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अगर आप गर्भवती हैं, तो इस बात का ध्यान आपको जरूर रखना चाहिए कि आपका ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहे। जब भी आप अपने रेगुलर अपॉइंटमेंट के लिए जाती होंगी, तो डॉक्टर आपके ब्लड प्रेशर की जांच करते होंगे, यह देखने के लिए कि वो कंट्रोल में है या नहीं। क्योंकि हाई ब्लड प्रेशर आपकी सेहत को प्रभावित करने के साथ चिंता का कारण भी बनता है।
यदि गर्भावस्था के 20 हफ्ते के बाद आपका ब्लड प्रेशर अचानक से बढ़ जाता है, तो डॉक्टर आपकी यूरिन यानी मूत्र में प्रोटीन के अंशों की जांच करेंगे, जिससे उन्हें प्री-एक्लेमप्सिया का निदान करने में मदद मिलेगी। यदि आपकी यूरिन में प्रोटीन का कोई निशान नहीं है, तो आपको गर्भावस्था से प्रेरित हाई ब्लड प्रेशर या जेस्टेशनल हाइपरटेंशन होने की अधिक संभावना है। ऐसा कहा जाता है कि लगभग 10% गर्भवस्थाएं हाई ब्लड प्रेशर से प्रभावित होती हैं।
बता दें कि जब गर्भावस्था के दौरान आपका ब्लड प्रेशर हाई होता है, तो इसे प्रेगनेंसी इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन (प्रेगनेंसी के कारण बढ़ने वाला ब्लड प्रेशर) या पीआईएच कहा जाता है। यह आपके मूत्र और वैस्कुलर लेशन्स में अतिरिक्त प्रोटीन पाए जाने का कारण होता है। जब आपकी यूरिन में अत्यधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, तो इस स्थिति को प्रोटीनूरिया कहते हैं; हाइपरटेंशन बाद में प्री-एक्लेमप्सिया में विकसित हो जाता है।
आपका हाई ब्लड प्रेशर जितना गंभीर होगा, उतनी ही अधिक समस्याएं आपके लिए बढ़ेंगी। इसकी गंभीरता उस समय पर निर्भर करती है जब यह विकसित होता है। यदि यह गर्भावस्था की शुरुआती स्टेज में विकसित हो, तो यह और अधिक समस्याएं पैदा कर सकता है। हालांकि, ज्यादातर महिलाओं में यह स्थिति जल्दी विकसित नहीं होती है, लेकिन उन महिलाओं की तुलना में इन्हें लेबर इंड्यूस करने या सी-सेक्शन होने का खतरा अधिक होता है, जो हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित नहीं होती हैं।
गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर का बढ़ना सामान्य माना जाता है, जिसका मतलब यह है कि आपको सभी प्रकार के ब्लड प्रेशर के बारे में चिंतित होने की जरूरत नहीं है। हालांकि, अगर आपका ब्लड प्रेशर हाई है तो आपको इसे नजरअंदाज भी नहीं करना चाहिए। प्री-एक्लेमप्सिया के अलावा, तीन अन्य प्रकार के हाई ब्लड प्रेशर होते हैं। महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर के तीन प्रकार इस प्रकार हैं:
जिन महिलाओं को क्रोनिक हाइपरटेंशन की समस्या होती है, उन्हें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या पहले और यहां तक कि प्रेगनेंसी के दौरान भी होता है। महिलाओं को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या प्रसव के बाद भी बनी रहती है। पहले से मौजूद हाई ब्लड प्रेशर की वजह से आपको प्री-एक्लेमप्सिया होने की अधिक संभावना बढ़ जाती है और प्लेसेंटल अब्रप्शन और भ्रूण के विकास का जोखिम और भी अधिक हो जाता है।
इस प्रकार का हाई ब्लड प्रेशर गर्भावस्था के 20वें सप्ताह के बाद ही विकसित होता है और फिर डिलीवरी के बाद खत्म हो जाता है। इस प्रकार के हाई ब्लड प्रेशर में महिलाएं पहले से इससे पीड़ित नहीं होती हैं और प्रेगनेंसी के दौरान यह विकसित होता है, लेकिन ऐसे में खून में प्रोटीन की अतिरिक्त मात्रा नहीं पाई जाती है।
