गर्भावस्था

प्रीटर्म लेबर – कारण, संकेत और उपचार

बहुत सी महिलाओं की गर्भावस्था लगभग 40 सप्ताह तक चलती है। लेकिन कुछ महिलाओं में इसका अंत जल्दी हो जाता है। जब महिलाएं अपनी ड्यू डेट से 3 सप्ताह से अधिक समय पहले लेबर में जाती हैं, तब इसे प्रीटर्म या प्रीमैच्योर लेबर कहा जाता है। प्रीटर्म लेबर क्या है – यह क्यों होता है, प्रीमैच्योर लेबर की स्थिति में क्या करें, इससे कैसे बचें एवं ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए आगे पढ़ें!

प्रीमैच्योर लेबर क्या है?

अधिकतर गर्भावस्थाएं फुल टर्म होती हैं और बच्चे आमतौर पर गर्भावस्था के 39 और 40 सप्ताह के बीच जन्म लेते हैं। लेकिन कुछ मामलों में इस समय अवधि के पूरे होने से काफी पहले लेबर के शुरुआत होने की संभावना होती है। ऐसे प्रीटर्म लेबर की स्थिति आमतौर पर गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने के पहले होती है। गर्भाशय में होने वाले कॉन्ट्रैक्शन सर्विक्स को लेबर के लिए तैयार होने के लिए ट्रिगर करते हैं और वह खुलना शुरू हो जाता है। इसके कारण बच्चा समय से पहले जन्म ले सकता है, जिसमें बहुत सी चुनौतियां और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सामने आती हैं। 

प्रीटर्म लेबर क्यों होता है?

यहां पर प्रीटर्म लेबर के कुछ कारण दिए गए हैं: 

1. एक से अधिक बच्चे

अगर एक महिला के गर्भ में 2 या 3 बच्चे हों (और दुर्लभ मामलों में इससे अधिक), तो ऐसे में प्रीमैच्योर लेबर की संभावना अधिक होती है, क्योंकि गर्भाशय और सर्विक्स पर बहुत सारा दबाव होता है। 

2. वेजाइनल इन्फेक्शन

कुछ महिलाएं गर्भावस्था के दौरान बहुत से इन्फेक्शन से ग्रस्त होती हैं, जैसे यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, किडनी इन्फेक्शन, वेजाइनल इन्फेक्शन एवं अन्य। कुछ महिलाएं सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (एसटीडी – यौन संचारित रोग) से भी ग्रस्त हो सकती हैं। ऐसे संक्रमण प्रीटर्म लेबर की संभावना को बढ़ा देते हैं। 

3. गर्भावस्था के दौरान तेज बुखार

अगर गर्भवती महिला किसी ऐसी बीमारी या स्थिति से ग्रस्त है, जिसमें 101 डिग्री से अधिक बुखार हो जाता है, तो वह समय से पहले लेबर में जा सकती है। 

4. वेजाइनल ब्लीडिंग

कभी-कभी वेजाइनल ब्लीडिंग के कारण प्रीटर्म लेबर हो सकता है। आमतौर पर इस तरह की ब्लीडिंग को गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद देखा जाता है। 

5. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की मौजूदगी

कुछ महिलाएं गर्भावस्था के पहले से ही क्रॉनिक हेल्थ प्रॉब्लम्स से ग्रस्त होती हैं, जो कि गर्भावस्था के दौरान और भी बिगड़ सकती हैं। डायबिटीज, किडनी की समस्याएं, हाई ब्लड प्रेशर और ऐसी ही अन्य स्वास्थ्य समस्याएं शरीर में तनाव पैदा कर सकती हैं और इनके कारण प्रीटर्म लेबर हो सकता है। 

6. पहले हो चुका अबॉर्शन

अगर महिला को मौजूदा गर्भावस्था से पहले एक से अधिक बार अबॉर्शन हो चुका है, जिनमें से ज्यादातर पहली तिमाही में हो चुके हैं या इनमें से दो अबॉर्शन दूसरी तिमाही में हो चुके हैं, तो ऐसे मामलों में प्रीटर्म लेबर का खतरा बढ़ जाता है। गर्भाशय बच्चे के पूरी तरह से विकसित होने तक उसे संभाल पाने की अपनी ताकत को खो देता है और लेबर ट्रिगर हो सकता है। 

