बच्चों पर तलाक का प्रभाव

बच्चों पर तलाक का प्रभाव

हर बच्चे पर उसके पेरेंट्स के तलाक का असर अलग अलग तरीके से पड़ता है। कुछ बच्चे उस स्थिति को स्वीकार कर लेते हैं तो कुछ बच्चों को उसे स्वीकार करने में कठिनाई होती है। जबकि कुछ बच्चों को यह मानसिक तौर पर तोड़ देता है। नीचे आपको तलाक के उन सभी साइड इफेक्ट्स के बारे में बताया गया है जिससे बच्चों को अक्सर गुजरना पड़ता है। ये उनके जीवन को नकारात्मक रूप से बहुत ज्यादा प्रभावित कर सकते हैं। 

बच्चों पर तलाक के कारण पड़ने वाले दुष्प्रभाव 

आपको तलाक के कारण बच्चे पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में इसलिए बताया जा रहा, ताकि अगर आप भी उन हालातों से गुजर रही हों, तो आपको पता हो कि आपका बच्चा किस स्थिति से जूझ रहा है और आप उसे सकारात्मक तरीके से संभाल सकती हैं।तलाक के शॉर्ट टर्म इफेक्ट्स मानसिक तौर पर पड़ते हैं। जबकि लॉन्ग टर्म इफेक्ट जो होते हैं वे तलाक के बाद पता चलते हैं। 

शार्ट टर्म इफेक्ट्स:

  1. एंग्जायटी: माता पिता के अलग होने के बाद बच्चों का विश्वास टूट जाता है और उन्हें सेपरेशन एंग्जायटी होने लगती है और जब तक अदालत की कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती तब तक बच्चे के मन में बहुत सारी चीजें चलती हैं, जिसका कोई जवाब उसके पास नहीं होता है। इस वजह से उसे काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
  2. लगातार स्ट्रेस होना: तलाक का होना माता-पिता और बच्चों दोनों के लिए एक तनावपूर्ण अनुभव होता है इस दौरान बच्चे से बातचीत करके उसका तनाव दूर किया जा सकता है। बच्चे को विश्वास दिलाएं कि तलाक के बावजूद दोनों माता-पिता उससे बिना शर्त प्यार करेंगे। बच्चे को यह विश्वास दिलाना जरूरी है कि तलाक की वजह वह नहीं है बल्कि वे खुद हैं। इस रिश्ते के असफल होने पीछे बच्चे की कोई गलती नहीं है। 
  3. अत्यंत दुखी महसूस होना: बच्चों का अपने माता-पिता के तलाक से दुखी होना लाजमी है, लेकिन समय के साथ वो इससे उभर भी जाते हैं बस आप उन्हें खुद इससे बाहर निकलने के लिए सकारात्मक तरीके खोजने दें। कभी-कभी ज्यादा दुख होने की वजह से बच्चा डिप्रेशन में भी जा सकता है इसके लिए आपको बच्चे की काउंसलिंग करवानी चाहिए। 
  4. मूड स्विंग: तलाक की वजह से होने वाले असहज माहौल से बच्चों में चिड़चिड़ापन आ जाता है, जो उसके मिजाज को भी काफी प्रभावित करता है। बच्चे का यह चिड़चिड़ापन गुस्से में भी बदल सकता है हालांकि कुछ बच्चे ऐसी स्थिति में बिल्कुल ही शांत हो जाते हैं। बस इसके लिए आपको उससे बात करनी होगी उसे समझाना होगा कि तलाक क्यों हो रहा और उसे इसकी वजह समझना होगा। क्योंकि इस वक्त बच्चे को दोनों माता-पिता से प्यार की जरूरत होती है। 
  5. पीड़ा: यह उन बच्चों में देखने जो मिलता है जिनके माता-पिता तलाक से गुजर रहे होते हैं और उनमें कस्टडी के लिए लड़ाई हो रही होती है। दूसरी वजह यह भी हो सकती है कि शादी में किसी प्रकार का तनाव होना या फिर माता-पिता या बच्चे के साथ हिंसा होने जैसी चीजें बच्चे में पीड़ा का कारण हो सकती हैं। 

लॉन्ग टर्म इफेक्ट्स:

