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ऐसे कई माता-पिता हैं जिनको यह लगता है कि अगर उनका बच्चा चीजों को देर से सीखता है, तो यह उसे अक्षम बनाता है या वह पूरे तरीके से प्रयास नहीं कर रहा है। लेकिन इनमें से कोई भी बात सच नहीं है! माता-पिता के लिए सबसे कठिन चीजों में से एक यह स्वीकार करना है कि उनका बच्चा एक स्लो लर्नर यानी देर से सीखने वाला बच्चा है। जब भी आप ऐसे बच्चे के साथ संभालती हैं जो सीखने के लिए संघर्ष कर रहा है, ऐसे में आप उसके जीवन को आसान बनाने में मदद करने के लिए कदम उठा सकती हैं। हालांकि ऐसा करने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर स्लो लर्नर बच्चा कैसा होता है।
चीजों से देर से सीखने और समझने वाला बच्चा वह होता है जिसका डेवलपमेंटल मार्कर उसकी उम्र के अन्य बच्चों तुलना में बहुत देर से शुरू होता है। आमतौर पर लोग इस चीज को गलत समझ लेते हैं कि या तो बच्चा सीखने में असफल है या फिर गूंगा है। सच तो यह है कि हर बच्चे की सीखने और विकसित होने की अपनी क्षमता होती है। कुछ बच्चे स्वाभाविक रूप से बहुत तेजी से सीखते हैं जबकि अन्य बच्चे, चीजों को सीखने के लिए अपना समय लेते हैं।
देर से सीखने वाले बच्चे वे होते हैं जिनको विकास से जुड़ी शुरूआती आम चीजों को भी सीखने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है, इसे चार ग्रुप में बांटा गया है – विकासात्मक (डेवलपमेंटल), सामाजिक (सोशल), व्यक्तिगत (पर्सनल) या शैक्षिक (एजुकेशनल)। यहाँ पर स्लो लर्नर बच्चों के कुछ लक्षणों के बारे में बताया गया है:
जिन बच्चों को विकास से जुड़ी चीजों को समझने और सीखने में परेशानी होती है उनमें, खराब मेमोरी और बोलने या भाषा के पैटर्न में देरी होना जैसे लक्षण दिखाई देते है। इसका मतलब है कि आपका बच्चा दूसरों की तुलना में बोलना शुरू करने में अधिक समय लेता है या उसे ज्यादा से ज्यादा कॉन्सेप्ट्स को सीखने के लिए अधिक लंबे और दोहराने वाले लेसन की जरूरत होती है।
जो बच्चे सामाजिक विकास को सीखने में सक्षम नहीं होते हैं, आमतौर पर वह अपने से छोटे उम्र के बच्चों से अधिक संबंध रखने और दोस्तों के साथ बातचीत करने से बचते हैं। ऐसे बच्चों को ज्यादातर इंट्रोवर्ट का लेबल दिया जाता है। ये अपने साथियों के साथ कनेक्शन बनाने में भी असमर्थ होते हैं और ज्यादा से ज्यादा समय शांत या अपने में रहना पसंद करते हैं।
पर्सनल लर्निंग की समस्या वाले बच्चे अपनी भावनाओं पर कम नियंत्रण रखते हैं। उनको क्रोध भी बहुत जल्दी आता हैं और वे फ्रस्टेट भी जल्दी हो जाते हैं, छोटी-छोटी बातों के लिए एंग्जायटी जैसी भावनाओं को व्यक्त करते हैं या असफलताओं पर निराश हो जाते हैं। इन बच्चों में ज्यादातर आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास से जुड़ी अहम समस्याएं होने की सबसे अधिक संभावना होती है और वे आक्रामकता या भावनात्मक असंतुलन को व्यक्त करते हैं।
जो बच्चे इस समस्या से गुजरते हैं उनको दी गई जानकारी को समझने में अधिक समय लगता है। ये बच्चे इंटेलेक्चुअल ज्ञान में आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन उन्हें कॉन्सेप्ट्स को समझने में अधिक समय लगता है।
