टॉडलर (1-3 वर्ष)

छोटे बच्चों में वस्तु स्थायित्व कॉन्सेप्ट का विकास – महत्व और चरण

बड़े होने के नाते हम यह बात जानते हैं कि अगर हम चीजों को देख और सुन नहीं पाते हैं भी तो वो चीज अस्तित्व में होती है, लेकिन नन्हे बच्चे इस तर्क को नहीं समझते हैं। बच्चों के लिए, जो भी चीज जिसे देखा या सुना नहीं जा सकता वो उनके लिए है ही नहीं। हालांकि, यह बच्चों के लिए उनके विकास के पड़ाव का एक अहम हिस्सा है, जब वे यह समझने लगते हैं कि भले ही वे कुछ चीजों को नहीं देख पा रहे तब भी वो वहां मौजूद है और यही ऑब्जेक्ट परमानेंस या वस्तु स्थायित्व की अवधारणा है। 

ऑब्जेक्ट परमानेंस (वस्तु स्थायित्व) क्या है?

यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब आपका मन जानता है कि भले ही आप कुछ देख या सुन नहीं सकती हैं, लेकिन वह वहां मौजूद है। जब आपका बच्चा एक महीने का हो जाता है और अगर आप उससे कुछ छिपाती हैं या दूर रख देती हैं, तो वह सोचता है कि वह चीज अब नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसकी सुनने और देखने की क्षमता अभी शुरुआती चरण में है। हालांकि, जल्द ही यानी लगभग 4 से 7 महीने की उम्र में, बच्चा यह समझने लगता है कि भले ही कुछ चीजें उसकी नजरों से बाहर हों, लेकिन वे अभी भी वहां मौजूद हैं।

ऑब्जेक्ट परमानेंस विकास का एक जरूरी पड़ाव क्यों है?

ऑब्जेक्ट परमानेंस एक जरूरी डेवलपमेंट माइलस्टोन है। यह आपके बच्चे को उसके आसपास की दुनिया को समझने में मदद करता है। साथ ही वह उम्मीद करना सीखता है कि आगे क्या हो सकता है। उदाहरण के लिए यदि आप बच्चे के खिलौने को कंबल के नीचे छिपाती हैं, तो वह कंबल उठाकर उसको ढूंढेगा। इससे बच्चे को यह अंदाजा होगा कि कभी-कभी चीजों का गायब होना ठीक है, या कि वह चीजों को छोड़ सकता है क्योंकि वे उसे बाद में वापस मिल जाएंगी।

शुरुआती महीनों में ऑब्जेक्ट परमानेंस की कमी आपके बच्चे को डरा सकती है। यदि आप कुछ समय के लिए दूसरे कमरे में जाती हैं, तो ऐसे में वह यह सोचकर डर सकता है कि आप गायब हो गई हैं, क्योंकि उसे लगता है कि चीज दिख नहीं रही है यानी वह अब मौजूद नहीं है। हालांकि, जैसे-जैसे आपका बेबी इस बारे में सीखता है, वह यह जानेगा कि लोग उसके जाने के बाद भी मौजूद रहते हैं। इस तरह जब भी आप जाएंगी या आएंगी, वह डरेगा नहीं।

बच्चे में ऑब्जेक्ट परमानेंस का कॉन्सेप्ट कब विकसित होता है?

यहां, हम ऑब्जेक्ट परमानेंस की अलग-अलग स्टेज या एक बच्चा इस माइलस्टोन को कैसे हासिल करता है, इसके बारे में चर्चा करेंगे:

1. जन्म से 1 महीने: रिफ्लेक्स

जब आपका बच्चा पैदा होता है तो शुरुआती स्टेज में वह अलग-अलग रिफ्लेक्स के जरिए से अपने आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश करता है और उसकी खोज करता है। बच्चा अपने आसपास की दुनिया के साथ बातचीत करने के लिए सकिंग, स्टार्टलिंग और रूटिंग जैसे रिफ्लेक्सेस पर निर्भर रहता है। हालांकि, इस उम्र में बच्चे को ऑब्जेक्ट परमानेंस का कोई अंदाजा नहीं होता है, लेकिन विजुअल उत्तेजन के संपर्क में रहता है, जिससे वह मूवमेंट्स का पता लगा सकता है। यह इस लेवल पर एक बेहद महत्वपूर्ण काम है।

2. 1 से 4 महीने: प्राइमरी सर्कुलर रिएक्शन

बच्चा जाने-पहचाने फोटो, वस्तुओं या एक्टिविटीज पर अपनी प्रतिक्रिया देता है, हालांकि यह केवल कुछ सेकंड के लिए होता है। साथ ही, वह कुछ समय तक किसी चीज को देखता या उसको फॉलो कर सकता है। इस उम्र में, आपके बच्चे का अटेंशन रिफ्लेक्सिव होने की तुलना में जानबूझकर किया हुआ अधिक होता है।

