शिशुओं में एडवर्ड सिंड्रोम होना

शिशुओं में एडवर्ड सिंड्रोम होना

कभी-कभी जन्म के बाद ही न्यूबॉर्न बच्चों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे जन्म से संबंधित समस्याएं और जेनेटिक समस्याएं। एडवर्ड सिंड्रोम इनमें से एक बेहद दुर्लभ और खतरनाक समस्या है। पेरेंट्स होने के नाते इस बीमारी के बारे में पता होने से आपको मैनेज करने में आसानी होगी। एडवर्ड सिंड्रोम क्या है, इसके लक्षण और डायग्नोसिस आदि के बारे में जानने के लिए यह आर्टिकल पूरा पढ़ें।

एडवर्ड सिंड्रोम (ट्राइसोमी 18) क्या है?

एडवर्ड सिंड्रोम या ट्राइसोमी 18 एक दुर्लभ पर बहुत ज्यादा खतरनाक समस्या है जिसमें जन्म के दौरान बच्चे के शरीर के सेल्स में एब्नॉर्मल क्रोमोसोम होते हैं। 

क्रोमोसोम और कुछ नहीं बल्कि अच्छी तरह से बंधे जेनेटिक मटेरियल होते हैं, जिन्हें डीएनए कहा जाता है। आमतौर पर जन्म के दौरान बच्चे के शरीर में 22 क्रोमोसोम के 2 सेट होते हैं और एक्स क्रोमोसोम (लड़की के मामले में) या एक्स और वाई क्रोमोसोम (लड़के के मामले में) के पेयर मिलाकर 46 क्रोमोसोम होते हैं। यदि बच्चे को ट्राइसोमी 18 या एडवर्ड सिंड्रोम है तो जन्म के दौरान उसके शरीर में 18 क्रोमोसोम की 3 कॉपीज होती हैं। 

5000 बच्चों में से एक में यह समस्या डायग्नोज होती है और ये ज्यादातर लडकियां पाई जाती हैं। इस रोग को ठीक करना बहुत ज्यादा कठिन है और क्रोमोसोम 18 से ग्रसित ज्यादातर बच्चे (लगभग 92%) एक साल से ज्यादा जीवित नहीं रह पाते हैं। जो बच्चे लगभग एक साल तक भी जीवित रह जाते हैं उन्हें बहुत सारी समस्याएं और दिमाग व शारीरिक डेवलपमेंट से संबंधित कई गंभीर परेशानियां होती हैं। यह समस्या जन्म से पहले ही विकसित हो जाती है और गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास व वृद्धि को प्रभावित करती है। यदि बच्चे में जरूरत से ज्यादा क्रोमोसोम हैं तो जन्म के बाद उसे क्या-क्या दिक्कतें हो सकती हैं इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। 

तीन प्रकार के ट्राइसोमी 18 होते हैं, आइए जानें;

1. मोजेक ट्राइसोमी 18 

मोजेक ट्राइसोमी 18 फुल डिजीज की तुलना में बहुत कम गंभीर है जिसमें सिर्फ 5% बच्चों में यह समस्या डायग्नोज होती है। इस समस्या में क्रोमोसोम के सेल और अतरिक्त क्रोमोसोम 18 के सेल्स मिश्रित होते हैं। 

2. पार्शियल ट्राइसोमी 18 

इस प्रकार में शरीर के सेल में अतिरिक्त क्रोमोसोम के बहुत कम भाग होते हैं। इसके लक्षण सिंड्रोम की गंभीरता या क्रोमोसोम का कौन सा भाग अतिरिक्त है, इस पर निर्भर करते हैं। इस प्रकार का एडवर्ड सिंड्रोम बहुत दुर्लभ है। 

3. फुल ट्राइसोमी 18 

यह रोग तब होता है जब क्रोमोसोम 18 पूरी तरह से एब्नॉर्मल होता है। इसमें जोखिम बहुत ज्यादा होता है यह एडवर्ड सिंड्रोम का सबसे आम प्रकार है। 

इस बात पर ध्यान दें कि इस आर्टिकल में हमने ट्राइसोमी 18 की सभी भिन्नताओं के बारे में चर्चा की है। 

छोटे बच्चों में एडवर्ड सिंड्रोम होने के कारण क्या हैं?

