शिशु

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे को जन्म देना

गर्भावस्था के दौरान स्क्रीनिंग की मदद से बच्चे के पैदा होने से पहले ही माता-पिता को यह पता चल सकता है की उनके बच्चे को डाउन सिंड्रोम का खतरा है या नहीं। हालांकि यह जानना काफी दु:खद होता है कि बच्चा डाउन सिंड्रोम की समस्या के साथ पैदा होगा, लेकिन यह पता करना बहुत जरूरी भी है कि डाउन सिंड्रोम की वजह से बच्चे को किन तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है और उस परिस्थिति में उसे किस तरह संभालना होगा।

डाउन सिंड्रोम क्या है?

डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक बीमारी है, जिसमें बच्चा 21 क्रोमोसोम की एक एक्स्ट्रा कॉपी के साथ पैदा होता है। यह बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को बदल देता है। डीएसई (डाउन सिंड्रोम एजुकेशन इंटरनेशनल) के मुताबिक यह परेशानी 400 बच्चों में से 1 से लेकर 1500 बच्चों में से 1 बच्चे को हो सकती है, यह आंकड़ा अक्सर अलग-अलग देशों में अलग-अलग होता है।

डाउन सिंड्रोम के प्रकार

डाउन सिंड्रोम के बहुत से प्रकार होते हैं, जो बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि आप सभी तरह के डाउन सिंड्रोम के बारे में जान लें ताकि उनके लक्षणों को शुरुआती दौर में ही पहचान सकें। डाउन सिंड्रोम के कुछ प्रकार है:

1. ट्राइसॉमी 21

डाउन सिंड्रोम के 95% मामले ट्राइसॉमी 21 के होते हैं। ट्राइसॉमी 21 में सेल डिवीजन में एक एनोमली जिसे ‘नॉन-डिसजंक्शन’ कहा जाता है, उसकी वजह से एंब्रियो में क्रोमोसोम 21 की 3 कॉपियां बन जाती हैं।

यह गर्भधारण के दौरान या उससे पहले होता है, जहाँ 21वें क्रोमोसोम का जोड़ा शुक्राणु या अंडे में अलग होने में असफल होता है। यह एडिशनल क्रोमोसोम शरीर की सभी सेल्स (कोशिकाओं) में दोहराया जाता है।

2. मोजाइसिज्म

डाउन सिंड्रोम के सभी मामलों में से केवल 1% में मोजाइसिज्म पाया जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ 46 क्रोमोसोम वाली सामान्य सेल्स और 47 क्रोमोसोम वाली असामान्य सेल्स का मिश्रण होता है। 47 क्रोमोसोम वाली सेल्स में क्रोमोसोम 21 की एक एक्स्ट्रा कॉपी होती है।

3. ट्रांसलोकेशन

डाउन सिंड्रोम के 4% मामलों में ट्रांसलोकेशन पाया जा सकता है। इसमें क्रोमोसोम 21 का एक भाग टूट जाता है और दूसरे क्रोमोसोम से जुड़ जाता है। इसके अलावा पूरे या आधे क्रोमोसोम 21 के मौजूद होने के वजह से बच्चे में परेशानियां होती हैं।

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने के जोखिम कारक

कुछ परिस्थितियां डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। प्रमुख जोखिम कारकों में शामिल हैं:

1. देर से माँ बनना

रिसर्च बताती हैं कि बड़ी उम्र की गर्भवती होने वाली महिलाओं में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को पैदा करने का खतरा ज्यादा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्यादा उम्र वाली महिलाओं के अंडों में सेल्स का अनुचित विभाजन होने का अधिक खतरा होता है।

नेशनल डाउन सिंड्रोम सोसाइटी (एनडीएसएस) के अनुसार एक चार्ट दिया हुआ है, जो बेहतर तरीके से इसे वर्णित करता है:

