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बांझपन का इलाज कराना वास्तव में मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से थकावट भरा होता है। इस उपचार को करवाने से पहले, हमें प्रक्रिया, इससे जुड़े सभी जोखिमों और निश्चित रूप से सफलता दर के बारे में पूरी तरह अवगत होना चाहिए। यह पोस्ट आपको बांझपन से जुड़े इलाज के एक भाग के रूप में सुपरओवुलेशन थेरेपी के बारे में विस्तार से बताती है।
हम सभी ने आईवीएफ (इन-विट्रो-फर्टिलाइजेशन) ट्रीटमेंट के बारे में सुना ही है; सुपरओवुलेशन भी इसका एक हिस्सा है। आर्टिफिशियल दवा से प्रेरित कई अंडों के बनने को सुपरओवुलेशन कहते हैं जिसका उपयोग आईवीएफ प्रजनन तकनीक में किया जाता है। सामान्य तौर पर, एक महिला हर महीने की पीरियड साइकिल में एक अंडा ओवुलेट करती है। सुपरओवुलेशन प्रक्रिया में, फर्टिलिटी दवाओं की मदद से महिला एक से अधिक अंडे का उत्पादन करने में सक्षम होगी, जिसे डॉक्टर ओवुलेशन से ठीक पहले ओवरी से निकाल लेंगे। अधिक अंडे से अधिक भ्रूण पैदा होंगे। इस प्रक्रिया से आईवीएफ में सफलता दर की संभावना बढ़ जाती है।
जो महिलाएं पहले से ही ओवुलेट कर रही हैं लेकिन उनको गर्भधारण करने में दिक्कतें आ रही हैं, वे अधिक अंडे को रिलीज करके गर्भवती होने की संभावना में सुधार लाने के लिए सुपरओवुलेशन का विकल्प चुन सकती हैं। जिन महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब खुली होती है और जिनके पार्टनर पर्याप्त स्पर्म यानी शुक्राणु का उत्पादन नहीं कर पाते हैं, वे भी सुपरओवुलेशन का विकल्प चुन सकती हैं। एक अन्य मामला यह भी है कि जब महिलाएं खाने वाली दवा की मदद से ओवुलेट कर रही होती हैं, लेकिन गर्भधारण करने में असमर्थ हैं, तो वे सुपरओवुलेशन को भी चुन सकती हैं।
सुपरओवुलेशन की प्रक्रिया महिलाओं द्वारा क्लोमीफीन दवा खाने की मदद से अतिरिक्त अंडे रिलीज करने से शुरू होती है। इस प्रक्रिया में में कम पैसे, कम जोखिम शामिल हैं और इसे सुपरओवुलेशन का सौम्य रूप भी माना जा सकता है।
ओवुलेशन के समय के आसपास अल्ट्रासाउंड कराने से पता चलेगा कि कितने फॉलिकल्स रिलीज हो रहे हैं। यदि केवल एक फॉलिकल रिलीज होता है, तो अगली साइकिल में उसी के अनुसार दवाओं की खुराक बदल दी जाएगी।
कई डॉक्टर सुपरओवुलेशन के दौरान गोनाडोट्रोपिन लेने की सलाह देते हैं। गोनाडोट्रोपिन एक हार्मोनल दवा है जिसे ओवुलेशन शुरू करने के लिए शरीर में इंजेक्ट किया जाता है। जो महिलाएं गोनाडोट्रोपिन दवा का सेवन कर रही हैं उन पर सावधानीपूर्वक निगरानी रखनी चाहिए ताकि इस बात का ध्यान रखा जा सके कि वे बहुत अधिक अंडे का उत्पादन न करें।
सुपरओवुलेशन प्रोटोकॉल से गुजरने वाली महिलाओं को तीन दिन की दवा लेने और फिर अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट के लिए क्लीनिक आने के लिए कहा जाता है। अंडाशय की प्रतिक्रिया के आधार पर डॉक्टर आपको अतिरिक्त निगरानी के लिए अगले एक से तीन दिनों के दौरान क्लीनिक आने के लिए कहेंगे।
एक बार अंडे की मनचाही संख्या परिपक्व हो जाती है, तो डॉक्टर ओवुलेशन शुरू करने के लिए ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) को इंजेक्ट करते हैं। इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन (आईयूआई) के मामले में, आपको इनसेमिनेशन प्रक्रिया के लिए एचसीजी इंजेक्शन के 36 घंटे बाद क्लीनिक में वापस आना होगा।
सुपरओवुलेशन ज्यादातर दो प्रक्रियाओं पर ही केंद्रित है, अंडाशय को अधिक अंडे परिपक्व करने के लिए प्रेरित करना और उन अंडों को समय से पहले रिलीज होने से रोकना। ओवुलेशन से पहले डॉक्टर को अंडाशय से अंडों को बचाने में सक्षम होना चाहिए। यदि अंडों को फिर से प्राप्त करने से पहले ओवुलेशन होता है, तो आईवीएफ साइकिल को रद्द करना पड़ेगा। नीचे बताई गई पहली दो दवाओं का उपयोग सुपरओवुलेशन को प्रेरित करने के लिए किया जाता है, और आखिर की दो को समय से पहले ओवुलेशन को रोकने के लिए इंजेक्ट किया जाता है।
