गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान एचआईवी/एड्स

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साल 1980 के दशक में पहली बार पता चलने के बाद एचआईवी वायरस और एड्स की बीमारी ने लोगों के दिलों में दहशत फैला दी थी। गर्भावस्था अपने आप में एक बहुत बड़ा चुनौती है और खासकर यह तब और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है जब एक गर्भवती महिला इस वायरस से संक्रमित हो। हालांकि हमारा मेडिकल साइंस इतना एडवांस हो गया है कि अब न सिर्फ गर्भावस्था में एचआईवी से सुरक्षा होती है बल्कि होने वाले बच्चे को भी इसके संक्रमण से बचाया जा सकता है । 

एचआईवी / एड्स क्या है?

एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशियेंसी वायरस) एक ऐसा वायरस है जिससे एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशियेंसी सिंड्रोम) होने की संभावना बढ़ जाती है। जैसा कि इस वायरस के नाम से ही पता चल रहा है कि जब ये वायरस शरीर मे प्रवेश करता है तो शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और इंसान कई बीमारियों से घिर जाता है। बहुत सारे लोगों को लगता है कि एचआईवी और एड्स एक ही बीमारी है जबकि ऐसा मानना गलत है। एक इंसान कई सालों तक बिना एड्स हुए एचआईवी से संक्रमित रह सकता है। जब किसी व्यक्ति के खून में यह वायरस मिलता है तब वह एचआईवी पॉजिटिव हो जाता है। लेकिन जब शरीर में लक्षण दिखने लगते हैं और इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ने लगता है केवल तभी कहा जाता है कि व्यक्ति को एड्स हुआ है। एचआईवी की आखिरी स्टेज यानी कि एड्स तक पहुँचने में कई बार सालों लग जाते हैं।

गर्भावस्था के दौरान एचआईवी कैसे फैलता है?

वायरल फ्लू के उलट, एचआईवी एड्स हवा, पानी या संक्रमित व्यक्ति के आसपास सांस लेने से नहीं फैलता है। एचआईवी फैलने का तरीका हेपेटाइटिस बी वायरस के समान होता है। 

  1. संभोग के द्वारा (सबसे आम कारण)
  2. खून / खून से दूषित वस्तुओं / शरीर के अन्य फ्लूइड / अंगों के प्रत्यारोपण के द्वारा
  3. वर्टिकल ट्रांसमिशन: मां से बच्चे को प्लेसेंटा या दूध के माध्यम से

ट्रांसमिशन वायरल लोड पर निर्भर करता है, यानी प्रति मिलीलीटर खून में वायरस की यह संख्या। साथ ही गर्भावस्था के दौरान शरीर में बढ़ा हुआ प्रोजेस्टेरोन हार्मोन, वायरस के संग्रहण का स्तर बढ़ा देता है। यह वायरस के प्रवेश में मदद करता है और ट्रांसमिशन की संभावना को बढ़ाता है। 

एचआईवी और एड्स के लक्षण

एक बार जब एचआईवी वायरस खून में मिल जाता है, तो ये शरीर में व्हाइट बल्ड सेल्स के एक विशेष प्रकार जिसे टी लिम्फोसाइट कहा जाता है उसे संक्रमित करता है। आमतौर पर इसके लक्षण दिखने में 3 से 6 हफ्ते का समय लगता है जो तकरीबन 10 दिन तक शरीर में मौजूद रहते हैं। इसमें शामिल लक्षण हैं:

एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिला के लक्षण फ्लू से कोई अलग नहीं होते। बाद में जब ये लक्षण चले जाते हैं तब भी वायरस संख्या में बढ़ता जाता है और चुपचाप इम्यून सिस्टम पर तब तक हमला करता रहता है जब तक यह ब्रेक डाउन नहीं हो जाता। ऐसा होने में तकरीबन 10 साल तक का वक्त लग सकता है। 

गर्भवती महिलाओं में एड्स के लक्षण निर्भर करते हैं कि उसका इम्यून सिस्टम कितना कमजोर है। आपके डॉक्टर इम्यून सिस्टम का स्टेटस आपकी सीडी4 काउंट करके करेंगे। सीडी 4 एक ब्लड सेल के जैसा है जिसकी मदद से शरीर में इम्यून सिस्टम कमजोर होता जाता है और यह इस बात का संकेत है कि एड्स ने शरीर को मजबूती से जकड़ लिया है। एड्स के कारण होने वाली समस्या हैं: 