  • 30 वर्ष में गर्भवती होने वाली महिलाओं में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने की संभावना 1000 में से 1 होती है।
  • 35 वर्ष में गर्भवती होने वाली महिलाओं में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने की संभावना 400 में से 1 होती है।
  • 42 वर्ष में गर्भवती होने वाली महिलाओं में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने की संभावना 60 में से 1 होती है।
  • 49 वर्ष में गर्भवती होने वाली महिलाओं में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने की संभावना 12 में से 1 होती है।

2. जेनेटिक ट्रांसलोकेशन का कैरियर

डाउन सिंड्रोम बच्चों में माँ और पिता दोनों द्वारा पास हो सकता है। अगर पेरेंट्स में से कोई एक जेनेटिक ट्रांसलोकेशन का कैरियर है। किसी बीमारी या मेडिकल समस्या की वजह से जरूरी नहीं कि बच्चा खुद उसी बीमारी या मेडिकल कंडीशन से पीड़ित होगा, लेकिन इसके लिए एक ‘फॉल्टी’ कॉपी जीन जिम्मेदार हो सकता है। जब ऐसा व्यक्ति मां या पिता बनता है तो संभावना है कि बच्चा माता-पिता की तरह ही जिनेटिक समस्या से पीड़ित होगा या कैरियर होगा।

3. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित पहला बच्चा होना

जिन माता-पिता का एक बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त होता है या वे स्वयं क्रोमोसोम की किसी विसंगति के कैरियर होते हैं, उन्हें डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चा होने का खतरा होता है।

कॉम्प्लिकेशन

डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने वाले बच्चों में स्वास्थ्य से जुड़ी कई दिक्कतें हो सकती हैं:

1. हृदय दोष

डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने वाले लगभग आधे बच्चों में किसी न किसी प्रकार का हृदय दोष जन्म से ही होता है। इनमें से कुछ समस्या को गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड में भी पहचाना जा सकता है। हार्ट प्रॉब्लम का पता चलने पर बच्चे को शुरुआती तीन महीनों तक नियमित इकोकार्डियोग्राम से गुजरना पड़ सकता है।

2. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल दोष

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल दोष वाले बच्चे को नीचे बताई गई अब्नोर्मेलिटी का सामना करना पड़ सकता है:

  • इंटेस्टाइन (आतें): गंभीर उल्टी की परेशानी होती है।
  • इसोफेगस (भोजन नलिका): गलत तरीके से विंड पाइप से जुड़े होने पर बार-बार घुटन का कारण बनता है।
  • एनस: एनल का मुँह बंद होना। ऐसी ही एक स्थिति है हिर्स्चस्प्रुंग रोग, जहाँ आंतों की नसें मल को बाहर निकालने को मुश्किल बना देती हैं। यह डाउन सिंड्रोम वाले 2 से 15% शिशुओं को प्रभावित करता है।

बच्चे को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ब्लॉकेज और हार्टबर्न (गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स) या सीलिएक रोग जैसी पाचन समस्याएं भी हो सकती हैं।

3. इम्यून डिसऑर्डर

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में ऑटोइम्यून डिसऑर्डर विकसित होने का अधिक खतरा होता है जिससे इम्यून सिस्टम में अब्नोर्मेलिटी देखी जा सकती है। इसका मतलब है कि उनमें अपनी उम्र के सामान्य बच्चों की तुलना में संक्रामक बीमारी के होने की संभावना अधिक होती है।

4. आँखों की समस्या

डाउन सिंड्रोम वाले ज्यादातर बच्चों को किसी न किसी तरह की आँखों की समस्या का सामना करना पड़ता है, जो हल्के (टियर डक्ट्स में ब्लॉकेज) से लेकर गंभीर (मोतियाबिंद) समस्याओं तक हो सकती है। आपको यह सलाह दी जाती है कि बच्चे को हर एक या दो साल में एक बार बाल रोग विशेषज्ञ के पास ले जाया जाना चाहिए।

5. बहरापन

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को कान के इंफेक्शन का खतरा हो सकता है क्योंकि उनके पास दूसरों के मुकाबले छोटे / पतले इयर कैनाल हो सकते हैं।

