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अगर आप गर्भवती हैं या गर्भधारण की प्लानिंग कर रही हैं, तो आपके मन में कई तरह के सवाल घूम रहे होंगे। इनमें से एक सवाल गर्भ में बच्चे की सांसों से संबंधित हो सकता है। हम वातावरण से सीधे हवा को फेफड़ों में भरकर सांस लेते हैं। लेकिन गर्भ में शिशु एमनियोटिक फ्लुइड में तैरता रहता है। तो फिर उसे ऑक्सीजन कहां से मिलती है? यह लेख आपको यह समझने में मदद करेगा, कि जब बच्चे गर्भ में होते हैं, तो वे सांस कैसे लेते हैं, डिलीवरी के दौरान उनका सांस लेने का पैटर्न क्या होता है और साथ ही इस विषय से संबंधित कुछ जरूरी सवाल जो अक्सर पूछे जाते हैं उनके उत्तर भी आपको मिल जाएंगे।
क्या एक बच्चा गर्भ के अंदर सांस लेता है?
इसका छोटा सा जवाब है – नहीं। आपका बच्चा गर्भ के अंदर सांस नहीं ले सकता है। लेकिन यह जवाब केवल टेक्निकल रूप से सही है, क्योंकि ब्रीदिंग का मतलब होता है फेफड़ों में ऑक्सीजन भरना। गर्भस्थ शिशु के मामले में फेफड़े गर्भावस्था के अंतिम 2 सप्ताह में ही विकसित होते हैं। इस समय के दौरान बच्चा सांस लेने की प्रैक्टिस शुरू करता है। इसके लिए वह अपनी नाक से फेफड़ों में एमनियोटिक फ्लुइड को भरता और निकालता है। लेकिन अगर बच्चा प्रीमैच्योर है, तो डॉक्टर उसके फेफड़ों के जल्द विकास के लिए और उसे हमारी तरह सांस लेने में मदद करने के लिए स्टेरॉयड ट्रीटमेंट प्रिस्क्राइब कर सकते हैं।
बच्चों को गर्भ में ऑक्सीजन कैसे मिलती है?
बच्चे जन्म होने तक और डिलीवरी के दौरान सांस लेने की एक अलग प्रक्रिया से गुजरते हैं और इस प्रक्रिया को नीचे समझाया गया है।
1. गर्भ में सांस लेने की प्रक्रिया
पेट में पल रहे बच्चे की सभी जरूरतें प्लेसेंटा से पूरी होती हैं, जो कि मां और बच्चे के बीच एक नली होती है। प्लेसेंटा ऑक्सीजन, पानी, न्यूट्रिएंट्स, एंटीबॉडीज और अन्य कई चीजें मां के खून से लेता है और बच्चे के पेट से जुड़े अंबिलिकल कॉर्ड के द्वारा बच्चे तक पहुंचाता है। यही कारण है, कि मां को एक संतुलित आहार लेना चाहिए और सिगरेट, धुएं, प्रदूषण और शराब जैसे टॉक्सिंस से बचना चाहिए। मां के द्वारा ली गई हर सांस की हवा बच्चे तक जाती है। इसी प्रकार गर्भस्थ शिशु की हर तरह की गंदगी, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड प्लेसेंटा के द्वारा मां के खून में चली जाती है, जहां से वह फेफड़ों के द्वारा सांस छोड़ कर बाहर निकल जाती है।
2. डिलीवरी के दौरान बच्चे का सांस लेना
क्या आपने कभी सोचा है, कि लेबर के दौरान बच्चे किस तरह से सांस लेते हैं? यहां पर है इसका जवाब। जब बच्चे का जन्म हो रहा होता है, तब भी उसके फेफड़ों में एमनियोटिक फ्लूइड भरा होता है। बर्थ कैनाल से बाहर आने के दौरान से फेफड़ों में मौजूद अधिकतर तरल पदार्थ दबकर बाहर निकल जाता है। इस वक्त बच्चे सांस लेने की प्रैक्टिस शुरू भी कर सकते हैं। लेकिन जब तक वे अंबिलिकल कॉर्ड से जुड़े होते हैं, तब तक उन्हें पर्याप्त लाइफ सपोर्ट मिल रहा होता है। जन्म के दौरान बच्चे गहरे हरे रंग का पदार्थ बाहर निकालते हैं, जिसे मेकोनियम हा जाता है। यह जरूरी है, कि बच्चे दुर्घटनावश मेकोनियम को मुंह में न ले लें, क्योंकि इससे गंभीर रेस्पिरेटरी समस्याएं जन्म ले सकती हैं।
3. जन्म के बाद बच्चे की पहली सांस
जन्म के कुछ सेकंड के बाद बच्चा अपने आप ही सांस भरता है और खुद ही सांस लेना शुरू कर देता है। जब फेफड़े ऑक्सीजन से भर जाते हैं, तब एमनियोटिक फ्लूइड बाहर निकल जाता है और सर्कुलेटरी सिस्टम काम करना शुरू कर देता है। जन्म के लगभग 30 सेकंड के बाद डॉक्टर अंबिलिकल कॉर्ड को काटते हैं और पहली बार बच्चे को मां से शारीरिक रूप से अलग करते हैं। बच्चे के फेफड़े अब ऑक्सीजन लेने के लिए तैयार होते हैं, लेकिन उनका रेस्पिरेटरी सिस्टम अगले 8 से 10 वर्षों तक विकसित होता रहता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1. क्या वॉटर बर्थ बच्चे की सांसों को प्रभावित करता है?