1. इंफेक्शन

जैसे ही सीडी 4 की संख्या कम होती जाती है वैसे ही इंफेक्शन लगातार शरीर में बढ़ता चला जाता है। इसमें ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) सबसे आम है। 

2. कैंसर

एड्स में कई तरीके का कैंसर होना आम बात है। महिलाओं को अधिकतर जननांगों में कैंसर या ट्यूमर होने की समस्या देखी जाती है। 

3. एसटीडी

अन्य सेक्सुअल ट्रांसमिटेड इंफेक्शन जैसे कि सिफलिस माँ और बच्चे के लिए खतरा साबित हो सकते हैं।

एचआईवी ट्रांसमिशन के खतरे को बढ़ाने से जुड़े फैक्टर

एड्स की संभावना को बढ़ाने वाले कुछ मुख्य कारणों में शामिल हैं:

1. वायरल लोड

एड्स को फैलाने में सबसे बड़ा कारक माँ में मौजूद वायरल लोड है। उदाहरण के तौर पर एड्स फैलने की संभावना 1% है यदि माँ के खून में एचआईवी वायरस का भार 400 कॉपीज/मिली से कम है, लेकिन जब माँ के खून में वायरस का स्तर 100,000 कॉपीज/मिली से अधिक होता है तो एड्स फैलने की संभावना 30% से अधिक रहती है। लेकिन खून में वायरल लोड जननांगों से होने वाले स्राव से अलग हो सकता है। इसलिए, कुछ मामलों में माँ के खून में डिटेक्ट होने से पहले ही वायरस जननांगों के स्राव के माध्यम से फैल सकता है।

2. प्री-टर्म डिलीवरी

प्री-टर्म डिलीवरी से बच्चे के एचआईवी वायरस से संक्रमित होने का खतरा चार गुना बढ़ जाता है।

3. ब्रेस्टफीडिंग

यदि आप अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग करवाती हैं, तो 30-40% संभावना है कि आपका बच्चा वायरस से संक्रमित हो सकता है।

4. फैलने का तरीका

जिस तरीके से माँ एचआईवी के संपर्क में आई, वही इसके फैलने के तरीके को भी तय करता है। यदि यह एक यौन संक्रमण था, तो बच्चे में इसके फैलने की संभावना अधिक रहती है।

5. एंटी-एचआईवी उपचार की शुरुआत

गर्भावस्था का वह चरण, जिस समय माँ का एचआईवी पर उपचार शुरू किया गया था, बच्चे में ट्रांसमिशन को प्रभावित करता है।

6. मेडिकल हस्तक्षेप

डिलीवरी के दौरान किए जाने वाले कुछ ट्रीटमेंट प्रोसेस जैसे फोरसेप का इस्तेमाल, मेम्ब्रेन का आर्टिफिशियल रप्चर और गर्भ में बच्चे की इनवेसिव जांच जैसे कारण भी कई बार माँ से बच्चे में इसके फैलने की संभावना बढ़ाते हैं। 

क्या गर्भवती महिलाओं को एचआईवी टेस्ट करवाना चाहिए?

कुछ देशों में तो प्रत्येक गर्भवती महिला का एचआईवी टेस्ट अनिवार्य (ओप्ट-इन-एप्रोच) है। जबकि कुछ देशों में (ऑप्ट-आउट अप्रोच) एचआईवी के बारे में सलाह और जानकारी प्राप्त करने के बाद माँ को टेस्ट करवाने से इंकार करने का पूरा अधिकार होता है। वे गर्भवती महिलाएं, जो इंजेक्टेबल ड्रग्स लेती हैं, जो सेक्स वर्कर हैं और उनके एचआईवी पॉजिटिव सेक्स पार्टनर हैं, वे जिनके कई सेक्स पार्टनर हैं या जिन्हें एसटीडी है, उन्हें आखिरी तिमाही में टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है।

एचआईवी टेस्ट कैसे होता है?

