बेबी का पहली बार रोना क्या संकेत देता है

बेबी का पहली बार रोना क्या संकेत देता है

जिस क्षण आपका बेबी आपके शरीर से निकलकर दुनिया में आने की शुरुआत करता है, उस समय लेबर रूम में मौजूद सभी लोग यानी डॉक्टर, नर्स और यहाँ तक कि आप भी बेसब्री से उसकी उपस्थिति दर्ज कराने का इंतजार करते हैं। बच्चे का पहली बार रोना इस बात का संकेत है कि वह दुनिया में आ गया है। लेकिन क्या सभी बच्चे जन्म के समय रोते हैं? क्या वे रोते रहना जारी रखते हैं या वे कुछ मिनट के लिए ही रोते हैं और फिर चुप हो जाते हैं? बच्चे का रोने का का क्या अर्थ है? इस प्रकार के और भी कई प्रश्न हैं, जो बच्चे के हेल्दी नेचर को समझने के लिए आवश्यक हैं। 

बेबी जन्म के बाद क्यों रोते हैं? 

बच्चे का जन्म के बाद रोना अच्छे कारणों से जाना जाता है। एक बार जब बच्चा पैदा हो जाता है, तो डॉक्टर सक्शन ट्यूब की मदद से बच्चे की नाक और मुँह में मौजूद फ्लूइड को साफ करते हैं। इससे बच्चे का बॉडी सिस्टम उसे रोने के लिए ट्रिगर करता है। कभी-कभी, यह खुद बच्चे द्वारा किया जाता है और जोर से रोने के कारण उसके फेफड़े एक्शन में आ जाते हैं, जिससे वह अपने जीवन की पहली सांस लेता है।

बर्थ क्राई क्यों महत्वपूर्ण है? 

बर्थ क्राई क्यों महत्वपूर्ण है? 

जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा बच्चे का लगातार रोना आपको बहुत ज्यादा परेशान कर सकता है। लेकिन बच्चे का पहली बार रोना हर माँ के लिए उसके जीवन का सबसे खुशी का पल होता है। इससे डॉक्टर भी कंफर्म हो जाते हैं कि बच्चा ठीक है, जो कि बच्चे के सर्वाइवल के सबसे महत्वपूर्ण संकेतों में से एक है।

गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान, बच्चे को प्लेसेंटा के माध्यम से सीधे गर्भ के अंदर उसकी जरूरत अनुसार ऑक्सीजन सप्लाई होती है। बच्चे के शरीर के विकास में, उसके फेफड़े सबसे आखिर में मैच्योर होते हैं। इसके अलावा, चूंकि वह पूरी तरह से सैक में एमनियोटिक फ्लूइड से कवर रहता है, इसलिए सांस लेने के लिए फेफड़ों का उपयोग करने का कोई मतलब नहीं होता है। यही कारण है कि सभी न्यूट्रिएंट्स और ऑक्सीजन की सप्लाई बच्चे के शरीर में सीधे गर्भनाल के जरिए पहुँचती है।

मुख्यतः यह बायोलॉजिकल स्ट्रक्चर के कारण होता है, ज्यादातर डॉक्टर बच्चे की नाल को उसी समय काट देते हैं जब वो पैदा होता है। एक बार जब बच्चे के शरीर के सेंसेस काम करने लगते हैं, जिसमें पहले ऑक्सीजन सप्लाई नहीं हो रही थी, वे अब फेफड़ों के फंक्शन में मदद करना शुरू कर देते हैं, जिसके परिणाम के तौर आप बच्चे को जन्म के बाद रोते हुए देखती हैं और इस प्रकार बच्चा दुनिया में आने के बाद पहली बार सांस लेता है।

क्या बेबी का पहला रोना उसे सांस लेने में मदद करता है? 

हाँ बिलकुल। गर्भावस्था के दौरान बच्चे के फेफड़े काफी देर से मैच्योर होते हैं और गर्भ में यह उतना काम भी नहीं करते हैं। जब लेबर शुरू होता है, तो फ्लूइड सूखना शुरू हो जाता है और इससे फेफड़े अपना कार्य करना शुरू कर देते हैं। वे धीरे-धीरे फैलना-सिकुड़ना शुरू कर देते हैं। हालांकि, कुछ मात्रा में फ्लूइड और बलगम अभी भी फेफड़ों के अंदर, वायुमार्ग में, नॉस्ट्रिल में और यहाँ तक ​​कि मुँह में भी मौजूद रहता है। रोने के कारण मौजूदा जमाव साफ होने लगता है, जिससे बच्चा सांस ले पाता है। बच्चे के रोने का यह एक बड़ा कारण है जिसके बाद बच्चा आसानी से सांस लेना शुरू कर देता है।

क्या हो अगर आपका नवजात बेबी जन्म के समय न रोए? 

