डिलीवरी और लेबर का खयाल मात्र ही डरावना और चिंताजनक हो सकता है, खासकर अगर आप पहली बार मां बनने वाली हैं, तो! इसलिए ‘कॉम्प्लिकेशन’ शब्द का उल्लेख मात्र ही आपको पैनिक कर सकता है। लेकिन अगर इस नाजुक समय की संभावित समस्याओं के बारे में पहले से ही जानकारी हो, तो किसी कठिनाई की स्थिति में आपकी हिम्मत बनी रहती है। आइए लेबर और डिलीवरी के दौरान आने वाली 10 सबसे आम जटिलताओं पर नजर डालते हैं।
लेबर और डिलीवरी के दौरान आने वाले कॉम्प्लिकेशन की लिस्ट
लेबर और डिलीवरी के दौरान गंभीर चिंताजनक स्थितियां अब बहुत ही दुर्लभ हैं। विज्ञान और टेक्नोलॉजी की तरक्की ने डॉक्टर्स को समस्याओं को बेहतर ढंग से सुलझाने में काफी मदद की है, क्योंकि इनकी मदद से उनके पास समस्या का समाधान पहले से ही मौजूद होता है। हालांकि, बच्चे के जन्म के दौरान कुछ ऐसी जटिलताएं होती हैं, जो कि अप्रत्याशित ढंग से सामने आ सकती हैं और उन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत होती है।
1. लेबर जो आगे नहीं बढ़ता
जब लेबर में सामान्य से कहीं अधिक समय लगता है, तो उसे लेबर का प्रोग्रेस न होना कहा जाता है। महिला पहली बार मां बन रही हो, तो 20 घंटे से अधिक समय तक चलने वाले लेबर को यह नाम दिया जाता है और जिन महिलाओं ने पहले भी बच्चे को जन्म दिया है, उनके मामलों में यह समय अवधि 14 घंटों की मानी जाती है। लंबे लेबर के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
- सर्वाइकल डायलेशन का धीमा होना
- शिशु का आकार बड़ा होना
- एक से अधिक बच्चे
- बर्थ कैनाल या पेल्विस का छोटा होना
- गर्भाशय के कॉन्ट्रैक्शन को कमजोर बनाने वाली दर्द निवारक दवाएं
डॉक्टर आपके स्टेज के आधार पर लेबर बढ़ाने के लिए, आपको चलने, सोने, नहाने, पोजीशन में बदलाव और अन्य रिलैक्सेशन तकनीकों का इस्तेमाल करने की सलाह दे सकते हैं।
2. फीटल डिस्ट्रेस
जब गर्भ में शिशु को कोई तकलीफ होती है, उसे फीटल डिस्ट्रेस कहा जाता है। इसमें ऑक्सीजन की कमी से लेकर एमनियोटिक फ्लूइड का कम होना और असामान्य हृदय गति भी शामिल है। जब ऐसा होता है, तो आपको अपनी पोजीशन बदलने, हाइड्रेशन को बढ़ाने को कहा जा सकता है या फिर एमनियोटिक कैविटी में तरल पदार्थ ट्रांसफ्यूज किया जा सकता है। कुछ मामलों में सिजेरियन डिलीवरी की जा सकती है।
3. अंबिलिकल कॉर्ड कंप्रेशन
कभी-कभी अंबिलिकल कॉर्ड (गर्भनाल) बच्चे की गर्दन के इर्द-गिर्द लिपट जाती है या किसी तरह से उलझ जाती है। जब ऐसा होता है, तब कॉर्ड कंप्रेस हो सकता है, जिसके कारण बच्चे तक जाने वाला ब्लड फ्लो कम हो सकता है। इससे दिल की गति धीमी हो सकती है। अगर यह गिरावट थोड़ी देर के लिए हो या कॉर्ड में कंप्रेशन नहीं हुआ हो, तो सामान्य डिलीवरी हो जाती है। लेकिन, अगर ऐसा न हो, तो जल्द डिलीवरी के लिए और बच्चे की कुशलता के लिए सी-सेक्शन करना पड़ सकता है।
4. अंबिलिकल कॉर्ड प्रोलैप्स
इस स्थिति में, वॉटर ब्रेक होने के बाद और बच्चे के बर्थ कैनाल में प्रवेश करने से पहले अंबिलिकल कॉर्ड सर्विक्स से फिसल जाता है। अगर यह पानी की थैली फटने से पहले नीचे आ जाता है, तो इसे कॉर्ड प्रेजेंटेशन कहा जाता है और यह स्थिति खतरनाक होती है। आप बर्थ कैनाल में कॉर्ड को महसूस कर सकती हैं या यह वजाइना से बाहर भी आ सकता है। ऐसे में तुरंत ध्यान देने की जरूरत होती है, क्योंकि कॉर्ड के माध्यम से बच्चे को होने वाला ब्लड फ्लो रुक सकता है, जिससे उसे तकलीफ हो सकती है।
5. असामान्य पोजीशन