6. स्लीप एप्निया

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में सॉफ्ट टिशू और स्केलेटन अच्छी तरह से डेवलप नहीं होते हैं। यह उनके एयरवेज को ब्लॉक करता है, जिससे उनके लिए साँस लेना मुश्किल हो जाता है। और क्योंकि वो सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं ले पाते हैं, उनकी नींद प्रभावित होती है और इसके परिणामस्वरूप स्लीप एपनिया जैसी परेशानी हो सकती है। स्लीप एपनिया एक डिसऑर्डर है जिसमे इंसान को नींद के दौरान साँस लेने में मुश्किल होती है, जिसकी वजह से हांफने जैसी स्थिति या साँस लेते वक्त रुकावट महसूस होती है।

7. मोटापा

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में सामान्य बच्चों की तुलना में मोटापे का खतरा अधिक होता है।

8. रीढ़ की हड्डी की समस्या

बच्चे की गर्दन में टॉप 2 वर्टेब्रे का गलत अलाइनमेंट हो सकता है, जिससे गर्दन के ज्यादा फैलने की के वजह से रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगने का खतरा होता है।

9. डिमेंशिया

उम्र बढ़ने के साथ बच्चे को डिमेंशिया और अल्जाइमर रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।

10. थायराइड की समस्या

डाउन सिंड्रोम वाले लगभग 10% शिशुओं में थायराइड ग्लैंड की खराबी होती है।

ऊपर बताई गई स्वास्थ्य समस्याएं गंभीर लग सकती हैं, लेकिन इनका सही तरीके से ध्यान रख कर और सही तरह से देखभाल किए जाने पर इलाज मुमकिन है। आपको यह जानना चाहिए कि डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की जीवन प्रत्याशा पहले के समय की तुलना में 60 वर्ष तक बढ़ गई है।

डाउन सिंड्रोम के साथ बड़ा होना

डाउन सिंड्रोम के साथ बड़े होने वाले बच्चे का जीवन शुरुआती वर्षों में खेलने, बातचीत करने और आगे बढ़ने के दिलचस्प मौकों से भरा हो सकता है। उम्र के साथ, वे सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ सकते हैं और पूरे आत्मविश्वास के साथ लोगों से इंटरेक्ट कर सकते हैं। 

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में अन्य सामान्य लोगों की तरह ही अपनी व्यक्तिगत रुचियां और शौक होते हैं, स्ट्रेंथ, प्रतिभा और जरूरतें होती हैं। प्रत्येक बच्चा अपने स्कूल, परिवारों और समुदायों में और सामाजिक रूप से शामिल होता है और अपने तरीके से आगे बढ़ता है।

यह लोग बहुत खास व्यक्तित्व के हो सकते है। वे शांत या शोर करने वाले, मिलनसार या शर्मीले और आसानी से संभाले जाने वाले हो सकते हैं या फिर उनको डील करना मुश्किल हो सकता है आदि। वे बौद्धिक क्षेत्रों में हल्के से मध्यम तक स्कोर कर सकते हैं, लेकिन ऐसे बच्चे में आप अक्सर अनोखी अंतर्दृष्टि, रचनात्मकता और चतुराई देख सकती हैं जो सच में हैरान कर देने वाला होगी।

कम्युनिटी की समझ और सपोर्ट के साथ, डाउन सिंड्रोम वाले युवा भी उन क्षेत्रों में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं जिनकी उनसे अपेक्षा नहीं की जाती है। वे अच्छी नौकरियां करते हैं, अपने घरों को अच्छी तरह से साफ सुथरा करते हैं और उन समुदाय में समान रूप से योगदान करते हैं जिनमें वे रहते हैं। अक्सर, वे चुनौतियों का सामना अच्छे से करते हैं और कभी कभी तो वे इन परेशानियों को इस तरह से दूर करते हैं जो दूसरों को भी प्रेरित कर सकती हैं।