7. वजन से संबंधित समस्याएं

सही वजन ना होना हमेशा ही गर्भावस्था के दौरान समस्याएं खड़ी करता है। जरूरत से ज्यादा वजन होने से शरीर पर और मां और बच्चे को दोनों को सपोर्ट करने के उसके सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है। महिला का वजन यदि जरूरत से कम हो, तो इससे पोषण संबंधी समस्याएं हो सकती हैं और साथ ही ताकत और इम्यूनिटी से संबंधित समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। इन सब के कारण समय से पहले महिला लेबर में जा सकती है। 

8. थ्रांबोफीलिया

थ्रांबोफीलिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर थ्रोम्बोसिस से आसानी से प्रभावित हो जाता है। शरीर में मौजूद खून हाइपरकोगूलेबिलिटी से ग्रस्त होता है, जिसके कारण ब्लड वेसल्स के अंदर ही बेतरतीबी से ब्लड क्लॉट्स बन जाते हैं। यह एक काफी गंभीर स्थिति होती है और अन्य सभी कारणों के साथ यह भी प्रीटर्म लेबर का कारण बन सकती है। 

9. इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन

अगर एक महिला आईवीएफ के बाद केवल एक फीटस के साथ गर्भवती होती है, तो ऐसा देखा गया है कि प्रीटर्म लेबर में उसके जाने की संभावना सामान्य से थोड़ी बढ़ जाती है। 

10. दो गर्भावस्थाओं के बीच अंतर न होना

दो गर्भावस्थाओं के बीच पर्याप्त अंतर होना जरूरी है, ताकि शरीर रिकवर हो सके और अगली गर्भावस्था के लिए तैयार हो सके। अगर पिछली डिलीवरी और मौजूदा गर्भावस्था के बीच पर्याप्त समय अंतराल नहीं है या उनके बीच का अंतर लगभग एक वर्ष से कम है, तो मौजूदा गर्भावस्था में प्रीटर्म लेबर की संभावना काफी बढ़ जाती है। 

11. लाइफस्टाइल

जीवन शैली से संबंधित विभिन्न प्रकार के चुनाव सीधे तौर पर बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित तो करते ही हैं और साथ ही ये गर्भावस्था के समय को भी प्रभावित करते हैं। शराब, सिगरेट, गैरकानूनी ड्रग्स का सेवन, गतिहीन लाइफस्टाइल, लंबे समय तक खड़े रहना जैसी बातें शरीर पर तनाव पैदा करती हैं और इनके कारण प्रीटर्म लेबर हो सकता है। 

12. तनाव

मानसिक स्वास्थ्य गर्भावस्था को प्रभावित करने वाली मुख्य बातों में से एक है। काम और पारिवारिक समस्याओं के बारे में लगातार चिंता और घबराहट, या घरेलू हिंसा या भावनात्मक शोषण से सामना और घर पर लगातार मौजूद विपरीत परिस्थितियां आपके शरीर को प्रीटर्म लेबर की ओर धकेलती हैं। 

संकेत और लक्षण

अगर अच्छी तरह से ध्यान दिया जाए, तो प्रीटर्म लेबर के लक्षणों को पहचाना जा सकता है और समय पर सही कदम उठा कर समस्या को सुलझाने में मदद मिल सकती है। 

  • कमर में दर्द, जो कि पोजीशन बदलने के बाद भी कम न हो।
  • कॉन्ट्रैक्शन, जिनके बीच 10 मिनट या इससे भी कम का अंतर हो।
  • पेट के निचले हिस्से में अत्यधिक क्रैंपिंग, जो कि मेंस्ट्रुअल क्रैंप्स की तरह लगे। ये गैस की परेशानी जैसे लग सकते हैं और इनके कारण लूज मोशन भी हो सकते हैं।
  • वेजाइना से अप्रत्याशित तरल पदार्थ का बहाव।
  • आमतौर पर फ्लू की शुरुआत में दिखने वाले ज्यादातर प्रमुख लक्षणों का दिखना। मतली, उल्टी, डायरिया और तरल पदार्थों के सेवन में शरीर का सक्षम ना होना।
  • वेजाइना के साथ-साथ पेल्विक क्षेत्र पर दबाव पैदा होना।
  • वेजाइनल ट्रैक्ट में डिस्चार्ज का बढ़ जाना और इसमें तेजी आ जाना।
  • वेजाइना से हल्के रंग की ब्लीडिंग होना।

कॉन्ट्रैक्शन कैसे महसूस होते हैं?