क्रोनिक और जेस्टेशनल हाइपरटेंशन के कारण प्री-एक्लेमप्सिया होता है। हालांकि, जब प्री-एक्लेमप्सिया किसी ऐसे व्यक्ति में विकसित हो जाता है जिसे क्रोनिक हाइपरटेंशन है, तो इसे सुपरइम्पोज़्ड प्री-एक्लेमप्सिया के साथ क्रोनिक हाइपरटेंशन के रूप में जाना जाता है।
गर्भावस्था के दौरान एक महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं और इनमें से कुछ के कारण उसका ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। कुछ महिलाएं गर्भावस्था से प्रेरित उच्च रक्तचाप के विकास के लिए अधिक संवेदनशील होती हैं और कुछ अन्य कारण भी हैं जो कुछ महिलाओं को दूसरों की तुलना में अधिक जोखिम में डाल सकते हैं। गर्भावस्था से प्रेरित हाई ब्लड प्रेशर के कारण के बारे में सही से बताया नहीं जा सकता है, लेकिन कुछ ऐसी स्थितियां होती हैं, जो पीआईएच के विकास के जोखिम को बढ़ा सकती हैं, जैसे कि गुर्दे (किडनी) की बीमारी, डायबिटीज, पहले से मौजूद हाई ब्लड प्रेशर आदि।
इन महिलाओं को जेस्टेशनल हाइपरटेंशन होने का खतरा हो सकता है:
नियमित जांच कराने से आपको यह जानने में मदद मिलती है कि आपको पीआईएच है या नहीं। हालांकि, यह जानना अच्छा है कि आप क्या देखना चाहती है। जेस्टेशनल हाइपरटेंशन के लक्षणों में शामिल हैं:
सूजन को मेडिकल भाषा में एडिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरीर के कुछ अंगों में चोट लगने के कारण सूजन आ जाती है। हालांकि, सिर्फ सूजन आने से इसका मतलब यह नहीं है कि आपको पीआईएच है। लेकिन अगर आप विशेष रूप से अपने चेहरे, हाथों और पैरों में सूजन देखती हैं, तो आप पीआईएच से पीड़ित हो सकती हैं और ऐसे में अपने डॉक्टर से जांच जरूर करवाएं।
नियमित रूप से अपने ब्लड प्रेशर की जांच करने के अलावा इसको टेस्ट करने का कोई और विशेष तरीका नहीं है, जो गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच का एक जरूरी हिस्सा है। यदि आपका ब्लड प्रेशर अधिक मात्रा में बढ़ जाता है, तो आपके पीआईएच से पीड़ित होने की सबसे अधिक संभावना होती है। अगर आपको किसी प्रकार का संदेह है कि आपको पीआईएच है या नहीं, तो ऐसे में बच्चे की हार्ट बीट की जांच के लिए नॉन-स्ट्रेस टेस्ट किया जाता है। वहीं डॉक्टर बच्चे के विकास की जांच करने के लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन भी कर सकते हैं।
आपको बता दें कि गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर आपके बच्चे को खतरे में डाल सकता है क्योंकि यह प्लेसेंटा में खून के बहाव को प्रभावित करता है। यदि प्लेसेंटा को पर्याप्त खून नहीं मिलता है, तो यह बच्चे को प्रभावित करेगा क्योंकि प्लेसेंटा ब्लड से अनचाहे घटकों को फिल्टर करता है और बच्चे तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व को पहुंचाता है। और अगर बच्चे को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते हैं, तो उसका जन्म के समय वजन कम हो सकता है।
हर चार में से एक महिला जो पीआईएच से पीड़ित होती है, उसे गर्भावस्था, लेबर या बेबी को जन्म देने के कुछ हफ्तों के बाद भी प्री-एक्लेमप्सिया विकसित हो सकता है। यदि आप गर्भावस्था के 30वें सप्ताह से पहले हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं, तो आप में प्री-एक्लेमप्सिया विकसित होने की संभावना 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसी वजह से कुछ दुर्भाग्यपूर्ण महिलाएं एक्लेमप्सिया नामक एक गंभीर स्थिति को विकसित कर लेती हैं, जिसमे हाई ब्लड प्रेशर होने के कारण दौरे पड़ने लगते हैं, जो बच्चे के लिए बहुत खतरनाक होता है। जब तक आप अपने नियमित चेक-अप के लिए जाती रहेंगी, आपको समस्या का जल्द ही पता चल सकेगा और ऐसे में आपके डॉक्टर आपको सही मार्गदर्शन देंगे कि कैसे आपकी स्थिति को और बिगड़ने से रोका जाए और उसका सबसे बेहतर तरीके से उपचार किया जाए।