3. 4 से 8 महीने: सेकेंडरी सर्कुलर रिएक्शन

इस उम्र में बच्चा अपने आसपास की दुनिया पर अधिक ध्यान देता है और प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए एक्टिविटी करता है। इस स्टेज के दौरान, बच्चा ऑब्जेक्ट परमानेंस को समझना शुरू कर देता है और थोड़ी छिपी हुई चीजों ढूंढना शुरू कर देता है, लेकिन पूरी तरह से छिपी हुई चीजों को वह अभी नहीं ढूंढ सकता। बच्चा दिखने वाले संकेतों को समझता है और कुछ वस्तुओं को भी समझने लगता है, लेकिन उसे अभी तक ऑब्जेक्ट परमानेंस के बारे में अधिक समझ नहीं होती है।

4. 8 से 12 महीने: खोजने की बेहतर समझ

बच्चा उन चीजों को फिर से ढूंढने में सक्षम होता है जिन्हें आप उससे लेकर छिपा देती हैं। हालांकि यह छोटी सी बात लग सकती है, लेकिन यह कॉग्निटिव डेवलपमेंट का एक प्रमुख काम है। बच्चा चीजों को ढूंढता है और लक्ष्य पर केंद्रित होता है, जिसका मतलब है कि चीजों को देखने की उसकी इच्छा जानबूझकर होती है। हालांकि, आपके बच्चे को कोई ऐसा ऑब्जेक्ट मिल सकता है जिसे आप सामान्य जगह पर छिपाती हैं, लेकिन उसको इस बात की समझ नहीं होती है कि उस चीज को दूसरी जगह पर भी ढूंढा जा सकता है।

5. 12 से 18 महीने: टर्टियरी सर्कुलर रिएक्शन

इस उम्र में आने तक बच्चा किसी भी ऐसी वस्तु को ढूंढने में सक्षम होता है जो उसकी नजरों से ज्यादा दूर न हो। इसका मतलब है कि वह केवल उस चीज को ढूंढ सकता है जिसे आप उसकी नजरों से छिपा सकती हैं और उससे आगे नहीं। बच्चा दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ ऐसा करता है, जो उसके लिए एक महत्वपूर्ण काम होता है।

6. 18 से 24 महीने की उम्र: ऑब्जेक्ट परमानेंस का उभरना

इस उम्र में, बच्चे को इस बात का उचित अंदाजा हो जाता है कि ऑब्जेक्ट परमानेंस क्या है। वह चीजों का मानसिक प्रतिरूप विकसित करता है, जिसका मतलब है कि छिपी हुई चीजों को भी ढूंढने में सक्षम होना। इस समय तक बच्चा ऐसी चीज की कल्पना करने में सक्षम हो जाता है जिसे वह देख नहीं सकता है और इस प्रकार वह ऑब्जेक्ट परमानेंस को समझने लगता है।

जीन पियाजे ने बच्चों में ऑब्जेक्ट परमानेंस को कैसे मापा

ऑब्जेक्ट परमानेंस की थ्योरी के बारे में बताने से पहले, यह माना जाता था कि कॉग्निटिव डेवलपमेंट (संज्ञानात्मक विकास) निष्क्रिय रूप से होता है, या यह बस हो जाता है। मनोवैज्ञानिक, जीन पियाजे का मानना ​​था कि शिशुओं और बच्चों में कॉग्निटिव डेवलपमेंट जितना समझा जाता है उससे कहीं अधिक बड़ा और मुश्किल भरा होता है। पियाजे की थ्योरी के अनुसार, बच्चे केवल बैठकर चीजों के होने का इंतजार नहीं करते हैं। इसके बजाय वे नई जानकारी को समझने के लिए निरंतर प्रयास करते हैं, इसे अपनी मौजूदा कॉन्सेप्ट्स पर लागू करते हैं और अपने आसपास के अलग-अलग ऑब्जेक्ट्स का अपना प्रतिरूप बनाते हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो, बच्चे अपनी मोटर स्किल जैसे दृष्टि, स्पर्श, गति और स्वाद का उपयोग करके अपने आसपास की विभिन्न चीजों को देखते और समझते हैं। 

सबसे पहले, बच्चों को अपने आसपास की दुनिया का कोई अंदाजा नहीं होता है और वे केवल वही मानते और समझते हैं जो वे देख सकते हैं। इसलिए, कई वस्तुओं को मानसिक तरीके से समझना जरूरी हो जाता है, यह समझने के लिए कि वस्तुएं तब भी मौजूद रहती हैं, जब आँखें उन्हें नहीं देख पाती हैं।

