्था के दौरान हिचकियों से निजात पाने के तरीके
गर्भावस्था के दौरान कई माएं अपनी अनेक असुविधाओं का घरेलू उपचार करना ही पसंद करती हैं। इस अवधि में हिचकियों से निजात के लिए भी कुछ पुराने और अच्छे उपाय हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं। प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान हिचकियों को नियंत्रित करने के लिए यह उपचार अधिक प्रभावी हैं और शारीरिक ऐंठन को रोकने में तुरंत मदद करते हैं।
पानी पीना: हिचकी आने पर पानी पीने से तुरंत राहत मिलती है, यह बहुत आजमाया हुआ और आम उपाय है। इस प्रक्रिया में पूरा एक गिलास पानी एक बार में पीने पर ही हिचकी कम होती है। बिना किसी रुकावट के लगातार पानी पीने से हमारी सांस कुछ देर के लिए रुक जाती है। यह प्रक्रिया डायफ्राम की ऐंठन को कम करती है। पानी से गरारे करने से भी हिचकी को नियंत्रित किया जा सकता है।
गहरी सांस: एक बार में गहरी सांस लेकर, जितनी देर तक आप रोक सकते हैं रोककर रखें, इससे ऐंठन कम होती है। यह तकनीक फेफड़ों को सक्रिय रखती है और डायफ्राम की गति को नियंत्रित करती है परंतु इस बात का खयाल रखें कि इस प्रक्रिया के दौरान आपको घुटन न हो। आप फेफड़ों को सक्रिय बनाए रखने के लिए अन्य श्वास संबंधी व्यायामों का भी अभ्यास कर सकती हैं। इस तकनीक को कई माएं कागज के थैले के अंदर सांस लेकर भी करती हैं जिससे उन्हें मदद मिलती है।
नींबू और अदरक: ऐसा माना जाता है कि नींबू या अदरक जैसे तेज स्वाद वाली किसी चीज को चूसने से हिचकी की समस्या दूर हो सकती है। नींबू, अदरक और शहद से बना पेय भी अधिक फायदेमंद होता है। जैसे पानी पीने की सलाह दी जाती है, बिलकुल वैसे ही एक बार में पूरा एक गिलास शरबत पीने से अधिक प्रभावी परिणाम मिल सकते हैं।
शक्कर: एक चम्मच शक्कर का सेवन करने से हिचकी तुरंत बंद होती है, मुँह में चीनी की मिठास होने के कारण मस्तिष्क का ध्यान एक अलग स्वाद पर केंद्रित हो जाता है। इस दौरान आप हिचकियों से ज्यादा मीठे स्वाद को महसूस करती हैं और हिचकियों से आपका ध्यान हट जाता है। इससे लंबे समय के लिए आपकी हिचकियां बंद हो जाती हैं और ऐंठन भी खत्म होती है।
जीभ बाहर निकालें: जीभ को बाहर निकालने के साथ अपने दोनों कानों को बंद करने से भी कहा जाता है कि हिचकियां बंद हो जाती हैं। इस प्रक्रिया में आप डायफ्राम की गतिविधि को प्रतिबंधित करने के लिए गहरी सांस लें और छोड़ें।
गर्दन झुकाएं: नाक के मार्ग को बंद करने के बजाय आप अपनी गर्दन को आगे की ओर झुकाकर अपनी वायु नली के माध्यम से हवा के प्रवाह को रोक सकती हैं, ऐसा करने से ऐंठन नियंत्रण में रहती है।
सिरका पिएं: हिचकी को रोकने के लिए कुछ चम्मच सिरका पीने से भी उपाय हो सकता है। चूंकि यह अम्लीय होता है इसलिए अक्सर गर्भवती महिलाओं के सीने में इससे जलन हो सकती है। इसलिए इसे कम से कम मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है।
गर्भावस्था के दौरान हिचकियां आना एक छोटी सी असुविधा है, जिससे होने वाली माँ या गर्भ में पल रहे शिशु को किसी भी प्रकार की गंभीर समस्या नहीं होती है। यह केवल कुछ शारीरिक परिवर्तनों के लिए शरीर के सामंजस्य को प्रतिबिंबित करती हैं। ऊपर दिए हुए कुछ प्राकृतिक उपचारों से इन असुविधाओं को दूर करके आप अपनी गर्भावस्था के इस सुंदर चरण का आनंद ले सकती हैं।