प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले फॉल्स कॉन्ट्रैक्शन को ‘ब्रेक्सटन हिक्स कॉन्ट्रैक्शन‘ कहा जाता है। इसमें गर्भाशय की मांसपेशियां कॉन्ट्रैक्ट होने लगती हैं और पेट सख्त होने लगता है। जब कॉन्ट्रैक्शन खत्म हो जाते हैं, तब मांसपेशियां फिर से मुलायम हो जाती हैं। ये कॉन्ट्रैक्शन ज्यादातर अनियमित होते हैं और इनमें कोई विशेष फ्रीक्वेंसी नहीं होती है और आमतौर पर इनके कारण सर्विक्स भी नहीं खुलता है। 

हालांकि जब ये कॉन्ट्रैक्शन लगातार बार-बार होने लग जाते हैं और कुछ देर के लिए 10 से 12 मिनट के बीच के अंतराल पर होने लगते हैं, तो यह प्रीमैच्योर लेबर का संकेत होता है और डॉक्टर यह चेक कर सकते हैं कि सर्विक्स खुला है या नहीं। 

कॉन्ट्रैक्शन की जांच कैसे करें?

  • शरीर के एब्डोमिनल एरिया पर अपनी फिंगर टिप्स को रखें।
  • चेक करें, कि आप गर्भाशय की मांसपेशियों के ढीले होने और कसने को महसूस कर सकती हैं या नहीं।
  • हर बार कॉन्ट्रैक्शन होने पर समय को नोट करें और यह भी नोट करें कि ये कितनी देर तक रहते हैं।
  • अपनी पोजीशन बदल कर, रिलैक्स करके और थोड़ा पानी पीकर कॉन्ट्रैक्शन को रोकने की कोशिश करें।
  • अगर कॉन्ट्रैक्शन इसी फ्रीक्वेंसी के साथ एक घंटे तक जारी रहते हैं या स्थिति बिगड़ने लगती है और गंभीर दर्द शुरू होने लगता है, तो आपको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

प्रीमैच्योर लेबर का अनुभव होने पर क्या करें?

अगर आप प्रीमैच्योर लेबर का अनुभव कर रही हैं, तो ऐसी स्थिति में आपको नीचे दिए गए कदम उठाने चाहिए: 

  • पेशाब करें और अपने ब्लैडर को पूरी तरह से खाली करें।
  • बिस्तर पर बाईं करवट से लेट जाएं। इससे आपको कॉन्ट्रैक्शन को धीमा करने में मदद मिलेगी, जिससे ये पूरी तरह से रुक भी सकते हैं।

  • पीठ के बल न लेटें, इससे कॉन्ट्रैक्शन में तेजी आती है।
  • कभी-कभी पानी की कमी और डिहाइड्रेशन के कारण भी कॉन्ट्रैक्शन हो सकते हैं, इसलिए आपका पेट भरने तक कुछ गिलास पानी पिएं।
  • अपने कॉन्ट्रैक्शन को ट्रैक करें और चेक करें कि वे ऐसे ही बने रहते हैं, या इनमें कमी आ रही है।

प्रीमैच्योर लेबर की जांच और पहचान

यहां पर कुछ टेस्ट दिए गए हैं, जिनके द्वारा प्रीमैच्योर लेबर को पहचाना जा सकता है: 

1. पेल्विस की जांच

डॉक्टर गर्भाशय की जांच कर सकते हैं और यह पता कर सकते हैं, कि वह सख्त है या मुलायम है। इसके साथ ही बच्चे की पोजीशन और उसके आकार को समझने की कोशिश भी कर सकते हैं। जब डॉक्टर आश्वस्त हो जाते हैं, कि पानी की थैली फटी नहीं है और प्लेसेंटा सर्विक्स को कवर नहीं कर रहा है, तो ऐसे में डॉक्टर सर्विक्स की जांच कर सकते हैं और यह पता कर सकते हैं कि उसका खुलना शुरू हुआ है या नहीं। 

2. अल्ट्रासाउंड के द्वारा मॉनिटरिंग

डॉक्टर सर्विक्स की लंबाई की जांच करना चाहेंगे और इसलिए वे ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड का चुनाव कर सकते हैं। अल्ट्रासाउंड बच्चे की स्थिति और अंदर मौजूद एमनियोटिक फ्लूइड की मात्रा को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है और साथ ही यह वजन का मूल्यांकन भी करता है। 