  1. बुरी लत: रिसर्च से पता चला है कि तलाकशुदा परिवारों के बच्चे धूम्रपान जैसी गलत आदतों में पड़ने लगते हैं फिर वह चाहे बेटा हो या बेटी। लड़कों के धूम्रपान करने के संभावना 48% होते हैं वही लड़की के धूम्रपान करने की संभावना 39% होते हैं और इन बच्चों को शराब की या ड्रग्स जैसी कई दूसरी लत बहुत जल्दी लग सकती हैं। 
  2. सामाजिक व्यव्हार पर असर पड़ना: तलाकशुदा परिवारों के बच्चों में लोगों पर विश्वास करने की क्षमता कम हो जाती है। जिसकी वजह से बच्चे लोगों से कम घुल मिल पाते हैं। और जैसे ही बच्चे बड़े होते हैं उन्हें नजदीकी रिश्ते बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है इन बच्चों में आम बच्चों के मुकाबले तलाक की संभावना 2 गुना अधिक होती है।
  3. पढ़ाई पर असर पड़ना: बच्चे की जिस उम्र में माता-पिता एक दूसरे को तलाक देते हैं उसका बच्चे पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और ऐसे बच्चों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस कारण बच्चे के अंदर जितने ज्यादा बदलाव आएंगे उसे स्कूल में उतना ही ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। लड़कों की बात की जाए तो वो बहुत अग्र्रेसिव हो जाते हैं और उन्हें टीचर्स के साथ और दोस्तों के साथ मेल बैठाने में काफी दिक्कत होती है। वहीं लड़कियों की बात करें तो लड़कियां ज्यादातर डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। 
  4. डिप्रेशन: तलाक की वजह से बच्चे को उस दौरान होने वाला दुख कभी भी डिप्रेशन का रूप ले सकता है। ऐसा माना जाता है कि तलाकशुदा परिवारों के बच्चे जल्दी डिप्रेशन में चले जाते हैं और समाज से दूरी बना लेते हैं। रिसर्च से पता चलता है कि बच्चे तलाक की वजह से बाइपोलर डिसऑर्डर का भी शिकार हो सकते हैं। 
  5. सामाजिक आर्थिक नुकसान: तलाक का सदमा बच्चे के स्कूली विकास को रोक सकता है और साथ ही ये बच्चे की कॉलेज की पढ़ाई और आगे के जीवन के विकास को भी प्रभावित करता है। इसी तरह, जो पैरेंट्स आर्थिक रूप से मजबूत नहीं होते हैं और तलाक लेने का फैसला करते हैं, उनके बच्चे को आर्थिक समस्या का भी सामना करना पड़ता है, इसकी वजह से उनकी पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ता है। 

लॉन्ग टर्म इफेक्ट्स

किन कारणों से तलाक बच्चों को प्रभावित करता है

यहाँ आपको कुछ ऐसे फैक्टर बताए गए हैं जो बच्चे को उनके माता-पिता के तलाक लेने की वजह से प्रभावित करते हैं। 

  • डिवोर्स लेने की उम्र: बच्चे की कम उम्र में माता-पिता का तलाक होना उस पर बहुत ही नकारात्मक असर डालता है। लेकिन चूंकि यह साबित हुआ है कि तलाक के कुछ सालों बाद ये बच्चे उन बच्चों के मुकाबले ज्यादा अच्छी तरह एडजस्ट कर लेते हैं, जिनके पेरेंट्स ने उनकी थोड़ी बड़ी उम्र में तलाक लिया था। जिन बच्चों की उम्र कम होती उन्हें सोशल होने में और एडजस्ट करने में ज्यादा परेशानी होती है। वहीं किशोरवय के बच्चों को पेरेंट्स के तलाक के बाद खुद के जीवन में यौन संबंध बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और वो बिल्कुल एंटी सोशल हो जाते हैं। 
  • सामाजिक और आर्थिक स्थिति: ऐसा देखा गया है कि जब गरीब माता-पिता तलाक लेते हैं तब बच्चों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। माता-पिता की दुश्मनी उनकी गरीबी और बच्चा किसके पास रहेगा इस बात की लड़ाई के कारण बच्चे को सामाजिक तौर पर विकसित होने में काफी कठिनाई महसूस होती है। जिससे उसके विकास और पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ता है। 
  • जेंडर: सर्वे से पता चला है कि लड़के और लड़कियों पर तलाक के विरोधाभासी प्रभाव पड़े हैं। कुछ रिपोर्ट का मानना है कि माता-पिता के तलाक के बाद लड़कों को संभलने में और एडजस्ट करने में काफी वक्त लगता है वहीं कुछ का मानना है कि लड़कियों को ज्यादा कठिनाई होती है और संभलने में वक्त लगता है। वहीं कुछ स्टडीज का मानना है कि दोनों को बराबर की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • बच्चे का व्यक्तित्व: हर बच्चे का अपना अलग व्यक्तित्व होता है और वो इसके अनुसार अलग अलग तरीके से स्थितियों पर अपनी प्रतिक्रिया देता है, एक ही परिवार में तलाक से घर के बच्चे अलग अलग तरीके से प्रभावित हो सकते हैं वहीं बच्चे के तनाव डील करने का तरीका भी तलाक के बाद की स्थिति को प्रभावित कर सकता है।

तलाक के सकारात्मक पहलू क्या हैं? 

