In this Article
- कोलेस्टेसिस क्या है?
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस होने के क्या कारण हैं?
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस होने पर क्या लक्षण दिखाई देते हैं?
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस होने के जोखिम
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस से क्या जटिलताएं हो सकती हैं?
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस का निदान और परीक्षण
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस का उपचार
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस के लिए घरेलू उपाय
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस से जुड़े जोखिम से कैसे बचा जाए?
- अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
हम जानते हैं कि गर्भावस्था का पूरा समय माँ और बच्चे दोनों के लिए बहुत नाजुक होता है। इस दौरान जैसे जैसे बच्चा गर्भ में विकास करता है, आप अपने अंदर भी बदलाव महसूस करती हैं, शारीरिक और मानसिक रूप दोनों से ही। बदलाव के साथ आपका किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या से जूझना इस चुनौती को और मुश्किल बना देता है इसलिए कहते हैं कि मातृत्व का यह सफर आसान नहीं होता है।
इस लेख में हम बात कर रहे हैं गर्भावस्था के दौरान होने वाली एक बीमारी कोलेस्टेसिस की। कोलेस्टेसिस एक ऐसी समस्या है जिसमें लिवर ठीक से काम नहीं करता और बाइल यानी पित्त को सही तरीके से बाहर नहीं निकाल पाता। गर्भावस्था के दौरान कोलेस्टेसिस होने पर महिला को हाथों और पैरों में तेज खुजली होती है, जिसकी वजह से यह होने वाले बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है।
कोलेस्टेसिस क्या है?
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस होने पर इसे ऑब्सटेट्रिक कोलेस्टेसिस भी कहा जाता है। यह एक असामान्य स्थिति है जिसमें गर्भवती महिला के लिवर पर प्रभाव पड़ता है और उसे तेज खुजली का अनुभव होता है। यह लिवर संबंधी समस्या हर 70 गर्भवती महिलाओं में से 1 में महिला में देखी जाती है। इसे अब चिकित्सा की दुनिया में इंट्राहेपेटिक कोलेस्टेसिस ऑफ प्रेग्नेंसी (आईसीपी) भी कहा जाता है।
इस बीमारी में शरीर में पित्त का सामान्य प्रवाह रुकने लगता है। जब पित्त का प्रवाह रुक जाता है, तो यह लिवर में जमा होने लगता है। फिर बाइल यानी पित्त और खासकर बाइल सॉल्ट खून में मिलने लगता है। इसके कारण हाथों और पैरों में बहुत ज्यादा खुजली होने लगती है। यह समस्या आमतौर पर गर्भावस्था की आखिरी तिमाही में शुरू होती है। हालांकि इससे होने वाली माँ पर जितना दुष्प्रभाव नहीं पड़ता उससे ज्यादा बच्चे को खतरा होता है। इसलिए, अगर गर्भावस्था के दौरान आपको तेज खुजली हो रही है, तो इस लक्षण को नजरअंदाज न करें और डॉक्टर को तुरंत दिखाएं।
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस होने के क्या कारण हैं?
प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को कोलेस्टेसिस की समस्या क्यों होती है, इसका अभी तक कोई स्पष्ट कारण नहीं पता चला सका है। लेकिन, इतना जरूर है कि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या के होने के पीछे हार्मोन संबंधी और आनुवंशिक कारक अहम भूमिका निभाते हैं।
1. हार्मोन संबंधी कारण
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के हार्मोन के स्तर में काफी उतार चढ़ाव देखने को मिलता है, जिसकी वजह से उन्हें इस समय कुछ गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। गर्भधारण करने के बाद महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन नामक हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिसके कारण उनके लिवर पर भी प्रभाव पड़ता है और पित्त का बहाव धीमा होने लगता है।
2. आनुवंशिक कारण
कभी-कभी यह समस्या आनुवंशिक भी होती है। जिन महिलाओं के परिवार में किसी को कोलेस्टेसिस की समस्या रही है, उन्हें यह बीमारी होने की अधिक संभावना है। हालांकि यह एक आनुवंशिक बीमारी है, लेकिन जरूरी नहीं है कि हर गर्भवती महिला को यह हो ही। आमतौर पर यह समस्या होती नहीं है, लेकिन गर्भावस्था के दौरान हार्मोन के स्तर में बदलाव आने से यह बढ़ सकती है।
यह समस्या होने के लिए अन्य जिम्मेदार कारणों में कोई बीमारी, संक्रमण और कुछ विशेष दवाओं का सेवन भी शामिल है।
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस होने पर क्या लक्षण दिखाई देते हैं?