डिलीवरी के लिए आदर्श पोजीशन होती है, जब बच्चे का सिर नीचे की ओर हो और उसका चेहरा अंदर की ओर। लेबर और डिलीवरी की सबसे आम जटिलताओं में से एक होती है, जब बच्चा इसके अलावा किसी अन्य पोजीशन में रहता है, जिससे वेजाइनल डिलीवरी मुश्किल हो जाती है। शिशु एक ब्रीच पोजीशन में हो सकता है, जिसमें उसके कूल्हे या पैर नीचे की ओर होते हैं और कुछ बच्चे खड़ी अवस्था की बजाय आड़ी अवस्था में भी हो सकते हैं। डॉक्टर बच्चे की पोजीशन को हाथों से बदल सकते हैं या डिलीवरी को आसान बनाने के लिए फोरसेप का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। कुछ मामलों में एपीसीओटोमी या सी-सेक्शन जरूरी हो सकता है।
6. शोल्डर डिस्टॉसिया
इस स्थिति में बच्चे का सिर वजाइना से बाहर निकल जाता है, लेकिन उसके कंधे अटक जाते हैं। जब ऐसा होता है, तब डॉक्टर कई तरह से बच्चे को बाहर निकालने का प्रयास करते हैं, जैसे कि पेट पर दबाव डालना, बच्चे को हाथों से घुमाना या बच्चे के कंधों को बाहर निकालने के लिए एपीसीओटोमी का सहारा लेना। शोल्डर डिस्टॉसिया के कारण होने वाली जटिलताएं आमतौर पर टेंपरेरी होती हैं या फिर इनका इलाज किया जा सकता है। लेकिन ऐसे में, मां और बच्चे दोनों को ही गंभीर चोट लगने का खतरा बना रहता है।
7. एमनियोटिक फ्लूइड एंबॉलिज्म
यह एक गंभीर जटिलता मानी जाती है और यह तब होता है, जब एमनियोटिक फ्लूइड की थोड़ी मात्रा आपके खून में प्रवेश कर जाती है और फेफड़ों तक चली जाती है, जिससे आर्टरीज बंद हो जाती हैं। इसके कारण हृदय गति बढ़ सकती है, दिल का दौरा पड़ सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। बड़े पैमाने पर होने वाली ब्लड क्लॉटिंग भी इससे होने वाली समस्याओं में से एक है। यह स्थिति अत्यधिक कठिन लेबर या सी-सेक्शन के दौरान देखी जाती है और इसमें इमरजेंसी केयर की जरूरत होती है।
8. पेरिनियल लैसरेशन
पेरिनियम यानी वेजाइना और एनस के बीच के हिस्से में लगने वाले चीरे को पेरिनियल लैसरेशन कहा जाता है और आमतौर पर यह पहली डिलीवरी में देखा जाता है। इस चीरे को 1 से 4 तक विभिन्न डिग्री में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहली डिग्री के चीरे को मामूली समझा जाता है, जिसमें सिलाई की जरूरत नहीं होती है। बच्चे का आकार बड़ा होने से ऐसे चीरों का खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्था के अंतिम महीनों में पेरिनियल मसाज करने से इसकी संभावना को कम करने में मदद मिलती है।
9. रैपिड लेबर
आमतौर पर लेबर का समय 6 से 18 घंटों के बीच होता है। लेकिन जब यह केवल 3 से 5 घंटों का हो, तब इसे रैपिड लेबर कहा जाता है। फटाफट होने वाले तेज कॉन्ट्रैक्शन इसकी पहचान होते हैं, जिनके बीच आपको आराम करने के लिए कोई समय नहीं मिलता है। जब यह होता है, तब वेजाइनल टियर्स और हेमरेज का खतरा अधिक होता है। ऐसे में बच्चे के एमनियोटिक फ्लूइड निगल जाने की भी संभावना होती है।
10. यूटेराइन रप्चर
अगर पहले आपकी सी-सेक्शन डिलीवरी हो चुकी है, तो हो सकता है कि लेबर के दौरान आपका सिजेरियन स्कार यानी चीरे का निशान खुल जाए। इससे बच्चे को ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। वेजाइनल ब्लीडिंग, अनियमित कॉन्ट्रैक्शन और बच्चे की असामान्य हृदय गति रप्चर के संकेत होते हैं। ऐसी स्थिति में तुरंत सी-सेक्शन करना एक समाधान होता है।
ये थीं कुछ संभावित जटिलताएं, जो लेबर और डिलीवरी के दौरान सामने आ सकती हैं। आपकी गर्भावस्था एकदम सामान्य होने के बावजूद, इनकी संभावना होती है। पर समस्याओं की जानकारी होने से ही आप आधी जंग जीत जाती हैं और आपको इमरजेंसी की स्थिति में समस्या से निपटने में मदद मिलती है।
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