रिसर्च के अनुसार ट्राइसोमी 18 होने के कारण अब भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं पर माना जाता है कि यदि बच्चे को कंसीव करते समय होने वाले माँ और पिता की उम्र बहुत ज्यादा है तो बच्चे को यह बीमारी हो सकती है और यदि माँ की उम्र 35 साल से ज्यादा है तो इसका खतरा बढ़ जाता है। ज्यादा उम्र के महिलाओं और पुरुषों में मौजूद अंडे व स्पर्म में एब्नॉर्मल क्रोमोसोम अधिक होते हैं। फ्यूजन के बाद एब्नॉर्मल क्रोमोसोम बच्चे के शरीर में जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप बेबी को यह बीमारी होती है। कम बच्चों के जीवित रहने के कारण रीसर्चर्स इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण सवालों का जवाब नहीं दे सकते हैं, जैसे – क्या एडवर्ड सिंड्रोम इन्हेरीटेड होता है? डॉक्टर यही आशा करते हैं कि मेडिकल साइंस के विकास और फंडिंग के सोर्स की मदद से वे भविष्य में एडवर्ड सिंड्रोम होने का कारण जल्दी ही पता कर लेंगे।

छोटे बच्चों में एडवर्ड सिंड्रोम (ट्राइसोमी 18) के लक्षण 

ज्यादातर बच्चों में एडवर्ड सिंड्रोम का पता जन्म से पहले ही लगाया जाता है और डॉक्टर का मानना है कि इससे ग्रसित ज्यादातर बच्चे जन्म के बाद पर्याप्त रूप से जीवित नहीं रह पाते हैं। इन बच्चों के लिए जीवित रहने की जंग जन्म से पहले से ही शुरू हो जाती है। यदि ये बच्चे जन्म तक जीवित रह जाते हैं तो ट्राइसोमी 18 के लक्षणों से निजात पाना एक और लंबी जंग है। 

एडवर्ड सिंड्रोम के लक्षणों में विकास से संबंधित कई अब्नोर्मलिटी भी शामिल हैं, आइए जानें;

  • क्रेनियोफेशियल फीचर्स की असामान्यता (खोपड़ी, गर्दन, कान और जबड़ा)
  • नाखून पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं। 
  • दिल की समस्याएं बहुत ज्यादा होती हैं। 
  • चेस्ट वॉल या रिब केज में विकृति होती है। 
  • किडनी से संबंधित बहुत ज्यादा समस्याएं होती हैं। 
  • पैरों का आकार सही नहीं होता है। 
  • उंगलियों ऊपर नीचे होती है और कसकर मुट्ठी बंद होती है। 
  • फेफड़े, आंत, पेट आदि से संबंधित समस्याएं होती हैं। 
  • शारीरिक विकास धीमा होता है। 
  • न्यूरोडेवलपमेंटल डिसेबिलिटी बहुत आम हैं। यह तब होता है जब नवजात बच्चों के शरीर की नर्व्ज इस प्रकार से खत्म होती है कि दिमाग और नर्वस सिस्टम का फंक्शन खराब होने लगता है। 
  • इंट्रायूटरिन विकास में बाधा तब आती है जब गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास होना बंद हो जाता है या डेवलपमेंट से संबंधित समस्याओं की वजह से विकास बहुत धीमा हो जाता है। 

छोटे बच्चों में एडवर्ड सिंड्रोम की पहचान 

ज्यादातर एडवर्ड सिंड्रोम का डायग्नोसिस जन्म से पहले ही हो जाता है जिसमें गर्भावस्था की पहली या दूसरी तिमाही में नियमित स्क्रीनिंग के दौरान 3 में से 2 मामलों का डायग्नोसिस होता है। डाउन सिंड्रोम, टर्नर सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम और अन्य समस्याओं के लिए इन स्क्रीनिंग के दौरान मैटरनल सीरम मार्कर, जैसे बीटा एचसीजी, अल्फा फेटोप्रोटीन और अनकॉन्ज्यूगेटेड एस्ट्रियल और इन्हीबीन ए का उपयोग काफी हद तक किया जाता है। गर्भावस्था में सीरम मार्कर टेस्ट के साथ अतिरिक्त रूटीन प्रेगनेंसी टेस्ट जैसे अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके जिसमें न्यूकल ट्रांसलुसेंसी और अन्य ऐनाटॉमिक समस्याओं के बारे में पता लगता है, उनसे एडवर्ड सिंड्रोम के डायग्नोसिस की सही जानकारी मिलने में मदद मिलती है। न्यूकल ट्रांसलुसेंसी एक प्रकार का अल्ट्रासाउंड है जिसका उपयोग बच्चे की पीठ और गर्दन में मौजूद फ्लूइड का पता लगाने और इसे मापने के लिए किया जाता है। 

सीवीएस या कोरियोनिक विलस सैंपलिंग / एम्नियोसेंटेसिस और कॉर्ड ब्लड सैंपलिंग दो एडवांस टूल हैं जिनका उपयोग जन्म से पहले ट्राइसोमी 18 का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस रोग का डायग्नोसिस और इसे पहचनाना बहुत जरूरी है ताकि आगे के जोखिम को कम किया जा सके। 

एडवर्ड सिंड्रोम का उपचार क्या है?