जिन महिलाओं को पीआईएच की समस्या होती है उनमें से सभी गर्भवती महिलाओं को सी-सेक्शन से गुजरना नहीं पड़ता है। यह आपके मामले की गंभीरता पर निर्भर करता है, जिसे डॉक्टर नियमित जांच करने के बाद निर्धारित करते हैं। यदि आपका मामला इतना गंभीर नहीं है कि आपको सी-सेक्शन करवाने की जरूरत हो, तो डॉक्टर लेबर शुरू करने के लिए ऑक्सीटोसिन जैसी दवा से भी आपका इलाज कर सकते हैं, जिससे आपको नार्मल डिलीवरी हो सके। हालांकि, अगर डॉक्टर को लगता है कि हस्तक्षेप की आवश्यकता है, तो आपको सी-सेक्शन डिलीवरी के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत होगी।
आमतौर पर जिन महिलाओं को गर्भावस्था से प्रेरित हाइपरटेंशन होता है उनमें डिलीवरी के एक या दो दिन के बाद इसके लक्षण कम होने लगते हैं। लेकिन कई बार ये लक्षण बच्चे के जन्म के बाद भी महिलाओं में मौजूद होते हैं, जिसे पोस्टपार्टम प्री-एक्लेमप्सिया कहा जाता है। जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान पीआईएच से पीड़ित नहीं होती हैं, वे भी डिलीवरी के छह सप्ताह बाद पोस्टपार्टम प्री-एक्लेमप्सिया को डेवलप कर सकती हैं। पीआईएच के लक्षणों में सिरदर्द, यूरिन में कमी, हाई ब्लड प्रेशर और दृष्टि से संबंधी समस्याएं शामिल हैं। इसके इलाज के लिए स्टेरॉयड या ब्लड प्रेशर की दवाएं दी जाती हैं।
प्रेगनेंसी इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन के साथ कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो कि आपके स्वास्थ्य, विकास और कभी-कभी आपके बच्चे के जीवन को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। ब्लड फ्लो में कमी आने की वजह से, प्लेसेंटा बच्चे को सही मात्रा में ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं पहुंचा पाता है। जिसके कारण जन्म के समय बच्चे का वजन कम होगा और कभी-कभी कुछ बच्चे अन्य प्रकार साइड इफेक्ट्स के साथ पैदा होते हैं। यहां कुछ ऐसे ही कॉम्प्लिकेशन के बारे में बताया गया है, जो प्रेगनेंसी इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन के कारण उत्पन्न हो सकते हैं:
हालांकि इसके बारे सुनने में आपको डर जरूर लगता होगा, लेकिन ज्यादातर महिलाएं जिनमें यह समस्या पाई गई है, वे स्वस्थ और खुश बच्चों को जन्म देती हैं, क्योंकि आपके ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखना संभव है। प्रेगनेंसी इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन का इलाज इस प्रकार होता है:
यदि आप पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं और वर्तमान में इसकी दवा ले रही हैं, तो डॉक्टर आपको इसे जारी रखने के लिए कह सकते हैं। हालांकि, अगर आपको दी जाने वाली दवा बच्चे को नुकसान पहंचा सकती है, तो डॉक्टर आपको प्रेगनेंसी के दौरान स्विच करने के लिए एक अलग दवा दे सकते हैं। ऐसे में वह आपकी बारीकी से जांच करेंगे कि बच्चा कैसे बढ़ रहा है और उसके लिए आपके सामान्य से ज्यादा अल्ट्रासाउंड करवाए जा सकते हैं। जैसे ही आप अपनी गर्भावस्था की फाइनल स्टेज पर पहुंचती हैं, आपको कुछ अन्य टेस्ट भी करवाने पड़ सकते हैं ताकि वह ये जान सकें कि आपका बच्चा हेल्दी है।
आपको बता दें कि प्रेगनेंसी के दौरान आपका ब्लड प्रेशर बढ़ना पूरी तरह से सामान्य है, फिर भी आपके डॉक्टर इसकी जांच जरूर करेंगे क्योंकि यह बहुत आसानी से प्री-एक्लेमप्सिया या एक्लेमप्सिया जैसी अधिक गंभीर समस्या में विकसित हो सकता है। डॉक्टर बच्चे के विकास और आपके ब्लड प्रेशर का अधिक ध्यान रखेंगे ताकि प्रेगनेंसी इंड्यूस्ड हाइपरटेंशन की समस्या विकसित न हो।