अधिकांश लोगों के विश्वास के विपरीत, तलाक को कभी-कभी एक सकारात्मक कदम उठाने के रूप में देखा जा सकता है, खासतौर पर तब जब रिश्ते में कड़वाहट हो, हिंसा हो, अपमान हो तब तलाक लेने का फैसला सही होता है।

  • जब कोई रिश्ता शराब और सिगरेट पीने की वजह से टूट जाता है तब अलग हो जाने का ये फैसला बच्चे और माता-पिता दोनों के लिए अच्छा साबित होता है। कोई भी बच्चा ऐसे माता पिता के साथ रहना चाहता है जो उसे समझते हों और उससे बहुत ज्यादा प्यार करते हों। इसकी वजह से उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव भी आ सकता है। ऐसी स्थिति में बच्चा अपने जीवन की परिस्थितियों से सीखता है और धूम्रपान या फिर गलत आदतों से दूर रहता है जहाँ पर तलाक उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। 
  • तलाक के बाद न तो बच्चे को और न ही माता-पिता को किसी भी प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है दोनों लोग अपने जीवन में आगे बढ़ जाते हैं, कुछ मामलों में दोनों लोग पहले से ज्यादा खुश भी नजर आते हैं और बच्चा भी अलग अलग रह कर खुश रहता है।
  • बच्चे को अपने दोनों माता-पिता के साथ अलग-अलग समय बिताने का मौका मिलता है और साथ ही माता-पिता भी अपने बच्चे पर पूरी तरह ध्यान देते हैं और क्वालिटी टाइम बिताते हैं। 
  • तलाक के बाद माता-पिता भी किसी और के साथ खुशी-खुशी रहने लगते हैं या फिर वह अकेले ही खुशहाल जीवन जीने लगते हैं इससे बच्चा यह सीखता है कि एक जीवन में बुरी घटना घटने के बाद भी जिंदगी कभी रुकती नहीं है। बच्चे समझ पाते हैं कि जिंदगी की नए सिरे से शुरुआत की जा सकती है। 

बच्चों में माता-पिता के अलग होने की पीड़ा कैसे कम करें

बच्चों का मन कोमल होता है वह मासूम होते हैं और बड़ों की तरह भावनात्मक रूप से मजबूत नहीं होते हैं। तलाक बच्चों को इतना गहरा असर डाल सकता है कि जो कभी खत्म नहीं किया जा सकता है, इसलिए आपको बहुत समझदारी के साथ इस स्थिति से निपटना होगा।