यदि आप गर्भावस्था के दौरान ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस से पीड़ित हैं, तो आपको निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
- खुजली: इस बीमारी का मुख्य लक्षण खुजली है और यह अक्सर हथेलियों और पैरों के तलवों पर अधिक महसूस होती है। कोलेस्टेसिस की वजह से होने वाली खुजली रात में ज्यादा बढ़ जाती है, हालांकि इससे कोई रैशेस नहीं होते।
- पीलिया: ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस के गंभीर मामलों में पीलिया होने का भी खतरा होता है। इसमें आपकी आंखें और त्वचा पीली होने लगती हैं।
- गहरे रंग का पेशाब होना: कोलेस्टेसिस से पीड़ित गर्भवती महिला का पेशाब का रंग गहरा होता है।
- हल्के रंग का मल: इस दौरान गर्भवती महिलाओं के मल का रंग सामान्य की तुलना में हल्का होता है।
- थकान: कोलेस्टेसिस की वजह से गर्भवती महिला को थकान और ऊर्जाहीन महसूस हो सकता है।
- भूख न लगना: कोलेस्टेसिस से ग्रसित महिलाओं की खाने की दिनचर्या पर प्रभाव पड़ता है और उन्हें भूख कम लगती है।
यदि आपके पैरों और हथेलियों में बहुत ज्यादा खुजली हो रही है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिलने जाएं। यदि जांच में आप ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस से ग्रसित पाई जाती हैं, तो ऐसे में यह आपके बच्चे के स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है। इसलिए हो सकता है डॉक्टर आपको अस्पताल में कुछ दिन के लिए भर्ती होने के लिए कहें और समय समय पर आपकी स्थिति की जांच करते रहें।
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस होने के जोखिम
ऐसे कई कारक हैं जिनसे गर्भवती महिलाओं में इस समस्या के विकसित होने का जोखिम बढ़ता है। उनमें से कुछ के बारे में आपको नीचे बताए गया है:
- यदि महिला के गर्भ में एक से ज्यादा बच्चे हैं, तो उसे ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस होने की संभावना बढ़ जाती है।
- यह समस्या तब भी उत्पन्न हो सकती है, जब आपको पहले कभी लिवर से जुड़ी बीमारी रही हो या वहां चोट लगी हो। इसके कारण इस समय में आपको ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस के विकसित होने की संभावना बढ़ा जाती है।
- अगर परिवार में कोलेस्टेसिस का इतिहास रहा हो, तो आपको भी ये बीमारी होने की संभावना है।
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस से क्या जटिलताएं हो सकती हैं?
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस माँ और बच्चे दोनों को प्रभावित करता है, लेकिन बच्चे का स्वास्थ्य इससे अधिक प्रभावित होता है। यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस की वजह समस्याएं पैदा हो सकती है:
1. माँ को होने वाली मुश्किलें
जैसा कि पहले भी बताया गया है कि कोलेस्टेसिस एक ऐसी बीमारी है, जो गर्भावस्था के वक्त होने पर इसका असर बच्चे के स्वास्थ्य पर जितना पड़ता है, उतना माँ पर नहीं पड़ता। फिर भी इससे शरीर में मौजूद फैट को सोखने वाले विटामिनों पर कुछ समय के लिए प्रभाव पड़ सकता है, हालांकि इसकी वजह से महिला के पोषण पर कोई विशेष असर नहीं पड़ता। इस बीमारी से होने वाली खुजली भी डिलीवरी के कुछ दिनों बाद ही ठीक हो जाती है और यह स्थिति लिवर पर लंबे समय तक कोई प्रभाव नहीं छोड़ती है।
2. गर्भ में पल रहे शिशु को होने वाली मुश्किलें
कोलेस्टेसिस की वजह से बच्चे के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण कभी-कभी बच्चे का जन्म समय से पहले हो जाता है, लेकिन ऐसा क्यों, इसका सही कारण मालूम नहीं है। भ्रूण के साथ मेकोनियम नामक तरल पदार्थ होता है, जो एमनियोटिक द्रव (गर्भ में पाया जाने वाला तरल पदार्थ) में मिल सकता है। अगर प्रसव के समय बच्चा मेकोनियम को निगल लेता है, तो उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। ओब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस से गर्भावस्था के आखिरी दिनों में बच्चे की जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए बच्चे के मृत जन्म लेने की गहरी संभावनाओं के कारण डॉक्टर गर्भावस्था 37वें हफ्ते के करीब डिलीवरी करने का सुझाव देते हैं, ताकि बच्चे को सुरक्षित तरीके से बचाया जा सके।