पीआईएच के मामले में, डॉक्टर इस समस्या का इलाज इस आधार पर करेंगे कि आपकी ड्यू डेट कितनी करीब हैं। एक ही उपचार ऐसा है जो पीआईएच को प्रभावी ढंग से रोक सकता है, वह है बच्चे को जन्म देना, लेकिन यह एक समझदारी भरा कदम नहीं है क्योंकि इससे उसे कुछ गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। जब आप या आपका बच्चा बीमार पड़ता है, तभी डॉक्टर सही मायने में समय से पहले डिलीवरी करने पर जोर देंगे। ऐसे में वह आपको काम से कुछ दिन छुट्टी लेने के लिए कहेंगे ताकि आप आराम कर सकें, क्योंकि इस समय आराम करना महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब आप पीआईएच से ग्रसित हैं।
अगर आपके परिवार में पहले से ही डायबिटीज और प्री-एक्लेमप्सिया का इतिहास रहा है, तो ऐसे में डॉक्टर भी यह निष्कर्ष निकालेंगे कि आपको पीआईएच होने का अधिक खतरा है और इसके लिए नीचे निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
हाई ब्लड प्रेशर और मोटापा ही ऐसे दो कारण हैं जो प्रेगनेंसी के दौरान हाइपरटेंशन की समस्या को बढ़ाते हैं। यह कहना आसान नहीं है कि कैसे एक स्वास्थ्य समस्या कई अन्य बीमारियों को जन्म दे सकती है। इसलिए आपको अपने आप को शेप में रखने के लिए एक्सरसाइज करनी चाहिए और खुद को हाइड्रेटेड रखना चाहिए साथ ही अच्छी डाइट लेनी चाहिए जो बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में आपको आराम करना चाहिए और अपने किसी भी नियमित चेकअप को मिस नहीं करना चाहिए।
यदि आप अपनी डिलीवरी डेट के करीब पहुंच रही हैं और आपका पीआईएच गंभीर नहीं है, तो कुछ ऐसे टिप्स हैं जिन्हें आप अपने जीवन में शामिल कर सकती हैं जो पीआईएच को रोकने में आपकी मदद करेंगे।
यदि आप काम कर रही हैं, तो आपको हर दो घंटे में एक ब्रेक जरूर लेना चाहिए। घर पर सही से आराम करना आपके लिए चमत्कार की तरह साबित हो सकता है। ऐसी हालत में कभी भी लंबे समय तक लगातार बैठी या खडी न रहें। आपको थोड़ी देर के लिए लेटना जरूर चाहिए और खासकर बाईं करवट लेटें क्योंकि इससे आपके ब्लड वेसल पर दबाव कम पड़ेगा।
प्रेगनेंसी के दौरान किसी विशेषज्ञ से सलाह लेकर उन व्यायामों के बारे में जानें जो आप कर सकती हैं। अधिक वजन होने की वजह से गर्भवती महिलाओं में पीआईएच विकसित होना एक सामान्य बात है।
कम नमक वाले खाने को अपनी डाइट में शामिल करें; यह आपके लिए महत्वपूर्ण है कि आप जितना संभव हो नमक कम ही खाएं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कम नमक आपके ब्लड प्रेशर को सही रखेगा और साथ ही इसके अधिक गंभीर रूप को विकसित होने से भी रोकेगा।
चाहे आप हाई ब्लड प्रेशर या पीआईएच से पीड़ित हों या नहीं, गर्भवती महिलाओं के लिए दिन में कम से कम आठ गिलास पानी जरूर पिएं। ढेर सारा पानी पीना ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
विटामिन सी की मात्रा को किसी न किसी तरह से अपनी डाइट में बढ़ाएं क्योंकि यह आपके ब्लड प्रेशर को स्थिर रखने में मदद करता है। अपने खाने में संतरे और नींबू को अधिक इस्तेमाल करें। आप एक गिलास गर्म पानी में नींबू और शहद मिलाकर भी पी सकती हैं।
इस बात का ध्यान रखें कि आप जो भी खाती हैं वह ताजा हो। कैन में बंद खाने को खाने से बचें, इससे आपको बहुत फर्क पड़ेगा और आपका ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहेगा। इसके अलावा, स्टार्च युक्त खाने से बचें या इनका सेवन कम से कम मात्रा में करें, क्योंकि इनसे वजन बढ़ सकता है, जिससे गर्भावस्था के दौरान कई अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