  • क्वालिटी पेरेंटिंग: क्लीनिकल स्टडीज से पता चला है कि तलाक के बाद बच्चे का अच्छे से पालन पोषण किया जाए तो वह स्थिति से जल्दी निपट सकते हैं, दोनों माता-पिता की तरफ से बच्चे पर ध्यान देना उन्हें इमोशनली प्रोटेक्शन महसूस कराना जरूरी है। तलाक जैसी स्थिति का बच्चे सामना कर सके इसके लिए माता-पिता को उससे बहुत सारा प्रेम देना चाहिए ताकि वह स्थिति से निपटने में सक्षम हो सके। साथ ही बच्चे को अनुशासन और नियमों का पालन करना भी सिखाएं। बच्चे को समझना चाहिए कि हर तरह की फीलिंग्स का होना सामान्य है। माता-पिता को लगातार बच्चे से बातचीत करते रहना चाहिए। यह एक ऐसा समय भी है जब बच्चे लोगों के प्रति सहानुभूति रखना सीखते हैं, यह समझने के लिए कि समस्याओं को कैसे हल किया जाए और किन समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता है।
  • मन में चल रही भावनाओं को समझें: स्टडीज से पता चला है कि माता-पिता अक्सर बच्चों में तनाव की वजह को नहीं समझ पाते और यह भी नहीं समझ पाते हैं कि पिछले एक साल में तनाव के कारण वे कितना बदल गए हैं। लेकिन एक तरीका है जिसे आप बच्चे में ऐसा होने से रोक सकते हैं और वो है, उनके इमोशन को समझना। यह उनके अंतर्मन को शांत करता है, और दिमाग के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में एक्टिविटी को बढ़ाता है जिससे उन्हें अपनी समस्या को हल करने में आसानी होती है। बच्चों को अक्सर पूरी तरह से खुलने या परेशानियों से बाहर आने के लिए समय चाहिए होता है और यह तभी होता है जब उन्हें विश्वास होता है कि उनके माता-पिता बिना किसी प्रश्न किए उनकी पूरी बात सुनेंगे। 
  • संघर्ष से निपटें: माता-पिता ऐसी शादी से कैसे निपटें जो खत्म होने की कगार पर है और वो दोनों ही अपनी नई जिंदगी कैसे शुरू करते हैं, इसका बच्चे पर बहुत गहरा असर पड़ता है। एक जिम्मेदार माता-पिता बच्चे को दुर्व्यवहार का शिकार नहीं होने देते हैं और बच्चे के सामने एक दूसरे के प्रति सम्मान दिखाते हैं। माता पिता के तलाक से बच्चों पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ता है लेकिन बच्चे को एक हिंसक रिश्ते से बचाने के लिए यह जरूरी है माता पिता को एक अच्छा उदाहरण बनना चाहिए। भले ही वो एक दूसरे से अलग ही क्यों न हो रहे हों ताकि बड़े होकर उस बच्चे को रिश्तों के बीच कॉन्फ्लिक्ट का सामना न करना पड़े। पैरेलल पेरेंटिंग में दोनों ही पेरेंट्स को बच्चे के साथ समय बिताने को मिलता है । इस स्थिति से निपटने के लिए मेडिटेशन करना बहुत अच्छा होता है, ऐसा देखा गया है कि जो पेरेंट्स मेडिटेशन काफी समय से करते आ रहे हैं वो बेहतर रूप से इस समस्या को हल कर पाते हैं
  • इंटरवेंशन प्रोग्राम पर विचार करें: प्रीवेंटिव इंटरवेंशन बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है ये सब बच्चों में अलगाव की भावना को कम करके, उनमें अपने मां या पिता को लेकर पैदा होने वाली गलत धारणाओं को स्पष्ट करने में सहायता करता है। ये प्रोग्राम्स बच्चों को माता-पिता से बात करने और समस्याओं का हल निकालने में मदद करते हैं। वही इंटरवेंशन प्रोग्राम पैरेंट के लिए भी होते हैं, जो तलाक के बाद भी उनके रिश्ते को एक सकारात्मक तरीके से निपटने करने में मदद करते हैं। साथ उन्हें ये भी पता चलता है कि उनके किसी एक्शन से बच्चे पर कितना बुरा प्रभाव पड़ सकता है। 
  • माता-पिता और बच्चे के बीच एक हेल्दी रिलेशन बनाएं: माता-पिता का बच्चे के साथ हेल्दी रिलेशनशिप बनाना, तलाक के बाद के बाद बच्चे पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने में मदद करता है। सर्वे से पता चलता है कि तलाक के बाद माता-पिता के रिश्ते खराब हो जाते हैं खासतौर पर पिता के साथ। इस पर माता-पिता को बच्चे को बराबर का वक्त देना चाहिए उन्हें समझना चाहिए उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताना चाहिए। बच्चों पर तलाक का एक और सामाजिक प्रभाव तब होता है जब माता-पिता तलाक के तुरंत बाद किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रिश्ते में आ जाते हैं। अधिकांश बच्चों में यह भावना आ जाती है कि वह अपने माता-पिता से दूर हो जाएंगे और यह भावना और बढ़ जाती है जब दूसरे व्यक्ति के बच्चे भी होते हैं। 

तलाक सबके लिए एक मुश्किल दौर होता है इस दौर में बच्चों को एक्स्ट्रा सपोर्ट और प्यार की जरूरत होती है। तलाक से गुजर रहे माता-पिता को बच्चों के लिए तत्पर रहना पड़ता है तलाक के बाद भी उनके लिए यह एक कठिन समय होता है। काउंसलिंग और इंटरवेंशन जैसी सुविधाएं मौजूद हैं जो माता-पिता और बच्चों दोनों के लिए चीजें आसान करने में मदद कर सकती हैं। 

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