आपको बता दें कि ज्यादातर माता-पिता यह जानना चाहते हैं आखिर उनका बच्चा स्लो लर्नर क्यों हैं। सच्चाई यही है कि इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। फिर भी, कुछ ऐसे कारण हैं जो मुख्य वजह हो सकते हैं लेकिन ये कारण आपके बच्चे के लिए असामान्य नहीं होते हैं।
हो सकता है कि आपका बच्चा पहले किसी आघात से गुजरा हो जिसकी वजह से उसके विकास में देरी हो रही है। अब यह व्यापक रूप से माना गया है कि किसी भी प्रकार का ट्रामा- चाहे वह शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक हो – बच्चों पर एक समान प्रभाव डालता है।
स्लो लर्निंग का एक कारण प्रीमैच्योर जन्म भी होता है। यह आपके बच्चे के दिमाग के विकास में देरी होने का कारण भी हो सकता है।
सीखने में समस्या आने का एक अन्य सामान्य कारण मेडिकल भी होता है – दिमाग या नर्वस सिस्टम की बीमारी बच्चों के लिए सीखने की क्षमता में समस्या पैदा करती है। इन बीमारियों का इलाज किया जा सकता है, लेकिन जब इलाज हो पाता है, तो भी इसको संभाला जा सकता है।
माता-पिता का बच्चे के प्रति अधिक लाड और प्यार भी उसके सीखने की क्षमता को कम करता है। कभी-कभी, चीजों को सीखने के दौरान बच्चों को खुद कुछ करने और असफल होने की जरूरत होती है। बहुत सारे बच्चे जिन्हें लाड़ प्यार मिलता है, उनकी सभी समस्याओं को माता-पिता द्वारा हल कर दिया जाता है, यही वजह है कि वे कभी न सीख पाते हैं और न ही उसे अपना पाते हैं।
जो बच्चे चीजों को देर सीखते हैं उनको अपनी जिंदगी में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वे अपने दोस्तों के साथ बने रहने के लिए संघर्ष करते हैं, इतना ही नहीं सीखने के दौरान प्रेरित रहना मुश्किल भी हो जाता है, डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी कई समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है या लोगों के साथ बातचीत करने और संबंध बनाने के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है। एक स्लो लर्नर के रूप में आपके बच्चे के सामने आने वाली सभी चुनौतियों को समझने के लिए, आपको बच्चे के लर्निंग और डेवलपमेंटल स्पेशलिस्ट से बात करनी पड़ेगी।
वैसे तो स्लो लर्नर बच्चे की मदद करने के कई तरीके हैं। उनमें से कुछ तरीके यहां दिए गए हैं जो बच्चों की मदद करने के लिए जाने जाते हैं:
एक स्लो लर्नर बच्चे के लिए प्रेरणा हासिल करना बेहद जरूरी चीजों में से एक है। सीखने की क्षमता को जारी रखने और उसे प्रेरित करने में उनकी मदद करने के लिए, आपको उसकी प्रशंसा करनी चाहिए, जब भी वह किसी कांसेप्ट या तकनीक को सही ढंग से समझता है। छोटी से छोटी जीत को भी स्वीकार करना चाहिए और उसकी तारीफ करनी चाहिए।
किसी भी आम बच्चे की तरह ही, देर से सीखने वाला बच्चा भी अपने कोर्स को सीखने के लिए प्रेरित होता रहेगा अगर अंत में उसे कोई इनाम मिलने वाला हो। अपने बच्चे को प्रेरित रखने के लिए और काम पर ध्यान केंद्रित करने में उसकी मदद करने के लिए माइलस्टोन रिवॉर्ड जरूर दें।
चीजों को देर से सीखने वाले बच्चे के साथ काम करते समय, छोटे-छोटे लक्ष्य रखना ही जरूरी होता है, जिसे वह आसानी से पूरा करने या उस तक पहुंचने के योग्य हो। माता-पिता होने के नाते, यह समझना आपकी जिम्मेदारी है कि आपका बच्चा आसानी से कौनसा लक्ष्य पूरा कर सकता है।