3. गर्भाशय की जांच

अगर आपको कॉन्ट्रैक्शन हो रहे हैं, तो डॉक्टर यूटरिन मॉनिटर के द्वारा उनसे संबंधित अधिक जानकारी लेने की कोशिश कर सकते हैं। यह उपकरण आपकी कॉन्ट्रैक्शन की अवधि को कैलकुलेट करता है और उसका मूल्यांकन करने में मदद करता है और साथ ही यह उनके बीच की फ्रीक्वेंसी की भी जांच करता है। 

4. खास लेबोरेटरी टेस्ट

इसके अलावा डॉक्टर एक कॉटन स्वैब के इस्तेमाल से वेजाइनल सेक्रेशन का नमूना ले सकते हैं और संक्रमण की जांच कर सकते हैं। इससे फेटल फाइब्रोनेक्टिन के संकेतों की जांच करने में मदद मिलती है, जो कि मजबूत ग्लू की तरह काम करते हैं और गर्भाशय की लाइनिंग के साथ फीटल सैक को जोड़े रखते हैं। पेशाब का एक नमूना भी लिया जाएगा, ताकि किसी तरह के बैक्टीरिया या वायरस की मौजूदगी की जांच की जा सके। 

प्रीटर्म लेबर से बचने के लिए इलाज

जब लेबर शुरू हो जाता है, तो कोई भी दवा या सर्जरी इसे रोक नहीं सकती है। ऐसे ही कुछ खास रिकमेंडेशन होते हैं, जिन पर आपके डॉक्टर आपको विचार करने को कह सकते हैं। 

दवाएं

प्रेगनेंसी के किस पड़ाव पर प्रीटर्म लेबर की स्थिति पैदा हो सकती है, इसके आधार पर डॉक्टर आपको कॉर्टिकोस्टेरॉइड के इस्तेमाल की सलाह दे सकते हैं, ताकि बच्चे के फेफड़ों के विकास में तेजी आ सके। इनकी सलाह अधिकतर तब दी जाती है, जब गर्भावस्था 24 सप्ताह से 34 सप्ताह के बीच हो। अंतिम पड़ाव में अगर आपकी डिलीवरी 34 सप्ताह और 36 सप्ताह के अंदर होने की संभावना बहुत अधिक है और आपने पहले कॉर्टिकोस्टेरॉइड की खुराक नहीं ली है, तो आपके डॉक्टर आपको यह लेने की सलाह दे सकते हैं। 

कुछ खास मामलों में डॉक्टर मैग्नीशियम सल्फेट की सलाह भी दे सकते हैं। अगर बच्चा गर्भावस्था के 32 सप्ताह से पहले जन्म ले लेता है, तो मस्तिष्क के अधूरे विकास की संभावना होती है। मैग्नीशियम सल्फेट देने से ऐसा होने का खतरा कम हो जाता है और सेरेब्रल पाल्सी जैसी स्थितियों से बचा जा सकता है। 

प्रीटर्म लेबर के मामलों में जो अंतिम निर्णय लिया जा सकता है, वह है इसे अस्थाई रूप से टाल देना। टोकोलाइटिक्स एक खास प्रकार की दवा होती है, जो कुछ समय के लिए कॉन्ट्रैक्शन को रोकने में मदद कर सकती है। यह ज्यादातर मामलों में केवल 2 दिनों तक काम कर सकती है। हालांकि, डॉक्टर इस समय का इस्तेमाल कॉर्टिकोस्टेरॉइड के द्वारा जितना संभव हो सके बच्चे के विकास में तेजी लाने में या फिर आपको ऐसे किसी दूसरे हॉस्पिटल में शिफ्ट करने में इस्तेमाल कर सकते हैं, जहां प्रीमैच्योर शिशुओं को सपोर्ट करने के लिए सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं को टोकोलाइटिक्स लेने की सलाह नहीं दी जाती है।

सर्जरी

कुछ बहुत ही खास मामलों में, डॉक्टर आपको सर्वाइकल सरक्लेज की सलाह दे सकते हैं, जो कि एक सर्जिकल प्रक्रिया होती है। यह मुख्य रूप से उन महिलाओं के लिए फायदेमंद होती है, जिनका सर्विक्स छोटा होता है। इस प्रक्रिया की सलाह अधिकतर केवल तब ही दी जाती है, जब आपकी प्रेगनेंसी 24 सप्ताह से कम की हो, आप की पहले की गर्भावस्था में प्रीमैच्योर डिलीवरी हुई हो और आपके सर्विक्स की लंबाई 25 मिलीमीटर से कम हो, जिसकी जानकारी अल्ट्रासाउंड से मिलती है। 