एचआईवी स्क्रीनिंग टेस्ट एलिसा टेस्ट (एंजाइम-लिंक्ड इम्यूनोसे) के प्रयोग से किया जाता है। 

अगर टेस्ट पॉजिटिव आता है, तो इसकी पुष्टि या तो वेस्टर्न ब्लॉट या फिर इम्यूनोफ्लोरेसेंस ऐसे (आईएफए) से की जाती है। पीसीआर के इस्तेमाल से भी आप रैपिड टेस्ट करवा सकती हैं। 

माँ और बच्चे की सेहत पर एचआईवी के प्रभाव

अगर सीडी 4 काउंट बढ़ता है और वायरल लोड कम होता है तो वो गर्भावस्था को प्रभावित नहीं करता। सभी का कहना है कि ये कई तरीके से अलग तरह दिक्कत देता है, यह तब होता है जब एचआईवी एड्स के रूप में बदल जाता है।

1. माँ की सेहत पर असर

माँ को वायरस होने से बहुत बड़ा खतरा हो सकता यहाँ तक कि जान तक जाने की भी संभावना रहती है। एड्स होने से सौम्य और गंभीर, दोनों प्रकार का कैंसर हो सकता है, जो गर्भावस्था के समय को प्रभावित कर सकता है। कुछ मामलों में प्रेगनेंसी जोखिम भरी साबित हो सकती हैं जैसे प्री-टर्म लेबर, हाइपरटेंशन, डायबिटीज होना एचआईवी में आम बात है।

2. बच्चे की सेहत पर असर

एचआईवी पॉजिटिव माँ से भी बच्चे को संक्रमण हो सकता है। माँ से बच्चे में फैलने वाला संक्रमण भी इतना जोखिम भरा साबित हो सकता है जिससे की बच्चे की जान तक खतरे में आ जाती है। ये बच्चे के पूरे शरीर पर असर डाल सकता है।  

एचआईवी टेस्ट रिजल्ट की सटीकता

एचआईवी टेस्ट रिपोर्ट कई हद तक सही साबित होती है। एलिसा टेस्ट 99.5% से भी अधिक सेंसिटिव होता है। इसका मतलब यह है कि किए गए 100 में से 99.5 से अधिक परीक्षणों में एचआईवी होगा, यदि यह है तो। एलिसा टेस्ट किए जाने पर एचआईवी का पता न चल पाने की संभावना 0.5% से भी कम रहती है। अधिक जानकारी के लिए, आईफा और वेस्टर्न ब्लॉट ज्यादा सही रिजल्ट देते हैं। इसका मतलब है कि टेस्ट की रिपोर्ट में संभावना न के बराबर है कि जिसमें फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट आए।

गर्भावस्था के समय माँ से बच्चे में एचआईवी एड्स कैसे फैलता है?

माँ से बच्चे में जब एचआईवी फैलता है तो उसे वर्टिकल ट्रांसमिशन कहा जाता है। ये संक्रमण माँ से बच्चे को प्लेसेंटा या माँ के दूध द्वारा पहुँचता है। 

1. गर्भावस्था की शुरुआत में ट्रांसमिशन

आमतौर पर प्लेसेंटा माँ और बच्चे के खून के बीच में बैरियर यानी बाधा रखता है। ये एचआईवी फैलने से रोकने में बहुत मददगार होता है। लेकिन प्रेगनेंसी के शुरुआती दौर में, जब फर्टिलाइज्ड अंडा गर्भाशय से जुड़ होता है और नाल बन जाती है, तब माँ और बच्चे के बीच खून मिलने की संभावना हो जाती है। इस प्रकार, गर्भावस्था का पता चलने से पहले ही एचआईवी फैल सकता है।

2. एचआईवी और लेबर: गर्भावस्था के आखिरी में ट्रांसमिशन

लेबर की प्रक्रिया की शुरुआत में माँ से बच्चे के अंदर एचआईवी फैलने की संभावना बहुत ज्यादा हो जाती है। पानी की थैली फटने के दौरान, डिलीवरी की प्रक्रिया के दौरान और प्लेसेंटा अलग होने के दौरान।

3. ब्रेस्टफीडिंग के दौरान ट्रांसमिशन

यह साबित हो चुका है कि एचआईवी वायरस माँ के दूध में मौजूद होता है और ये ब्रेस्टफीडिंग करने वाले बच्चों में एचआईवी पॉजिटिव होने का खतरा बढ़ा सकता है।

क्या सिजेरियन डिलीवरी से माँ से बच्चे में एचआईवी ट्रांसमिशन होने का खतरा कम रहता है?