इस बात का आप ध्यान रखें कि इस धारणा को बिलकुल भी अपने दिमाग से निकाल दें कि असफलता कोई बुरी चीज है। शिक्षकों और अन्य देखभाल करने वालों के साथ-साथ अपने साथ भी सच रहें कि आपका बच्चा अन्य बच्चों की तुलना में अधिक बार असफल होगा। जब वह असफल होता है, तो उसे डांटें नहीं। इसके बजाय, उसे फिर से कोशिश करने के लिए प्रोत्साहित करें।
चाहे वह शिक्षक हो, आपका पार्टनर हो, माता-पिता, दाई या कोई अन्य देखभाल करने वाला, अपने बच्चे के संघर्ष के बारे में सच बताएं। उन्हें बच्चे की स्थिति के बारे में बताएं और उन्हें इस बारे में शिक्षित करें कि कैसे आपके बच्चे की स्लो लर्निंग की प्रक्रिया को संभालना है।
ऐसे में कभी भी अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से न करें। यह आपको और उसे केवल हतोत्साहित करेगा। उसको सिखाते समय धैर्य रखें और उस पर भरोसा करें कि वह मुश्किल से मुश्किल चीजों को भी पूरा कर लेगा, भले ही वह स्लो लर्नर क्यों न हो। ऐसे हालात में आप अपना धैर्य न खोएं और उस पर चिल्लाएं नहीं, क्योंकि यह केवल उसे डिमोटिवेट करेगा।
चाहे वह पोस्ट-इट नोट्स हों, कैलेंडर या कैलकुलेटर पर रिमाइंडर हों, अपने बच्चे को सिखाते समय देखने और सुनने की सहायता के लिए जगह जरूर रखें। ये सहायता सबकॉन्शियस लेवल पर फायदेमंद होती है। ऐसी मदद ढूंढें जिसका उपयोग निष्क्रिय रूप से किया जा सके ताकि आपका बच्चा सीखना जारी रखे।
स्लो लर्नर को सिखाते समय बात करने के तरीके को सपोर्टिव रखना जरूरी है। अपने बच्चे को इसे तब तक जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करें जब तक कि वह सफल न हो जाए। सिर्फ यह जानकर कि आप अपने बच्चे पर विश्वास करती हैं, उसे सीखने और कोशिश करते रहने के लिए प्रेरित करेगा।
देर से सीखने वाले बच्चों के बारे में ज्यादातर पूछे जाने वाले कुछ सवाल यहां दिए गए हैं।
लर्निंग डिसेबिलिटी या बच्चों में सीखने में अक्षमता एक शारीरिक समस्या है जो बच्चे को दूसरों की तरह सीखने से रोकती है। वे अभी भी अपने दोस्तों के समान गति से सीख सकते हैं यदि उन्हें एक अलग तरीके से पढ़ाया जाता है जो उनकी स्थिति के हिसाब से काम करता है। उदाहरण के लिए, डिस्लेक्सिक बच्चे किसी भी अन्य बच्चे की तरह तेजी से सीख सकते हैं यदि उन्हें पढ़ने के लिए कहे जाने के बजाय खुद पढ़कर बताया जाता है।
वहीं एक कांसेप्ट को समझने या उन्हें जो पढ़ाया जाता है उसे समझने में असमर्थता के कारण स्लो लर्नर बच्चों को अपने साथियों के साथ रहने में समस्या होती है। स्लो लर्नर बच्चों में विकास से जुड़ी समस्याएं पैदा होती हैं, जबकि लर्निंग डिसेबिलिटी वाले बच्चों में ऐसा नहीं होता है।
एडीएचडी एक ऐसी समस्या है जो ध्यान रिटेंशन पर फोकस करती है। वहीं स्लो लर्नर बच्चे को जानकारी को जल्दी से समझने में असमर्थता के कारण अन्य लोगों से ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है।
नहीं, ऑटिज्म एक ऐसी मेडिकल समस्या है जहां बच्चा सामाजिक बातचीत और मानदंडों के साथ की पहचान नहीं करता है। स्लो लर्निंग हो सकता है इसका एक लक्षण हो, लेकिन सभी स्लो लर्नर बच्चों को ऑटिज्म नहीं होता है।
यह याद रखना जरूरी है कि एक बच्चे को खुद से कभी नहीं पता चलना कि वो एक स्लो लर्नर है। यदि आपको लगता है कि आपके बच्चे को सीखने में परेशानी होती है, तो अपने डॉक्टरों से संपर्क करें और उसकी स्थिति की पूरी तरह से जांच करवाएं।
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