जीन पियाजे इन मानसिक निरूपणों को ‘स्कीमा’ कहते थे, जिसका मतलब है दुनिया में चीजों का ज्ञान होना। उदाहरण के लिए जैसे, एक बच्चे के पास ब्रेस्ट मिल्क या बोतल के लिए एक स्कीमा हो सकता है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसकी स्कीमा कई गुना बढ़ जाती है और अधिक से अधिक मुश्किल भरी हो जाती है। हालांकि, समायोजन और आत्मसात करने की प्रक्रिया से, बच्चे अपनी पहले से मौजूद श्रेणियों को बढ़ाकर अलग-अलग नई श्रेणियों का विकास करते हैं और अपने वर्तमान में मौजूद स्कीमा को बदल सकते हैं।

ऑब्जेक्ट परमानेंस गेम्स

बच्चे ज्यादातर फनी तरीकों से हर चीज जल्दी सीखते हैं और इसलिए माता-पिता के रूप में, आपको अपने बच्चे को ऑब्जेक्ट परमानेंस सिखाने के बारे में बहुत दूर तक सोचने की जरूरत नहीं है। बच्चे को कोई भी स्किल सीखने में मदद करने का सबसे अच्छा तरीका उसके साथ कुछ अच्छा समय बिताना है। माता-पिता और प्रियजनों के साथ बातचीत और अनुभवों के जरिए से ही बच्चा कई तरह की स्किल में महारत हासिल करता है और अपने सीखने की क्षमता को बढ़ाता है।

आप ऑब्जेक्ट परमानेंस गेम्स के लिए खिलौने खरीद सकती हैं, या अपने बच्चे के साथ नीचे बताए गए खेल खेल सकती हैं:

1. खेलें, उसको छोड़ दें और फिर वापस आ जाएं

यह एक अच्छा गेम है जिसे आप बच्चे के साथ खेल सकती हैं। इस खेल में आप अपने बच्चे को अपने पार्टनर या केयरटेकर के पास छोड़कर कमरे से बाहर निकल सकती हैं और थोड़ी देर में वापस आ सकती हैं। बच्चे को यह सिखाने का यह एक शानदार तरीका है कि भले ही वह आपको देख न सके, फिर भी आप उसके आसपास मौजूद हैं। इसके अलावा, ऑब्जेक्ट परमानेंस केवल दिखने के अनुभव के बारे में नहीं है। आप बच्चे को दूसरे कमरे से बुला भी सकती हैं ताकि उसे पता चल सके कि आप वहां हैं, भले ही आप उसे दिखाई न दें।

2. लुका छुपी खेलें

अपने बच्चे को ऑब्जेक्ट परमानेंस के बारे में समझाने के लिए, लुका छिपी का खेल सबसे अच्छे खेलों में से एक है। यदि वह 6 से 12 महीने की उम्र के बीच है तो आप उसके साथ इस खेल सकती हैं क्योंकि इस उम्र तक, बच्चे इसे थोड़ा बहुत समझ लेते हैं। तो इस गेम में आप पर्दे या दरवाजे के पीछे छुप सकती हैं और फिर बच्चे को अपना चेहरा दिखा सकती हैं और फिर दोबारा छुप सकती हैं। हो सकता है कि बच्चा यह समझने में सक्षम हो कि यदि आप दिखाई नहीं दे रही हैं, तो आप अभी भी वहीं हैं और पर्दे के पीछे छुपी हुई हैं।

3. बच्चे का पसंदीदा खिलौना छिपाएं

आप अपने बच्चे का पसंदीदा खिलौना खुद ले सकती हैं या फिर उसे कुछ देर के लिए कंबल के नीचे छिपा सकती हैं और बाद में उसे बाहर निकाल के दे सकती हैं। आप इसका एक छोटा सा हिस्सा भी उसे दिखा सकती हैं, ताकि बच्चा इसे अपने आप ढूंढ सके। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होगा, आप इस खेल को और अधिक रोचक और कठिन बना सकती हैं। इसमें आप कोई खिलौना लेकर उसे भी अपने पीछे भी छिपा सकती हैं और फिर इसे बच्चे के सामने रख सकती हैं।

ये खेल बच्चे को ऑब्जेक्ट परमानेंस का कॉन्सेप्ट एक मजेदार तरीके से समझने में मदद करते हैं। हालांकि, सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं। ऐसे में कुछ बच्चों को इस तरह के खेल खेलने में मजा आता है, जबकि अन्य माँ की मौजूदगी न पाकर इसके बारे में सोचकर ही घबरा जाते हैं। इसलिए आप परिस्थिति के हिसाब से उसको संभाल सकती हैं। यदि आपका बच्चा इन खेलों पर अच्छी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, तो कुछ समय के लिए इन्हें खेलना बंद कर दें।

यदि आप जानना चाहती हैं कि आपका बच्चा ऑब्जेक्ट परमानेंस को कितनी अच्छी तरह समझता है या उसके संज्ञानात्मक विकास के बारे में कोई अन्य सवाल हैं, तो अपने बच्चे के पीडियाट्रिशियन से सलाह जरूर लें।

यह भी पढ़ें:

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बच्चे का दिमागी विकास – दिमाग के स्वस्थ विकास में मदद कैसे करें

समर नक़वी

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