सभी जानते हैं टेंशन हाई ब्लड प्रेशर के मुख्य कारणों में से एक है। यही कारण है कि आपको सांस लेने वाले व्यायाम सीखना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये आपके शरीर को आराम देने में मदद कर सकते हैं और बदले में आपके ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखने के लिए मदद करते हैं। गहरी सांस लेने से ऑक्सीजन से भरपूर ब्लड को नियंत्रित करने और आपके शरीर की हर एक सेल तक पहुंचाने में मदद मिलती है। आप इसे ऐसी किसी भी स्थिति में कर सकती हैं जिसमें आप सहज हों, लेकिन आपको इसे दिन में कम से कम दो बार पंद्रह मिनट तक करने की सलाह दी जाती है।
हालांकि ऐसी हालत में आपको यह कठिन जरूर लगेगा, पर आपको कम से कम 40 से 45 मिनट तक टहलना चाहिए, इससे आपको ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी क्योंकि यह ब्लड को सर्कुलेट करता है। जो लोग हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं उनके लिए काफी भारी व्यायाम करना अच्छा नहीं है, यही कारण है कि इस समय चलना व्यायाम करने का सबसे सुरक्षित और फायदेमंद तरीका है।
स्ट्रेचिंग ब्लड फ्लो कंट्रोल करने और आपके जीवन में तनाव के लेवल को कम करने का एक शानदार तरीका है। इतना ही नहीं, यह आपको शारीरिक रूप से बेहतर महसूस कराता है।
यदि आपको पीआईएच है, तो कुछ चीजें हैं जो आप हाई ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए घर पर कर सकती हैं। हालांकि, इन घरेलू नुस्खों को आजमाने से पहले अपने डॉक्टर से एक बार सलाह जरूर लें।
एक गिलास गर्म पानी में एक चम्मच एप्पल साइडर विनेगर, कुछ बूंद शहद और दो चम्मच नींबू का रस मिलाएं। यह ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है।
अपने रोज के आहार में बहुत सारा पत्तेदार साग जैसे केल, लेट्यूस और पालक शामिल करें। इनमें पोटेशियम होता है, जो किडनी को आपके शरीर से अतिरिक्त सोडियम को खत्म करने में मदद करता है, जिससे ब्लड प्रेशर कम होता है।
केले में पोटेशियम होता है, जो ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है। लो-सोडियम, हाई-फाइबर नाश्ते के लिए दलिया के साथ केला खा सकती हैं जो हाई ब्लड प्रेशर को कम करेगा।
चुकंदर में नाइट्रिक ऑक्साइड होता है जो आपकी ब्लड वेसल को चौड़ा करता है और ब्लड प्रेशर को कम करता है। आप चुकंदर को जूस, सलाद या स्टर-फ्राइड साइड डिश के रूप में ले सकती हैं।
मैग्नीशियम युक्त खाना आपके ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है। ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए अपनी डाइट में बादाम, एवोकाडो, सोया दूध और सूरजमुखी और कद्दू जैसे बीज शामिल करें।
गर्भावस्था हर महिला के लिए एक ऐसा समय होता है जब वह अपने हार्मोनल परिवर्तनों के कारण पहले से ही शरीर में बदलाव का अनुभव करने लगती हैं। ये बदलाव जरूरी हैं और इसलिए होते हैं ताकि आपका शरीर खुद को एक नए जीवन के लिए तैयार कर सके। यही कारण है कि गर्भवती महिलाओं को अक्सर अपने खाने पर कई तरह के प्रतिबंध लगाने पड़ते हैं और पर्याप्त मात्रा में आराम करने और साथ ही रोजाना हल्का व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। ऐसे समय में महिलाओं को स्वस्थ आहार लेना चाहिए। इसके अलावा यह सुझाव भी दिया जाता है कि आप डॉक्टर से अपनी डाइट के बारे में पूछें कि क्या अच्छा है और आपको किन चीजों से बचना चाहिए और ताकि आपकी गर्भावस्था स्वस्थ हो!
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