डाउन सिंड्रोम के लक्षण

यह जानने के लिए कोई विशिष्ट लक्षण नहीं हैं कि आप डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को पैदा कर रही हैं। गर्भावस्था के शुरुआती चरणों के दौरान कुछ जांचों से इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इसमें शामिल है:

डाउन सिंड्रोम के लिए जांच

स्क्रीनिंग टेस्ट का उद्देश्य गर्भ में पल रहे बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की संभावना का अनुमान लगाना होता है। ये टेस्ट ज्यादा महंगा नहीं होता है और इसकी प्रक्रिया भी आसान होती है। यह माता-पिता को तय करने में मदद करता है कि डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाना चाहिए या नहीं।

स्क्रीनिंग टेस्ट में नीचे दी गई बातें शामिल होती हैं:

1. न्यूकल ट्रांसलूसेंसी टेस्टिंग (एनटीटी)

  • यह न्यूकल ट्रांसल्युसेंसी टेस्ट प्रेगनेंसी के 11 से 14 सप्ताह के बीच किया जाता है।
  • यह अल्ट्रासाउंड बढ़ते बच्चे की गर्दन के पीछे टिशू की परतों के सिकुड़न के स्पष्ट स्थान को चेक करता है (डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे में इस स्थान में फ्लूइड जमा हो जाता है, जिससे यह बाकियों के मुकाबले बड़ा दिखाई देता है)।
  • यह टेस्ट आमतौर पर मेटरनल ब्लड टेस्ट के बाद किया जाता है।

2. ट्रिपल / क्वाड्रुपल स्क्रीन

  • इसे “मल्टीपल मार्कर टेस्ट” के नाम से भी जाना जाता है, यह टेस्ट प्रेगनेंसी के 15 से 18 सप्ताह के बीच किया जाता है।
  • यह टेस्ट माँ के खून में नॉर्मल सब्स्टेंस की मात्रा को मापता है।
  • ट्रिपल मार्कर के लिए ट्रिपल स्क्रीन टेस्ट जबकि क्वाड्रपल स्क्रीन एडिशनल मार्कर का टेस्ट करती है।

3. इंटीग्रेटेड स्क्रीन

यह स्क्रीनिंग पहली तिमाही के स्क्रीनिंग टेस्ट (एनटीटी के साथ या बिना) से प्राप्त रिजल्ट और दूसरी तिमाही के क्वाड्रुपल टेस्ट से ब्लड टेस्ट को जोड़ती है, इस प्रकार माता-पिता को सबसे सटीक रिजल्ट मिल पाता है।

4. जेनेटिक अल्ट्रासाउंड

  • यह टेस्ट 18 से 20 सप्ताह के बीच किया जाता है।
  • ब्लड टेस्ट के साथ एक अल्ट्रासाउंड फीटस की डाउन सिंड्रोम से संबंधित किसी भी शारीरिक लक्षण या विसंगतियों के लिए जांच करता है।

5. सेल मुक्त डीएनए

  • यह एक ऐसा ब्लड टेस्ट है जो माँ के खून में पाए जाने वाले फीटल डीएनए का विश्लेषण करता है।
  • यह पहली तिमाही के दौरान किया जाता है।
  • यह टेस्ट ट्राइसॉमी 21 का सटीक रूप से पता लगाता है।
  • यह टेस्ट विशेष रूप से डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को गर्भधारण करने के उच्च जोखिम वाली महिलाओं के लिए निर्धारित किया जाता है।

डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा हुए बच्चों में ऐसे लक्षण होते हैं जो शुरुआती दौर में ही देखे जा सकते हैं।

बच्चों में डाउन सिंड्रोम के शुरुआती लक्षणों को नीचे बताए गए लक्षणों द्वारा पहचाना जा सकता है:

  • चपटा चेहरा
  • छोटा सिर
  • उभरी हुई जीभ
  • छोटी गर्दन
  • ऊपर की ओर लगी हुई आँखें
  • अजीब आकार के कान
  • हथेली में सिर्फ एक ही क्रीज होना
  • मांसपेशियों का खराब टोन