इस प्रक्रिया में, मजबूत टांके लगाकर और सिलाई करके सर्विक्स को बंद कर दिया जाता है। जब आप की गर्भावस्था के 36 सप्ताह पूरे हो जाते हैं, तब टांके निकाल दिए जाते हैं, ताकि प्राकृतिक लेबर हो सके। 

प्रीमैच्योर लेबर से बचने के लिए क्या करें?

यहां पर सावधानी के कुछ तरीके दिए गए हैं, जिनके द्वारा प्रीटर्म लेबर से बचा जा सकता है: 

1. प्रीनेटल केयर

प्रीनेटल केयर में किसी तरह की मेडिकल स्थिति और आपके द्वारा ली जाने वाली दवाओं का ध्यान रखा जाता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रेगनेंसी के दौरान आप और आपका बच्चा दोनों सुरक्षित रहें। 

2. इन्फ्लूएंजा शॉट

गर्भवती होने के दौरान फ्लू से ग्रस्त होने पर प्रीटर्म लेबर की आपकी संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में इससे बचाव के लिए फ्लू शॉट लेना सबसे अच्छा होता है। 

3. धूम्रपान छोड़ना

अगर आप धूम्रपान करती हैं, तो इसे छोड़ने का यह सही समय है। निकोटिन पैच का इस्तेमाल करें, हालांकि यह आदर्श नहीं है, सिगरेट से दूर रहने के लिए आप इनका या कुछ अन्य तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

4. वजन को मैनेज करना

मोटापा प्रीटर्म लेबर को ट्रिगर करने वाले मजबूत कारकों में से एक है। एक संतुलित और स्वस्थ आहार लें और  जितना हो सके हल्की एक्सरसाइज और गतिविधियों को जारी रखें। 

प्रीमैच्योर लेबर गर्भावस्था पर क्या प्रभाव डालता है?

फुल टर्म प्रेगनेंसी से एक विकसित और स्वस्थ बच्चे की संभावना बढ़ती है। प्रीमैच्योर लेबर का हमेशा यह अर्थ नहीं होता है, कि डिलीवरी प्रीमैच्योर ही होगी। अगर ऐसा होता है, तो ऐसे बच्चे में अभी या जीवन में आगे चलकर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा होता है। गर्भावस्था के 24 सप्ताह से पहले पैदा होने वाले बच्चों में जीवित रहने की संभावना 50-50 होती है। 

प्रीमैच्योर डिलीवरी की संभावना को कम करने के लिए और बच्चे को किसी तरह के नुकसान से बचाने के लिए प्रीटर्म लेबर मैनेजमेंट बेहद जरूरी है। शुरुआत में ही सुरक्षात्मक मापदंडों को अपनाकर और रेकमेंड किए गए इलाज का चुनाव करके, प्रीमैच्योर डिलीवरी की संभावना को कम किया जा सकता है और मां और शिशु दोनों ही सुरक्षित रह सकते हैं। 

यह भी पढ़ें:

प्रीटर्म लेबर से कैसे बचें
प्रेसिपिटेट लेबर – कारण, लक्षण और कैसे मैनेज करें
फॉल्स लेबर और असली लेबर के बीच फर्क को कैसे पहचानें

पूजा ठाकुर

Recent Posts

9 का पहाड़ा – 9 Ka Table In Hindi

गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…

3 days ago

2 से 10 का पहाड़ा – 2-10 Ka Table In Hindi

गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…

3 days ago

10 का पहाड़ा – 10 Ka Table In Hindi

10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…

3 days ago

8 का पहाड़ा – 8 Ka Table In Hindi

8 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित का एक अहम हिस्सा है, जो उनकी गणना…

3 days ago

5 का पहाड़ – 5 Ka Table In Hindi

गणित में पहाड़े याद करना बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण और उपयोगी अभ्यास है, क्योंकि…

4 days ago

3 का पहाड़ा – 3 Ka Table In Hindi

3 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के मूलभूत पाठों में से एक है। यह…

4 days ago