डॉक्टरों ने ऐसे कई केस देखे हैं जिसमें बच्चे जन्म के बाद नहीं रोते हैं। लेकिन जब आप ऐसा खुद देखेंगी, तो यह काफी चौंकाने वाला हो सकता है क्योंकि इसका मतलब होगा कि आपका बच्चा सांस नहीं ले रहा है।

बच्चे का रोना इस बात का संकेत है कि उसके फेफड़े सांस लेने के लिए पूरी तरह से फिट हैं। अगर बेबी तुरंत रोना शुरू नहीं करता है, तो जरूरी नहीं है कि यह चिंता का कारण हो। कई बच्चे स्वस्थ पैदा होते हैं, हेल्दी पिंक कलर के और अंगों के मूवमेंट भी काफी अलर्ट रहते हैं, लेकिन ऐसा हो सकता है कि वे कुछ मिनट बाद रोना शुरू करें। डॉक्टरों को इस बारे में ज्यादा बेहतर अंदाजा होता है, जिससे वे अपना कदम बेहतर तरीके से उठाते हैं, अगर बच्चे का रंग हेल्दी पिंक नहीं होता है, तो इसका मतलब है तो यह खतरे का संकेत हो सकता है। ऐसे में जमाव को हटाने के लिए सक्शन ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। इस मेथड को अपनाने के बाद बच्चे को दर्द होता है जिससे बच्चा काफी तेज आवाज में रोने लगता है, हालांकि कई डॉक्टर बच्चे के मसाज का ऑप्शन चुनते हैं। अगर ये सभी मेथड काम नहीं आते हैं, तो बच्चे को आईसीयू में शिफ्ट कर दिया जाता है और शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए आर्टिफिशियल ट्यूब का उपयोग किया जाता है।

जन्म के बाद बेबी रोए इसके लिए डॉक्टर क्या करते हैं?

डॉक्टर और मां के लिए, बच्चे का जन्म के बाद पहली बार रोना इस बात की पुष्टि करता है कि वह ठीक है और सही तरह से सांस ले पा रहा है। इसलिए, अगर बच्चा डिलीवरी के बाद कुछ मिनट के अंदर रोना शुरू नहीं करता है, तो डॉक्टर अलग-अलग तरीके अपना कर बच्चे के रोने में मदद करते हैं।

पहले, डॉक्टर बच्चे को पैरों को मजबूती से पकड़ कर उसे उल्टा कर देते थे और उसके कूल्हे पर धीरे धीरे से हाथ मारते थे। इससे न केवल बच्चे को हल्का सा दर्द होता है, बल्कि मोशन के कारण वायुमार्ग में जो भी बाधा होती है वो हट जाती है। लगातार ऐसा करने से बच्चा इरिटेट होता है और रोने लगता है।

ज्यादातर लोग इसे बार्बेरियन प्रैक्टिस के तौर पर देखते हैं, जो नाजुक न्यूबॉर्न बच्चों के लिए काफी हार्ड होता है। डॉक्टर ज्यादातर इस प्रक्रिया के दौरान बहुत सावधानी बरतते हैं ताकि बच्चे को कोई नुकसान न पहुंचे । लेकिन आज के समय में यह तरीका बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है। स्थिति को कंट्रोल करने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता है, समस्या के स्रोत को सीधे हैंडल किया जाता है।

चूंकि बच्चे के न रोने का कारण उसके नाक, मुंह और फेफड़ों के अंदर मौजूद रुकावट है, इसलिए सक्शन पंप की मदद से ब्लॉकेज को हटाया जाता है ताकि वह सांस ले सके। पंप के जरिए प्रेशर पड़ने से ब्लॉकेज बाहर निकल जाता है या फेफड़े के फैलने और सिकुड़ने से ढीला हो कर बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान बच्चा रोने लगता है। एक और तकनीक है, जिसमें तौलिये का उपयोग करना होता है। बच्चे की सेंसिटिव स्किन के लिए तौलिए का टेक्सचर काफी रफ होता है, खासकर तब जब अभी तक बच्चा एमनियोटिक फ्लूइड में कंफर्टेबल रहता रहा हो। बच्चे की स्मूथ स्किन पर तौलिया रगड़ने से इरिटेटिंग सेंसेशन पैदा होता है, जिससे वह रोने लगता है।

बच्चे का रोना माँ के लिए सबसे बड़ी सुकून की घड़ी होती है, इससे वो जान जाती है कि उसका बेबी सुरक्षित है, और वो रिलैक्स फील करती है। ज्यादातर नेचुरल डिलीवरी में केयर की जरूरत होती है क्योंकि बच्चे को पहले ही बर्थ कैनाल के जरिए बाहर आने में बहुत डिस्कम्फर्ट का अनुभव होता है। सिजेरियन डिलीवरी में, डॉक्टर सक्शन पंप का उपयोग करके उत्तेजना पैदा करते हैं, जिससे बच्चा रोता है।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि डिलीवरी कैसे हुई है, अगर आपका बेबी नहीं रोता है, तो परेशान न हों, बल्कि वो मेथड अप्लाई करें, जिससे बच्चा रोता है। बस आप इस बात का खास ध्यान रखें कि जो भी डॉक्टर आपकी डिलीवरी कराने वाले हों, उन्हें और उनकी टीम को ऐसी परिस्थिति को डील करने का अनुभव हो जिससे बच्चा रो सके। कुछ ही समय में, आप अपने बच्चे की रोने की आवाज सुनेंगी व वह आपके हाथों में होगा और फिर कई रातों तक आप बच्चे के रोने की वजह से खुद सुकून से नहीं सो पाएंगी।

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