अगर सिजेरियन डिलीवरी से किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसको एचआईवी इंफेक्शन होने की संभावना केवल 50% होती है। इसके अलावा, जब एक सीजेरियन सेक्शन के साथ एंटी एचआईवी उपचार भी दिया जाता है, तो ट्रांसमिशन का जोखिम 87% तक कम हो जाता है।

क्या मेरे बच्चे को जन्म के बाद उपचार की जरूरत होगी?

हाँ। एचआईवी पॉजिटिव माँ से पैदा हुए बच्चों को जन्म के बाद 4-6 सप्ताह तक एचआईवी इलाज जरूर दिया जाता है। यदि एचआईवी हो तो यह उपचार इसे बढ़ने से रोकता है और बच्चे की सुरक्षा करता है।

माँ से बच्चे में एचआईवी फैलने से रोकना और इसकी चुनौतियां

एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) एक इलाज के तौर पर प्रयोग में आनी वाली एंटी एचआईवी दवाएं हैं। माँ से बच्चे में एचआईवी के संचरण को रोकने में एआरटी एक अहम किरदार निभाता है। एचआईवी पॉजिटिव और गर्भवती होने के कारण कई चुनौतियां होती हैं जैसे सामाजिक कलंक और नॉन मेडिकल हॉस्पिटल स्टाफ रोगी से संपर्क करने से हिचकिचाते हैं। कई महिलाएं खुद को एचआईवी होने के बारे में खुलासा करने में घबराहट और एंग्जायटी की शिकार होती हैं क्योंकि उन्हें बहिष्कृत हो जाने का डर होता है।

यहां कुछ निवारक उपाय दिए गए हैं जिन्हें आपको गर्भवती होने की कोशिश करते समय ध्यान में रखना चाहिए:

1. गर्भधारण की प्लानिंग

दि आप प्रेग्नेंट होने का प्लान कर रही हैं, तो आप अपना एचआईवी टेस्ट करवा लें और अगर आपके टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो आप तुरंत एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी शुरू कर सकती हैं। इससे न केवल माँ में वायरल लोड कम होगा बल्कि ट्रांसमिशन का खतरा भी कम होगा।

2. सम्पर्क में आने के बाद रोकथाम

यदि आप एचआईवी नेगेटिव हैं लेकिन आपका साथी एचआईवी पॉजिटिव है, तो आपको एचआईवी होने से बचाने के लिए एआरटी लेने की जरुरत पड़ेगी।

3. डिलीवरी की प्लानिंग

38वें सप्ताह में नियोजित सी-सेक्शन डिलीवरी एचआईवी फैलने से रोकने और इसके जोखिम को कम करने के लिए एक पसंदीदा तरीका है।

4. बच्चे के लिए रोकथाम

जन्म के बाद, यदि मां से बच्चे के रक्त में ट्रांसमिशन हो गया है तो बच्चे को एआरटी दवाएं दी जाएंगी। 

5. ब्रेस्टफीडिंग से बचना

यदि बच्चे के पोषण से समझौता किए बिना अच्छे विकल्प उपलब्ध हों, तो यह सलाह दी जाती है कि बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराने से बचें।

इन सभी तरीकों से संक्रमण के जोखिम को 1% से भी कम किया जा सकता है ।

एचआईवी में कॉम्प्लिकेशन

एचआईवी संक्रमण प्रेगनेंसी से जुड़ी समस्याओं को बढ़ा सकता है। इनमें शामिल हैं:

  1. समय से पहले डिलीवरी
  2. जन्म के वक्त, शिशु का वजन कम होना
  3. बच्चे के विकास में बाधा
  4. हाई बीपी की समस्या
  5. जेस्टेशनल डायबिटीज
  6. एचआईवी उपचार

एचआईवी उपचार में एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) शामिल है। इसमें कई परहेज के साथ अलग तरह की दवाएं होती हैं जिन्हें या तो खाया जाता है या इंजेक्शन में दिया जाता है। वायरल लोड, सीडी 4 काउंट, पहले लिए हुए उपचार, दवा के प्रतिरोध का पैटर्न और प्रेग्नेंसी के सप्ताह के आधार पर आपके डॉक्टर परहेज तय करते हैं। यदि आप गर्भधारण से पहले एचआईवी उपचार ले रहीं थीं, तो आमतौर पर इसे जारी रखा जाएगा।

क्या एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिला को एचआईवी दवाएं लेनी चाहिए?