एडवर्ड सिंड्रोम का ट्रीटमेंट पूरी तरह से लक्षणों की गंभीरता पर निर्भर करता है। दुर्भाग्य से यदि बच्चे को यह समस्या है तो इसका कोई भी इलाज नहीं है। इन समस्याओं में यही आशा रखी जा सकती है कि लक्षणों को कम किया जा सके ताकि बीमारी अपने आप ठीक हो सके या कम से कम बच्चे को थोड़ा आराम दिया जा सके। पेडिअट्रिक स्पेशलिस्ट का मुख्य केंद्र बच्चे के पहले साल में एडवर्ड सिंड्रोम को ठीक करना है। 

यहाँ पर इस समस्या से ग्रसित बच्चे की पहले साल में मृत्यु के कुछ संभावित कारण बताए गए हैं, आइए जानें;

  • कार्डियक फेलियर – एडवर्ड सिंड्रोम की वजह से कई बार दिल से संबंधित समस्याओं के कारण मृत्यु हो जाती है। 
  • न्यूरोलॉजिकल अस्थिरता – ट्राइसोमी 18 होने से नर्व डैमेज हो जाती है जिससे सेंट्रल नर्वस सिस्टम काम करना बंद कर देता है और इसका परिणाम घातक होता है। 
  • रेस्पिरेटरी फेल होना – दिल के जैसे ही ट्राइसोमी 18 से फेफड़े गंभीर रूप से डैमेज हो जाते हैं और इसके परिणामस्वरूप बच्चे की मृत्यु हो जाती है। 

जिन बच्चों को ट्राइसोमी 18 पूरी तरह से नहीं होता है या इसके थोड़े बहुत लक्षण ही दिखाई देते हैं तो डॉक्टर इसके लक्षणों की अब्नॉर्मलिटीज को मैनेज करके ट्रीटमेंट करने का प्रयास करते हैं। 

जरूरी नोट: इन मामलों में बेहतर परिणामों की संभावना बहुत कम है। डॉक्टर पेरेंट्स या देखभाल करने वालों को शुरू से ही इस विकार के खतरों के बारे में बताकर तैयार करते हैं। 

यदि बच्चे को एडवर्ड सिंड्रोम है तो उसका जीवनकाल कितना होगा? 

रिसर्च के अनुसार यह माना जाता है कि यदि बच्चा ट्राइसोमी 18 से ग्रसित है तो उसके बचने की संभावनाएं बहुत कम होती हैं। स्ट्रक्चरल विकार की गंभीरता के कारण एडवर्ड सिंड्रोम से ग्रसित बच्चे मृत ही जन्म लेते हैं (जीवन के बिना ही गर्भ में पूरे 9 महीने रहते हैं)। जन्म हो जाए तो ऐसी स्थिति में बच्चे लगभग 3 दिन या 2 सप्ताह तक ही जीवित रह पाते हैं। ट्राइसोमी 18 से ग्रसित लगभग 60 से 70% बच्चे 24 घंटों तक जीवित रहते हैं और पहले सप्ताह में यह गिर कर 20 से 60% हो जाता है। 

ट्राइसोमी 18 में जीवन की संभावना पहले सप्ताह के बाद से कम होने लगती है – सिर्फ 9% से 18% तक बच्चे ही पहले 6 महीने तक जीवित रहते हैं और 5% से 10% तक बच्चे ही पूरे एक साल तक जीवित रहते हैं। 

ऐसे चैलेंजिंग समय में मदद के लिए कई सारे सपोर्ट ग्रुप और कम्युनिटी हैं। आपके डॉक्टर को आपको सपोर्ट ग्रुप से कनेक्ट करना चाहिए और साथ ही आपकी भावनाओं, दुःख और हानि को मैनेज करने में मदद के लिए किसी मनोचिकित्सक से मिलने की सलाह देनी चाहिए। 

यदि जन्म से ही बच्चे को एडवर्ड सिंड्रोम हुआ है तो यह जरूरी है कि माँ और परिवार के लोग स्ट्रॉन्ग बनें और इसके परिणामों का सामना करने के लिए तैयार रहें। इसकी वजह से खुद के लिए आपकी आस खत्म नहीं होनी चाहिए। 

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