डाउन सिंड्रोम की विशेषताएं

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे बहुत अधिक भावनाएं प्रदर्शित कर सकते हैं। वे रचनात्मक और कल्पनाशील हो सकते हैं और कुछ विशेष शारीरिक गुण प्रदर्शित कर सकते हैं:

1. शरीर की बनावट

  • मांसपेशियों की टोन में कमी, इस स्थिति को हाइपोटोनिया भी कहा जाता है, जिसमे बच्चा लंगड़ा महसूस करता है।
  • छोटा कद
  • छोटी और चौड़ी गर्दन जिसमें बहुत चर्बी और त्वचा होती है।
  • क्रीज यानी हथेली के आर-पार सिंगल या सिर्फ एक ही क्रीज होना।
  • छोटे हाथ और पैर
  • पैर के अंगूठे उसके पास की ऊँगली के बीच में बहुत ज्यादा गैप होना।

2. चेहरे की बनावट

  • ऊपर की ओर लगी हुई बादाम के आकार की आँखें।
  • नोज ब्रिज पुश-इन लुक यानी नाक और आँखों के बीच का फ्लैट एरिया होना।
  • अनियमित या टेढ़े दाँत, जो देर से और अलग क्रम में आ सकते हैं।
  • छोटे कान जो सिर पर ओर होते हैं।
  • निकली हुई जीभ।
  • सही आकार का मुँह न होना, जिसमें मुँह के ऊपरी तालू में नीचे की ओर कर्व होता है।

डाउन सिंड्रोम का इलाज

इलाज आम तौर पर बच्चे की शारीरिक समस्याओं और जीवन के विभिन्न चरणों में सामना की जाने वाली बौद्धिक चुनौतियों पर निर्भर करता है।

1. नवजात बच्चों के लिए

  • डाउन सिंड्रोम वाले लगभग 40 से 50 प्रतिशत नवजात बच्चों में हृदय दोष होता है।
  • नवजात बच्चों की इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम और इकोकार्डियोग्राम के माध्यम से दिल की जांच करवानी चाहिए। यदि कोई हृदय दोष पाया जाता है, तो बच्चे को बाल रोग विशेषज्ञ के पास लेकर जाना चाहिए।

2. छोटे बच्चों के लिए

  • बच्चों को कुछ भी निगलने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, उनके मल त्याग में रुकावट आ सकती है, आँखों की समस्या जैसे मोतियाबिंद, या क्रॉस आई हो सकती है। उचित और समय पर सर्जरी करने से इन समस्याओं का इलाज हो सकता है।
  • कम थायराइड लेवल शिशुओं में काफी आम है। इसलिए हर साल थायराइड टेस्ट कराने की जरूरत होती है।

3. टॉडलर और बड़े बच्चे के लिए

  • बच्चे बार-बार सर्दी, साइनस और कान के इंफेक्शन से प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे मामलों में जल्द से जल्द उपचार की आवश्यकता होती है।

ज्यादातर बच्चों को बड़े होने पर स्पीच और फिजिकल थेरेपी की आवश्यकता होती है। बाद में, उन्हें ऑक्यूपेशनल थेरेपी की आवश्यकता हो सकती है, जो उन्हें नौकरी करने और खुद के दम पर जीने में मदद करती है।

डाउन सिंड्रोम से कैसे बचें

रिसर्च बचाव के लिए 3 तरह के सुझाव देता है:

1. फोलिक एसिड की खुराक

रिसर्च से पता चलता है कि डाउन सिंड्रोम और न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट के बीच एक कड़ी हो सकती है। फोलिक एसिड की खुराक शिशुओं में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट को रोकने में मदद करती है और साथ ही डाउन सिंड्रोम के विकास के जोखिम को भी कम करती है।

2. अधिक उम्र में गर्भधारण से बचें

35 उम्र से ऊपर की महिलाओं में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को जन्म देने का जोखिम बढ़ जाता है।