प्रेग्नेंट होने की वजह से एचआईवी संक्रमित महिलाओं का इलाज रोकना नहीं चाहिए। आहार में कुछ बदलाव हो सकते हैं क्योंकि यह बच्चे के विकास को प्रभावित करता है लेकिन उपचार को पूरे गर्भावस्था में जारी रखने की आवश्यकता होती है। 

एचआईवी लेबर और जन्म को कैसे प्रभावित करता है

आमतौर पर 38 सप्ताह में सी सेक्शन करने की सलाह दी जाती है। लेकिन प्रीटर्म डिलीवरी होने और साथ ही एचआईवी इन्फेक्टेड माँ को जोखिम की संभावना ज्यादा होती है। 

कुछ महिलाओं को लेबर के दौरान जीडोवुडीन इंजेक्शन दिया जाता है, जो बच्चे में ट्रांसमिशन के खतरे को कम करता है।

कुछ और प्रक्रियाएं है जैसे मेम्ब्रेन का आर्टिफिशियल रप्चर जो लेबर को प्रेरित करता है, बच्चे की हार्टबीट को मॉनिटर करने के लिए फीटल स्कैल्प इलेक्ट्रोड्स का उपयोग और वैक्यूम या फोर्सेप्स द्वारा डिलीवरी से बचा जाता है, ताकि ट्रांसमिशन का खतरा न बढ़े।

यदि बच्चा एचआईवी पॉजिटिव हो तो क्या होगा

जो बच्चे एचआईवी पॉजिटिव पाए जाते हैं उन्हें एआरटी दवाओं की जरूरत होती है। जो बच्चे दवाई खा नहीं पाते, उन्हें इंजेक्शन लगाया जाता है। ये इलाज बच्चे को उम्र भर के लिए दिया जाता है। वयस्क लोगों की तरह ही पॉजिटिव पाए जाने वाले बच्चों का उपचार अलग-अलग तरीके से किया जाता है। 

क्या एचआईवी संक्रमित माँ ब्रेस्टफीडिंग करवा सकती है?

एचआईवी संक्रमित महिला को अक्सर ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए मना किया जाता है क्योंकि इससे बच्चे को एचआईवी होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। 

एचआईवी पॉजिटिव और गर्भावस्था में देखभाल

हॉस्पिटल के नियम अनुसार, आपको किसी अन्य माँ की तरह ही माना जाएगा। आपके स्वास्थ्य की देखभाल पेशेवर तरीके से गोपनीयता बनाकर की जाएगी। काउंसलिंग से लेकर बेहतर इलाज और डिलीवरी तक आपको प्रोफेशनली तरीके से देखा जाएगा। एक माँ के रूप में, आपकी जिम्मेदारी डॉक्टर को बिना किसी बात को रहस्य बनाए सभी जानकारी प्रदान करना है।

एचआईवी होने पर भी आप सामान्य जीवन जी सकती हैं। इसमें गर्भावस्था भी शामिल है। हालांकि कुछ कॉम्प्लिकेशन जरूर हैं, पर इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे कि एचआईवी पॉजिटिव महिला गर्भवती नहीं हो सकती है। लेकिन आपको यह समझने की जरूरत है कि तमाम सावधानियों के बावजूद आप एचआईवी पॉजिटिव बच्चे को जन्म दे सकती हैं। चूंकि एचआईवी आपकी इम्यूनिटी को कम करता है, इसलिए खुद को संक्रमण से दूर रखने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतें। अच्छी तरह से सफाई, स्वस्थ आहार और थोड़ी एक्सरसाइज एचआईवी के साथ गर्भावस्था के लिए बहुत जरूरी हैं। एचआईवी उपचार में प्रगति के साथ ऐसा देखा गया है कि एचआईवी पॉजिटिव मांओं से पैदा हुए कई बच्चे एचआईवी नेगेटिव होते हैं।

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समर नक़वी

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