परिपक्व होने के लिए आपको आवश्यक अंडों की संख्या पूरी तरह से आपकी डाइग्नोसिस रिपोर्ट और इलाज पर निर्भर करती है। यह साथ ही डॉक्टर के प्रोफेशनल अनुभव और राय पर भी निर्भर करती है। आपकी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से पता चलेगा कि आपके ओवरी में कितने फॉलिकल्स बनते हैं। समस्या यह है कि हर फॉलिकल आपको अच्छे क्वालिटी वाले अंडे नहीं देगा जो एक भ्रूण में परिपक्व हो सके। इसलिए, आपकी प्रेगनेंसी की सफलता दर में सुधार करने के लिए कई अंडों का उत्पादन किया जाता है। ऊपर दिए गए फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए, अंडों की संख्या 8 से 15 तक हो सकती है। माइक्रो-आईवीएफ के मामले में आपको सिर्फ चार या पांच फॉलिकल्स की ही जरूरत होती है।
निम्नलिखित जोखिम सुपरओवुलेशन से जुड़े हैं:
सुपरओवुलेशन से मल्टीपल प्रेगनेंसी यानी जुड़वां या उससे अधिक बच्चे होने का जोखिम बढ़ता है। लगभग 20-30% सफल आईवीएफ गर्भधारण से जुड़वां या तीन बच्चे होते हैं। अन्य उपचार विकल्पों की तुलना में सुपरओवुलेशन में ट्रिप्लेट्स होने का जोखिम सबसे अधिक होता है।
ओएचएसएस एक ऐसी स्थिति है जिसमें गोनाडोट्रोपिन दवाओं की वजह से अंडाशय का आकार बढ़ जाता है और फ्लूइड से भर जाता है। ओएचएसएस का सौम्य रूप काफी सामान्य है और ब्लोटिंग और पेल्विक क्षेत्र में परेशानी होना इसके लक्षण माने जाते हैं; उपचार खत्म होने के तुरंत बाद ये लक्षण भी चले जाते हैं। लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में, ओएचएसएस अधिक गंभीर होता है और महिलाओं को पेशाब करते समय कठिनाई होती है, तेजी से वजन बढ़ना, डिहाइड्रेशन, किडनी और लिवर जैसे अन्य अंगों में कॉम्प्लिकेशन और खून के थक्कों के विकसित होने का भयंकर जोखिम होता है। ओएचएसएस की संभावना को काफी कम करने के लिए गोनाडोट्रोपिन दवा लेने वाली महिला की बारीकी से निगरानी की जाती है और यदि उसे ओएचएसएस विकसित होने का भारी जोखिम दिखाई देता है, तो उपचार को तुरंत रोक दिया जाता है।
ओवेरियन टॉरशन जिसे ओवेरियन ट्विस्टिंग भी कहा जाता है, बहुत ही दुर्लभ मामलों में से एक होता है। जैसे-जैसे ओवरी का आकार बढ़ता है, यह अपने आप मुड़ने लगती है, जिससे उसमें बहने वाला खून रुक जाता है। इससे पेट में तेज दर्द, जी मिचलाना, उल्टी और कभी-कभी बुखार होता है। इस टेढ़ेपन को ठीक करने के लिए सर्जरी कराने की जरूरत पड़ती है।
जब एक फर्टिलाइज अंडा गर्भाशय के बाहर जैसे कि फैलोपियन ट्यूब, अंडाशय या सर्विक्स में इम्प्लांट होता है, तो इसे एक्टोपिक प्रेगनेंसी कहा जाता है। एक्टोपिक गर्भावस्था काफी दुर्लभ होती है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्भधारण में अक्षम कई महिलाओं में ट्यूबल डिसफंक्शन होता है और प्रजनन दवाएं अधिक अंडे रिलीज करने का कारण बनती हैं। इससे यह संभावना बढ़ जाती है कि सभी फर्टिलाइज अंडे इम्प्लांट होने के लिए ट्यूब के माध्यम से गर्भाशय में नहीं जाते हैं।
किसी भी उपचार से निश्चित रूप से कोई न कोई जोखिम जुड़ा होता है। ये साइड इफेक्ट दवा की खुराक पर निर्भर करते हैं और आपका शरीर इस पर कैसे प्रतिक्रिया देता है उस पर भी। सुपरओवुलेशन की वजह से महिलाएं निम्नलिखित दुष्प्रभाव अनुभव कर सकती हैं:
रात में या खाना खाने के साथ दवा लेने से इन साइड इफेक्ट्स को कम किया जा सकता है। इसके अलावा, यदि उपचार सबसे कम प्रभावी खुराक के साथ किया जाता है, तो दुष्प्रभाव भी कम हो सकते हैं।
इस इलाज की सफलता दर इन दिए गए कारकों पर निर्भर करती है जैसे – आईवीएफ, आईयूआई, मिनी आईवीएफ में किया गया उपचार, महिला का डाइग्नोसिस और उसकी उम्र।
सामान्य तौर पर, आईवीएफ की सफलता दर सुपरओवुलेशन आईयूआई की सफलता दर की तुलना में अधिक होती है। 40 साल से अधिक उम्र की महिलाओं और शुरुआती ओवरी फेलियर वाली महिलाओं के मामले में सुपरओवुलेशन सफल नहीं होगा। ऐसे मामलों में, डॉक्टर एग डोनर की सलाह देते हैं, क्योंकि एग डोनर के साथ आईवीएफ की सफलता दर काफी अच्छी होती है। ओवेरियन रिजर्व टेस्ट यह अनुमान लगाने के लिए किया जाता है कि सुपरओवुलेशन काम करेगा या नहीं।
सुपरओवुलेशन निश्चित रूप से आईवीएफ या आईयूआई के माध्यम से गर्भवती होने की संभावना को बढ़ा देता है। अपनी स्थिति को बेहतर ढंग से समझने और यह जानने के लिए कि क्या सुपरओवुलेशन आपके लिए सही उपचार है, अपने डॉक्टर से इस बारे में जरूर चर्चा करें।
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