वॉटर बर्थ एक प्रक्रिया है, जिसमें महिला एक बड़े स्टेराइल पूल या पानी के टब में बच्चे को जन्म देती है। यह किसी भी तरह से आपके बच्चे की सांस लेने की क्षमता को नुकसान नहीं पहुंचाता है, क्योंकि बच्चा जन्म लेने के बाद भी अंबिलिकल कॉर्ड के द्वारा ऑक्सीजन ले रहा होता है। बल्कि, अक्सर वॉटर बर्थ की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसमें नवजात शिशु को सामान्य डिलीवरी के दौरान लगने वाले शॉक का अनुभव कम होता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वह गर्म एमनियोटिक फ्लूइड से बाहर निकलने के बाद गर्म पानी के पूल में आता है। इसके अलावा वॉटर बर्थ मां के लिए आरामदायक और सौम्य होता है, जिसमें प्रेगनेंसी का तनाव और दर्द कम हो जाता है।
2. अगर बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिले तो क्या होगा?
अगर अल्ट्रासाउंड स्कैन में दिखता है, कि बच्चा गर्भ में सांस नहीं ले रहा है, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि इसमें कोई समस्या होगी ही। लेकिन अगर बच्चे को जन्म के दौरान या तुरंत बाद पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलता है, तो इससे पेरिनेटल एसफिक्सिया नामक स्थिति हो सकती है। यह स्थिति बहुत खतरनाक होती है, क्योंकि यह बच्चे के शरीर को प्रभावी रूप से काम करने से रोकती है, जिससे अंगों के सिस्टम में खराबी आ सकती है, जैसे दिल, फेफड़े, आंतें और किडनी। पेरिनेटल एसफिक्सिया को मस्तिष्क का नुकसान करने के लिए भी जाना जाता है, जिसके कारण बौद्धिक और शारीरिक अक्षमताएं, सेरेब्रल पाल्सी और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है। इस स्थिति के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
- मां को डायबिटीज या हाइपरटेंशन हो, तो अंबिलिकल कॉर्ड के द्वारा ब्लड सप्लाई में रुकावट आ सकती है।
- ब्रीच पोजीशन में या उल्टी पोजीशन में जन्म लेने वाले बच्चे अक्सर ऑक्सीजन की कमी से जूझते हैं।
- शोल्डर डिस्टॉसिया, जिसमें शिशु के कंधे बर्थ कैनाल से निकल नहीं पाते हैं और कॉर्ड पर दबाव पड़ता है।
- कभी-कभी अंबिलिकल कॉर्ड डिलीवरी के दौरान बच्चे की गर्दन में लिपट सकती है, जिससे ऑक्सीजन की सप्लाई रुक सकती है।
बच्चों को निश्चित रूप से भोजन, पानी, हवा और उन सभी बेसिक चीजों की जरूरत होती है, जो कि एक मनुष्य के जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। फर्क केवल इतना सा है, कि उनकी ये जरूरतें अलग तरह से पूरी होती हैं। गर्भावस्था कई तरह से कठिन हो सकती है, लेकिन इसका यह पहलू निश्चित रूप से एक ऐसी चीज है, जिसके बारे में आपको अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती है। अगर आप अपने गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं, तो आपको गाइनेकोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए और अपनी चिंताओं के बारे में बात करनी चाहिए।
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