3. जेनेटिक डायग्नोसिस

यह सलाह दी जाती है कि डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को कंसीव करने के जोखिम वाले माता-पिता को प्री इम्प्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग करवानी चाहिए।

डाउन सिंड्रोम का निदान

डायग्नोस्टिक टेस्ट यह पता लगाने में सटीक होते हैं कि फीटस में डाउन सिंड्रोम की समस्या है या नहीं। ये गर्भाशय के अंदर किए जाने वाले इनवेसिव टेस्ट हैं और गर्भपात, समय से पहले प्रसव और फीटल इंजरी का पता लगाते हैं। इसलिए, इन टेस्ट का सुझाव ज्यादातर 35 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाओं या स्क्रीनिंग टेस्ट से असामान्य रिजल्ट मिलने वाले लोगों को दिया जाता है। 

डायग्नोस्टिक टेस्ट में शामिल हैं:

1. कोरियोनिक विलस सैंपलिंग

  • यह गर्भावस्था के 8 से 12 सप्ताह के बीच किया जाता है।
  • प्लेसेंटा का एक छोटा सा सैंपल सर्विक्स या पेट में डाली गई सुई के माध्यम से लिया जाता है।

2. एम्नियोसेंटेसिस

  • यह गर्भावस्था के 15-20 सप्ताह में किया जाता है।
  • इसमें पेट में डाली गई सुई के मदद से मिले एमनियोटिक फ्लूइड का विश्लेषण किया जाता है।

3. परक्यूटीनियस अम्बिलिकल ब्लड सैंपलिंग

  • यह टेस्ट गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद किया जाता है।
  • इसमें पेट में डाली गई सुई के माध्यम से गर्भनाल यानी अम्बिलिकल कॉर्ड से ब्लड सैंपल लिया जाता है और उसकी जांच की जाती है।

डाउन सिंड्रोम का निदान जन्म के बाद भी कुछ फिजिकल फीचर द्वारा किया जाता है। जैसे संख्या, आकार, आदि के आधार पर क्रोमोसोम की जांच के लिए खून या टिशू के सैंपल को लिया जाता है।

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे की देखभाल

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे की परवरिश करना बहुत मुश्किल होता है मगर साथ ही फायदेमंद भी हो सकता है। इन बच्चों के माता-पिता का रास्ता अन्य माता-पिता से अलग हो सकता है, लेकिन बाकियों की तरह ही यह सफर आपको अनगिनत यादें देगा और आपके जीवन को प्यार से भर देगा, क्योंकि हर पेरेंट्स के लिए उनके बच्चे खास होते हैं।

  • शुरुआती इंटरवेंशन प्रोग्राम के बारे में पता करे, जहाँ आपका बच्चा अलग-अलग बातें सीख सकता है और खुद का विकास कर सकता है।
  • सामाजिक रूप से लोगों से घुले मिलें, ताकि बच्चे को भी समाज में घुलने मिलने में तकलीफ न हो और वो बाकी बच्चों की तरह ही सब काम बिना किसी हिचकिचाहट के कर सके।
  • अपने बच्चे को आत्मनिर्भर बनाएं। आपकी मदद और सहयोग से वह ड्रेसिंग, साफ सफाई, पैकिंग, खाना पकाने और कपड़े धोने जैसे दैनिक कार्यों को करना सीख जाएगा।
  • आपका बच्चा धीरे धीरे सब सीख जाएगा जैसे कि लुढ़कना, चलना और बात करना, लेकिन दूसरों की तुलना में देरी से ये विकास होगा। ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि आप उसके विकास क्रम पर ध्यान दें, न कि उम्र पर।
  • अपने बच्चे के लिए एक उज्वल भविष्य सोचिए, क्योंकि वो भी आम लोगों की तरह अपनी जिंदगी गुजार सकता है।

छोटे बच्चे के स्वास्थ्य की देखरेख के कुछ तरीके

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है। उनके विकास को नियमित मॉनिटर करना बहुत जरूरी है।

1. ब्रेस्टफीडिंग

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग की आवश्यकता होती है ताकि उनका इम्यून सिस्टम अच्छी तरह विकसित हो सके।