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस का निदान और परीक्षण
डॉक्टर गर्भवती में महिला में ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस का पता लगाने के लिए लिवर फंक्शन टेस्ट (एलएफटी) की जांच कराने की सलाह देते हैं। इसके अलावा, वे एक फास्टिंग सीरम बाइल एसिड टेस्ट भी करवा सकते हैं। अगर टेस्ट के नतीजे नकारात्मक आते हैं, पर आपको खुजली हो रही है, तो ऐसे में जांच को दोबारा करवाने की सलाह दी जाती है।
कभी-कभी डॉक्टर ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह भी देते हैं। इस जांच से पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) में मौजूद पथरी का भी पता लगाया जाता है। ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस का निदान करने से पहले असामान्य लिवर फंक्शन के कारण देखने के लिए वायरल हेपेटाइटिस, एपस्टीन बार वायरस, और साइटोमेगालोवायरस जैसी अन्य जांच भी की जाती हैं।
हो सकता है कि ये सभी परीक्षण डराने वाले लगें, लेकिन आपको याद रखना चाहिए कि ये जटिल नहीं हैं और बच्चे के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करने के लिए बेहद उपयोगी हैं।
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस का उपचार
यदि गर्भावस्था के दौरान जांच में कोलेस्टेसिस का पता लगता है, तो ऐसे में डॉक्टर आपकी खुजली को कम करने और इसे बढ़ने से रोकने के लिए सही समय पर इलाज करवाने को कहेंगे। इसकी वजह से होने वाले बच्चे को खतरे से पहले बचाया जा सकता है और इससे मृत बच्चे के जन्म का जोखिम भी नहीं होता है। इसका इलाज निम्नलिखित तरीकों से हो सकता है:
- डॉक्टर आपको अर्सोडिऑक्सीकोलिक एसिड नाम की दवा दे सकते हैं, क्योंकि यह दवा खुजली कम करती है और लिवर को सामान्य तरीके से काम करने में मदद करती है।
- गंभीर कोलेस्टेसिस की स्थिति में डॉक्टर आपको स्टेरॉइड्स दे सकते हैं।
- बाइल सॉल्ट के कारण शरीर में विटामिन ‘के’ की कमी हो जाती है, जो खून जमने के लिए जरूरी है। इसलिए विटामिन के सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं।
- जैसे गर्भ में पल रहे बच्चे के फेफड़े विकसित हो जाते हैं, तो डॉक्टर माँ को डिलीवरी करवाने की सलाह देते हैं। ऐसा करने से बच्चे की जान बचाई जा सकती है। यह आमतौर पर 35वें से 38वें हफ्ते में की जाती है।
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस के लिए घरेलू उपाय
यदि जांच में कोलेस्टेसिस का पता चलता है, तो जल्द से जल्द इसका उपचार कराना चाहिए। साथ ही साथ आप कुछ घरेलू नुस्खे भी अपना सकती हैं, जो नीचे बताए गए हैं:
- जितना हो सके एयर कंडीशनर वाले कमरे में रहें, ठंडे माहौल में आपको राहत मिलेगी।
- खुजली को कम करने के लिए सोते वक्त चादर का उपयोग न करें, क्योंकि गर्मी से खुजली बढ़ सकती है।
- यदि आपको अधिक खुजली की समस्या हो रही है, तो सोने के लिए जाने से पहले ठंडे पानी से स्नान कर लें। क्योंकि इस बीमारी में खुजली अक्सर रात में ज्यादा होती है और ठंडे पानी का स्नान करने से आपको राहत मिलती है।
- खुजली से कुछ देर के लिए छुटकारा पाने के लिए आप ठंडे पानी में अपने हाथों और पैरों को डुबोकर रख सकती हैं।
- इस दौरान त्वचा रूखी हो जाती है और रूखी त्वचा में अधिक खुजली होती है, इसलिए आप रूखापन दूर करने के लिए हल्का मॉइश्चराइजिंग लोशन इस्तेमाल करें। लेकिन लोशन का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
- यदि आपको ये बीमारी है, तो कोशिश करें इस समय जितना हो सके ज्यादा तेल और चिकनाई वाले खाने का सेवन न करें ताकि आपके लिवर पर कम प्रभाव पड़े।
- सौम्य साबुन का इस्तेमाल करें जो आपकी त्वचा पर बुरा प्रभाव न डाले।
- इस दौरान हल्के और ढीले कपड़े पहनें ताकि आपकी त्वचा खुलकर सांस ले सके।
गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस से जुड़े जोखिम से कैसे बचा जाए?
ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस बीमारी का प्रभाव गर्भवती माँ पर कम होता है, लेकिन बच्चे पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। डॉक्टर बच्चे की जान बचाने के लिए उस पर गहन निगरानी रखते हैं। बच्चे को इसके जोखिम से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
1. नॉन-स्ट्रेस टेस्ट और बायोफिजिकल प्रोफाइल स्कोर
ऑब्स्टेट्रिक कोलेस्टेसिस की वजह से बच्चे का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए नॉन-स्ट्रेस टेस्ट और बायोफिजिकल प्रोफाइल स्कोर की मदद से डॉक्टर आपके बच्चे की हलचल और दिल की धड़कन को देखते हैं। बायोफिजिकल प्रोफाइल स्कोर से डॉक्टर को एमनियोटिक द्रव की मात्रा और बच्चे की मांसपेशियों और गतिविधि के बारे में जानकारी मिलती है।
2. समय से पहले प्रसव करवाना
आपकी सभी जांच सामान्य आई हों, तो भी डॉक्टर 37वें हफ्ते में प्रसव कराने की सलाह दे सकते हैं क्योंकि उन्हें बच्चे की जान के साथ कोई जोखिम नहीं उठाना होता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. क्या माँ को दूसरी गर्भावस्था के दौरान भी कोलेस्टेसिस हो सकता है?
अगर आपको पहली गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस की समस्या हुई थी, तो अगली गर्भावस्था में भी इसके होने की संभावना हो सकती है। अगर आपके परिवार में कोलेस्टेसिस का इतिहास रहा है, तो भी यह होने की संभावना अधिक है।
2. अगर मुझे कोलेस्टेसिस है, तो क्या मेरे बच्चे का जन्म जल्दी होगा?
इस समस्या में मृत बच्चे के जन्म का जोखिम बहुत ज्यादा होता है, इसलिए डॉक्टर 35वें से 38वें हफ्ते के बीच प्रसव करवाने की सलाह देते हैं। जल्द डिलीवरी के लिए 37वां हफ्ता सबसे सही माना जाता है।
3. प्रसव और जन्म के बाद क्या होता है?
आपका डॉक्टर बच्चे के पैदा होने के बाद आपकी और आपके बच्चे की सेहत का ध्यान रखने के लिए नीचे बताए गए निम्नलिखित उपाय करते हैं।
- आपके बच्चे को विटामिन ‘के’ का इंजेक्शन दिया जाएगा ताकि बच्चे का अधिक खून न बहे।
- प्रसव के 6 से 12 हफ्ते बाद आपके लिवर की जांच के लिए एक और टेस्ट किया जाएगा, ताकि अब कोलेस्टेसिस मौजूद नहीं है यह निश्चित किया जा सके।
- पित्ताशय में पथरी न हो इस बात को सुनिश्चित करने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
- इस समय एस्ट्रोजेन युक्त गर्भनिरोधक गोलियां नहीं दी जाती हैं। इसके लिए आप अपने डॉक्टर से गर्भनिरोध के अन्य विकल्पों पर बात कर सकती हैं।
- गर्भावस्था में कोलेस्टेसिस की वजह से परेशानी होती है और साथ में यह बच्चे के लिए स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं पैदा करता है। इस लेख में हमने इस बीमारी से जुड़ी सभी जानकारी के बारे में विस्तार से बताया है। यदि आप भी गर्भवती हैं, तो ऊपर बताए गए लक्षणों को ध्यान से देखें और अपने डॉक्टर को भी बताएं। इस समस्या को गंभीरता से लें, ताकि आप और बच्चा दोनों सुरक्षित रहें।