2. वीनिंग

डाउन सिंड्रोम वाले शिशुओं को चूसना, चबाना और निगलना जैसे चीजों को सीखने में समय लग सकता है। इसलिए वीनिंग में देरी हो सकती है।

3. त्वचा की देखभाल

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को ड्राई स्किन की समस्या हो सकती है। हर दिन तेल या मॉइस्चराइजिंग क्रीम से हल्के हाथों से मालिश करना लाभदायक होता है।

4. तापमान को नियंत्रण में रखना

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है और वे बहुत जल्दी ठंडे या गर्म हो सकते हैं। उन्हें ठीक तरह से कपड़े पहनाने की सलाह दी जाती है।

5. हृदय की समस्याएं

यदि बच्चा बहुत तेज सांस ले रहा है, तो यह जरूरी है कि उसकी सही से देखभाल की जाए और जल्द से जल्द इलाज करवाया जाए।

6. थायराइड लेवल

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में थायराइड हार्मोन का लेवल बहुत कम हो सकता है, जो बदले में कई अन्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। ऐसे में हर 6 महीने या 1 साल में नियमित रूप से थायराइड के लिए ब्लड टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है।

7. पेट या आंतों की समस्या

किसी भी असुविधा के कारण थूकना, पेट में सूजन या मल त्याग में परेशानी चेतावनी का संकेत हैं जिस पर आपको ध्यान देना जरूरी होता है।

बच्चों के लिए डाउन सिंड्रोम ग्रोथ चार्ट

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में अपने ग्रोथ पैटर्न में आमतौर पर अलग होते हैं। पुराना स्वास्थ्य चार्ट, डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों के विकास की निगरानी के लिए हेल्थ एक्सपर्ट की सहायता कर सकता हैं और वह रिकॉर्ड रख सकते हैं कि बाकियों की तुलना में बच्चा कितनी अच्छी तरह बढ़ रहा है।

नेशनल डाउन सिंड्रोम सोसाइटी (एनडीएसएस) के अनुसार, नीचे 0 से 3 साल के डाउन सिंड्रोम के बच्चों के औसत विकास के बारे में बताया गया है:

1. लड़को के लिए सीमा

लंबाई वजन
जन्म के समय 18 इंच से 21.5 इंच जन्म के समय 6 से 8.5 पाउंड
1 साल का होने पर 27 से 30 इंच 1 साल का होने पर 15.5 से 21.5 पाउंड
2 साल का होने पर 30.5 से 34 इंच 2 साल का होने पर 20 से 27.5 पाउंड
3 साल का होने पर 33 से 37 इंच 3 साल का होने पर 23.5 से 32.5 पाउंड

2. लड़कियों के लिए सीमा

लंबाई वजन
जन्म के समय 18 से 20.5 इंच जन्म के समय 5 से 8 पाउंड
1 साल की होने पर 26 से 28.5 इंच 1 साल का होने पर 14 से 19 पाउंड
2 साल की होने पर 30 से 32.5 इंच 2 साल का होने पर 19 से 25 पाउंड
3 साल की होने पर 32.5 से  36 इंच 3 साल का होने पर 23 से 30 पाउंड

डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों पर अतिरिक्त देखभाल और ध्यान देने की आवश्यकता होती है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि वे बाकी बच्चों से कम महत्व रखते हैं। अपने बच्चे की जरूरतों को बिना किसी नाराजगी, असहायता या दया की भावना के पूरा करने से उसके विकास में मदद मिलेगी। ऐसा करने से वह हेल्दी और स्ट्रांग महसूस करेगा और अपना जीवन बाकियों की तरह खुशी से बिता पाएगा।

यह भी पढ़ें:

शिशुओं में एडवर्ड सिंड्रोम होना
टर्नर सिंड्रोम – कारण, लक्षण और इलाज
ग्रे बेबी सिंड्रोम – कारण, लक्षण, इलाज और अन्य जानकारी

समर नक़वी

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